सियासत / हरिनारायण सिंह 'हरि'

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एक कुत्ता किसी कस्साई के घर से मांस का एक बड़ा-सा लोथड़ा चुरा कर ले आया और राजभवन के पिछवाड़े बैठ कर आनंद से खाने लगा। इस बीच वहाँ और कई कुत्ते आ जुटे। सब की ललचाई नजरें उस लोथड़े से जा सटीं। कुत्ते ने आग्रह पूर्वक कहा "भाई हम भी तेरी बिरादरी के ही हैं। गोश्त का थोड़ा-थोड़ा टुकड़ा हमें भी ले लेने दो।"

पहला कुत्ता थुथना गड़ाये ताजा मांस का स्वाद लेता रहा। उसकी चुप्पी इन्कार का द्योतक थी। वहाँ एकत्र कुत्तों ने आँखों-ही-आँखों में निर्णय किया और पहले कुत्ते पर आक्रमण कर उसे घायल कर दिया। वह मांस का लोथड़ा छोड़ भाग खड़ा हुआ। अब लोथड़ा एक बलिष्ठ और कद्दावर कुत्ते के कब्जे में था। पहले तो उसने लोथड़ा ले कर भाग जाना चाहा, लेकिन अन्य कुत्तों के तेवर देखकर सोचा, एकतावद्ध समूह का प्रतिरोध करना मूर्खता होगी। पहले कुत्ते की तरह उसका अपना अंश भी छिन जाएगा। उसने लोथड़े में से कई छोटे-छोटे टुकड़े काटे और उन कुत्तों के बीच फेंक दिये। सभी कुत्ते उन टुकड़ों की ओर दौड़ पड़े। वह कद्दावर कुत्ता लोथड़े का बड़ा हिस्सा जबड़े में दबा एक ओर खिसक गया।