सिलसिला / खलील जिब्रान / सुकेश साहनी

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(अनुवाद :सुकेश साहनी) सिलसिला

(एक)

वर्षो पहले मैं एक आदमी को जानता था जिसके कान ज़रूरत से ज़्यादा तेज थे, पर वह गूंगा था। दरअसल उसकी जीभ एक लड़ाई में काट ली गई थी।

अब मुझे पता चला कि उस महत्त्वपूर्ण खामोशी से पहले उस आदमी ने कैसी-कैसी लड़ाइयाँ लड़ीं। मुझे खुशी है कि वह मर गया है।

हम दोनों के लिए यह संसार कितना छोटा है।

(दो)

वर्षो पहले एक आदमी को अत्यधिक लोकप्रिय होने की वजह से सूली पर चढ़ा दिया गया था।

ताज्जुब की बात यह है कि कल मैं उससे तीन बार मिला

पहली बार वह एक वेश्या को जेल न ले जाने की बात पर एक पुलिसवाले से भिड़ा हुआ था।

दूसरी बार वह एक दलित व्यक्ति के जाम से जाम टकरा रहा था।

तीसरी बार वह धर्मस्थल में एक समाज सुधारक के साथ हाथापाई पर आमादा था।