सियासत-ए-होर्डिंग / ललित शर्मा
सुबह की सैर के वक्त चचा छक्कन दिखाई दे गए, दुआ सलाम के साथ हाल-चाल खैरियत का आदान-प्रदान हुआ। "क्या बताएं मियाँ महंगाई ने हालत ख़राब कर दी, जीना मुहाल हो गया। वैसे भी खानदानी होने के चलते हम सरकार की किसी भी एपीएल, बीपीएल जैसे योजना के खांचे में फिट नहीं होते। ऊपर से खुदा के फजल से दर्जन भर बच्चों की फ़ौज तैयार हो गयी। कोई गरीब मानने को तैयार ही नहीं होता। ऐसे में हमारे जैसे निठल्ले साहित्यकार का तो सवा सत्यानाश समझिये। कभी-कभार एक दो मुशायरे कवि सम्मलेन मिल जाते थे, वे भी ठेकेदारों की भेंट चढ़ गए। जिसकी छाती पर बिल्ला लटक गया, समझो उससे बड़ा ठेकेदार कोई नहीं। सारे के सारे धन के स्रोतों का प्रवाह उसकी जेब में जाकर गिरता है। गोया उनकी जेब ना हुई,बंगाल की खाड़ी हो गई।" चचा ने जाफरान की खुश्बू का फव्वारा मुंह से छोड़ते हुए कहा।
"बजा फ़रमाया चचा आपने, कुछ ऐसा ही अपना भी हो गया है। 10 साल से इंटरनेट का कुंजी पटल खटखटाते जेब में छेद हो गया। ऊपर से महंगाई ने तो कनिहा ही तोड़ कर रख दिया है। एक काम करिए, किसी राजनैतिक पार्टी के मेम्बर बन जाइये। फिर धीरे से एकाध पद ले लीजिये, सत्ता वाली पार्टी हो तो पौ बारह जानिए। आपकी जेब भी बंगाल की खाड़ी से कम न रहेगी। फिर हम भी तो हैं आपके साथ ही, जिसकी भी जिंदाबाद-मुर्दाबाद करने कहेगें, आपके आदेश का पालन करते हुए, तत्काल कर दी जाएगी।" मैंने चचा की जेब में झांकते हुए कहा।
"चलो उस पुलिया पर बैठ कर चर्चा करते हैं, तुम्हारी सलाह पर गौर किया जाएगा।" चचा ने कहा। पुलिया पर झाड़-पोंछ कर बैठने के बाद चचा ने जेब से खैनी निकाली और घिसने लगे। खैनी घिसने का मतलब था की वे चिंतन में व्यस्त थे। थोड़ी देर बाद मुझे खैनी दी और डिबिया जेब के हवाले की।
"चलो मियाँ अब तुम्हारी सलाह मान लेते हैं, वैसे भी हम कुछ ढीठ किस्म के इन्सान हैं. एक बार जो सोच लिया वह सोच लिया।"
"ठीक है चचा फिर मिलते हैं ब्रेक के बाद।" इस मुलाकात के बाद हम अपने काम में लग गए और चचा अपने नए धंधे में। अपनी व्यस्तताओं के चलते एक-डेढ़ बरस में चचा से मुलाकात ही नहीं हुई। एक दिन चचा के घर के बाहर बड़ी सी होर्डिंग लगे देखी। उसमे लगी फोटो में चचा ने कलफ लगी अचकन और शेरवानी पहनी हुई थी, ऐनक के पीछे से नूर टपक रहा था। चचा की आदमकद फोटो थी और बड़े नेताओं की छोटी। मैंने एक सरसरी निगाह डाली और आगे बढ़ गया। लौटते हुए मेरी निगाह होर्डिंग पर पड़ी तो गायब थी। मैंने कोई खास ध्यान नहीं दिया।
अगले दिन मुझे सुबह की सैर के वक्त चचा मिल गए। दुआ सलाम के बाद खैरियत पूछने पर उन्होंने मुझे ही निशाने पर ले लिया- "आप भी कमाल करते हैं मियाँ, मुझे फंसा कर खुद रफूचक्कर हो लिए, उस दिन के बाद आज खैर-खबर ले रहे हो।"
"अरे कौन सा पहाड़ टूट पड़ा चचा, जो सुबह-सुबह ही फायर हुए जा रहे हो"- मैंने चचा की नूरानी आँखों में झांकते हुए कहा।
"अरे मत पूछो हमारा हाल, वो तो हम ही जानते हैं या उपर बैठा वो जानता है। सालों ने जीना हराम कर दिया, इससे तो निठल्ले ही भले थे" -चचा ने पैजामे से ऐनक पोंछते हुए कहा।
"कुछ तो बताओगे चचा, सियासी पार्टी में तो सभी चांदी काट रहे हैं। जिनको खाने का सऊर नहीं वो भी छिलके समेत केला गटक रहे हैं। जिनके पास भुनाने को कभी दाने नहीं थे वे भाड़ के मालिक बने बैठे हैं और एक आप हैं जो मुझे ही लानत-मलानत भेजे जा रहे हैं।"
"जब यही बात यही बात है तो सुनो, चचा ने आँखों पर ऐनक लगते हुए कहा - मंत्री जी के चेले ने कहा कि चचा अब आप अध्यक्ष बन गए हैं झमाझम पार्टी के, कम से कम अपने नेताओं को खुश करने के लिए एक दो होर्डिंग ही लगवा दो। उसमे आपकी फोटो भी रहेगी और नेताओं की भी। इससे आपके नंबर बनने के चांस बढ़ जायेगे और मंत्री जी की गुड बुक में आपका नाम दर्ज हो जायेगा। मियाँ, यहाँ के सियासी दांव-पेंच हमारी समझ से बाहर थे। हमने होर्डिंग बनवा कर लगाव दी। होर्डिंग लगवाने के एक घंटे के बाद ही छुटकू नेता जी का फोन आ गया। बोले कि बहुत बड़े नेता बनते हो चचा, होर्डिंग में अपनी फोटो बड़ी और हमारी फोटो छोटी लगवा दी। कहीं ऐसा न हो आपके पर कतरने पड़ें। हमने तुरंत होर्डिंग उतरवा दी। तभी एक नेता और पहुँच गए, वो कहने लगे कि चचा होर्डिंग हटवाने के बाद दूसरी बनवा कर लगवाइए।"
"अब हमने जो होर्डिंग बनवाई, उसमे अपनी फोटो छोटी लगाई, पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं को सिर पर बैठाया। लोकल नेताओं की फोटू लगवाई। मंत्री जी और अध्यक्ष जी की फोटो लगवाई। होर्डिंग लगते ही मंत्री जी का फोन आ गया, बोले कि- इतनी जल्दी बड़ी सियासत सीख गए चचा। हमारे विरोधी की फोटो बड़ी और हमारी छोटी लगाई है, हमें नीचा दिखाने के लिए, देखो कहीं आपकी लुटिया न डूब जाये। अब मियाँ हमने फिर होर्डिंग उतरवाई, दूसरी बनवाई, इसमें मंत्री जी और अध्यक्ष जी की फोटो बराबर करके लगवाई, फीते से नाप कर। होर्डिंग लगते ही जेलर के जासूस फिर सक्रिय हो गए। अध्यक्ष जी का फोन आया, - क्या मजाक बना रखा है चचा आपने। मंत्री बड़ा होता है या संगठन का अध्यक्ष ? हमने उसे टिकिट दी है तब मंत्री बना है और हमारी फोटो आपने मंत्री के बराबर लगवा दी। हम आपको सस्पेंड करते है। समाचार कल के अख़बारों में देख लेना।"
"हमारी सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी। बड़ी देर तक घिघियाए, अध्यक्ष जी हमें गरियाते रहे, फनफनाते रहे। बड़ी मुस्किल से माने और हम सस्पेंड होने से बच गए। हमने होर्डिंग फिर उतरवा दी। अगले दिन मंत्री जी का फोन आ गया कि होर्डिंग क्यों हटवाई? हमने कहा कि कल के तूफान में होर्डिंग उड़ गयी। मंत्री जी ने कहा कि होर्डिंग फिर बनवाई जाये। उनका आदेश सुनते ही हमारी तो पुतलियाँ फिर गयी और गश आ गया। चुन्नू की अम्मा ने हमें लुढकते देख लिया और पानी के छींटे मारे तब होश आया। होश में आते ही हमने अपना इस्तीफा लिख दिया और अध्यक्ष जी को भेज दिया। हमें छक्कन मियाँ ही बने रहने दिया जाए। साल भर से ढक्कन बने हुए थे। ये सियासत भी बड़ी गन्दी चीज है मियाँ। होर्डिंग की फोटो से ही इनके कद बड़े-छोटे हो जाते हैं, लानत है इन पर। लाहौल बिला कुव्वत, लौट कर बुद्धू घर को आए। बंगाल की खाड़ी तो नहीं बनी हमारी जेब, हाँ! कंगाल की खाड़ी जरुर हो गयी। अब हम किसी के चक्कर में नहीं फंसेंगे, हम भले और हमारा कुनबा भला।"