सिद्ध और बच्चा / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल
पैगम्बर शरीअ को एक दिन एक बगीचे में एक बच्चा दिखा। वह उनकी ओर दौड़ आया और बोला, "गुड मॉर्निंग, सर।"
"देख रहा हूँ कि तुम अकेले हो!" पैगम्बर ने कहा।
इस पर बच्चे ने प्रफुल्ल-स्वर में कहा, "बड़ी मुश्किल से आया से पीछा छुड़ाया है। वह सोच रही है कि मैं उन झाड़ियों के पीछे हूँ। लेकिन आप तो देख ही रहे हैं कि मैं यहाँ हूँ।" यह कहकर उसने पैगम्बर के चेहरे पर नजर गड़ा दी और बोला, "आप भी तो अकेले हैं? अपनी आया का क्या किया?"
पैगम्बर ने कहा, "यह एकदम अलग बात है। सचाई यह है कि मैं कभी भी उसकी नजरों से दूर नहीं होता। लेकिन इस समय, जब मैं बगीचे में घुसा, उसने झाड़ियों के पीछे तक मेरा पीछा किया।"
बच्चा ताली बजाते हुए चिल्ला उठा, "तो आप भी मेरी तरह अपनी आया से बिछुड़ गये है! गुम हो जाने में मजा आता है न?" फिर बोला, "आप हैं कौन?"
उसने कहा, "लोग मुझे पैगम्बर शरीअ कहते हैं। तुम कौन हो?"
"मैं बस मैं हूँ।" बच्चे ने कहा, "मेरी आया मेरे पीछे पड़ी है। उसे नहीं मालूम कि मैं कहाँ हूँ।"
पैगम्बर आसमान की ओर ताकने लगा। बोला, "एक पल के लिए तो मैं भी अपनी आया से बिछुड़ गया हूँ। लेकिन वह मुझे ढूँढ लेगी।"
"मेरी भी मुझे ढूँढ़ लेगी, मुझे पता है।" बच्चा बोला।
उसी पल बच्चे का नाम पुकारता एक नारी-स्वर उन्होंने सुना।
"देख लो, " बच्चे ने कहा, "मैंने कहा था न कि वह मुझे ढूँढ़ लेगी।"
उसी पल एक-और आवाज़ सुनाई दी, "तुम कहाँ हो, शरीअ?"
और पैगम्बर ने कहा, "देखो मेरे बच्चे, उन्होंने मुझे भी ढूँढ़ लिया है।" फिर ऊपर की ओर चेहरा उठाकर शरीअ ने कहा, "मैं यहाँ हूँ।"