सुनील गावस्कर और सचिन क्यों खामोश हैं? / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 28 नवम्बर 2014
आस्ट्रेलिया के बल्लेबाज फिलिप ह्यूज का दुखद निधन हो गया। उन्हें कनपटी पर एक बाउंसर लगा था। वे हेलमेट पहने थे परंतु गेंद की गति के कारण या निर्माण में गुणवत्ता के अभाव के कारण गेंद सीधे दिमाग पर लगी आैर कोमा में जाने के बाद मृत्यु हो गई। अब हेलमेट कंपनी का कहना है कि वे पुराना मॉडल पहने थे। क्या हेलमेट पर एक्सपायरी डेट लिखी होती है जैसे दवाआें को एक अवधि के बाद नहीं खाने की हिदायत लिखी होती है। क्रिकेट में हमारे अपने नारी कांट्रेक्टर को भी वेस्टइंडीज में बाउंसर लगा था आैर उन दिनों हेलमेट की इजाद नहीं हुई थी परंतु वे शल्य चिकित्सा करके बचा लिए गए। इस प्रकरण में इंग्लैंड के लारवुड की बॉडीलाइन पर किताबें लिखी गई है आैर बी.बी.सी ने डाक्यो ड्रामा भी रचा था जिसे दूरदर्शन ने दिखाया था। उन दिनों यह संस्था दूर की चीजों को भी अवाम के पास लाती थी परंतु आजकल इस वृद्ध संस्था को मोतियाबिंद हो गया है आैर लेन्स बदलने की आवश्यकता है। आजकल आम आदमी काे मोतियाबिंद होने पर फैशनेबल पांच सितारा अस्पतालों में 25 हजार से पांच लाख तक के लेंस लगाए जाते हैं। हमारे यहां मेडिकल व्यवसाय भी वी. आइ. पी. सिंड्रोम से पीड़ित है। वह प्रसिद्ध आैर अमीरों का इलाज अलग ढंग से करते हैं। सलीम खान साहब की पत्नी सलमा को थ्री.डी. लेंस लगा दिया गया है जबकि मनुष्य का दिमाग उसके लिए तैयार नहीं है, नतीजा यह है कि बेचारी सलमा आपा को अपनी नाक भी नजर नहीं रही है।
बहरहाल फिलिप ह्यूज को जिस दिन घातक बाउंसर लगा उसी दिन भारतीय शिखर अदालत का बाउंसर क्रिकेट बोर्ड को लगा आैर वह कोमा में चला गया है। इस बोर्ड के अधिकांश सदस्यों के मसल्स चुइंग गम से बने हैं आैर रीढ़ की हड्डी रबर की है। मजबूत सीमेंट की शक्ति देखिए कि अदालती फटकार के बावजूद उन्हें बहाल किए जाने की गुहार लगा रहा है क्रिकेट बोर्ड। यह संस्था दशकों से रुग्ण है। यह भारत की सबसे धनाढ्य खेल संस्था है। विगत कई दिनों में अनेक प्रांतों के क्रिकेट अधिकारी जिनका अदालत में आना-जाना होता है, भरपूर प्रयास कर रहे हैं कि जज मुदगल की पूरी रिपोर्ट प्रकाश में नहीं आए क्योंकि क्रिकेट के अमीर सितारों के काले कारनामे उजागर हो जाएंगे। भारत में अवतार तक की हैसियत पाने वाले सितारों को बचाने के लिए हर संभव प्रयास होता है क्योंकि सितारे के लिए प्रचार तंत्र द्वारा रचा जुनून बॉक्स ऑफिस पर नोटों की सुनामी जो लाता है। नाम उजागर करने की राह में रोड़े खड़े किए जा रहे हैं। आई.पी.एल नामक तमाशा, जिसे टेलीविजन के प्रायोजकों की खातिर ग्रीष्मकाल में आयोजित किया जाता है, के आयोजन में लाखों वॉट बिजली का अपव्यय होता है आैर यह उस समय होता है जब किसान आैर छात्र को बिजली की सख्त आवश्यकता होती है। आज तक संसद में बिजली आैर पानी के अपव्यय पर सवाल नहीं उठाया गया। भारत ही नहीं दुनिया के अनेक तथाकथित तौर पर जागरूक देशों में भी गोल्फ के मीलों लंबे क्षेत्र को हरा रखने में असीमित पानी लगता है आैर पानी का संकट सारे विश्व में है। कुछ विशेषज्ञों की राय है कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए लड़ा जा सकता है। सारे महानगरों के पांच सितारा हॉटलों में आधी रात के बाद दर्जनों टैंकर से पानी लाया जाता है आैर पानी का माफिया सक्रिय है।
बहरहाल सुनील गावस्कर के जमाने में सारे देशों के पास तीव्र गति से गेंद फेंकने वाले बॉलर थे, यहां तक कि विशाल वेस्ली हॉल के रन अप से ही धरती थर्राती थी। सुनील गावस्कर ने बिना हेलमेट के इन गेंदबाजों की जमकर धुनाई की है आैर हुक शॉट भी खेला है। आज किसी भी देश के पास उस दौर की क्षमता वाले गेंदबाज नहीं है, अत: आज के बल्लेबाज के रिकॉर्ड सुनील के रिकॉर्ड के सामने गौण रहेंगे आैर तेंडुलकर के दौर में भी कुछ हद तक घातक गेंदबाजी हुई है। मैं हैरान हूं कि योद्धा बल्लेबाज सुनील आैर सचिन आप खामोश क्यों हैं। वे मुदगल समिति रिपोर्ट के प्रकाशन की मांग क्यों नहीं करते क्या उनके साहस पर भी सीमेंट लग गया है।