सीख / मनोज चौहान
साधारण किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले नीरज ने गाँव के स्कूल से दंसवी की परीक्षा पास कर शहर के स्कूल में ग्याहरवीं कक्षा में प्रवेश लिया l उसने वाणिज्य विषय का चयन किया था l स्कूल के प्रांगण में व्यावसायिक अध्ययन की क्लास चल रही थी l नीरज और उसके दोस्त राहुल और लालमणि को प्राध्यापक पीताम्बर गुप्ता ने क्लास में बातें करते हुए देख लिया था l गुप्ता जी डांटने से ज़्यादा विद्यार्थियों को हंसी–मजाक में बेज्जती कर, उन्हें सुधारने में ज़्यादा विश्वास रखते थे l तीनों को खड़ा करके वही हुआ जिसके लिए प्राध्यापक गुप्ता जाने जाते थे l नीरज को तो गुप्ता जी ने अंत में यह तक सुना दिया कि "बेटा! मुझे आपकी पढ़ने की नीयत नहीं दिख रही l" नीरज को यह बात भीतर तक छू गई और पूरी क्लास के सामने उपहास बनाये जाना उसे आहत कर गया l
कुछ दिनों के बाद पाठशाला में अर्धवार्षिक परीक्षाएं हुई l प्राध्यापक गुप्ता के हाथों में मूल्यांकित की हुई उत्तर पुस्तिकाओं का बण्डल देखकर पूरी क्लास में सनाटा छा गया l जैसे ही गुप्ता जी ने उत्तर पुस्तिकाएं बाँटना शुरू किया तो सभी की धड़कने तेज़ होने लगी थी l नीरज अपनी उत्तर पुस्तिका लेने आगे गया तो प्राध्यापक गुप्ता ने हैरानी से पूछा कि "क्या यह तुम्हारी उत्तर पुस्तिका है?" हांजी सर, नीरज ने उत्तर दिया l मैंने अपने 25 बर्ष के अध्यापन कैरियर में आज तक ऐसी उत्तर पुस्तिका नहीं देखी l पूरी क्लास के सामने गुप्ता जी ने नीरज की पीठ थपथपाई और उसके प्रश्न के उत्तर देने के तरीके की जमकर तारीफ़ की l
नीरज की उत्तर पुस्तिका पूरी क्लास में सभी विद्यार्थियों के बीच यह जानने के लिए घूम रही थी कि उसने ऐसा क्या लिख दिया है! सभी उतर पुस्तिकाएं बांटने के पश्चात नीरज को क्लास में खड़ा कर उसके लिए तालियाँ भी बजवाई गई l नीरज भीतर तक गदगद हो उठा था l यह शायद प्राध्यापक गुप्ता की कुछ दिनों पहले उपहास करके दी गई सीख का ही परिणाम था l