सिने और रंगमंच विधाओं का विस्तार / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 19 अगस्त 2019
'द हिन्दू' दक्षिण भारत के कुछ शहरों तथा नई दिल्ली से प्रकाशित अख़बार प्रकाशन के 141 वर्ष पूरे कर चुका है। अख़बार प्रतिवर्ष नाटक लेखन की प्रतियोगिता आयोजित करता है। इस वर्ष चेन्नई स्थित 'गेटे भवन' में हुए समारोह में वी. बालकृष्ण के लिखे नाटक 'सोरडिड' को प्रथम पुरस्कार दिया गया। 'सोरडिड' में बताया गया है कि ग्रामीण क्षेत्र में महिलाएं दूर से पानी के मटके अपने सिर पर रखकर लाती हैं। शहरों और महानगरों के कुछ क्षेत्रों में भी महिलाएं ही पानी लेकर आती हैं। पुरुष पानी का अपव्यय करते हैं। ज्ञातव्य है कि मोटर साइकिल की एक विज्ञापन फिल्म में दिखाया गया है कि एक महिला सिर पर पानी का मटका लिए चल रही है। मोटर साइकिल चालक उसे लिफ्ट देता है और वाहन इतना अच्छा चलता है कि महिला के मटके से एक बूंद पानी भी नहीं छलकता। कुछ विज्ञापन फिल्मों में भी सामाजिक सोद्देश्यता का वहन किया जाता है।
ज्ञातव्य है कि गेटे जर्मन लेखक एवं चिंतक हुए हैं। ज्ञातव्य है कि विचारक गेटे के बहुत पहले गोयथे नामक आर्किटेक्ट हुए हैं। उनके भवनों में नक्काशी होती है और भवन के बाहरी भाग को खूब सजाया जाता है। आयन रैंड के विश्वप्रसिद्ध उपन्यास 'फाउंटेनहेड' का नायक हॉवर्ड रॉक भवनों में नक्काशी और सजावट को नापसंद करता है। उसका विचार है कि भवन में रहने वालों को आराम और शांति मिलनी चाहिए। सजावट के तामझाम को वह फिज़ूलखर्ची मानता है। इस बात की प्रशंसा की जानी चाहिए कि चेन्नई में आयोजित समारोह में गिरीश कर्नाड का सादर स्मरण किया गया। गिरीश कर्नाड सिनेमा और रंगमंच दोनों ही क्षेत्रों में सक्रिय रहे।
महाराष्ट्र में नाट्य कला आज भी जीवित है। रविवार के दिन स्कूलों में रिहर्सल की जाती है। साधनों के अभाव के बावजूद नाट्य परम्परा जारी है। नाट्य कला के विकास के साथ नौटंकी का विलोप हुआ और सिनेमा ने भी नाट्य कला को हानि पहुंचाई। वर्तमान में फिल्में इंटरनेट के लिए बनाई जा रही हैं, जिसके कारण सिनेमाघरों की संख्या घटती जा रही है। मोबाइल पर देखी गई फिल्म के अनुभव से अलग अनुभव सिनेमाघर में प्राप्त होता है। यहां तक की दस-बारह दर्शकों की मौजूदगी में देखी गई फिल्म का अनुभव हाउसफुल फिल्म के अनुभव से अलग होता है। सिने कला सामूहिक अवचेतन को प्रभावित करती है। सिनेमाघर में फिल्म देखना प्रेम-पत्र पढ़ने की तरह है परंतु एसएमएस के युग में प्रेम-पत्र लिखने की कला का विनाश हो गया है। अब तो हसरत जयपुरी का फिल्म 'संगम' के लिए लिखा गीत 'मेरा प्रेम-पत्र पढ़कर तुम नाराज न होना…' प्रेम-पत्र परम्परा के लिए आदरांजलि बन चुका है।
मंचित किए जा रहे नाटकों का फिल्मांकन भी किया जाता है और यह टेलीविजन पर दिखाया भी जा रहा है। हम आशा करते हैं कि वी. बालकृष्ण का नाटक 'सोरडिड' भी किसी दिन मंचित होगा और उसका फिल्मांकन भी होगा ताकि टेलीविजन पर उसे दिखाया जा सके। फिल्म के लिए अभिनय करने की तुलना में रंगमंच पर अभिनय करना बहुत कठिन होता है। रंगमंच पर कोई 'टेक टू' नहीं होता। रंगमंच पर अभिनय करना रस्सी पर चलने की तरह है और गलती होते ही व्यक्ति नीचे गिर जाता है। रंगमंच पर अभिनय जीवन की तरह है, जिसमें दूसरा अवसर नहीं मिलता। सिनेमा अभिनय में भूल सुधार के लिए बहुत अवसर होते हैं। सिने टेक्नोलॉजी के विकास ने असीम संभावनाएं उजागर कर दी हैं। रंगमंच संसार में भी प्रयोग होते रहते हैं। सिने टेक्नोलॉजी के विकास ने असीम संभावनाएं उजागर कर दी हैं। रंगमंच संसार में भी प्रयोग होते रहते हैं। मसलन, फ्रांस में महाभारत का मंचन किया गया। गंगा को रंगमंच पर प्रस्तुत करने के लिए मंच के पिछले हिस्से में रंगीन कपड़े लहराए गए, जिनमें लहरों का आभास होता है।
गिरीश कर्नाड ने 'हयवदन' में पात्र द्वारा देखे जा रहे स्वप्न को अभिनव ढंग से दर्शक के लिए प्रस्तुत किया था। मंच के द्वार पर रखी दो लकड़ियों की बनी गुड़ियों की भूमिकाएं अभिनीत करने वाली कन्याएं स्वप्न का विवरण प्रस्तुत करती हैं।