सीता के अग्निपरीक्षा / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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सालभर कमैंतैॅ-खैतें बढ़ियें से बीतलै सीता के सौसे परिवारौॅ रौॅ। बरसा साथ नै देलकै, सिंचाई के व्यवस्था छेलबैॅ नै करलै। होनौॅ कैॅ भुखमरी रहतैं छेलै, पानी नै पड़ला सें उपज नै होलै। सौसे क्षेत्रा जिला भर याकि कहौॅ सौसे देश अभाव आरो भूख सें मरैॅ लागलै। ओनां कैॅ ई स्थिति बराबरे रहै छेलै मतुर आभरी साल भगवान लागै छेलै बेशी रुष्ट छेलै। वरसौॅ होला पर धान चार-पाँच मन के बीघा सें जादा होय रो कोय सवाले नै छेलै। भरपेट खाना पर भी काम नै मिलै छेलै। कोनौॅ काम, रोजगार के व्यवस्था नै रहला के कारण लोग पेटौॅ में गमछा बान्हीं कैॅ जीयै लेली मजबूर आरो लाचार छेलैं। गाँव-जंवार में मजदूर कमबाय के सामरथ जमींदार आरो दू-चार सौ-पचास बीघा जमीन वाला किसानों कैॅ छोड़ी कैॅ आरो केकरोह नै छेलै जबैॅ कि एक आना रोज मजूरी छेलै।

अनाज गोबरौॅ के भाव बिकै छेलै। केकरोह जिम्मा टाका होभौॅ भगवान होय कैॅ बराबर छेलै। टाका होतै तबैॅ नी अनाज कीनलौॅ जैतें। करजा सें डूबलौॅ रहै छेलै लोग बेचारा। दस-पाँच सेर धान-चौैॅर डेढ़िया-दोबरा करजा पर लै लेली मोटौॅ किसान आरो जमींदारौॅ घरौॅ पर लोगौॅ कैॅ लंबा कतार लागलौॅ रहैॅ छेलै। चार आना मन धान आरो सात आना मन चौैॅर छेलै।

केवल रौतौॅ कन दूध के कमी नै छेलै; मतुर दिन-रात दूधैॅ पीबी कैॅ तैॅ रहलौॅ नै जाबैॅ पारै। दूधौॅ कैॅ लैवाक कोय नै छेलै। संयोगे छेलै कि चार सेर दूध जमीन्दारौॅ यहाँ उठौनौॅ छेलै; नै तैॅ दूध लैकैॅ बाजारे जाय लैॅ पड़तियै। बाज़ार पाँच कोस दूर छेलै; जहाँ जैबौॅ लोहा रौॅ चना चबाना छेलै।

एक तैॅ अकाल दोसरें कैतकारौॅ दिन शुरू होय गेलौॅ रहै। यै दिनां में गंगापार दीरौॅ क्षेत्रा सें जंडौॅ, कुरथी, बजरा डेढ़िया धानौॅ पर करजा लगाय वास्तें शंभू सिंह नांकी दू-चार किसानें अपना कुटमैती सें लानै छेलै। सात-आठ रोज दिन-रात बैलगाड़ी चलै तबैॅ तैॅ सीरामपुर, कोहवारा, दूधेला दीरौॅ सें जंडौॅ-मकेरौॅ आबैॅ पारै छेलै। लगभग सौसे गामें के भोजन यही विधि चलै छेलै।

कैतकारौॅ सुरुज मलिन मुँह लेनें डूबी रेल्हौॅ छेलै। कनमुँहौॅ, उदास, बेजान। लागै छेलै गाँव-जंवार के लोगौॅ के दुःख से दुखी कानी रेल्हौॅ सुरुजौॅ के मुँह लाल होय गेलौॅ रहैॅ। टिटही टें, टें करी कैॅ घंटा भर सें सौसे गाँमौॅ के उपर सें चिचियाय-चिचियाय उड़ी रेल्हौॅ छेलै। कै दाफी सीता कैॅ घरौॅ के छपरी पर सें भी उ$ टिटियाय कैॅ उड़लै। सीता बुतरू सीनी कैॅ आँचरा में झाँपते हुअैॅ थूकथूकैतें बोललै-"हे भगवान! रक्षा करिहौॅ, साँय-बेटा कैॅ। सौसे गामौॅ के. ई अपैतौॅ, अपसकुनियां चिड़िया कैॅ टिटयैला सें बड्डी डौॅर लागै छै। आफत-विपत सें बचैहौॅ हे गहेली माय।"

सून्नौॅ घौॅर में असकल्ली सीता के देह भुआय गेलै। देहौॅ के रोइयाँ-रोइयाँ भुटकी गेलै। घरौॅ के गोसांय गहेली कैॅ सुमरतें सीता तीनूं बच्चा कैॅ लेनें पुवारी घरौॅ में घूसी गेलै।

साँझ होतैं गाय-भैंस, लेरु, पाड़ा-पाड़ी लेनें केवल, बिहारी, दूनौॅ बापुत घौॅर ऐलै। तबैॅ सीता कैॅ साँसों में साँस ऐलै। ऐंगना एैतें बिहारी बोललै-"आय भंसा भात नै बनतै की? धुईयाँ-धाकर नै होय रेल्हौॅ छै।"

"आय डरी गेलिहौं जी. गोधूलिये बेरा सें टिटहिया सौसे गामौॅ पर छपरी-छपरी उड़ै-बोलै छै। कुछ्छु अनहोनी, रोग बियाध फैलैॅ कैॅ डौॅर लागै छै।" साँझ देखैतैॅ सीता जबाब देलकै।

"होनी कैॅ के टारै। जे होतै, होतै। आपनौॅ काम करौॅ।"

आरो फेरू सभ्भैॅ आपनौॅ-आपनौॅ काम सलटाबै में लागी गेलै। सीता भंसा में भिड़ी गेलै आरो बिहारी माल-मवेशी के सानी-पानी दियै लागलै। बच्चा सीनी दादा-दादी ठियां दुआरी पर खेलै लागलै।

भातौॅ के आधन खौली रेल्हौॅ छेलै। चूल्हा में आँच लगैतें सीता चौैॅर नापलकै आरो पानी में दैकैॅ धुअैॅ लागलै, तखनिये बिहारी आबी कैॅ कहलकै-"चौैॅर डालबौॅ करल्हौॅ की? एक ठो कुटुम आबी गेलौॅ छौं। एक पैला चौैॅर बढ़ाय दिहौॅ।"

"के ऐलौ छै?"

"बुलाकी का। हुनियें जें हमरौॅ-तोरौॅ वियाह करैनें छै। तोरा नांकी कनियाय करैनें छै, ज़रा बढ़िया सें खाना बनैहौॅ।" कहि कैॅ बिहारी हाँसलै। सीता कुछ्छु बोललै नै, भीतरे-भीतर मुस्कुराय देलकै।

बरतुहारिये के ऐलौॅ बुलाकी का अत्तैॅ दिनौॅ के बाद ऐलौॅ छेलै। बाराती में बाहरे-बाहर हुनी आपनौॅ गाँव चल्लौॅ गेलौॅ छेलै। तहिया मोटर, बस, रेल तैॅ चलै नै छेलै, काहीं जाय-आबै लेली पैदल छोड़ाय कैॅ दोसरौॅ कोय उपाय छेलबे नै करलै। यहैॅ कारण छेलै कि बहुत ज़रूरी होलै पर लोग कांही कौॅर-कुटमैती जाय छेलै। जादा काम संवदिया ठाकुरें करै छेलै।

गपशप में केवलें हाल-चाल पूछतें हुअें बहुत दिनौॅ के बाद आबै के कारण जानै लैॅ चाहलकै तैॅ बुलाकी का बोललै-"अस्सी वरसौॅ के उमर छूबी रेल्हौॅ छियै। आबैॅ चलै-फिरै कैॅ मौॅन नै करै छै। ई तैॅ तोरा सीनी सें मिलै कैॅ इच्छैॅ होय गेलै जे टुघुरलौॅ-टुघरलौॅ चल्लौॅ ऐलियै। ई तेसरौॅ दिन छेकै। चलतें-चलतें यहाँ तक पहुँचलौॅ छियै।"

आरौॅ बात होतियै कि बिहारी खाना खाय वास्तें बोलाय लैॅ आबी गेलै। खाना परोसी कैॅ तैयार छेलै सीता। सिर्फ़ चौका पर बैठना छेलै। केवल रौत उठतें हुअें बोललै-"चलौॅ, भोजन-भात होय जाय। गपशप, कहानी-किस्सा रात भर चलतें रहतै। बुलाकी का के पास सौसे दिगर, क्षेत्रा के, चप्पा-चप्पा रो खबर रहै छै। सुनवैया ओराय जैतैॅ, हिनको किस्सा नै ओरैतैैॅ।"

यै बातौॅ पर सभ्भैॅ हाँसलै।

खाना खैला के बाद देर रात सौसे परिवार बैठलै। सीता दूरैॅ के रिस्ता में सही भतीजी लागै छेलै। बच्चा सब सुती गेलौ छै ई परखी कैॅ बुलाकी का कहना शुरू करलकै-"परसौं चलतें-चलतें साँझ होय गेलै। रसतां में सोचलैॅ जाय छेलिये कि रातभर कहाँ, केकरा कन ठहरलौॅ जाय। है, अंग्रेजौॅ के राज। कांही-कोय व्यवस्था नै, कहाँ चोर-डकैतैं छेकी लेथौं, मारी कैॅ फेंकी देथौं, ई डरें पुरपुर करी रेल्हौॅ छेलै मौॅन। दस कोस रसता चली चुकलौॅ छेलियै। थक्की कैॅ चूर गोड़ें एक्कौॅ डेग आगू, बढ़ै लैॅ नै चाहै छेलै। गंगा पारौॅ के आदमी, नावौॅ से गंगा पार होय कैॅ एकचारी गाँव कैॅ नगीचौॅ में छेलियै। तभिये एक ठो दोस्तौॅ के याद ऐलै। एकचारी में जातैॅ-विरादरी के छेलै। रातभर हुनके यहाँ ठहरलियै।"

"दोस्तें चिन्हलकौॅ की नै बुलाकी का?" केवलैॅ बीचैॅ में टोकलकै।

"याद दिलैलियै तैॅ चिह्न-परिचय होलै। आदर-सत्कार भी पुरकस होलै मतुर हुनी जे किस्सा सुनैलकै ओकरा से अत्ते डरी गेलियै कि रात भरी नीन्द नै ऐलौॅ आरो तिनडरिया उगै के साथें एकदम भोरैं वहाँ सें सीधे चली देलियै।" अतना कहतें सच्चैॅ डौॅर हुनका आँखी में साफ-साफ झलकै लागलौॅ छेलै।

"ऐन्हौॅ की बात सुनैलकौॅ बुलाकी काका। सुनाबौॅ। हम्में सीनी भी सुनिये लियै।" केवलें हिम्मत बंधैतैॅ कहलकै।

बुलाकी काका बात आगू बढ़ैलकै-" एकचारी गाँमों सें पाँच कोस पछियें सोभानपुर नामौॅ के एक गाँव छै। तीन-चार टोला मिलाय कैॅ चार-पाँच सौ घरौॅ कैॅ पूरे बस्ती। नये-नये एक ठो बियाह होलौॅ छेलै। गौना के बाद पैल्हैॅ लड़का ससुराल आबी रेल्हौॅ छेलै। सोभानपुर चौकौॅ पर एक ठो पेड़ा के दुकान छेलै। अन्हार होय गेलौॅ छेलै। दूर-दूर गाछ-विरिछ सें भरलौॅ चारौॅ तरफ जंगले-जंगल। कुत्ता, गीदड़ के आवाजौॅ सें वातावरण डरावना होय गेलौॅ छेलै। वें लड़का आबी कैॅ पेड़ा वाला दुकानदारौॅ सें सोभानपुर गाँव कैॅ पता पूछलकै। दुकानदारें कहलकै यहाँ सें आधौॅ कोस अगला आमौॅ के बगीचा पार करथैं गाँव मिलतौं। देखैॅ नै छौॅ, याहीं सें रोशनी देखाय पड़ी रेल्हौॅ छै।

लड़का ससुराल पहुँचलौॅ। एक पहर रात तैॅ बितिये गेलौॅ छेलै। द्वारी पर पहुँचतै ससुर-सारौॅ सभ्भैं लोटा-पानी देलकै। सौसे गाँव गिलफिल, द्वारी-द्वारी पर डिबिया के रोशनी, गाय-माल सब कुछ। जेन्हौॅ पहिलें देखने छेलै वियाह आरो गौना में, छिनमान वहैॅ रंग सभ्भैॅ चीज। साली, सारौॅ, सरोजौॅ के हँसी-मजाक। सबरंगा खाना, पकवान बनै के सुगंध। आगू में जौं नै आबी रेल्हौॅ छेलै तैॅ खाली एक ठो कनियान।

खाना बनी कैॅ तैयार होय में अच्छैॅ रात होय गेलै। एक पहर बीतला पर तैॅ दुलहा बाबू ऐलै छेलै। दोसरौॅ पहर बीतै पर छेलै। पक्का बारह बजे रात। खाना लेली विजय कराय लैॅ छोटकी साली ऐलै आरो जोंन घरौॅ में कनियाय छेलै वै घरौॅ में लै जाय कैॅ पीढ़ा पर बैठाय देलकै। चौका पर लागलौॅ पीढ़ा, बगलैं में थरिया में खाना परोसी कैॅ कनियान खाड़ी छेलै।

साली जबैॅ चल्ली गेलै तबैॅ कनियौनी आगू में परोसलौॅ थरिया राखी कैॅ बैठी गेलै। लड़का भूखलौॅ छेलै। अब तांय नाश्ता-पानी कुछुवे नै मिललौॅ छेलै। धड़फड़ दाल-भात सानी कैॅ जेन्हैॅ कैॅ लड़का कौर उठैलकै तैॅ कनियैनी खाना-खाय सें रोकतें हुअें कहलकै-"हे हमरौॅ प्राण! तोहें ई खाना नै खा।"

लड़का के उठलौॅ कौर जहाँ रो ताँही रूकी गेलै। आँख उठाय कैॅ कनियैनी मुँहौॅ दिस देखलकै। आँखी में भरी-भरी लोर छेलै। अत्तौॅ भी कोय कानै छै। सुन्नर गोरौॅ, गोल-गोल मुँहौॅ पर दू बड़ौॅ-बड़ौॅ काजर भरलौॅ आँख। लड़का कुछ्छु बोलतियै ओकरौॅ पैन्हैॅ लड़की बोललै-"सात फेरा आपने साथें देलै छिहौं, ओकरे फर्ज निभावै छियौं। प्राण पियारे! ई जत्तैॅ देखै छौॅ, सब भूत खेल छेकै। कोय जीत्तौॅ नै छै। एक महिना पैन्हैॅ ई गाँव में प्लेग रोग होलौॅ छेलै। सौसे गाँव के लोग, बच्चा-बुतरु, बड़ौॅ-छोटौॅ सब वही बीमारी में मरी गेलौॅ छै। सबकैॅ प्रेतरूप छेकै ई. हम्मू ई प्रेतैॅ छेकियौं। सास, ससुर, साला-साली, सरोज सभ्भेैॅ रोगौॅ में मरी चुकलौॅ छौं। प्रेतौॅ के परधान के आदेश सें तोरा अपना योनि में शामिल करै लेली ई जाल, ई प्रपंच बुनलौॅ गेलौॅ छै। हम्में असकल्ली केनां रहबै यहैॅ सोची कैॅ। मतुर पियारे! ई योनि में बहुत कष्ट छै। अपनें जत्तैॅ जल्दी हुअैॅ भागौॅ। ई खाना खैतें अपनें छटपटाय कैॅ मरी जैभौॅ। यै लेली, उठौॅ, देर नै करौॅं। हमरौॅ मोह छोड़ौॅ आरो गाँव कैॅ सीमा जत्तैॅ जल्दी हुओं पार करी जा। उ$ पेड़ा वाला तोरा झूठैॅ बोली कैॅ फँसावै वाला यही जेरा के प्रेत छेकै। डरौॅ नै, हम्में तोरा साथें छियौं।"

आरो उ$ सब छोड़ी कैॅ भागलै। सोभानपुर गाँव के सीमा सें दू कोस दूर बहरामपुर चौक पर भियानी बेहोशी हालतौॅ में वै गाँवौॅ के लोगें ओकरा उठैलकै आरो पानी रो छीट्टा देतें-देतें होशौॅ में लानी कैॅ डागडरौॅ कन लै गेलै। भियानी सच में गाँमौॅ कैॅ नामोनिशान नै छेलै।

लंबा सांस लेलकै बुलाकी काका आरो कहलकै-"कोन ई सब नया रोग फैललौॅ छै। गाँमें रो गाँव साफ होय जाय छै। सुनै छियै, अंग्रेज बहादुर के पास भी ई रोगौॅ कैॅ कोय ईलाज नै छै।"

आधौॅ रात बीती गेलौॅ छेलै। ई किस्सा सुनला के बाद डरी तैॅ गेलौॅ छेलै सभ्भे मतुर सभ्भें आपनौॅ-आपनौॅ खटिया-बिछौना पकड़लकै आरो सूतै कैॅ कोशिश करै लागलै।

भियान कैॅ देर तांय सुरुज बाबा के उगलौैॅ पर सौसे घौॅर सुतलौॅ रही गेलै। बुलाकी का दिशा-मैदान सें फरांकित होय कैॅ झोली-झांगर समेटै लागलै। हुनी मिर्जापुर जाय लेली सोची लेनें छेलै। सीता सुनलकै तैॅ बड्डी खुश होलै। नैहरा नामौॅ पर जनानी कैॅ स्वर्गैॅ के सुख मिली जाय छै। ऐंगना सें सीता कहलकै-"हेनैॅ कैॅ धुरियो काका। बाबू-माय कैॅ समाचार लेनें आभियौॅ।"

काका हाँसलै। हाँसै में हुनकौॅ बिन दाँतौॅ के थोथौॅ मुँह अनसेधरे रंग होय गेलै। लार गिरतें-गिरतें संभरलै। कहलकै-"देखें बेटी जौं धूरैॅ पारलियौॅ तैॅ पूरे संवादे खाली नै, बापौॅ कैॅ साथें लै कैॅ ऐबौॅ। आगू के भगवानैॅ मालिक।"

तखनियै केवल आबी गेलै। झोला काका के हाथौॅ से लैकैॅ दुआरी के टंगनी में टाँगी देलकै आरो कहलकै-"बूढ़ौॅ होय गेल्हौॅ काका मतुर अतना टा शउ$र न होलौॅ छौं। देहौॅ पर अतना अत्याचार नै करौैॅ। आय दिन-रात आराम करी लैॅ। दूध लागै छै, दूध-दही पुरकस खाय-पीबी कैॅ, तनियो टा ताकत आबै दहौॅ देहौॅ म ें। कल भोरैं के जतरा बनैहौॅ। हमरौॅ मौॅन समधी कन जाय कैॅ होय रेल्हौॅ छै। हुअैॅ पारै, हम्मू साथ दै दिहौं। आय दिन भरी बिहारी सें बात मेढ़ियाय लै छिहौं। दू-चार दिन वें गाय-माल संभारी लिये तैॅ भलें तोरा साथें घूमी आबौं।"

आबैॅ नै रूकै के कोय सवाले नै छेलै। एक सें दू भलौॅ। तीनौॅ बुतरू सीता के छोड़ी कैॅ दादा कैॅ घेरी लेनें छेलै। बच्चा सें फुरसत पावी कैॅ सीता भी काम सलटावे में जुटी गेलै।

दिनभर खूब ठर्रो पारी कैॅ सुतलै बुलाकी का। साँझ कैॅ पछियारी टोला बूलैैॅ लेली निकललै। गामौॅ के सवासीन छेलै। याद पड़लै तैॅ सोचलकैॅ कि मिली लेना चाहियौॅ। मनौॅ में यहौॅ अंदाज लगैलकै कि फेरू आबैॅ पारबौॅ की नै।

एक पहर बीतलौैॅ पर बुलाकी का जबैॅ नै एैलैॅ तैॅ सीता बिहारी कैॅ बोलाय कैॅ कहलकै-"सानी-पानी के बाद गाइयौॅ-भैंस दुहाय गेलै। अपना कन ऐलौॅ कुटुम काहीं दोसरा कन बूलै लैॅ गेलै आरो आभी तांय नै ऐलौैॅ छै तैॅ हुनकौॅ पता करना घरवैया कैॅ धरम छेकै। खाय-पीयै के बेरा बीतलौॅ जाय रेल्हौॅ छै। जाय कैॅ देखौॅ नी कैन्हैॅ नै एैलौॅ छै।"

सीता कैॅ कहला पर बिहारी बाबू कैॅ बोललै-"झटकलैॅ जाय छियौं बाबू आरो हुनका साथें बोलैलें आबै छियौं।"

मतुर केवलें बेटा कैॅ रोकतें हुअें कहलकै-"तोंय द्वारी पर बाल-बच्चा ठियां रहौॅ। हम्मीं जाय छियै।" आरो केवलें देह-हाथ झाड़लकै-"घूमै वाला जीव छेकै बुलाकी का। कहाँ ...? केकरा कन होतै, तोंय नै खोजैॅ सकभौॅ। हमरै जाबै दैॅ।"

केवलें देहौॅ पर गमछा राखलकै आरो चली देलकै। कातिक के दिन छेलै। आभी तांय हल्का ठंडा देहौॅ कैॅ अच्छा लागै छेलै। फुर्र-फुर्र हवा बही रेल्हौॅ छेलै। गाँवौॅ के पछियारी कोना सें भगैत गाबै कैॅ करुणा सें भरलौॅ मीठ्ठौॅ आवाज आबी रेल्हौॅ छेलै। पुवारी टोला में गोसांय गीत होय रेल्हौॅ छेलै। ढोलक-झाल आरो मृदंग पर गवैया ऐन्हौॅ मनौंन गाय रेल्हौॅ छेलै कि केवलौॅ के माथा सें गोड़ौॅ तक के एक-एक रोइयाँ खाड़ौॅ होय गेलै। एकवारगिये छाती दहली गेलै।

गोसांय; सोसे देहौॅ में बड़ौॅ-बड़ौॅ, लाल-लाल ढलढल फोंका होय जाय वाला एक भयानक रोग। जेकरौॅ कोय दवाय-उपाय नै छेलै। गाँव के लोग, घरौॅ के बच्चा, बूढ़ौॅ, जनानी, मरदाना सभ्भैं रोगी कैॅ गोसांय मानी कैॅ बीचौॅ में आदर सें बैठाय कैॅ भक्ति करै छेलै। जेकरा ई रोग होय जाय छेलै ओकरौॅ बचवौॅ मुश्किल होय छेलै; जौं बचै छेलै तैॅ कोय न कोय अंग निश्चितैॅ खतम होय जाय छलै। भगवानैं पर आदमी छेलै।

केवलें भगवानौॅ के सुमरलकै-"हे गोसांय माय। धार-विचार तोरेह पर। बाल-बच्चा, गाँव-परिवार सभ्भैॅ पर सहाय होइयौॅ।"

चार-पाँच खेत पार होय कैॅ केवल पछियारी टोला सुग्गन महतो के दुआरी पर पहुँचलै। देखलकै बुलाकी काका मनझमान बैठलौ छौॅ दुआरी पर एकदम असकल्लैॅ। केवलौॅ कैॅ देखतैं काका के चेहरा पर खुशी आबी गेलै-"अन्हरिया रात। सूझै नै छौं हमरा केवल आरो यै सीनी जिद पकड़लैॅ छै कि बिना खाना खैलें केनां जाबैॅ देबै। आबैॅ तोंय सलटौॅ आरो हमरा लै चलौॅ।"

सुग्गन के भ्ीातरे घौॅर 'भौजी-भौजी' हाँक देनें केवल चुल्हा ठियां चल्लौॅ गेलौॅ। आवाज सुनतैं हुनकौॅ दूनौॅ पुतोहु देह-हाथ झाँपलें आड़ौॅ में चल्ली गेलै। चूल्हा पर चौैॅर डबकी रेल्हौॅ छेलै।

"भौजी! भैया हे?" केवलें पूछलकै।

"दाल नै छेलै। भैया देखौॅ नी, केकरा कन जुगाड़ै लैॅ गेलौं छौं।" ऐकरा सें बेशी नै बोलैॅ पारलैॅ भौजी. "हमरा कन जबैॅ छेबैॅ करलै कुटुम तैॅ तोरा तुल-कलाम करै के ज़रूरी की छेलै? हमरा दोसरौॅ बूझै छौॅ की?"

"हमरा की कहै छौॅ दियौर। भैया के स्वभाव नै जानै छौॅ। जिद करला पर हुनियो रूकी गेलै आरो हिन्नैॅ घरौॅ के हाल की बतैहों। तरकारी छौं तैॅ तेल नै। चौैॅर छौं तैॅ दाल नै। खाय कैॅ बेरा टललौॅ जाय छै आरो ई बूढ़ा कहाँ की करै छै"। "बूढ़ा करबौॅ की करतौं भौजी. सौ में नब्बैॅ घरौॅ के यहैॅ हाल छै। बुरा नै मानिहौॅ भौजी. अपनें के घरौॅ के ई हालतौॅ के पता नै चलैॅ देवै कुटुमौॅ कैॅ आरो भैया आबै के पैन्हैॅ हम्में हिनका लै कैॅ जाय छियौं। तोंय हमरौॅ नाम कही दिहौॅ भौजी. हुनी कुछ नै बोलतौं।"

केवल वहाँ सें उठलै आरो बुलाकी का, कैॅ लै कैॅ अपना घरौॅ दिस निकली गेलै। आरो हिन्नें भौजी चूल्हा के आगिन में पानी कैॅ छींटौॅ मारी कैॅ बुझैलकै। ओसरा पर खटिया राखलौॅ छेलै। ओकरा पर आबी कैॅ बैठलै आरो आखिरसौॅ में बूक नै बान्हैॅ पारलकै भौजी. आँखी में हौॅ-हौॅ लोर छेलै भौजी कैॅ। कपसी-कपसी कानै लागलै दूनौॅ आँखी कैॅ अँचरा सें झाँपी कैॅ। सुग्गन के आभियो तांय काहीं पता नै छेलै।

रास्ता में बुलाकी काका केवलौॅ सें कहलकै-"सुगन बोली रेल्हौॅ छेलै कि उतरवारी टोला गड़बड़ होय गेलौॅ छै। ई टोलौॅ तैॅ तोरा टोला के एकदम बगलैॅ में छै। तोरा केनां पता नै छौं। गाँव गड़बड़ होय जाय, हैजा टोला-मोहल्ला में होय जैते आरो तोरा कोय मालूमें नै, ई तैॅ बढ़िया बात नै। ई ऐन्हौॅ छूत रोग छै, जेकरौॅ अखनी कोय इलाज नै छै। गाँव के गाँव साफ होय जाय छै।"

हैजा नांकी संक्रामक रोग के नाम सुनतैं लोगौॅ कैॅ झड़ा-पैखाना हुअैॅ लागैॅ छेलै आरो ओकरा टोला के एकदम बगलौॅ में ई रोग शुरू होलौॅ छेलै, ई जानतैं केवलौॅ के पेट दुखैॅ लागलैॅ, जी औकाबैॅ लागलै। मौॅन हदमद करैॅ लागलै। सुक्खी रेल्हौॅ जीहौॅ कैॅ लारौॅ सें चभलाय कैॅ तर करतें हुअें उ$ बोललै-"की कहियौं काका, गाय-मालौॅ सें फुरसतैॅ नै होय छै। काहूँ बूलै-लरै लैॅ जाबै नै पारै छियै। केनां पता होतैॅ यै सीनी के?"

डौॅर तैॅ बुलाकी कैॅ भी कम नै लागी रेल्हौॅ छेलै। हुनकौॅ माथैॅ घूमी रेल्हौॅ छेलै। दिमागौॅ तेजी सें दौड़ी रेल्हौॅ छेलै। "परदेशौॅ में छी, कुछ्छु होय गेलै तैॅ।" अतना सोचतैं नीचूं से उपर तांय सिहरी गेलै बुलाकी का।

"घरौॅ में धूप-धूमनौॅ राखै छौॅ की नै केवल।"

" कैन्हैॅ ...?

"अरे, हैजा में काली माय के रंथ चलै छै। ई रंथौॅ के चपेटौॅ में जे पड़ै छै, समझी लैॅ ओकरौॅ लहास उठतै। धूप-धूमनौॅ के धूइयाँ आरो ओकरौॅ गंध जोन घरौॅ में होय छै, वहाँ सें काली माय के रंथौॅ रो रूख मुड़ी जाय छै।"

बुलाकी तेजी सें गोड़ बढ़ैतें हुअें कहलकै "गरीबौॅ कन धूप-धूमना राखलौॅ कहाँ से मिलतौं काका। दूनौॅ साँझ सुखलौॅ-पाकलौॅ खाय के इंतजाम केन्हौॅ कैॅ होय जाय छौं, यहैॅ बहुतैॅ होय गेलौं।"

घौॅर आबी गेलौॅ छेलै। द्वारीये पर खाड़ौॅ छेलै बिहारी। मिली-जुली कैॅ सभ्भे खाना खैलकै। कोय कुछ्छु नै बोललै। केवलौॅ के साथें बुलाकी काका दुआरी पर सुतलै। नीन्द तैॅ दू में सें केकरौ नै आबी रेल्हौॅ छेलै।

आधौॅ रात कैॅ जोरौॅ सें हवा चललै। झन-झन के आवाज 'राम-नाम सत' के मिललौॅ-जुललौॅ बोली। कानै-कपसै के आवाज तेज होलौॅ गेलै। ' सुगन ने सच्चैॅ कहनें छेलै" केवल सुतले-सुतलौॅ बोललै।

"सोचै छेलिये, ई झूठैॅ होतियै। हे भगवान गरीब केनां कैॅ बचतै। ओकरा खाय लेली सुदाना तैॅ ढ़ेर मिलै छै, ईलाज कहाँ से करैतैैॅ।"

दूनौॅ उठी कैॅ बैठी रेल्हौॅ छेलै। दुख, भय सें दूनौॅ रो हालत खराब छेलै। फेरू एक लहास सड़कौॅ पर सें पार होलै; ओकरा पीछु कानलौॅ-कपसलौॅ दू-चार आदमी। आबै छिपै के कोय सवालैॅ नै छेलै। यै दूनू आदमी सोचलैॅ छेलै कि घरौॅ में बतैला सें डरी जैतैॅ सभ्भैॅ बाल-बच्चा मतुर रोग बढ़लौॅ जाय छेलै। बिहारी आरो सीता भी जागी गेलौॅ छेलै। लगभग सौसे गाँव के कान खाड़ौॅ होय गेलौॅ छेलै। गोसांय, बड़का फोंका सौसे देहौॅ में होय जाय वाला रोग पैन्हैॅ सें छेलवे करलै, उपरौॅ सें हैजा फैली गेलै।

बड़ी मुश्किलौॅ सें भियान भेलै। सीता तैॅ सबसे जादा डरी गेलौॅ छेलै। तीनूं बच्चा कैॅ छाती में सटैनें भगवानौॅ के नाम लेतें भियान करलकै। सुरुजौॅ के रोशनी के साथें ई महामारी भी फैललौॅ गेलै। सौसे चौतरा पृथीचक दुःख आरो शोक के महासमुद्र में डूबी गेलै। एक पर एक लहास लोहागढ़ नदी के श्मशानौॅ में जलै लागलै। रुदन आरो चीत्कार सें छाती दहलै लागलै।

दिनभर केन्हौॅ कैॅ बीतलै। केवलौॅ के टोला सें दू-तीन आदमी मरी गेलै। ऐन्हा में बुलाकी काका के हाल त्रिशंकु वाला छेलै। चाही कैॅ भी जैवौॅ मुश्किल। देह आरो गोड़ौॅ सें लागलौॅ चलै वाला ई रोग लैकैॅ कहाँ, केकरा कन जैतियै। साँझ कैॅ केवलौॅ कैॅ कै-दस्त शुरू होय गेलै। कत्तौॅ थामलकै अपना-आप कैॅ मतुर करम टग्गी गेलौॅ छेलै। नै संभरलै, उवरैॅ नै पारलै केवल आरो भोर तांय दम छूटी गेलै। सौसे परिवारौॅ पर विधाता ने बज्जर गिराय देलकै। बिहारी आरो सीता लहासौॅ पर खाड़ैॅ पछाड़ खाय के गिरी गेलै। यै हाल में तीनूं बच्चा कैॅ मुकमुकी लागी गेलै। केकरौह कोय देखवैया नै। बुलाकी काका धीरज बँधलकै। गोतिया-पड़ोसिया के मदद सें लहास उठलै। केवलौॅ कैॅ लहासौॅ साथें बुलाकी काका भी नद्दी रौॅ घाट तांय गेलै। बुलाकी केवलौॅ के लहासौॅ सें लिपटी कैॅ जौं कानै लागलै-तैॅ गाँव-टोला रो आदमी जें कानी-कानी कैॅ बुक बान्हलैॅ छेलै उ$ फेरू कानै लागलै। केन्हौॅ कैॅ दाह-संस्कार करी कैॅ बिहारी घौॅर ऐलै। आगिन बिहारियै कैॅ देना छेलै। करता बनलौ, गल्ला में उतरी, देहौॅ में करपा पिन्हलें बिहारी दुआरी पर मिरचाय-पानी देतें भोकार पारी कैॅ कानै लागलै। बुलाकी छोड़ाय कैॅ अखनी संभारै वाला कोय दोसरौॅ नै छेलै।

आठवाँ दिन हजामत के दू दिन पैन्हैॅ तीनूं बच्चा कैॅ कै-दस्त शुरू होलै आरो दू रोजौॅ में एक-एक करी कैॅ तीनौॅ बुतरू काली माय के पेटौॅ में समाय गेलै। जें बापें जनम देलैॅ छेलै, गोदी में ढ़ोय-ढ़ोय कैॅ पोसलैॅ-पाललैॅ छेलै ओकरैैॅ आगिनकाछ करै लैॅ पड़लै। जै भगवानौॅ के भरोसौॅ छेलै जबैॅ वहैॅ बेपछ होय गेलौॅ छेलै तैॅ नरी लोगें की करतिहै? हजामतौॅ रोज माय भी पट से खतम होय गेलै। चार-पाँच दस्त होलै आरो प्राण छूटी गेलै।

करेजा पर पत्थर राखी कैॅ बिहारी आरो सीता सब काम करलकै। किरिया-श्राद्ध होतें-होतें गाँवौॅ के आधौॅ आबादी काल के गाल में समाय गेलै। सभ्भें एक दोसरा कैॅ देखी कैॅ धीरज बाँधलकै। जेकरा पर आदमी के वशैॅ नै चलैॅ ओकरा पर विचार करला सें की फायदा। कुल एकेश रोज काली माय कैॅ काल रंथ चललै। महिना भर गाँव कैॅ शांत होय में लागी गेलै।

समय ने बड़ौॅ से बड़ौॅ घाव भरी दै छै। जे नै रहलै उ$ तैॅ नै रहलै, जे रहलै ई धरती पर ओकरा धीरज धारण के शक्ति भगवानें दै छै। धीरज धारण कैॅ बावजूद सीता सबसें बेशी टूटी गेलौॅ छेलै मतुर ई देखी कैॅ कि जौं वें अपना कैॅ कड़ा आरो कठोर नै करलकै तैॅ अंतिम डोरी बचलौॅ पति भी हाथौॅ सें निकली जैतैॅ। बिहारी खटिया पकड़ी लेलैॅ छेलै। पेटकुनियाँ दैकैॅ हरदम्मैॅ कानते रहै छेलै। गाय-माल दुआरी पर भुखलौॅ-पियासलौॅ डाँगर नांकी डोलतें रहै मतुर बिहारी टस सें मस नै हुअैॅ। बुलाकी काका कैॅ नै देखलौॅ जाय तैॅ तनी-मनी जे बनै नादी मैं डाली दै।

महिना सें बेशी होय रेल्हौॅ छेलै। बुलाकी काका भी आवैॅ जाय के मौॅन बनाय लेनें छेलै। अगहन के मिठ्ठौॅ-पियारौॅ धूप ऐंगना में एक हाथौॅ से बेशिये उपर होय गेलौॅ छेलै। वर्षा के अभाव में रोपा तैॅ नहिये होलौॅ छेलै। आभी तांय एक्कौॅ बूँद पानी नै पड़लौॅ छेलै लेकिन मवेशी के चारा रौॅ इंतजाम सबसें बड़ौॅ समस्या छेलै। मुँहचरी घास-पात ही सहारा छेलै। मवेशी कैॅ खोली कैॅ बौॅन-बहियार, कोन्टा-ओहारी में चराय लैॅ लागै छेलै। ई काम केवलें करै छेलै मतुर हुनका मरला के बाद ई जिम्मेदारी भी बिहारी के ही होय गेलौॅ छेलै। ऐन्हौॅ में बिहारी के उठवौॅ ज़रूरी छेलै। रोग-शोक त्यागी कैॅ नया सिरा सें परिवारौॅ कैॅ चलाना तैॅ आबैॅ बापौॅ के बाद बिहारी के ही छेलै।

ऐंगना में खाड़ौॅ होयकैॅ बुलाकी काका सीता कैॅ पुकारी कैॅ कहलकै-"हिम्मत आबैॅ तोहरैॅ बाँधै लैॅ पड़तौं बेटी. बिहारी तैॅ देह-हाथ पताय देनें छौं। हम्मूँ आबैॅ घौॅर जैबो। जतना टा लिखलौॅ रहै छै, आदमी कैॅ भोगैॅ लैॅ पड़ै छै। हमरा सें जतना टा हुअैॅ सकलै, साथ देलिहौं।" अतना टा कहतें बुलाकी काका अपना कैॅ रोकैॅ नै पारलकै। बान्हलौॅ लोरौॅ के बाँध, जेकरा हुनी बहैॅ दै लैॅ नै चाहलै छेलै, अनचोके टूटी कैॅ बही गेलै।

"कक्का! तोंय धरमौॅ के बाप छेल्हौॅ। अत्तौॅ कोय दोसरें करै छै? तोंय नै रहतियौॅ तैॅ आय हम्में दूनौॅ प्राणी भी संसारौॅ में नै रहतियै। हिनका केना कैॅ संभारियै? विपतौॅ के पहाड़ तैॅ टूटिये गेलौॅ छै मतुर उठी कैॅ खाड़ौॅ तैॅ होइये लैॅ पड़तै।" कहतें हुअें सीता के आँखी सें लोर भरभरा कैॅ गिरै लागलै।

"तोंय नै कानौॅ बेटी. तोंय जौं कानभौॅ तैॅ बिहारी नै उबरैॅ पारतौं। सच में तोंही ओकरौॅ ताकत आरो हिम्म्त छेकौॅ।"

"हम्में की करियै काका। तोंही रास्ता दिखाबौॅ।"

"कल भियानी हम्में जैभौं आरो तब तांय हम्में शांति सें नै जाबैॅ पारभौॅ जब तांय बिहारी खटिया छोड़ी कैॅ भूखौॅ सें टौवाय रेल्हौॅ गाय-मालौॅ कैॅ बथानी सें खोली कैॅ चराय लेली नै चल्लौॅ जाय छै। गाय-भैंसी में ओकरौॅ मनौॅ बहटरी जैतैॅ। ऐकरा लेली तोंय ई करौॅ कि समझैवौॅ वें नै मानै तैॅ गाय-मालौॅ कैॅ खूंटा सें तोंही खोलै लागौॅ आरौॅ कहौॅ कि-" तबैॅ हम्मीं जनानी होयकैॅ । "

वाक्य पूरा होयके पैन्हैॅ सीता कहलकै-"हम्में सब समझी गेलियै काका। चलौॅ दुआरी पर, हमरा विश्वास छै कि हुनी यहैॅ उपाय सें ठीक होतै।"

सीता आरो बुलाकी का, दूनौॅ साथें दुआरी पर ऐलै। कत्तौॅ धीरज बँधाय के कोशिश करलकै मतुर कपसतें हुअें बिहारी पेटकुनियां छोड़ी कैॅ टस-मस नै होलै। सीता सिरहौना में बैठी गेलै आरो हाथ बिहारी के माथा पर राखतें हुअें बोललै-"हमरा दुनों प्राणी छियै तैॅ संसार फेरू बसी जैतैॅ। एक नया संसार बसाबै लेली उठौॅ आरो जौं नहिये उठभौॅ तैॅ ई गाय-मालौॅ के शराप तोंय लैॅ, हम्में नै लेबौॅ। जनम-जनम तांय ई सराप पीछू-पीछू घूमतै। तोंय नै उठौॅ, हम्मीं जनानी होयकैॅ मरदौॅ वाला काम करै लैॅ तैयार होय छियै। गाय-भैंसी कैॅ भूखें खूट्टा में मरैॅ दै के पाप लैकैॅ हम्में नै मरै लैॅ चाहै छियै। आय आरो अखनी चललियै हम्में मालौॅ कैॅ खोली कैॅ बहियार चराबै लैॅ।" अतना कही कैॅ सीता खूँटा सें गाय-भैंस खोलैॅ लागलै।

सच्चैॅ में बिहारी खटिया सें उठी कैॅ खाड़ौॅ होय गेलै। लाठी लेलकै आरो गाय-भैंसी कैॅ लेनें कानलौॅ-कानलौॅ बहियारौॅ दिस चराबै लेली हाँकी देलकै।

बिहारी एक्कैॅ दाफी साँझे कैॅ गाय-माल लेनें बथान ऐलै। गैया कैॅ खूंटा में बाँधतें भोकार पारी कैॅ कानै लागलै-"बाबू होैॅ ।"

सीता के आबै के पैन्हैॅ बुलाकी काका दौड़ी कैॅ आबी गेलै-"पागल नै हुऔॅ बिहारी। यहैॅ दुनिया छेकै। कोय यहाँ नै रहतै। पारा-पारी सबकैॅ जाना छै। आपनौॅ काम करौॅ। भगवानें तोरा दुनुं प्राणी कैॅ कैन्हैॅ दुनिया में राखलकै। एकरा पीछू ज़रूरे कोय नै कोय बात छै। कुछ ज़रूरी महत्त्वपूर्ण घटै लैॅ बांकी बचलौॅ छै। ऐकरा समझौॅ। बहुतैॅ लंबा औरदा जीना छौं। जिनगी में सुख-दुख यहैॅ रंग जैतें-ऐतैं रहतै। चलौॅ, दुनूं बापूतें साथें खाना खैबैॅ। बेचारी सीतों नै खैलैॅ छै।" हाथ पकड़ी कैॅ उठैलकै बुलाकी काका। खाना खैलकै आरो बिहारी कैॅ भी खिलैलकै।