सिनेमा सितारा जोड़ियों के चर्चित अलगाव / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :06 फरवरी 2016
विगत कुछ समय में अनेक फिल्म सितारों की प्रेम कहानियों में अलगाव आया है। हाल ही में दिल्ली में आयोजित समारोह में एक माह पूर्व रणवीर कपूर और कैटरीना कैफ को एक साथ आमंत्रित किया गया थे परंतु इस दरमियान इस प्रेम कथा में सेंध लग गई। दोनों का दृष्टिकोण व्यावहारिक है, अत: पहले रणवीर पहुंचे और उनके जाते ही कैटरीना पहुंचीं जैसे वे मंच के एक हिस्से में बैठीं अपनी बारी का इंतजार कर रही हों। संभव है आयोजकों से दोनों ने अग्रिम धन ले लिया था, अत: व्यावहारिकता का तकाजा था कि आयोजकों को उसके धन की वसूली मिले और इन्हें अग्रिम ली गई राशि लौटाना नहीं पड़े।
आज प्रेम का वह दौर नहीं है कि देवदास शराब में डूबा जाए और कहे 'कौन कम्बख्त कहता है कि मैं पीता हूं, पीता हूं ताकि सांस चलती रहे।' अब तो देवदास को पारो से बिछुड़ने का कोई दु:ख ही नहीं है। कम से कम यह जताया जरूर जाता है, क्योंकि वे ऐसे अर्थहीन संवादों के बीच पले हैं कि मर्द को दर्द नहीं होता गोयाकि दर्द पर महिलाओं का एकाधिकार है। आज की पारो भी किसी से यूं ही विवाह नहीं कर लेती। यह दौर हैं, 'तू नहीं, कोई और सही' परंतु प्रेम में होना अनिवार्य है, क्योंकि यह एक नशा है जैसे एक ब्रैंड की सिगरेट छोड़ दी तो दूसरी ब्रैंड की सिगरेट शुरू कर दी गोयाकि प्रेम में आकंठ डूबे रहना जीवन का ब्रैंड है। यह वैसा ही है जैसे एक दौर में युवा होने की अनिवार्य शर्त थी कि आप कविता लिखें या आपका कम्यूनिज्म से जुनूनी प्रेम हो। इस तरह कितने ही तब लोगों ने अपने पर काव्य कर्म लाद लिया या मार्क्स की भक्ति में आकंठ लीन हो गए। मार्क्स उस दौर में एक फैशन हो गया था। इस ट्रेंड में साहित्य व कम्यूनिज्म की हानि हुई।
फरहान अख्तर और अधूना की सोलह वर्ष पूरानी शादी टूट गई। फरहान अख्तर स्वयं टूटी शादी की संतान हैं अगर इसका कोई दुखद प्रभाव उन पर था तो उन्हें वही प्रभाव अपनी संतान को देना कैसा लग रहा होगा या वे साहिर लुधियानवी की पंक्तियों को जी रहे हैं, 'तजुरबाते हवादिश की शक्ल में, जो दुनिया ने दिया था, वह लौटा रहा हूं मैं।' साहिर साहब को जावेद अख्तर की हमेशा फिक्र रहती थी। उनके पिता जां निसार अख्तर ने भी पत्नी को त्यागा था, जो शायर मज़ाज की बहन थीं। आज प्रेम का स्वरूप और परिभाषा बदल गई है। छायावाद से वह प्रगतिवाद तक जा पहुंचा है। आज यह भी विवाद है कि विवाह नामक संस्था मर रही है पर यह मर नहीं सकती, क्योंकि वह संतान को उसकी कानूनी पहचान देती है। शादी के विकल्प के रूप में 'लिव इन' रिश्ते चल पड़े कि साथ रहते हैं परंतु किसी बंधन में गिरफ्तार नहीं हैं। 'लिव इन' रिश्ते समुद्र तट पर रेत के घरौंदों की तरह हैं कि समय की एक लहर उन्हें तोड़ देती है परंतु वे बार-बार बनाए जाते हैं, यह जानते हुए कि उनका टूटना अनिवार्य है। चौकोर पत्थरों से बने फुटपाथ पर पत्थरों के बीच छूटी अत्यंत छोटी जगह पर कुछ हरी कोंपलें उग जाती हैं और चलने वालों के जूतों के नीचे कुचली जाती हैं। जन्म-मृत्यु कुछ क्षणों के अंतर से विभक्त है परंतु उनके उगने और कुचले जाने का सिलसिला जारी रहता है। अवाम इन कोंपलों की तरह उगते हैं और सरकार के नाल जड़े जूते से कुचले जाते हैं। यह सिलसिला भी जारी रहता है। आम जनता की प्रेम-कहानी में आर्थिक स्थिति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। युवा प्रेमी अपने परिवार के एकमात्र कमाने वाले हैं और वे शादी नहीं कर सकते, क्योेंकि उन पर आश्रित परिवार का क्या होगा। राजेंद्र यादव ने इस तरह की एक प्रेम कहानी लिखी थी। इससे जुड़ा एक प्रसंग राज कपूर की 'श्री 420' में है जब नायक-नायिका छोटी नौकरियों से अपने उत्तरदायित्व संभाल रहे हैं तब नायक विवाह का प्रस्ताव रखता है और उसी क्षण बारिश होने लगती है। नायिका छाता खोलती है और नायक को देती है, वह नायिका को भीगते देख छाता उसे देता है, फिर धीरे-धीरे दोनों एक ही छाते के नीचे खड़े हो जाते है। वर्षा की लहरों की तरह संगीत लहरी बजती है। हिंदुस्तानी सिनेमा का लाजवाब प्रेम गीत प्रारंभ होता है, 'प्यार हुआ इकरार हुआ फिर प्यार से क्यों डरता है दिल' स्पष्ट है कि अपने-अपने कम वेतन के छाते के नीचे दो व्यक्ति भीगने से बच सकते है। हां छाता शादी है और बारिश जीवन की व्यावहारिक कठिनाइयां हैं। आज के प्रेमी जोड़े जाने क्यों डरते हैं? प्रेम निडरता है।