सीता के पैरा / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दस बरस केनां बीती गेलै केवल रौतौॅ के परिवारों कैॅ पता नै चललै। सीता कैॅ तीन सालौॅ के बाद गौना कराय के ससुराल चौतरा लै लानलै छेलै। मिर्जापुर सें बिदाय वक्ती चिनगी ने अपनौॅ बेटी कैॅ दहेजौॅ में एक ठो दुधारू भैंस आरो एक ठो बाछी देनें छेलै। यै बीचौॅ में केवलौं बुधियारी करनें छेलै। ओकरा आपनौॅ झेललौॅ आरो भोगलौॅ गरीबी, बीतलौॅ-पीड़ैलौॅ दुखौॅ के दिन याद छेलै। समधी चिनगी आरो बुलाकी काका के कहलौॅ बातौॅ उ$ नै भुललौॅ छेलै। शादी में खरचा-बरचा करी कैॅ केवलें अतना टा बचाय लेनें छेलै कि बचैलौॅ उ$ टाका सें वें एक जोड़ा बैल आरो आठ-दस पाथा दूध दै वाली एक ठो भैंस खरीदी लेनें छेलै। गौना में जे बाछी देनें छेलै वहौॅ आवैॅ एक बढ़िया दूध दै वाली गाय होय गेलौॅ छेलै। मिलाय-जुलाय कैॅ छोटौॅ-बड़ौॅ आठ-दस मवेशी द्वारी पर होय गेलौॅ रहै।

पारा-पारी गाय-भैंसी बच्चा दै। सब माल सुन्नर सुतरी गेलौॅ रहै। घरौॅ में खाय-पीबी कैॅ दस पाथा दूध बिक्री लेली बचिये जाय छेलै। एक पैसा गाय के आरो डेढ़ पैसा पाथा भैंसी के दूध छेलै। सौसे परिवार रो गुजारा बहुत बढ़िया सें होय रेल्हौॅ छेलै। केवलें शंभु सिहौॅ रो हरबाही भी तोड़ी देनें छेलै। सौसें गामौॅ में सीता के पैरा रौॅ चर्चा सबके जुबान पर छेलै। जनानी-मरदाना, छोटका-बड़का सभ्भें कहै-"देखौॅ, कतना बढ़िया छै मिर्जापुर वाली के पैरौॅ। ऐतैं केवलौॅ के हरवाही छुटी गेलै। बुढ़ारी में शंभू सिंहौॅ के दुआरी पर कमैतें नीनान पूरी जैतियै। आपनौॅ सब जीवें मिली कैॅ कमाय छै, बढ़िया सें खाय छै। कतना सुख-शांति लानी देलकै यें एक लड़की ने। केकरौ से झगड़ा झंझट नै करैॅ दै छै। ससुराल एैला सें सात साल बीती गेलै मतुर कहियो उघारौॅ-पुघारौॅ नै देखलैॅ छियै। ऐंगना सें बाहर गोड़ तक नै धरै छै। ऐकरा कहै छै कुल-खानदानौॅ रो लड़की। भगवानें ऐन्हौॅ पुतोहु सभ्भैॅ कैॅ दियै। देखौं में छहाछत सुरसत्ती माय। बोली की बोलै छै जेनां अमृत के धार बरसतें रहैॅ।"

सच्चैॅ तैॅ एैला के साथें सीता ने घरौॅ के सौसे कमान अपना हाथौॅ में लै लेनें छेलै। खान-पान, रोग-वियाध आरो कपड़ा लत्ता सें जे बचै ओकरा जोगी कैॅ राखै के काम सीता रो छेलै। केवलें दिन भर गाय-भैंस चराबै, ओकरो देखभाल करै आरो बिहारी कुट्टी-पानी-सानी। दू बीघा खेत अधबटाय पर लै लेनें छेलै। ओकरा जोतै-कोड़ै के जिम्मा बिहारी के छेलै।

महिना में सोमवारौॅ दिन एक रोज बथानी पर बाबा बिसु रौत कैॅ पूजा-पाठ, गीत-नाद आरो सालौॅ में पाठा के बलि नै टलै वाला दिनचर्या छेलै सीता के. विसुवा परवौॅ में बाबा विसु के बथान पचरासी जाय कैॅ अपनौॅ बथानी रो दूध चढ़ाना नै भूलै छेलै बिहारी। अधरतिये आखरौॅ दूध लैकैॅ पांव-पैदल बिहारी पचरासी लेली चली दै छेलै।

महिना में एक दिन अंतिम सोमवार के इन्तजार सौसे गामौॅ के गांजा पीयाकौॅ कैॅ रहै छेलै। चिलमौॅ पर चिलम चलै। बाबा के प्रसाद बथानी पर चढ़बौॅ करै गांजा, बतासा आरो सवा सेर लड्डू। गांजा पीवी कैॅ जबैॅ टेरमटेर होय जाय फुलधरिया तबैॅ आखरौॅ गाय के गोबरौॅ सें लीपलौॅ चौका पर बिसु रौतौॅ के गीत शुरू हुअै। रातभर बाबा के गीतौॅ सें गाँव के कोना-कोना गूंजतैॅ रहै छेलै। चौका पर बैठलौॅ गवैया शीतल दासौॅ के सुर लहरी में जड़-चेतन सभ्भैॅ मस्त-मगन डूबी जाय छेलै।

विहारी स्वभावौॅ से शांत आरो सरल छेलै। जबैॅ हुनी देखलकै कि सब टा काम सीता नें बढ़ियां सें करी लै छै तैॅ आपनौॅ भरी काम करी कैॅ बिहारी घरौॅ में बाल-बच्चा कैॅ संभारे में सहयोग करै लागै। यै सात-आठ सालौॅ में तीन-तीन लड़का के जन्म होय चुकलौॅ छेलै। बड़ौॅ पाँच बरस कैॅ, मँझला तीन बरस के आरो छोटौॅ साल भरी के गोदी में छेलै। तीनौॅ बेटा माय पानी पर, दूध नांकी उजरौॅ दकदक। ऐंगना में खेलै तैॅ ओकरौॅ किलकारी सें दादा, दादी, माय-बाप निहाल होय जाय। लागै सरंगौॅ से स्वर्ग उतरी के हुनकै ऐंगना में आबी गेलौॅ छै।

केवलौॅ के उम्र भी पैंसठ कैॅ पार होय रेल्हौॅ छेलै। आबैॅ देहौॅ में पैहलका नांकी दम-खम नै रही गेलौॅ छेलै मतुर रोग-व्याधि सैं मुक्त छेलै। स्वस्थ, माँसौॅ से भरलौॅ देहौॅ के कारण उमर के पता नै चलैॅ छेलै। अतना कमासुत आरो लूरगरी पुतोहु पावी के हुनी भी सिर्फ़ कमाय सें मतलब राखै, घरौॅ के मलिकपनौॅ सीता पर सौंपी कैॅ निश्चिंत होय गेलौॅ रहै। कतना दूध बेंचतै कतना दूध धरौॅ में राखतै, की बचैतैॅ, की बुड़ैतैॅ सब भार सीता पर।

एक दिनां बातैॅ-बातोैॅ में विहारी बड़ी जोरों से सीता पर गोस्साय गेलै। बात कुछुवे नै छेलै, खाना परोसी कैॅ दै में देर होय गेलै। दरअसल हुअैॅ कि जखनी खाना खाय लेली आबै बिहारी अकसर तखनिये छोटका जागी जाय आरो माय के गोदी छोड़ी कैॅ केकरौह ठियां कोय होलतौॅ में रहबैॅ नै करै। कानै ऐन्हौॅ कि लागै सरंग फाड़ी देतै। माय रो मजवूरी, बेटा देखै कि सांय। ओकरा पर छोटौॅ बुतरु। नीचें जमीनौॅ पर धरतैं अंट-संट कुछुवे अलाय-बलाय मुंहौॅ में दैकैॅ चभलाबैॅ लागै। बापें जौं गोदी में लै लैॅ चाहै तैॅ ऐन्हौॅ चिचियाबै कि कोय हलाल करतें रहैॅ। भुखलौॅ पेटें आव-ताव नै मानै छै। बस बिहारी गुस्साय कैॅ आगिन होय जाय। कभी-कभार तैॅ वही बख्ती दिशा मैदान भी छरछरबाय कैॅ करी दै कोय नै कोय बुतरु।

आय बहुत दिनौॅ के बाद जबैॅ केवलौॅ कैॅ बरदाश्त नै होलै तैॅ बेटा कैॅ समझैतैॅ हुअैॅ कहलकै-"अरे, उ$ तैॅ कुलौॅ घरौॅ के बेटी छौ। जे कुछछु नै बोलै छौ। तोंय तैॅ ओकरा बेचारी पर फालतुअैॅ गोस्साय छैं। वें की करतौैॅ, तीन-तीन छोटौॅ बुतरु; नंग-चंग होय जाय छै। कोय झड़ा फिरी दै छै तैॅ कोय भंसा घरौॅ में ढुकी कैॅ भात छिरियांय दे छै तेसरौॅ ई मंझला मंटा कैॅ देखैं, खेलै-उछलै में कखनी खटिया पर सें गिरी कैॅ कान-कपाड़ फोड़ी लैतै, पता नै।" ई कहतें हुअें केवल रौतें मंटा कैॅ गोंदी में लैकैॅ पुचकारैॅ लागलै-"तोरा से ई तैॅ कखनु नै होतौॅ कि कोय बच्चा कैॅ गोदी में लै कैॅ पुचकारियै, दुलारियै। अरे, बच्चा लेली गोस्सा कैॅ शांत राखैं, हाँसें, बोलें। बच्चा तैॅ भगवान होय छै। केनां तोरा सीनी कैॅ पोसलियौ, तोंय की ऐकरा सें कम छेलैं। खाय बखती थरिया में भीड़ी जाय छेलै, खाय के तैॅ लूर तखनी नहियें छेलौॅ, हों छिरियाय छेलें खूब्बे; माय सें पूछियैं, कहिया मारलैॅ-धोपलैॅ भी छेलियौ।"

बिहारी बापौॅ कैॅ लाड़-दुलार सें भरलौॅ बात सुनी कैॅ शांत होय गेलै। गलथोथरी तैॅ दूर, बिहारी बापौॅ से मुँह भरी कहियो बोलै तक नै छेलै। बापें जे कहि देलकै, उ$ लक्ष्मण लकीर होय जाय छेलै। तब तांय सीता नें खाना परोसी कैॅ आगू में दै देलै रहै। ओकरा चेहरा पर तनियो टा दुख आरो क्लेश के भाव नै छेलै। जौं चेहरा पर छेबौॅ करलै तैॅ वहैॅ भाव जे हर हमेशा एक रंग रहै छेलै। खिलखिल करतें हँसी मुसकानौॅ सें भरलौॅ दपदप करतें चेहरा।

दादा ई समझतैॅ हुअैॅ कि बढ़िया सें खाबै नै देते छौड़ा सीनी, बड़का दुन्हू कैॅ बहटारनै दुआरी पर चल्लौॅ गेलौॅ रहै। छोटका आभियो तांय माइये गोदी मेें छेलै। कानबौॅ छोड़ी कैॅ आबैॅ वें खैतें हुअें बापौॅ के मुँह टुकुर-टुकुर ताकी रेल्हौॅ छेलै।

सीता हाँसते हुअें बोललै-" ऐन्हौॅ बाप होय छै। गोस्सा सें हरी-घुरी तन-फन। दुनिया रौॅ हाय-हाय तोहरै खाली छौं की?

" अरे! ... बिहारी मुड़ी हिलैलकै आरो हाँसलै भी-

"गोटा फूल नांकी खिलखिल करते हमरा कनियाय कैॅ कोय तकलीफ नै हुअैॅ, घरौॅ से बाहर नै हुअैॅ कामौॅ लेली, केकरौॅ नजर नै लागी जाय, यहैॅ कारणें दिन-रात चौबीसौॅ घंटा हाय-धुन कमाय छियै। आपनौॅ आरो अपना लेली कमाय छियै। दोसरा केकरौॅ आरो दुआरी पर तैॅ नहिये नै कमाय छियै।"

"तैॅ गोस्साय छौॅ कथी लैॅ। आपनौॅ हाँसलौॅ चेहरा देखौॅ तैॅ एैंना में कत्तैॅ अच्छा लागै छौं अखनी।"

"तोंय नै समझै पारभौ सीता रानी कि तोरौॅ दुलहा केन्हैॅ गोस्साय जाय छै। आजादी में बितैलौॅ उ$ शुरू के तीन-चार साल जखनी बच्चा-बुतरु नै होलौॅ छेलैउ$ मौज-मस्ती के समय बहुतैॅ याद आबै छै। आबैॅ तैॅ एकान्त में तोरौॅ दू बोल प्यारौॅ के, मनुहारौॅ कैॅ सुनै लेली भी तड़पी कैॅ रहि जाय छियै। आबै छियै तैॅ बुतरु सीनी के कन्ना-रोहट सें ही दर्शन होय छै।" आपनों भितरिया दुख खुली कैॅ बिहारी बोली गेलै। खाना खाय कैॅ खटिया पर आरामौॅ सें लेटी गेलौॅ छेलै बिहारी। नीचूं सीता धरती पर ही पालथी मारी कैॅ बैठली छेलै। छोटका नुनुं गोदी से उतरी कैॅ एैंगना में खेली रेल्हौॅ छेलै। शरद कैॅ प्यारौॅ धूप ऐंगना में पसरलौॅ छेलै।

पैन्हैॅ तैॅ सीता थोड़ौॅ गंभीर होलै फेरू नै जानौं की सोची कैॅ ठठाय के हाँसलै। खूब देर तांय हाँसतें रहलै आपनौॅ माथौॅ पटैलौॅ बिहारी के गोड़थारी में धरी कैॅ।

बिहारी प्यार सें बोललै-"तोरौॅ यहैॅ हँसी तैॅ हमरो जीवन छेकै। याहीं सें हमरा कमाय के ताकत मिलै छै। दुनिया में एतैॅ सुन्नर हँसी केकरौॅ होतै, हम्में नै जानै छियै आरो नै तैॅ देखलै छियै, हों, सुनलैं ज़रूरे छियै। एक ठो रानी छेलै। ओकरा एक ठो बेटी छेलै। राजकुमारी के नाम छेलै फूलकुमारी। हाँसै तैॅ फूल झरै, कानै तैॅ मोती। काहीं वहैॅ तैॅ नै छेकौॅ तोंय। दुखौॅ में, सुखौॅ में हरदम एक मन मोहै वाला हँसी चेहरा पर थिरकतें रहै छौं। हाँसै नै छौ मतर लागै छै हरदम हँसतैॅ रहौॅ। की भगवानें बनैलैॅ छौं रूप तोरौॅ।" ई कहतें हुअें विहारी बैठी गेलै आरो लोट-पोट उन्मुक्त होय कैॅ हाँसी रेल्हौॅ सीता कैॅ भरी पाँजों पकड़ी कैॅ चूमी लेलकै।

शरम सें लाल होय गेलै सीता। धड़फड़ाय कैॅ बिहारी के बाँही सें अपना कैॅ छुड़ैतें हुअैॅ बोललै-"कोय देखी लेथों तैॅ की सोचतै?"

"की सोचतै? अपना घरौॅ में आपना कनियाय साथें छियै।"

तभिये दादा ठियां से कानलौैॅ मंझला मंटा ऐंगना में आबी गेलै। उ$ ऐन्हौॅ कानी रेल्हौॅ छेलै जेनां कोय लाठी से डंगैलैॅ रहैॅ। आँखी के लोर आरो नाकौॅ के नेटा एक होय गेलौॅ रहै। पीछू-पीछू केवलौॅ रौत एैलै ई कहतें हुअें-"दूनौॅ गोदी लैॅ झगड़ा करै छै। दू में से कोय केकरौॅ गोदी में बैठैॅ दै लैॅ नै चाहै छै। एकसीरतौॅ राज चाहियौॅ। लैॅ, ऐकरौह राखौॅ। भैंस खोली कैॅ लैैॅ जाय रो बेरा होय गेलौॅ छै।" केवलें गोदी से बच्चा नीचूं ऐंगना में राखी कैॅ चल्लो गेलै।

थोड़े देर फुरसत होलौॅ छेलै बच्चा सीनी सें। फेरू कांय-कू शुरू होय गेलै। बिहारी कैॅ भी बहियार जाना छेलै। कपड़ा पिन्हलकै आरो खेतौॅ दिस निकली गेलै।

कै रोजौॅ के बाद आय सीता एैनां निकाललकै आरो आपनौॅ मुँह देखै लागलैं, वहैॅ हँसमुख चेहरा छिनमान पहलकै नांकी, काहीं कोय परिवर्तन नै नजर ऐलै सीता कैॅ। सीता कैॅ अखनी कुछ देर पैन्हें बिहारी कैॅ कहलौॅ एक-एक बात माथा में घुरैॅ लागलै। की सच्चैॅ उ$ देखै में ओतनैं सुन्दर छै जतनां हुनी कहलकै। अंग-अंग निरयासी कैॅ बहुत देर तांय सीता अपना कैॅ निहारलकै। एक बात आय पैल्हौॅ दफा दिमागौॅ में कौंधी गेलै। ससुराल एैला पर दोसरौॅ दिन साँझ कैॅ यही लेली बाबू, बेटा कैॅ हिदायत देतें हुअें कही रेल्हौॅ छेलै कि-"जमींदारों के नजरौॅ सें कनियाय कैॅ बचाय कैॅ राखिहैं। दुनो बाप-बेटा जान उपेखी कैॅ कमैबैॅ, कनियाय कैॅ बाहर नै जाबैॅ देबै।" आय उ$ कहै कैॅ भीतर रौॅ सच समझी कैॅ सीता कैॅ हँसी आबी गेलै। बहुत देर तांय हँसतें रेल्है सीता। अंग-अंग थिरकतें रहलै सीता के.

सच्चैॅ में सीता के कसलौॅ-गठलौॅ देह अतनैं सुन्नर छेलै कि तीन-तीन बच्चा होला के बादौॅ नै लागै छेलै कि एक्कौॅ बच्चा होलौॅ रहै। ओकरा सुन्दरता में चार-चाँद लगाय दै छेलै ओकरौॅ हँसमुख चेहरा। छोटका जोरौॅ से कानलै। बच्चा सीनी रो याद ऐलै सीता कैॅ आरो घरौॅ सें जबैॅ बाहर निकललै तैॅ तीनू बच्चा कैॅ देखी कैॅ हाँसतैॅ-हाँसतैॅ लोटपोट होय गेलै। तीनों कादौॅ में लेटवासेट। सौंसे देह कादौॅ-कादौॅ। मुँह, आंख, देह सूझवा नै सूझै। चूल्हौॅ पारै लेली मांटी सानलैॅ छेलै सीता नें वही कादौॅ में अकेलौॅ पावी कैॅ तीनौॅ बुतरु खेलैॅ लागलौॅ छेलै। सासू माय बूलै लैॅ दोसरा कन चल्ली गेलौॅ छेलै।

गोस्सा की होतै सीता कैॅ, उलटे हाँसली गेलै आरो पानी सें धोय-पोछी कैॅ, बच्चा कैॅ बीच ऐंगना में लै कैॅ बैठी गेलै। धूपौॅ में सेंकी कैॅ कपड़ा-लत्ता पिन्हाबैॅ लागलै। जाड़ौॅ के दिन छेलै। थरथर कांपते हुअें तीनूं कैॅ अंचरा से झांपी के गरमावैॅ लागलै।

जाड़ौॅ के सुरुज पछिये सरंगौॅ हिन्नैॅ बाँस भर झुकी गेलौॅ रहैॅ। बड़का खाय लैॅ मांगलकै तैॅ मंटौॅ भी ठुनकै लागलै। केतकारौॅ दिन उदम्मा-उदास होय छै आरो ई समय धान के किसानौॅ लेली खाली-खाली, अभाव-भुखमरी कैॅ होय छै। फसल खेतौॅ में लागलौॅ रहैॅ छै आरो किसानौॅ के कोठी रौॅ मुँह खुल्ला। सीता दू बुतरु, जे थोड़ौॅ समझ वाला छेलै ओकरा अंगौॅ सें अलग हटाय कैॅ आरो छोटका कैॅ गोदी में लेनें छाती से चिपकैतें हुअैं उठलै। झलफल सांझ होय के पैन्हें भंसा-भात लेली सीता तैयार होतें हुअें कहलकै-"घंटा भर ठहर बेटा, तुरत माड़-भात खिलाय छियौ। की करियौ बेटा, ई कातिकौॅ में बड़का-बड़का किसानों कैॅ हालत पातरौॅ छै।"

आरो सीता राजा-रानी के मौॅन बटारन किस्सा सुनाबैॅ लागलै। चूल्हा में आगिन लहरी गेलौॅ छेलै। तीनूं देहौॅ के वहैॅ रंग पकड़नें छेलै कि माय कांही भागी नै जाय।