सुपना / हरीश बी. शर्मा

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‘म्हारी जिंदगी पर किणी री दबेलदारी नीं है। कद तांई पराई इच्छावां नैं पूरी करूं। फेर म्हारी तो कोई मरजी ही कोनीं। पापा बोलै एमबीए करूं। काल थांनैं कांई और लागसी। शीतल भी क्यूं लारै रैसी। थोपता रैया म्हारै पर इच्छावां। म्हैं थांनैं मिलग्यो प्रयोग करण खातर। कदै म्हारै खातर लेवण आळा फैसलै में म्हनैं भी रळा लिया करो। थांनैं तो यूं लागै कै म्हारी कोई चावना ही नीं है। टबार हूं जकै नैं ऐकै एक सूं पोळावणो है।’

मम्मी अर शीतल रै सांमी अतिन नीं जाणै कांई-कांई बोलग्यो। मम्मी अर शीतल खातर अतिन री ऐ बातां बड़बड़ सूं बेसी कीं नीं ही। पापा रै सांमी मंडण री हिम्मत तो अतिन री ही कोनीं। पण मन में राखण री ताब भी कम ही। आज भी आई हुई। पापा बोल्या, ‘एमबीए करलै, मल्टीनेशनल कम्पनियां में एमबीए करयोड़ां नैं पैली राखै।’ अतिन पापा सांमी तो कांई बोलतो, पण रसाई में शीतल अर मम्मी सांमी सरू हुयग्यो।

‘उणां नैं समझा दो, म्हैं टाबर नीं रैयो। उणां जित्ती दुनियां नीं देखी तो कांई, म्हारी भी आपरी एक दुनिया है। म्हैं म्हारै जीवण नैं एक तरीकै सूं जीणै री सोची है म्हारा भी सुपना है।‘
‘तो जीवै क्यूंनीं आपरी तरयां !’ पापा री आवाज सुण‘र अतिन रै बोल पर ब्रेक लागग्या। पापा रसोई कनै खड़ा हा। ‘बता तो सरी थारै जीवण रै तरीके नैं, आखिर है किसा थारा सपना ? बांनैं पूरां किंयां करसी, कीं तो समझा। गोई सूं काम चलै कोनीं। एक-एक रोटी सारू संघर्ष करयो है। अबै सोचूं औलाद रोटी नैं नीं तरसै। जे कीं जोर है तो बता तो सरी।’

अतिन बोल्यो, ‘बै दिन दूर नीं है।’ पापा अतिन रै जबाब सूं भड़कग्या। ‘तद तांई यूं ही टुक्कड़ तोड़ता रैसो ?’

‘आंतड़यां हाड सूं चिप जावैली लाडी ! भूख भूतणी हुवै।’ पापा बोल्या अर पूठा फिरग्या।

मम्मी अर शीतल इण बोलचाल रा दर्शक हा। पापा रै जबाब रै बाद अतिन दोनूं कांनी देख्यो अर मुळकतो थको आपरै कमरै में जाय‘र म्यूजिक चला‘र बैठग्यो। जतिन घर में आयो तो शीतल सगळी बात बताई। जतिन खांधा उचकाया अर आपरै काम में लागग्यो। थोड़ी ताळ में म्यूजिक बंद हुयो। अतिन आपरी बाइक लेय‘र बारै निकळग्यो। आ नुंवी बात नीं ही। पण मां रो जी अलग ही हुवै। अतिन दिनूंगै सूं भूखो है। पापा री साफ हिदायत ही कै दोफारै सगळा जीमै जद आ जावै तो ठीक, नीं जणै रोटी घालण री जरूरत कोनीं।
अतिन रा कीं पता नीं हा। मम्मी नैं परेशान देख‘र शीतल भी थोड़ी उदास हुयगी। अठीनै अतिन बाइक नैं सड़क पर दौड़ांवतो-दौड़ांवतो निरी दूर पूगग्यो। विचार रा घोड़ा गाडी सूं तेज भागै हा, कठैई ब्रेक ही कोनीं। अतिन हाइवै सूं बाइक पाछी घुमायली। पण विचारां रो वेग नीं थम्यो। अतिन बार-बार एक जगै अड़ जावतौ कै उणनैं आपरी ताण कीं करण नैं क्यूं नी छोडै। कोई आपरा अनुभव म्हारै माथै किंयां थोप सकै ? पापा है, ठीक बात है। पण म्हनैं म्हारै रास्तै पर चालण रो इधकार तो मिलणो ही चाइजै। आ तो मन नैं मारण आळी बात हुयी। अतिन री बाइक पाछी सैर कांनी भागै ही।

‘अरे दिनेश तूं ?’

‘कांई यार, म्यूजियम चैराये सूं हेला मारूं हूं।’

दिनेश अर अतिन पब्लिक पार्क रै एक कांनी बण्यै इन्दिरा फाउंटेन में आय‘र बैठग्या। अतिन बोल्यो, ‘म्हनै कांई ठा, म्हैं तो आ ही जाणूं कै तूं बैंगलोर में है।’

‘अरे नीं यार ! बैंगलोर रो प्रोजेक्ट ड्राप कर दियो। अबै पीएमटी करूं हूं। डाक्टरी में घणाई मौका है।’

‘मौकां री बात दूजी, पैली बात थारी चावना री है। थूं तो बैंगलोर जावणो तेवड़ राख्यो हो ?’ अतिन उणने नैं मांय सूं चंचेड्यो पण दिनेश रै चेहरै पर कोई सळ नीं हा। बोल्यो, ‘बा बात फगत म्हारी ही। अतिन, थूं खाली म्हासूं सुणी अर मानली। पण दादोसा समझायो तद लाग्यो कै बैंगलोर में जको फायदो दीसै, उणसूं बैसी फायदो डाक्टरी में है।’

ओ शट्अप यार, फायदै री बात दूजी है, म्हैं तो मन री बात करूं, तूं तो मन मार लियो।’ अतिन बोल्यो।

‘आ थांनै लागै अतिन, थोड़ी ताळ सगळां नैं सांमी राख‘र देख। म्हारी बात साची लागसी। म्हारा सुपनां सूं पैली म्हारै दादोसा रा सुपना है। अबै तो पीएमटी मे सलेक्ट हुवणो ही है।’

‘ओ संत-महात्माजी ! गलती हुयगी म्हासूं। म्हनैं तो थारी बातां सूं यूं लागै कै म्हारै मांय बदळाव हुय रैयो है। पण अठै पोल नीं है। अतिन तो आपरी मरजी सूं ही करसी चाल दूजी बातां करां।’

कीं देर दोनूं अठीनै-बठीनै री बातां करी, फेर आप-आपरी दिशा में रवाना हुयग्या। अतिन रवाना तो हुयो पण मन में कठै फांस लागती रैयी। दिनेश री बातां फांस ज्यूं लागी ही। थोड़ी दूर चाल्यो अर बाइक घुमाई। पाछो इन्दिरा फाउंटेन पूगग्यो। दिनेश री सीधी-सीधी बात नैं मन मानै ही नीं पण बात में की दम है, इणसूं अतिन नैं इनकार भी नीं हो। बार-बार अतिन दिनेश ज्यूं सोचण री कोशिश करतो। दूजा चावै ज्यूं करणो, दूजा चावै ज्यूं दिखणो। दिनेश री बात याद आवती। ‘बै दूजा नीं है, म्हारो भलो ही सोचसी।‘

पण म्हासूं नीं हुवै। अतिन आपरी मरजी री करसी। ‘पण कांई करसी ?’ अतिन नैं लाग्यो कै मांय सूं कोई ओ सवाल पूछै हो। ‘बोल कांई करसी ?’ कोई सुपना संजोया है तो बता तो सरी। करण नैं की नीं है अर कूड़ी धौंस जमावै। अर धौंस भी किण पर, घरआळां पर ! दिनेश जिसा तो थारी बात ही नीं मानै।’ अतिन आपरै मांय सूं आंवती साची अर खारी बातां सूं चमक्यो। मन में दो फाड़ हुयग्या। एकै कानीं अतिन हो, दूजी कांनी मन री साची-साची बातां। अतिन डरयो तो कोनीं पण उणसूं मन री आं बातां रा जवाब भी जुट्या कोनीं। बे कीं ताळ सोचतो रैयो। सूरज डूबण लाग्यो तो घर री याद आई। अतिन बाइक उठाई अर घर कांनी टुर व्हीर हुयो।

घरै पूग्यो तो देख्यो माहौल में की बदळाव हो। शीतल इसारै में पापा री रसी बात दीनी अर गायब हुयगी। मम्मी रसोई में ही अर जतिन कम्पयुटर पर। अतिन नैं पापा री बात याद आयगी। पण, आज अतिन कांई और ही सोच‘र आयो हो। फ्रिज मांय सूं पाणी री बोतल निकाळी अर बोल्यो, ‘अतिन रै खातर कीं दोरो नीं, कीं कठिन नीं।’ अतिन नै जोर सूं बोलतो देखल शीतल दौड़तीी आई अर होठां पर आंगळी लगा‘र चुप रैवण रो इसारो करयो।
अतिन उणनैं देख‘र बोल्यो, ‘ शीतल, थनैं म्हैं समझयो सोनो, तूं निकळी पितळ।’ बोतल सांमी करतो बोल्यो, ‘पाणी पी शीतल।’ इत्तै में मम्मी भी आंगणै में आयगी। मम्मी नैं देखतां ही अतिन उछळ‘र बोल्यो, ‘अरे मम्मी, किसी दुनिया में गमी, देख म्हैं थारो लाडेसर, तूं म्हारी मम्मी।’
अतिन री तुकबन्दी पर मम्मी मुळकी पण लारै पापा नैं देख‘र पाछी रसाई में जावण लागी। अतिन समझग्यो कै फैसलै री घड़ी आ चुकी। बोल्यो, ‘अरे जावै कठै है मम्मी ? अबार बात घणी करणी है।’ लारै खड़या पापा सांमी घूमतो बोल्यो, ‘पापा, जका कदै ना खोवै आपा।’ अतिन री बात पर पापा राजी तो नीं हुया पण उणां नैं रीस भी नीं आई। मम्मी अर शीतल मन ही मन भगवान नैं याद करै हा। इत्तै में जतिन भी आयग्यो।
अतिन उणनैं देखतो बोल्यो, ‘अरे जतिन, म्हारा भाई सुण ! एमबीए कालेज री साइट तो खोल। पापा नैं बता रै फिस कित्ती लागसी ?’ आ सुणतां ही शीतल अर जतिन दोनूं खुशी सूं उछळ पड़या। पापा रै चेहरै पर भी मुळक आयगी। अतिन पापा कांनी देख‘र बोल्यो, ‘हां पापा ! म्हैं आपरै सुपनै नैं पूरो करसूं।’