सुखलोॅ नद्दी के पानी / मृदुला शुक्ला

Gadya Kosh से
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पिछलका साल भागलपुर गेलोॅ रहियै तेॅ माय नें बतैलकै कि दामोदरपुर वाला घर गिरी गेल्हौं बेटा।

केना? कबेॅ? कैन्हें? हम्में ढेर सिनी सवाल पूछेॅ लागलियै आरू माय चुप्प। एकदम्मे निःसंग नाँखी बस सोचथैं रहली। हुनकोॅ कृषकाय शरीर चिड़िया एन्होॅ दुबकलोॅ आरो सहमलोॅ रङ लागी रहलोॅ छेलै। आँखी के धुँधवैलोॅ रोशनी में, बीतलोॅ बरस के ढेर सिनी याद परिछाँही बनी केॅ डोली रहलोॅ छेलै। दरद के पपड़ी झुर्रीदार चेहरा केॅ आरू दयनीय बनाय रहलोॅ छेलै। हुनकोॅ उमिर आबेॅ एत्तेॅ सबकुछ सहै के नै रही गेलोॅ छै-यहेॅ सोची केॅ हम्में फेनू बात बदली केॅ कहलियै-"जाबेॅ दहू, वै घरोॅ में आखिर रहै भी के छेलै? आरू जखनी हमरा सब रहै छेलियै तेॅ गामोॅ के लोगोॅ केॅ भी लागतेॅ होतै कि सब्भे सुख एक्के शय शेगी रहलोॅ छै।"

"से सब तेॅ ठीक्के छै, मगर आय तोरोॅ बाबूजी रहतियौं तेॅ की..." कहतें।कहतें माय के आवाज आरू देह, दूनो काँपेॅ लागलै।

"तबेॅ...तबेॅ की ऊ सब होवे नै करतियै? हम्मू जानै छियै कि हुनी गामोॅ के खेत के फसील आरू धनोॅ सें नै प्रेम करै छेलै। माटी के मोह छेलै हुनका। पुरुखा के निशानी बुझी केॅ ओकरा जोगै छेलै आरू माटी के ऋण चुकाय छेलै, मतरकि माय, आबेॅ है सिनी के जमाना नै छै, यै ली सोच मत करोॅ।"

वै दिन तेॅ आपना केॅ ग्यानी।ध्यानी बुझी केॅ हम्में माय केॅ बड़का।बड़का बात समझाय देलियै, मतरकि साल भरी सें ऊ पुरनका गामोॅ वाला घोॅर हमरोॅ अवचेतन में धँसी केॅ हमरा क्षत।विक्षत करनें जाय छै।

आय पुरनका जीवन।मूल्य आरू पुरनका भाव।सम्पत्ति के नाँखी पुरनका घोॅर।संसारो ध्वस्त होलोॅ जाय रहलोॅ छै। एकरा के रोकेॅ सकै छै भला?

हमरोॅ अतीत के पगडंडी बड़ी लम्बा छै, मतरकि एक छोर पर वहेॅ घोॅर के ऐंगना मिली जाय छै, जेकरोॅ बारे में माय नें चिट्ठी में भी कातर होय केॅ लिखल्हेॅ रहै कि "मृदुल। दुआर आरो ऐंगन एक होय गेल्हौं, सड़कोॅ पर सें एकदम्मे मिली गेल्हौं, ऐंगन तेॅ घरोॅ के रहलै पर नी बनै छै। नै बुझै छौ, मतरकि घोॅर के पहचानो तेॅ ऐंगने छेकै। आबेॅ तेॅ भागलपुरोॅ के बड़का।बड़का घरोॅ में भी ऐंगनोॅ नै रही गेलोॅ छै।"

माय के आवाजे जेना हमरोॅ भीतरी सें आवी रहलोॅ छै। कैन्होॅ होय छै ऐंगन-है तेॅ हम्मीं जानेॅ पारै छी। आय के बच्चा।बुतरू की बुझतै, जेकरा खुल्ला हवादार ऐंगना में रहै के अवसरे नै मिललै आरू रात केॅ ऐंगना वाला घरोॅ में जेकरा डर लागी जाय छै। बचपनोॅ में स्कूल के गरमी।छुट्टी, पूजा।छूट्टी, बड़ादिन के छुट्टी जेन्हैं नगीच आवेॅ लागै, हमरा सिनी गाँव जाय लेली दिन गिनवोॅ शुरू करी दियै। तखनी ऐंगन मतलब होय छेलै-सौंसे घोॅर के संसद, ऐंगनोॅ होय छेलै हमरा सिनी रङ लड़की के एक्कट।दुक्कट खेलै ली बड़का जग्घोॅ आरू माय के डरोॅ सें नुकाय लेली कोना।परछत्ती सें घेरलोॅ एक सुरक्षित किला।

आय मोॅन विचलित होय केॅ अतीतोॅ के वही ऐंगना में जाय लेॅ चाहै छै-जहाँ कहियो वसन्ती हवा बहै छेलै आरू वै फगुनाहट में ढेरी रिश्ता।नाता के गरमाहट भरलोॅ रहै। जबेॅ हम्में गुमसुम बनी केॅ खाली बदरंग अकासोॅ केॅ ताकी रहलोॅ छियै, तेॅ हमरी माय के मोॅन केन्होॅ मथतेॅ होतै-जे वही दरवज्जा पर कभियो कनियाँय बनी केॅ उतरली छेली। माय कहै छेलै कि हमरोॅ बाबा नें सुल्तानगंज के गढ़ सें कुमार साहेब के कार माँगी केॅ माय केॅ सुल्तानगंज स्टेशन सें आपनोॅ दरवाजा पर आनलेॅ छेलै।

ढेर सिनी खिस्सा, ढेर सिनी कहानी तेॅ ऊ घर आरू ऐंगना के छै। एखनी सब गड्ड।मड्ड नाँखी लागै छै। छः।सात साल के हमरोॅ उमिर होतै...दुआरी पर बड़का नीम के गाछ छेलै। वाँहीं ठियाँंरस्ता चलै वाला एक नींद भी लेॅ लै छेलै, ऊ दिन हम्में आपनोॅ गामोॅ के सखी सिनी साथें 'घोॅर खाली घरघोट' नाँखीं कोय खेल खेली रहलोॅ छेलियै। हमरा सें बड़ोॅ भाय चिल्लैलोॅ आरू कोरस गैलेॅ-'बाबा आवी रहलोॅ छै, बाबा आवी रहलोॅ छै'-ऐंगना तरफ भागलै। आपनोॅ होस में हम्में आपनोॅ बाबा केॅ यही पहिलोॅ दाफी देखी रहलोॅ छेलियै। हमरोॅ बाबा गोविन्द प्रसाद शुक्ल विद्वान आरू कवि छेलात। बड़का घरोॅ के नाती भी छेलात, यै लेली वहाँकरोॅ शान।शौकत, शतरंज, घुड़सवारी, कविताई सब्भे में हुनी पारगंत छेलात। पूजा।पाठ में भी एकदम्में पंडित। मतरकि जेना कि अकसर एन्होॅ लोगोॅ के साथें होय छै, हुनियो घरोॅ के प्रति कहियो कोय जिम्मेवारी नै उठावेॅ पारलकात। हमरा लागै छै कि कोय बन्धन, कोय बन्दिस, कोय सुख, आराम आरू कोय उत्तरदायित्वोॅ सें बन्है वाला हुनी जीव छेवे नै करलै। एक अलमस्त दुनियाँ आरू विद्या। व्यसनी स्वभाव लेनें हुनी रमता जोगी रङ कहियो घरो आवी जाय आरू कहियो बाहरो चल्लोॅ जाय छेलात।

तबेॅ ऊ दिन जबेॅ बाबा केॅ देखलियै तेॅ सब्भे भाय।बहिन आवी.आवी केॅ गोड़ छूवी.छूवी प्रणाम करेॅ लागलियै। एकदम उज्जरोॅ दाढ़ी आरू लम्बा केश छेलै। बादोॅ में हम्में रवीन्द्र नाथ ठाकुर के फोटो देखलियै तेॅ सोचेॅ लागलियै कि हमरोॅ बाबा के फोटो बंग्ला किताबोॅ में कैन्हेॅ छपलोॅ छै। बाद में जानलियै कि ऊ हमरोॅ दिमाग के तह पर छपलोॅ छै। चेहरा।मोहरा ठीक सें याद नै पड़ै छै, मतरकि जबेॅ झोला में किताब आरू पिनखजूर देखलियै तेॅ हमरोॅ मन छोटोॅ होय गेलै। लोगोॅ के दादा आवै छै तेॅ लड्डू।जिलेबी लानै छै, यहाँ खजूर एन्होॅ चीजोॅ में हमरोॅ कोय रूचि-नै तहिया छेलै, नै अभियो छै। आरू किताब तेॅ एकदम्मे हमरोॅ काम के चीज नै रहै। मतरकि जबेॅ हुनी घिरनी वाला लेमनचूस निकाली केॅ देलकै, तबेॅ मन हरखित होय गेलै। गोल।गोल गुलाबी, चक्की रङ लेमनचूस में डोरी गूँथलोॅ रहै, जेकरा अँगुरी पर नचाय केॅ छोड़ला सें लेमनचूस घिरनी नाँखी घुरेॅ लागै छेलै आरू अगर बीचोॅ में डोरी टूटी गेल्हौ तेॅ मुँह में गप्प सें खाय के चीज। बाबा नें जबेॅ हमरोॅ हाथोॅ में ऊ थमैलकै तेॅ हमरा बाबा के प्रति पहिलोॅ बेर बोध होलै कि सच्ची में हुनी हमरोॅ बाबू छेकात। बालमन बड़ा रिश्वतखोर होय छै। दू दिन बाद वहै ऐंगना में रौशनी के फूल खिललोॅ छेलै। दिवाली के एक दिन पहिनें बाबूजी भागलपुरोॅ सें ऐलै, तेॅ हुनका भी मालूम होलै कि बाबा आवी चुकलोॅ छै तेॅ हुनियो थोड़ोॅ गम्भीर होय केॅ बैठी गेलै। ऊ उमिरोॅ में हमरा ई तेॅ नै मालूम हुवेॅ पारलोॅ छेलै कि बाबा के कौन बातोॅ सें बाबूजी गम्भीर होय गेलोॅ छेलै। आबेॅ सोचै छियै कि शायद हमरोॅ बाबा भी वहेॅ सिनी बोलतेॅ होतै, जे हर बाप आपना केॅ उपेक्षित या अधिकारोॅ सें वंचित समझी केॅ बोलै छै। अंग्रेज़ी पढ़ाय केॅ हुनी भारी भूल करलेॅ छै आरू बेटा आपनोॅ संस्कृति आरू माय।बापोॅ केॅ भूली जाय रहलोॅ छै-यहेॅ सिनी विचार हुनी आपनोॅ कविता आरू गप्प में बाहर बैठी।बैठी केॅ शायद लोगोॅ केॅ सुनावै छैलै आरू वाँही ठा खाड़ोॅ हमरोॅ कक्का सिनी आपनोॅ ऊपर कठाक्ष समझी केॅ हटी जाय छेलै। हुवेॅ सकै छै कि यहेॅ सिनी बातोॅ नें बाबूजी केॅ चिन्ता में डाली देनें होतै।

बाबूजी भी बाबा के बहुत लेहाज करै छेलै आरो बाबा भी बाबूजी के आमना।सामना कहियो उच्चोॅ।नीचोॅ बोल नै बोलै छेलै। मतरकि तनाव के डोरी छेलै-जैमें ढेर सिनी विश्वास, मर्यादा, स्नेह, सम्मान के साथें कुढ़न आरू अहम के भाव भी टंगलोॅ रहै छेलै।

हमरा सिनी के घरोॅ में दीवाली के राती हुक्का।पाती खेलै के रिवाज छै। तुलसी.चौरा पर ऊ साँझे जे सात ठो दीया जरै छै, ओकर्है सें-घरोॅ के सबसें बड़ोॅ जेठ जे रहै छै-हुनिये सनाठी के बनलोॅ हुक्का।पाती में आग लगावै छै, फेनू घर के सब्भे पुरुष वाँही सें हाथ के हुक्का।पाती जराय केॅ घोॅर सें बाहर लै जाय छै-दलिद्दर रूपी राकस केॅ घरोॅ सें बाहर करै के संकेत के रूप में। बहुत साल बाद बाबा ई बरस दीवाली में घोॅर में छेलै, यै लेली है बेर बाबा के हाथोॅ सें ही हुक्का।पाती शुरू होतियै।

...मतरकि बाबा पता नै-की बात छेलै, जे यै लेली तैयारे नै होय रहलोॅ छेलै। हमरोॅ दादी-जेकरा हमरा सिनी भौजी कहै छेलियै-हुुनी जतन्हैं धीरेॅ बोलै छेलै, बाबा ओतन्हैं उच्चोॅ स्वर में सुनै छेलै। हमरा लागै छै कि उच्चोॅ सुनै वाला, मोॅन सें थोड़ोॅ संकालु होय जाय छै। हमरोॅ बाबाहौ शायद यही कारण सें परिवार सें आपना केॅ दूर समझतेॅ होतै।

आय हम्में ई अनुभव करै छियै कि पिता आरू पुत्र के सम्बन्ध केॅ प्रगाढ़ बनाय में माय के बहुत हाथ रहै छै। हमरोॅ दादी आरू बाबा के बीचोॅ में समानता के कोय बाते नै छेलै। बाबा के पास ढेर सिनी बात, ढेर सिनी ज्ञान आरू बाहरोॅ के देखलोॅ दुनियाँ के अनुभव के भण्डार छेलै। दादी के दुनियाँ बहुत सीमित-दिन भर काम करना आरू एकदम कम बोलना या एत्तेॅ धीरेॅ बोलना कि कान लगैल्है पर सुनेॅ पारोॅ। बाहरोॅ के दुनियाँ जानै के कोय ज़रूरत नै, कोय उत्सुकता नै, केकर्हौ सें कोय शिकायत नै, कोय सपना भी नै। बस घोॅर, ऐंगन, कुँइया, बारी, कोठी, बथान आरू कुछ नै तेॅ गामोॅ भरी के बच्चा।बुतरू के कपड़ा।बिछौना सीना।पिरोना। हमरोॅ गामोॅ के बगलोॅ में कानू टोला छै। गरीब गामोॅ के गरीब लोग। जेन्हैं कोय बच्चा वहाँ जनमै, हमरी दादी घोॅर के पुरानोॅ कमीज, कोट-हँसुआ सें काटी.काटी ओकरोॅ कपड़ा सीयेॅ लागै छेली।

...हमरोॅ पुरनका ऐंगन ही दादी के साम्राज्य छेलै। घोॅर में काम करै वाली कतन्हौ काम करै लेॅ तैयार रहै, चार सें पाँच बजे-जखनी भोरकोआ तारा डूबै पर रहै छै-हमरी दादी सौंसे ऐंगनोॅ बोहारी केॅ तैयार मिलै छेलै। कहै छेलै-"बासी ऐंगना में बच्चा।बुतरू केॅ नै चलना चाहियोॅ।" बगबग उजरोॅ रंग बड़का।बड़का आँख आरू चौड़ा नाक, चानी रङ उज्जरोॅ केश। दादी के यहेॅ रूप हम्में करीब बरस भरी देखतेॅ रहलियै। दादी सबसें निरीह आरू कातर तखनिये देखाय छेलै-जबेॅ कोय हुनका काम करै सें रोकै छेलै। हाथोॅ के समानोॅ केॅ धीरें सें पटकी केॅ भुनभुनैली दुआरी या कुँइयाँ तरफ चल्ली जाय छेलै। दादी आरू ऐंगन ऐन्होॅ जुड़ी गेलोॅ छै कि एक केॅ याद करै छियै तेॅ दोसरा के याद आवीये जाय छै।

बीतलका दिनोॅ में गेला पर सुधि के पन्नोॅ सिनी एन्होॅ उलटी.पुलटी जाय छै कि डेग।डेग पर मोॅन भटकेॅ लागै छै।

हमरी दादी ऊ पूरा दिन भी बाबा केॅ मनाबेॅ नै सकलकी आरू हम्में सिनी बच्चा मोॅन के उछाँह केॅ दबाय ओलती लागी केॅ चुपचाप बैठलोॅ छेलियै। घोॅर में कुच्छू असहज ज़रूर बुझाय छेलै, जे हमरा सिनी सूंघी लेलेॅ छेलियै। हम्में।भाय, आपनोॅ हाथोॅ सें बनैलोॅ कन्दील जराय लेली भीतरे।भीतर तड़फड़ करी रहलोॅ छेलै, मतरकि कहै के हिम्मत नै करेॅ पारी रहलोॅ छेलै। हम्में तीन भाय।बहिन, जे छोटोॅ छेलियै, बनावटी गंभीर बनी।बनी केॅ नरोत्तम दास के देवता नाँखी मौन साधी।साधी बैठलोॅ छेलां, मतरकि ऊ समय बड्डी लम्बा लागी रहलोॅ छेलै।

"बाबूजी, काँथी पर के दीया आबेॅ जराय दियै"-हमरोॅ छोटका भैया के पुछल्हौ पर बाबूजी कुछू जवाब नै दै केॅ खाली एक बेर हमरा सिनी केॅ देखी लेलकै। हुनी पछियारी ओसरा के गोसांय घरोॅ के बगले में एक कुरसी पर बैठलोॅ छेलै। दू दिन आरू एक राती में बाबूजी आरू बाबा में परनाम।पाती छोड़ी केॅ आरो कोय संवाद नै होलोॅ छेलै। एखनी सोचै छियै, तेॅ लागै छै कि शायद बाबा केॅ आपनोॅ मोॅन के अनुकूल कोय कामोॅ में रुकावट पसन्द नै छेलै आरू परिवार के जिम्मेवारी नें घोॅर के मुखिया बाबूजी केॅ अनायास बनाय देलकै। घर।संसारोॅ के ई उत्तरदायित्व केॅ उठावै में हमरोॅ बाबूजी नें आपनोॅ बचपन के खेल आरू जवानी के अरमान, आगू के पढ़ाय, कला।साहित्य, अभिनय जेकरा सें हुनका अत्यन्त प्रेम छेलै-ओकरोॅ बलिदान करी देनें छेलै। मतरकि बाबा के कविहृदय हुनकौ आपने रङ चिन्तामुक्त खोजतेॅ होतै।

पिता।पुत्र के बीच यहेॅ सिनी कुछु अदृश्य कारणोॅ सें शीतयुद्ध चली रहलोॅ छेलै, जेकरा सें हमरा सिनी केॅ नै तहिया मतलब छेलै, नै आभियो छै। कैन्हें कि बाबूजी नें आपनोॅ मोॅन में पिताजी के उपेक्षा या कर्तव्य नै करै केॅ की रूपोॅ में लेनें छेलै, ई तेॅ पता नै, मतरकि एकरोॅ प्रतिक्रिया में कड़वाहट के धुइयाँ हमरा सिनी तक भी नै आवेॅ देलेॅ छेलै। यही लेली आपनोॅ बाबूजी के प्रति अतिरिक्त मोह होतेॅ हुवेॅ भी, हमरा सिनी बाबा के साहित्यकार होय के कारणें हुनका दायित्व सें मुक्त राखै छेलियै-यहेॅ सब बात शायद ऊ समय के सुख।शांति के कारण छेलै, जे जेन्होॅ छै, ओकरा ओन्हे अपनाय के गुण आबेॅ के जमाना में नै छै।

बाबूजी बड़ी देर ताँय चुप्पे।चाप सोचथैं रहलै। दादी के दुआर.ऐंगना करत्हें, बाबूजी समझी चुकलोॅ छेलै कि आय महात्मा जी सत्याग्रह पर छोॅत। फेनू धीरेॅ।धीरेॅ उठी केॅ बाहर गेलै तेॅ हमरा सिनी भी पीछू।पीछू गेलियै। देखै छियै कि बाबा चौकी पर चुपचाप बैठलोॅ छै। बाबूजी जाय केॅ पासोॅ में बैठी गेलै आरू पूछलकै-"मोॅन ठीक नै छौं की?"

"हों ठीके छी।" एतना कही केॅ बाबा थोड़ोॅ खिसकी केॅ बैठी गेलै। बाबूजी के कपाड़ पर चिन्ता के लकीर केॅ देखी केॅ बाबा बोललै-' भइया, कचहरी में बड़ा काम छौ की? जे छुट्टीहौ में घोॅर में नै रहै छैं। "

"हों छै तेॅ..." कही केॅ बाबूजी उठी गेलै-"दीवाली के पूजा होय गेलै, चलोॅ हुक्का।पाती शुरू करै लेॅ।"

बस बाबा एकदम आज्ञाकारी बालक हेनोॅ उठी गेलै आरू पिता के अहम बस एतन्हैं सें जेना तुष्ट होय गेलोॅ रहै। पितृत्व के दिव्य भाव ऊ दीवाली में हुनकोॅ चेहरा पर जे ऐलोॅ छैलै, ओकर्है सें पता चलै छेलै कि पुरनका जमाना के सरलता आरो सहजता जीवनोॅ में कतना गहरा धँसलोॅ छेलै। मयार्दा आरू शालीनता के ऊ सीमा।रेखा में जे दीवाली मनै छेलै ओकरोॅ अभावोॅ में आज सम्बन्ध में अस्थिरता आवी गेलोॅ छै।

हौ दिन बाबा आरू बाबूजी केॅ साथें ऐतें देखी केॅ हमरा सिनी आपनोॅ फूलझड़ी।पटाखा खोजेॅ लागलां। माय घोघोॅ निकाली केॅ आड़ोॅ में चल्ली गेलै आरू दादी पूजा के दीया जरावेॅ लागली।

बाबूजी, दोनो कक्का, तीन भाय आरू बाबा-तीन पीढ़ी के एतना पुरुष एक साथें हुक्का।पाती खेलै लेॅ जखनी बाहर होलै, तेॅ सौंसे घोॅर ठठाय केॅ हँसी देलकै। काँथी, देहरी, कुइयाँ, ताखा सगरे दीया इंजोर करी रहलोॅ छेलै। बड़का ऐंगन माटी के लिपलोॅ।पोतलोॅ। रसोय।ओसरा सें बारा।पापड़ छाँकै के गंध आवी रहलोॅ छेलै। आरू कन्तरी में अखंड दही लैकेॅ झुकली कमर वाली हमरी दादी, पुरानोॅ किला के मजबूत दीवारोॅ नाँखी हमरी चचेरी दादी या छोटकी दादी। सब्भे कतना भरलोॅ।पुरलोॅ लागै छेलै, अन्दर सें कतना गुथलोॅ हेनोॅ।

की वैभव छेलै आरू की सम्पत्ति छेलै, बस ऊ पल केॅ अँचरा में बान्ही लै के मोॅन करै छै आभियो। तखनियो हम्में आपनोॅ दुनू हाथ फैलाय केॅ गोल।गोल घूमी रहलोॅ छेलियै। घूमला सें लागै जेना देहरी के दीया सिनी नाची रहलोॅ छै। आय तेॅ ओना करै के कोशिशें हमरोॅ उमिर के बरस गिनाय दै छै आरू माथोॅ घूमेॅ लागै छै। मतरकि एक दिन वहेॅ रङ करेॅ लागलियै आरो तखनी जबेॅ डगमगाय केॅ गिरेॅ लागलियै तेॅ दीदीं कहलकै-"पगलाय गेली छैं की?" आबेॅ हम्में केना बतैय्यिै कि ई ऐंगना के याद हमरोॅ दिमाग के कोना।कोना में दीया नाँखी जलते रहतै। गामोॅ के लोगें देखलकै कि भोरे दुआरी पर बाबा जे कविता बनाय केॅ जुग।जहान केॅ बोली सुनाय रहलोॅ छैलै आरू जे बेटा ऐंगना में आवी केॅ बाप सें कतराय केॅ बैठलोॅ छेलै-रौशनी के ई त्योहारोॅ में ऐंगना में केना केॅ एक।दोसरा के बगलोॅ में खाड़ोॅ सहारा बनलोॅ छै। हेकरे नाम छेकै परिवार।

हमरोॅ छोटकी दादी केॅ गप्प करै में महारत हासिल छेलै। हुन्हीये बतावै छेलै कि तोरा सिनी तेॅ बेटा कहियो।काल आवै छोॅ आरू ऐंगना सुहानोॅ करै छोॅ, मतरकि जखनी तोरोॅ बाबूजी आरू तोरोॅ फूफू सिनी ई घोॅर में छेलौं तेॅ घोॅर जेना हरदम बतियैतेॅ रहै-फूलोॅ नाँखी खिललोॅ लागै छेलै घोॅर।

हमरोॅ दादाजी दू भाय छेलात। हुनकोॅ छोटोॅ भाय अल्पायु में ही दादी केॅ छोड़ी केॅ गुजरी गेलोॅ छेलै। तीन ठो बेटी केॅ लैकेॅ हमरी छोटकी दादी हमरे सिनी के बीचोॅ में आपनोॅ रुतबा, दबदबा आरू अपनत्व बरसैतेॅ रहलै। हमरे बाबूजी हुनकओ बेटा बनी केॅ सब दिन देखभाल करै छेलै आरू हुनियो हुनका प्यार दै में कंजूसी नै करलकै। हमरोॅ बाबूजी के एक ठो सहोदर आरू तीन ठो पितयौती बहिन छेलै। मतरकि हमरा सिनी सब्भे फूफू के साथें एक्के रङ मगन रहियै।

दस बरसोॅ के उमिर तक गाँव जाय में बड़ी हुलास लागै। खूब खेलै छेलियै, खूब बगीचा में भागियै, आरू सब्भे केॅ खूब दुलारो मिलै छेलै। मतरकि धीरें।धीरें माय आरू बड़का भइया के अनुशासन कड़ा हुवेॅ लागलै आरू गामोॅ में जाय खनी ढेर सिनी उपदेश मिलेॅ लागलै। हेना बैठना चाहियोॅ, हेना उठना चाहियोॅ, है काम करना छै आरू है काम नै करना छै-सुनी।सुनी केॅ हमरोॅ मनोॅ में डोॅर बैठेॅ लागलै। ब्राह्मण गामोॅ में एन्हे श्रद्धा।विचार, जुट्ठोॅ सखड़ी आरू पंडितपन भरलोॅ रहै छै। वै सिनी सें एक दोसरोॅ रङ भाव मनोॅ में आवेॅ लागलै। गाँव माने-बन्धन, गाँव माने-लड़की मात्र होय के आलोचना, गाँव माने-समझी।बूझी केॅ बोलना आरू चुप रहना। गामोॅ के तेज।तर्रार बोलै वाली जनानी सामना में हमरोॅ बोली आय्यो बिलाय जाय छै। भूली जाय छियै कि वाद।विवाद।प्रतियोगिता में हमरा पुरस्कार मिलतेॅ रहलोॅ छै। माय सिखावै-हम्में शहरी रङ नै लागौं, नै तेॅ सब्भे घमण्डी समझथौं आरू देहाती भी नै रहौं। ऊ कच्चा उमिर में, ई उलझनोॅ में हमरा कुछू नै बुझाय छेलै आरू सब गड़बड़ होय जाय।

मतरकि फूफू के आकर्षण तभियो हमरा गामोॅ में खींचै छेलै आरू हुनकोॅ गप्पोॅ में खूब मोॅन लागै छेलै। आपनी फूफू तेॅ कहियो।कदाल आवै छेलै, मतरकि छोटकी दादी के मोॅन।मिजाज अकसरे खराब रहै तेॅ चचेरी फूफू आवै। कामिनी फूफू आरू दामिनी फूफू गौंआ छेलै। छिनमान एक्के रङ दोनो लागै आरू दोनो नें एक।दोसरा केॅ पनसोखा कहै छेलै। हमरा सिनी सें हुनी हुलसी केॅ पूछै-हमरा चिन्हलोॅ बेटा? घमण्ड सें भरी केॅ जवाब दियै-हों तोंहे अदरास वाली फूफू छेकौ, तेॅ फूफू हाँसै लागै-नै चिन्हलोॅ, हम्में सोन्डिया वाली फूफू छेकियौं। बड़ी अचरज लागै, कत्तो समझदारी देखैय्यै बच्चा में, मतरकि भूल होय्ये जाय छेलै।

हुनका हमरा सिनी के घोॅर आना आरू आपनोॅ माय सें फुसुर।फुसुर करी केॅ बात करना, बीच।बीच में स्वरोॅ केॅ खींचना, कखनू संवाद बोलै में आँख तरेरना-सब्भे देखी।देखी केॅ हम्में सिनी भाय।बहिन मुँह छुपाय केॅ हँसतेॅ रहियै। लोक।कलाकारोॅ के पूरा गुण हमरी ऊ दोनों फूफू में छेलै। कखनी ठोर बिचकाय केॅ भौं सिकोड़ै, कखनियो रूसी केॅ फोकनाय जाय, कखनियो हाथ पकड़ी केॅ चुम्मा लियेॅ लागै-ऊ सब कुछ खिस्सा।गप्प करथैं होय छेलै आरो ऊ सब देखी केॅ लागै छेलै कि अभिनय के सब्भे रसोॅ के पाठ यहाँ सें साहित्य के विद्यार्थी पढ़ै पारै छेलै।

हमरी फूफू नें ही खिस्सा बतैनें छेलै हमरोॅ बाबूजी के बच्चा के भी कि "आय जे एतना बड़का आदमी पेसकार बनी केॅ चुपचाप गंभीर रङ रहै छौ नी बेटा, तोरोॅ बाबूजी बच्चा में हमरा सिनी केॅ बड़ी कनाय छेलों।"

छोटकी दादी केॅ बेटा नै छेलै, यै लेली पुत्र।प्रेम हुनकोॅ कमजोरी छेलै। हुनी हमरोॅ बाबूजी केॅ कटोरा में कुछू मिठाय या मलाय या बढ़िया खाय के चीज दै केॅ कहै-"बहिनी सिनी केॅ नै देखैयौ, नै तेॅ ऊ दोनों हड़ासोधन छौड़ी लड़लेॅ पहुँची जैतै आरो आबेॅ बचलो नै छै जे देवै।" हमरोॅ बाबूजी थोड़ोॅ देर कोना में लुकाय केॅ खाय आरू फेनू हुनका बिना ललचैलेॅ खाय में कोय स्वादे नै बुझावै, बस भागी केॅ वाँही चल्लोॅ जाय, जहाँ दोनो एकतरिया बहीन खेलै छेलै। हुनी माथोॅ पर कटोरा राखी केॅ हुनका सामने जबेॅ खावेॅ लगै, तबेॅ दोनो बहिन उचकी।उचकी केॅ पूछै-"की खाय छौ हो भैया, की छेकौं हो?" हुनी कहै-"चाची बताय लेॅ मना करनें छै आरू आबेॅ छेवो नै करै जे तोरा देतौं।" हुनी गपगप खैतेॅ रहै। फेनू हमरी दोनों फूफू आपनोॅ माय लुग जाय केॅ लड़ेॅ लागै-"सब्भे कुछू बेट्है केॅ खाय लेॅ दै छैं।" आरू हमरी दादी कपार ठोकी केॅ बैठी जाय-"हय की करल्हौ हो नूनू, यहेॅ काण्ड कराय लेॅ देनें छेलिहौं।" आरू दोनों फूफू केॅ गदाक।गदाक लागी जाय आरू पूरा घोॅर सोहानोॅ लागेॅ लागै छेलै। यहेॅ कलह तेॅ प्रेम।रस बनी केॅ रिश्ता में उतरी जाय छेलै।

हमरी छोटकी फूफू नें एक दिन बतैलकै कि ई दुन्हौ बहिन सौंसे गरमी कानू।टोला में जाय केॅ सबके ढ़ीलोॅ हेरै छेलै आरू आपनोॅ घोॅर के पुरानोॅ कपड़ा लै जाय केॅ ओकरा सिनी के बिछौना सीयै। जबेॅ घरोॅ में कोय आपनोॅ साड़ी।लूंगा खोजै आरू नै मिलै, तेॅ कानू।टोला के मौगी सिनी दादी केॅ आवी.आवी बड़ाय करी।करी बतावै कि बड़ी अच्छी बेटी छौं कामिनी।दामिनी आरू हौ दिन दादी नें माथोॅ।कपार धूनी केॅ फेनू फूफू के कुटम्मस करै। दोसरा के ढीला हेरी।हेरी आपनोॅ माथोॅ में ढीलोॅ भरलोॅ, जट्ट पड़ैलोॅ घोॅर आवै आरू दादी लग सटी केॅ फेनू सूती जाय।

नेमान में हमरोॅ दादी केॅ एक काम करना एकदम ज़रूरी रहै, हौ छेलै-कपड़ा के कनियाँय।बोॅर बनाना। हमरा सिनी बच्चा में ओकर्हौ नेमान कराय छेलियै। जब तक दादी रहली, हमरी बेटियो लेली सुन्दर।सुन्दर कनियाँय।गुड़िया बनैथैं रहली। आयके बजारू गुड़िया सें ऊ कनियां।पुतरी में जीवन्तता बेसी लागै छेलै। हम्में छोटोॅ में कहियो।कहियो रातोॅ में उठी केॅ देखियै कि खिस्सा।कहानी नाँखी काँही सच्चे गुड़ियो आपस में बात तेॅ नै करै छै।

तबेॅ होन्हे गुड़िया शायद ऊ दोनों फूफू के पास भी छेलै, जेकरोॅ बीहा के तैयारी में दोनो बहिन भिड़ली छेलै। पीला हरदी सें साड़ी केॅ रंगैलोॅ गेलै कनियैनी लेली। भोज।भात के तैयारी होय रहलोॅ छेलै। दोनो बहिन एकदम पुरखिन नाँखी सब्भे दहेज जोड़ी रहलोॅ छेलै। हमरोॅ बाबूजी (शायद खेलोॅ में हुनी अकेल्ला पड़ी गेलोॅ होतै) बस एक दिन भोरे।भोर हँसुआ सें कनियैनी।पुतरी केॅ काटी.कूटी घरोॅ के पीछू के पोखरोॅ में जाय केॅ गाड़ी ऐलै। भोरे आँख मलतें जबेॅ फूफू उठलै तेॅ बाबूजी कहै छै-"करोॅ खूब बीहा कनियैनी के, हम्में तेॅ ओकरा मारी।काटी केॅ गाड़ी देलिहौं।"

ओकरोॅ बाद फूफू के रोना शुरू होय गेलै। दादी गोस्सावेॅ लागलै-"मुँहझौसी, एन्होॅ विलाप करी केॅ कानै छै जेना कि सच्चे कोय मरी।पराय गेलोॅ रहेॅ।"

"केना केॅ मारलोॅ गेल्हौं हो भइया, मारी तेॅ देभे करलेॅ छेल्हौ, गाड़ीयो कैन्हें देल्होॅ हो भइया, मरलोॅ मुँहो तेॅ देखेॅ देतिहौ। आबेॅ तेॅ ऊ जीवो नै करतै कहियो, गंगाजल तेॅ दीहेॅ देतियौ मुँहोॅ में। सोना एन्ही धीया मरी गेलै गे माय।" एक बहिनी सुर दै, दोसरोॅ फेनू लाइने लाइन दोहरावै, बीचोॅ।बीचोॅ में कपाड़ो ठोकै। है नौटंकी देखी केॅ पहिनें तेॅ लोग हाँसै, मतरकि जबेॅ ढेर।देर होय गेलै तबेॅ छोटकी दादी दोनों बहिनी के पीठी पर एक।एक मुक्का मारलकै-"अलखनी कहीं की, कनियाँ।कनियाँ नै खेलै छै कि मरै।खपै के शौक लागै छै। बापोॅ केॅ खैलैं, आभियो मोॅन नै भरलोॅ छौ।" ओकरोॅ बाद तेॅ सच्चा रुदन शुरू होय गेलै आरो तबेॅ तेॅ ऐंगना में तीन।चार घंटा लोट।पोट होय करी केॅ हौ कार्यक्रम चललै आरू बाबूजी ई घटना के सूत्रधार टुकुर।टुकुर देखथैं रहलै। जबेॅ दादी पुछलकै-"कनियाँ।दुल्हा खेलै छेलैं आरू तोरा नै अच्छा लागै छेल्हौ तेॅ फेकिए देतिहैं, मारी।काटी केॅ पोखरी में गाड़ी कथी लेॅ देल्हैं।" तेॅ बाबूजी कहेॅ लागलै-"नै चाची, जबेॅ मारी देलियै तेॅ गाड़ना ज़रूरी छेलै नी, काँही भूत।ऊत बनी जैतियै तबेॅ।" यहेॅ छेलै बाल।लीला के रंगस्थली-हमरोॅ ऐंगना के अतीत के कथा।

चूँकि हमरोॅ अन्दर एक कमजोरी छै कि हमरा लोग अच्छा समझेॅ यै लेली ऊ रङ नै बनेॅ सकलियै, मतरकि हमरा आपनोॅ हौ फूफू रङ दबंग नारी चरित्र के प्रति दुर्निवार आकर्षण रहै छै। ग्रामीण पृष्ठभूमि में कोय बात केना घटाना छै, केना बढ़ाना छै, केना बातोॅ केॅ बदली देना छै, ई सब कला के सहजे में विकास होय छै। आय कल के राजनेता सिनी केॅ वाँही सें शिक्षा लेना चाहियोॅ आरू शायद लै भी छै, मतरकि नै लै छै तेॅ ऊ जीवन के सरलता, मोॅन के बड़प्पन आरू साहस।

हमरोॅ भतीजा के जनेऊ में जुड़वा बहिनी में सें एक ठो फूफू नै रही गेलोॅ छेलै। एक ठो जे दामिनी फूफू छेलै, हुनका हमरोॅ भैया नें बड़ी आदरोॅ आरू सम्मानोॅ सें बुलैलेॅ छेलै। भाय।भतीजा देखी केॅ गामोॅ के सवासिनी के मोॅन केना हरखित होय छै, चूँकि हम्में आपनोॅ मोॅन आरू सुविधा देखी केॅ नैहरोॅ आना आरू जाना करै छियै, यै लेली सवासिन के ऊ तड़प, इच्छा आरू सम्मानोॅ के भूख की समझेॅ पारवै।

वही मौका पर विचार होलै कि बड़ी संजोगोॅ सें सब्भे परिवार गामोॅ के ऐंगना में जुड़लोॅ छै, तेॅ एक ठो ग्रुप फोटो यादगार लेली होय जाना चाहियोॅ। फोटो खींचै वक्ती एक ठो तमासा शुरू होय गेलै। हमरी दामिनी फूफू जेन्हैं कैमरा देखै कि एकदम्में सें आपनोॅ लूंगा।साड़ी समेटी केॅ आपनोॅ देहोॅ केॅ हेनोॅ बनाय लै, जेना कबड्डी खेलैलेॅ जाना रहै, वहै रङ झुकलोॅ पूरा चौकन्ना होय गेलै। बगल वाला के हाथ कन्धा पर सें झाड़ी केॅ हटाय देलकै आरू कैमरा में आँख गुरेड़ी केॅ देखेॅ लागलै।

हमरी छोटकी फूफू धीरें सें समझैलकै-"नूनू दी, फोटो खिंचावै में थोड़ोॅ सीधा खाड़ी होय जो नी।"

हुनी कस्सी केॅ डाँटी देलकै-"हट, जो।जो, तोंहें हमरा की सिखैवैं? हम्में मथुरा।वृन्दावन घूमी चुकलोॅ छी। पनसोखां हमरा फोटो भी खिचवाय लेॅ सीखैनें छेलै। एक ठो मसीन होय छै, सोझे टा ओकरै में ताकै लेॅ पड़ै छै, तभिये फोटो आवै छै।" हुनकोॅ ई पोज केॅ सम्हारै में हमरोॅ पतिदेव नें कैमरा सम्हारै के बड़ी कोशिश करलकै। आखिरी में हँसी लगी जाय तेॅ कैमरा हिलिये जाय आरू फूफू कहै-"नै आवै छौं, दुल्हा बाबू केॅ भी मसीनोॅ सें फोटो बनाय लेली नै आवै छौं।" मतरकि हुनी हर बार ओन्हैं कैमरा में झाँकतेॅ रहलै। सौंसे परिवार है दृश्य देखी गिरी।गरी केॅ हिन्नें।हुन्नें लुढ़कलोॅ जाय छेलै। की अद्भुत दृश्य छेलै। आखिरी में कैमरा के चमक देखला के बाद हुनी सहज होली आरू हमरा सिनी केॅ समझावेॅ लागली-"फोटो खिंचाय वक्ती एना नै करियौ। एकदम सीधा।सोझा आँख अन्दर ढुकाय केॅ ताकियोॅ-नै तेॅ लोग कहथौं कि एकदम भुच्च देहाती छै। पनसोखा नें हमरा बतैनें छेलै आरू हम्में वृन्दावन में फोटो खिचलेॅ छेलियै तेॅ ओकर्होॅ सें हमरोॅ बढ़िया फोटू ऐलोॅ छेलै।"

अगर वै दिन वाला फोटो आवी जैतियै तेॅ ऊ दृश्य-जे खाली हमरोॅ आँखी में छै, सब्भे देखेॅ पारतियै, मतरकि सुल्तानगंज के खरीदलोॅ रील डुप्लीकेट निकली गेलै आरू वै कारण पूरा फोटो बेकार होय गेलै।

मतरकि ऊ ऐंगन के जाय वाला वसन्त के ऊ झाँकी आइयो मनोॅ केॅ बान्ही लै छै।

आबेॅ खाली ऐंगन्है नै उजड़लोॅ छै, रिश्ता।नाता।सम्बन्ध, सब्भे उजड़ी गेलोॅ छै-निचाट जेठ के ताप रङ धुंधयैलोॅ घोॅर, उघरलोॅ घोॅर के लाज गिरलोॅ दीवार, घँसलोॅ काँटीदार दरवाजा। सब्भे ढही।ढनमनाय गेलोॅ छै, मतरकि सब आपने में मगन छै। कोठा, गोंसाय।घोॅर, भूस्सा।घोॅर आरू छोटोॅ।छोटोॅ रोशनदान एन्होॅ झरोखा वाला कोठरी-आरू ओकरोॅ बाद मिलै छेलै खुललोॅ।पसरलोॅ बाँही के फैललोॅ, सब्भे केॅ अपनाय लेॅ तैयार-बड़का ऐंगन। आबेॅ तेॅ कहीं कुछ नै छै, तेजी सें सीमेन्ट के जंगल आरू स्वार्थ के जानवर फैललोॅ जाय छै। थोड़ोॅ कम या थोड़ोॅ बेसी-सब्भे गामोॅ के सब्भे घोॅर के यहेॅ हाल छै।