सिनेमा में बेरोजगारी / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 02 फरवरी 2019
हमारे यहां बेरोजगारी विषय पर कम फिल्में बनी हैं परंतु सिनेमा उद्योग में बेरोजगारी बढ़ी है। आज पहले से कहीं अधिक संख्या में फिल्में बनने लगी हैं परंतु निरंतर विकास करती टेक्नोलॉजी के कारण बेरोजगारी बढ़ी है। इसका सबसे त्रासद प्रभाव हमें गीत-संगीत के ध्वनि मुद्रण क्षेत्र में देखने को मिलता है। कम्प्यूटर जनित ध्वनियों के कारण वाद्य यंत्र वाले बेरोजगार हो गए। उन्होंने अपनी कला अपनी संतान को नहीं सिखाई। संगीत क्षेत्र में विरासत इसी तरह जारी रही थी पर अनेक वाद्य यंत्र अब उपलब्ध ही नहीं हैं। संगीत क्षेत्र में विरासत इसी तरह जारी रही थी पर अनेक वाद्य यंत्र बजाने वाले बेरोजगार हो गए। उन्होंने अपनी कला अपनी संतान को नहीं सिखाई। संगीत क्षेत्र में विरासत इसी तरह जारी रही थी पर अनेक वाद्य यंत्र अब उपलब्ध ही नहीं हैं। जल तरंग अदृश्य-सा हो चुका है। याद आता है कि जब शापुरजी पालनजी ने श्वेत-श्याम 'मुगल-ए-आजम' को रंगीन करने का निर्णय लिया तब संगीतकार नौशाद को फिल्म का संगीत स्टीरियोफोनिक में ध्वनिबद्ध करने के लिए वादक नहीं मिले। जिन वादकों ने फिल्म निर्माण के समय काम किया था, उन वादकों ने अपनी संतानों को संगीत प्रशिक्षण नहीं दिया था, क्योंकि वे अपनी संतान को बेरोजगारी से बचाना चाहते थे।
एआर रहमान अपने चेन्नई स्थित स्टूडियो में एक गीत रिकॉर्ड करते समय महसूस करते हैं कि उन्हें दक्षिण अफ्रीका में बजाए जाने वाले ड्रम की ध्वनि की आवश्यकता है, तो वे दक्षिण अफ्रीका के संगीतकार को फोन पर अपनी आवश्यकता बताते हैं। आनन-फानन में दक्षिण अफ्रीका में ड्रम बजाया जाता है, जिसे टेक्नोलॉजी की सहायता से चेन्नई में ध्वनिबद्ध किया जाता है। इस तरह जादू के करतब की तरह गीत बनाए जाते हैं। माधुर्य के स्वर्ण काल में एक बड़े हॉल में लगभग 40 लोग वायलिन बजाते थे और लगभग इतनी संख्या में तबले और ढोलक बजाने वाले रिदम बनाते थे। तीसरे कक्ष में गायक या गायिका गीत गाते थे। पर्कशन सेक्शन में अपेक्षाकृत कम लोग होते थे। वर्तमान में तो दस बाय दस के कमरे में ही कंप्यूटर जनित ध्वनियों की सहायता से गीत रच लिया जाता है। कम्पोजर इलेक्ट्रिशियन की तरह तारों से खेलता है। आज संगीतकार को कम्प्यूटर विज्ञान की जानकारी होना आवश्यक है। कम्प्यूटर जनित ध्वनियों में अपनी पसंद की ध्वनि चुनने की स्वतंत्रता है और विविधता भी उपलब्ध है परंतु मौलिक सृजन को हतोत्साहित किया जा रहा है।
संगीत बाजार के एक मालिक के पास सैकड़ों गीत ध्वनिबद्ध रखे हैं। उसके पास एक संगीत गोदाम है। वह फिल्मकार से संगीत खरीदने के अनुबंध में यह लिखा लेता है कि फिल्मकार को उसके गोदाम से ही गीत चुनना है। वह जानता है कि फिल्मों में प्रेम गीत, विरह गीत और शादी की रस्मों से संबंधित गीतों की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही यह सुविधा भी है कि अगर फिल्मकार को दो गीतों के कुछ अंश पसंद हैं तो टेक्नोलॉजी की सहायता से वह पसंद किए गए भागों को जोड़कर एक गीत बना देता है। एक संगीतकार ने एक बार एक सर्वकालिक महान गायिका द्वारा गाए गीतों के अंश लेकर एक ऐसा गीत बना दिया, जो उस गायिका ने गाया ही नहीं। इसी तरह पुरानी फिल्मों के लिए रिकॉर्ड किया गया पार्श्व संगीत का भी एक गोदाम है। आज हम एक ऐसी फिल्म देखते हैं, जिसमें चार संगीतकारों के पूर्व में ध्वनिबद्ध किए पार्श्व संगीत का समावेश है। इस तरह एकल प्रतिभा का यह क्षेत्र भी 'भीड़' के नियंत्रण में चला गया है। सृजन क्षेत्र की बेरोजगारी अन्य क्षेत्रों की बेरोजगारी से अलग है। अन्य क्षेत्रों में बेरोजगारी टेक्नोलॉजी जनित नहीं होते हुए आर्थिक नीतियों का परिणाम है।
संगीत जगत में 'घराने' होते हैं और एक ही 'घराने' के दो व्यक्ति कभी एक-दूसरे के विरुद्ध किसी प्रतियोगिता में भाग नहीं लेते। संगीत घराने सरहद की दोनों ओर मौजूद हैं और इनमें किसी तरह का विभाजन नहीं हुआ है। अत: संगीत क्षेत्र राजनीतिक फैसलों से प्रभावित नहीं हुआ है।