सुदर्शन / परिचय

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सुदर्शन का जीवन-परिचय


सुदर्शन का वास्तविक नाम बदरीनाथ था। आपका जन्म सियालकोट (वर्तमान पाकिस्तान) में १८९६ में हुआ था। सुदर्शन की कहानियों का मुख्य लक्ष्य समाज व राष्ट्र को स्वच्छ व सुदृढ़ बनाना रहा है। प्रेमचन्द की भांति आप भी मूलत: उर्दू में लेखन करते थे व उर्दू से हिन्दी में आये थे। सुदर्शन की भाषा सहज, स्वाभाविक, प्रभावी और मुहावरेदार है।

सुदर्शन प्रेमचन्द परम्परा के कहानीकार हैं। इनका दृष्टिकोण सुधारवादी है। आपकी प्रायः सभी प्रसिद्ध कहानियों में समस्यायों का समाधान आदशर्वाद से किया गया है।

हमें खेद है कि 'हार की जीत' जैसी कालजयी रचना के लेखक के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। यदि आप पंडित सुदर्शन की जन्मतिथि, जन्मस्थान या कर्मभूमि के बारे में खोजें तो निराशा ही हाथ लगती है। मुंशी प्रेमचंद और उपेन्द्रनाथ अश्क की तरह पंडित सुदर्शन हिन्दी और उर्दू में लिखते रहे। उनकी गणना प्रेमचंद संस्थान के लेखकों में विश्वम्भरनाथ कौशिक, राजा राधिकारमणप्रसाद सिंह, भगवतीप्रसाद वाजपेयी आदि के साथ की जाती है।

लाहौर की उर्दू पत्रिका, 'हज़ार दास्तां' में उनकी अनेक कहानियां प्रकाशित हुईं। उनकी पुस्तकें मुम्बई के हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय द्वारा भी प्रकाशित हुईं। सुदर्शन को गद्य और पद्य दोनों में महारत थी। "हार की जीत" पंडित जी की पहली कहानी है और १९२० में सरस्वती में प्रकाशित हुई थी।

मुख्यधारा विषयक साहित्य-सृजन के अतिरिक्त आपने अनेकों फिल्मों की पटकथा और गीत भी लिखे। सोहराब मोदी की सिकंदर (१९४१) सहित अनेक फिल्मों की सफलता का श्रेय उनके पटकथा लेखन को जाता है। सन १९३५ में उन्होंने "कुंवारी या विधवा" फिल्म का निर्देशन भी किया। आप १९५० में बने फिल्म लेखक संघ के प्रथम उपाध्यक्ष थे। सुदर्शन १९४५ में महात्मा गांधी द्वारा प्रस्तावित अखिल भारतीय हिन्दुस्तानी प्रचार सभा वर्धा की साहित्य परिषद् के सम्मानित सदस्यों में थे। उनकी रचनाओं में हार की जीत, सच का सौदा, अठन्नी का चोर, साईकिल की सवारी, तीर्थ-यात्रा, पत्थरों का सौदागर, पृथ्वी-वल्लभ आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

फिल्म धूप-छाँव (१९३५) के प्रसिद्ध गीत 'बाबा मन की आँखें खोल' व एक अन्य गीत 'तेरी गठरी में लागा चोर मुसाफ़िर जाग ज़रा' जो शायद किसी फिल्म का गीत न होते हुए भी बहुत लोकप्रिय हुआ सुदर्शन के लिखे हुए गीत हैं।