सुधीर मिश्रा का मेहरुन्निसा मोह / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 19 अगस्त 2013
अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर 'मेहरुन्निसा' की शूटिंग के लिए एक माह के लिए लखनऊ जाने वाले थे। ईद के बहाने एक सप्ताह के लिए रोकी गई शूटिंग का असली कारण अब सामने आ गया है। इस फिल्म के निर्माता निखिल आडवाणी हैं, जो स्वयं अनेक फिल्में निर्देशित कर चुके हैं और निर्देशक हैं सुधीर मिश्रा, जो अनेक कला फिल्में बना चुके हैं। सुधीर मिश्रा का आग्रह था कि उनकी मित्र चित्रांगदा को फिल्म में महत्वपूर्ण भूमिका दी जाए, परंतु व्यावसायिक सिनेमा की हकीकत के जानकार निखिल आडवाणी यह भूमिका प्रियंका चोपड़ा को देना चाहते थे। कहा जाता है कि सुधीर मिश्रा टस से मस नहीं हो रहे थे, अत: निखिल आडवाणी ने फिल्म छोड़ दी और सुधीर अन्य निर्माता की तलाश में जुटे हैं। अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर अत्यंत व्यस्त कलाकार हैं और 'मेहरुन्निसा' के लिए यह समय एक वर्ष पूर्व आरक्षित किया गया था। दोनों ने ही निखिल आडवाणी के लिए भूमिकाएं स्वीकार की थीं।
प्राय: फिल्मकार की प्रिय कोई कलाकार होती है और उसके लिए उनमें जुनून-सा बन जाता है। यह तीव्र इच्छा उनसे निष्पक्ष होकर सोचने की क्षमता हर लेती है। बात महज सिनेमा तक सीमित नहीं है। आम जीवन में भी कभी-कभी किसी प्रिय के लिए जुनून पैदा होता है और अनेक गलत निर्णय लिए जाते हैं। ऐसे में विचारशक्ति में संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। सुधीर मिश्रा और चित्रांगदा के अनेक दशक पूर्व वी. शांताराम जैसे निष्णात निर्देशक ने भी संध्या को लेकर अनेक फिल्में बनाईं, जिनमें कुछ ऐसी भी थीं कि संध्या उन भूमिकाओं के साथ न्याय नहीं कर सकती थीं। इसी प्रकार गुरुदत्त को 'प्यासा' की पहली कुछ शूटिंग के बाद उनके सभी साथियों ने कहा कि वहीदा रहमान का चुनाव सही नहीं है। गुरुदत्त ने उन्हीं दृश्यों को वहीदा रहमान के साथ ही दोबारा शूट किया और इसमें कलकत्ता में फिल्माया गया गीत भी था - 'जाने क्या तूने कही, जाने क्या मैंने सुनी, बात कुछ बन ही गई' और सचमुच में बात बन गई। वहीदा रहमान विलक्षण सिद्ध हुईं, परंतु अगर दोबारा फिल्माए दृश्य भी ठीक नहीं होते तो भी गुरुदत्त वहीदा के साथ ही काम करते रहते क्योंकि उन्हें अपने तराशने की शक्ति पर उतना ही यकीन था, जितना वहीदा रहमान की प्रतिभा पर।
लेख टंडन राज कपूर के सहायक थे और राज कपूर अपनी 'अजंता' की पटकथा से खुश नहीं थे, परंतु लेख टंडन को उसके लिए जुनून-सा हो गया था, अत: राज कपूर से आज्ञा लेकर उन्होंने वैजयंती माला के साथ 'आम्रपाली' के नाम से यह फिल्म बनाई। निर्माण के समय अपने गुरु की तरह नायिका को उसके सुंदरतम रूप में दिखाने के जुनून में इस कदर डूबे कि अन्य पक्षों की अवहेलना करते रहने के कारण फिल्म असफल हो गई। किसी के भी प्रति आसक्ति की यह अति केवल क्षति ही कराती है।
केदार शर्मा को अपनी खोज गीता बाली से कुछ ऐसा मोह था कि माला सिन्हा और शम्मी कपूर अभिनीत 'रंगीन रातों' में भूमिका नहीं होने पर भी एक लड़के के रूप में संक्षिप्त भूमिका में उन्होंने गीता बाली को प्रस्तुत किया। दर्शक प्रतीक्षा ही करते रहे कि अब गीता अपना असली रूप दिखाकर 'कहानी' में नया पेंच लाएगी।
बहरहाल, इस तरह के रिश्ते और जुनूनी मोह हर क्षेत्र में साथ काम करने वालों के बीच हो जाता है, परंतु संतुलन खोने से हानि हो सकती है।
इस तरह के मोह का प्रतीक हिरण रहा है और इससे उत्पन्न भ्रम के लिए सोने का हिरण। सीता के आग्रह पर स्वयं राम सोने के हिरण के लिए गए। पांडु भी माद्री के आग्रह पर हिरण का वध करते हैं, जिस कारण हस्तिनापुर का इतिहास ही बदल जाता है। श्रीकृष्ण के पैर का एक हिस्सा हिरण-सा दमक रहा था, अत: आखेट पर आए व्यक्ति ने तीर मारा। दरअसल, पुस्तकों के भीतर अर्थ की अनेक सतहें होती हैं। इसी तरह जीवन में भी हर घटना के साथ अनेक स्तर पर परिवर्तन होते हैं।