सिनेमा सीधे आपके शहर मे / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 15 दिसम्बर 2012
टेक्नोलॉजी गर्भवती सर्पिणी की तरह एक कतार में अनेक अंडे देती है और पेट खाली होने के कारण लौटते समय अपने ही अंडे खाने लगती है। हवा या धरती के कंपन के कारण कतार से लुढ़के हुए चंद अंडे बच जाते हैं। कुदरत का करिश्मा है कि अगर भूखी सर्पिणी ऐसा न करे तो धरती पर सांपों की संख्या मनुष्यों से अधिक हो जाए। यूं आज भी जहरीले इंसानों की कमी नहीं है। सिनेमा कतार से लुढ़का हुआ अंडा है और टेक्नोलॉजी से लडऩे के बदले उसे अंगीकार करता है, इसीलिए दूसरी सदी में प्रवेश कर रहा है।
जब सैटेलाइट चैनलों पर फिल्म का प्रदर्शन शुरू हुआ, तब जमाने की रफ्तार से अपरिचित वितरक संगठनों ने इसे रोकने की बचकाना और असफल कोशिश की। आज निर्माता को सबसे अधिक धन सैटेलाइट द्वारा टेलीविजन से प्रदर्शन द्वारा प्राप्त होता है। सिनेमाघर में बमुश्किल पांच करोड़ दर्शक ही सफलतम फिल्म को देखते हैं, टेलीविजन और अवैध डीवीडी पर देखने वालों की संख्या बहुत अधिक है। भारत में दस हजार एकल थिएटर और २००० मल्टीप्लैक्स स्क्रीन हैं तथा एक लाख पचहत्तर दर्शकों के लिए एक सिनेमा, जबकि अमेरिका में औसतन आठ हजार दर्शक पर एक सिनेमाघर है। बहरहाल सिनेमा अर्थशास्त्र के इस औघड़पन का जिक्र इसलिए किया जा रहा है कि कमल हासन की नई फिल्म के डीटीएच ('डायरेक्ट टू होम' अर्थात टेलीविजन पर सीधे फरमाइशी प्रदर्शन) अधिकार के लिए उन्हें सोलह करोड़ रुपयों का प्रस्ताव आया है और शर्त है कि सिनेमाघरों में प्रदर्शन के एक दिन पहले डीटीएच प्रदर्शन होगा। कमल हासन ने प्रस्ताव स्वीकार किया है तो मल्टीप्लैक्स शृंखला के मालिक उसकी फिल्म नहीं प्रदर्शित करने की धमकी दे रहे हैं। अत: कमल हासन की फिल्म एकल थिएटर और डीटीएच पर प्रदर्शित होगी। ज्ञातव्य है कि मल्टीप्लैक्स के आगमन पर यह भय अभिव्यक्त किया गया था कि एकल सिनेमा बंद हो जाएंगे, परंतु आज हम देखते हैं कि अगर एक भव्य फिल्म मल्टीप्लैक्स प्रदर्शन से पूरे भारत में तीस करोड़ अर्जित करती है तो एकल सिनेमाघर भी बीस करोड़ अर्जित करते हैं, जबकि अधिक दर्शक कम रुपयों वाले टिकट लेकर एकल में फिल्म देखते हैं। गोयाकि एकल की दर्शक संख्या मल्टीप्लैक्स से ज्यादा है।आज मल्टीप्लैक्स डीटीएच का विरोध उसी तरह कर रहे हैं, जैसे किसी दौर में एकल ने मल्टी का किया था या वितरकों ने सैटेलाइट का किया था। ज्ञातव्य है कि डीटीएच व्यवस्था अभी अपने शैशवकाल में है और इसके द्वारा फिल्म देखने के पैसे टेलीविजन उपभोक्ता को देने पड़ते हैं। आगे जाकर आप अपनी पसंद की फिल्म फरमाइश पर पैसा देकर अपने मोबाइल पर भी देख सकेंगे, अर्थात टेक्नोलॉजी निर्माता की आय के लिए नए साधन जुटा रही है और सिनेमा को सचमुच में अधिकतम के मनोरंजन का माध्यम बना रही है। कमल हासन को मल्टी पर न दिखाए जाने से जो घाटा होगा, उसकी पूर्ति डीटीएच अधिकार एवं एकल थिएटर में अधिक भीड़ द्वारा पूरी होगी।
भविष्य में यह संभव है कि डीटीएच सलमान खान या आमिर अभिनीत फिल्म के एक दिन पहले प्रदर्शन के पचास करोड़ का प्रस्ताव दे तो क्या मल्टीप्लैक्स विरोधस्वरूप उस फिल्म का प्रदर्शन नहीं करेंगे? मल्टी में भीड़ नहीं होगी तो पांच रुपए का पॉपकार्न पचास में कैसे बेचेंगे? क्या रजनीकांत की फिल्म का विरोध करके दक्षिण भारत में मल्टीप्लैक्स सुरक्षित रह पाएंगे? दरअसल मुद्दा यह है कि आप टेक्नोलॉजी को रोक नहीं सकते। उससे जुडऩे में ही सबका लाभ है। आज मल्टी वाले आय का पचास प्रतिशत लेते हैं तो डीटीएच अनुबंध के कारण दो प्रतिशत बढ़ा लें, परंतु निर्माता के अधिकतम कमाने का अधिकार आप छीन नहीं सकते। उनकी आय बढ़ेगी तो भव्यतर फिल्में बनेंगी। अभी तो ४डी और ५डी प्रदर्शन शैशव अवस्था में है, परंतु विदेशों में इस विधा पर खूब फिल्में देखी जा रही हैं और वह अनुभव ही अलग है, उसमें दर्शक पात्र के साथ अपने को खड़ा महसूस करता है। इसी तरह भारत में रिटेल व्यवसाय में विदेशी आगमन से किराना दुकानें बंद नहीं होंगी। जैसे मल्टी के साथ एकल चल रहा है, वैसे ही उन भव्य दुकानों के साथ किराना दुकानें भी चलेंगी, क्योंकि जो उधारी और आत्मीयता किराना दुकान देती हैं, वह विदेशी रिटेल शॉप में संभव नहीं है। आज भव्य पांचसितारा अस्पताल आ जाने से छोटे नर्सिंग होम बंद नहीं हुए हैं और आज भी कुछ अमीर विदेश जाकर सर्जरी कराते हैं। अब इस दुनिया में सरहदें मोम की तरह पिघल रही हैं, केवल नेताओं के स्वार्थ और पूर्वग्रह से कुछ सरहदें अब भी कांटेदार, धारदार हैं। यह टेक्नोलॉजी के द्वारा किए गए कायाकल्प और जनता के लिए अनेक विकल्पों का दौर है। जो ना समझे वो अनाड़ी है।