सुखी आदमी / जगदीश कश्यप

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मैं अपनी गंदी-सड़ियल कोठरी में घुसा ही था कि दो पुरुषों के बीच दो युवतियों को बैठे देखा । इन्हें मैंने पहले कभी नहीं देखा था, अलबत्ता इनका पहनावा ऐसा ही था, जैसा भिखारियों का होता है और हम जिन्हें अमूमन भीख देने के नाम पर दुत्कार देते हैं । टूटे हुए स्टूल पर मेरे बैठते ही युवती बोली—

'मैं स्पष्टवादिता हूँ, तुम अपने अख़बार में जिस तरह मेरा उपयोग करते हो, उसी का परिणाम है कि लोग तुमसे चिढ़ गए हैं और तुम्हें विज्ञापन मिलने बंद हो गए हैं ।'

तुरंत बाद ही एक पुरुष बोला— 'मेरा नाम सीधापन है । मैं तुम्हारे साथ हूँ । इसलिए लोग तुम्हें बेवकूफ़ समझते हैं और तुम्हारा शोषण हो रहा है ।'

दूसरी युवती ने कहा— 'मैं ईमानदारी हूँ । जब तक मैं तुम्हारे साथ रहूँगी, तब तक तुम्हें सच्ची ख़बर छापने के एवज में कोई सरकारी अधिकारी घास तक न डालेगा, जबकि दूसरे लोग झूठी ख़बर छापते हुए इन अधिकारियों को ब्लैकमेल कर मालामाल हुए जा रहे हैं ।'

'मैं परिश्रम हूँ ।' अंतिम अतिथि ने परिचय देते हुए कहा— 'रात-दिन अथक भागदौड़ के बावजूद तुम्हें दो जून का खाना भी ढंग से नसीब नहीं होता, इसलिए हम सबने सोचा है कि तुम्हारी हालत पर रहम किया जाए, ताकि तुम पर नाकारा, अयोग्य और सनकी जैसे आरोप न लग सकें ।'

एक क्षण को तो मैं उनकी बात पर स्तब्ध रह गया । मैं तुरंत संभल गया और धीरे-से बोला— 'तुम सबके कारण ही मेरी शहर में इतनी इज़्ज़त है । मैं कथा-कविताएँ लिख-लिखकर अपने बाल-बच्चों का पेट पाल रहा हूँ । आप मुझे छोड़कर चले जाएँगे तो मैं एक दिन भी जीवित नहीं रह सकता ।'

मेरे निकलते आँसू देखकर चारों कुछ सोचने लगे । इसके बाद परिश्रम ने कहा—

'हम तुम्हारे साथ रहने को तैयार हैं । बशर्ते तुम अख़बार निकालना बंद कर दो । इस तरह प्रेस वाला तुम्हें बार-बार अपमानित नहीं करेगा क्योंकि वह जानता है कि तुम समय पर काग़ज़ और प्रिंटिंग चार्ज नहीं चुका पाते हो । तुम जमकर कथा-कविता लिखो, फिर देखो हम तुम्हारा कैसा नाम चमकाते हैं ।'

'दोस्तो !' मैंने तुरंत कहा— 'ना तो मैं अख़बार बंद करूँगा और न ही कथा-कविता लिखना छोड़ रहा हूँ । तुम्हें मेरे कारण कष्ट हो तो मुझे छोड़कर जा सकते हो ।'

'हम तुम्हारी दृढ़ता पर अत्यंत मुग्ध हैं । अब तुम्हारे घर में स्थायी रूप से निवास करेंगे । और मरते दम तक तुम्हारा साथ नहीं छोड़ेंगे ।'

तभी हर व्यक्ति धुआँ बनने लगा । कोई मेरे मुँह, कोई नाक, कोई आँख और कोई कान के रास्ते मुझमें समा गया । मुझे लगा कि मुझ में अतिरिक्त शक्ति पैदा होने लगी है.... और मैं संसार का सबसे सुखी आदमी हूँ ।'