सुबह / अमित कुमार पाण्डेय
श्यामबाबू बिजली विभाग में पेसकार के पद पर कार्यरत हैं। वो एक मध्यम वर्गी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। वो अपने दो बेटे और दो बेटीयों के साथ अपने पुस्तयनी मकान में रहते हैं। पिछली साल उनकी बीवी का कैंसर से देहावशान हो गया था।
रोज़ की ही भांति श्याम बाबू ऑफिस से लौट कर घर का दरवाजा खटखटाया। अन्दर से आवाज आयी-"कौन है"।
"मैं हूँ बेटी, दरवाजा खोल"।
"अच्छा बाबा आयी"। घर के अंदर आकर श्याम बाबू ने अपना बैग रखा और आकर सोफ़े पर बैठ गए.
"विद्या बेटी ज़रा एक ग्लास पानी तो ले आना"।
"ये लो बाबा पानी। क्या बात है बाबा आज बहुत थके हुए दिख रहे हो। लगता है ब्लडप्रैशर फिर से बढ़ गया है"।
"अब इस उम्र में तो ये सब लगा ही रहेगा"।
"मैं देख रही हूँ इधर बीच काफी चिंतित दिखायी दे रहे हो"।
"अरे बेटी मैं सोचता हूँ मेरी सारी ज़िम्मेदारी अभी बची है। तुम्हारी और रमा की शादी, विजय और सुनील की पढ़ाई. सब कैसे होगा"।
"सब ठीक हो जाएगा बाबा। भगवान पर भरोसा रखो"-विद्या ने बड़े भरोसे के साथ बोला।
"सब उसी का भरोसा है। तू बता तेरी स्कूल की नौकरी कैसी चल रही है"।
"ठीक चल रही है बाबा"।
"तेरी छोटी बहन रमा कहाँ है"।
"बाबा संगीत सीखने गई है। बोल रही थी हाइ स्कूल का पेपर अच्छा हुआ है। आगे मैथ से पढ़ना चाहती है"। "चलो देखेंगे"।
"अच्छा बाबा मैं चाय लेकर आती हूँ तब तक आप बेड पर आराम कीजिये"।
श्याम बाबू पलंग पर लेट गए और आँखें बंद कर ली। आँखें बंद करते ही उनके दिमाग में उस रात का भयंकर दृश्य घूम गया। श्याम बाबू अपनी पत्नी रत्ना, विद्या और विद्या के मातापिता के साथ कार में बैठ कर शिव मंदिर दर्शन के लिए जा रहे थे। वापस लौटते समय-समय शाम हो गई थी। गाड़ी विद्या के पिता चला रहे थे। अचानक सड़क पर उनकी कार की टक्कर ट्रक से हो गई. उस एक्सिडेंट में विद्या के मातापिता गंभीर रूप से घायल हो गए. उन्हें तुरंत नजदीक के हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। उनके बचने की बहुत कम उम्मीद थी। अपने अंतिम समय में विद्या के पिता ने श्याम बाबू को बुला कर विद्या की ज़िम्मेदारी उन्हें सौप दी। तब से लेकर आज तक श्याम बाबू ने विद्या को अपने बेटी से ज़्यादा प्यार दिया है। और विद्या ने भी श्याम बाबू को अपने पिता ज़्यादा समझा है। तभी विद्या ने ड्राइंगरूम में चाय के साथ प्रवेश किया। श्याम बाबू धीरे से उठ बैठे और चाय का प्याला हाथ में ले लिया। विद्या भी चाय के प्याले के साथ बाबूजी के बगल में बैठ गई.
"क्या बात है आज बहुत परेशान दिख रहे हो"।
"हाँ बेटा, आज तुम्हारे माँ की बहुत याद आ रही है"। "हाँ बाबू जी मुझे अब भी नहीं लगता की माँ हमे छोड़ कर चली गई है"। "ठीक कहा बेटा। लेकिन तूने मेरी बहुत सेवा की है और बहुत सहारा दिया है"।
"कहाँ बाबू जी. जो आपने और माँ ने मेरे लिए किया है उसके आगे तो ये कुछ भी नहीं है। आप दोनों ने एक अनाथ लड़की को अपने बेटे जैसे प्यार दिया है। उसका एहसान तो मैं सारी ज़िंदगी नहीं चुका सकती"।
"तूने भी तो हमे अपनों से ज़्यादा प्यार और इज्ज़त दी है"।
"अच्छा बाबा बंद करो ये सब। मैं खाना बनाने किचन में जाती हूँ। तब तक आप आराम करो। वैसे भी आज आपकी तबीयत कुछ ठीक नहीं है"।
तभी श्याम बाबू के छोटे बेटे सुनील ने प्रवेश किया। सुनील को देख कर बाबू जी बोले-"सुनील बेटा पढ़ाई कैसी चल रही है। इस बार भी बारहवी में फ़ेल मत हो जाना"।
"नहीं बाबा इस बार पढ़ाई ठीक चल रही है। जबकि सुनील जानता था कि इस बार भी उसकी तैयारी ठीक नहीं चल है"।
"मैं तुम चारों भाई बहन में तुमसे सबसे ज़्यादा परेशान रहता हूँ। पता नहीं क्या होगा तुम्हारा। दिन भर बस इधर उधर घूमना। जरा देख अपने बड़े भाई विजय को, इस साल उसका बी ए पूरा हो जाएगा। सारी रात पढ़ता रहता है। एक तू है जिसे घूमने से ही फुर्सत नहीं"। सुनील बाबूजी की बात को अनसुना करके किचन में चला गया।
सुनील बोला–"विद्या दीदी, आज क्या खाना बना रही हो"।
"भिंडी की सब्जी"।
"तुम्हें पता है मुझे भिंडी पसंद नहीं। तुम सब बस विजय भैया की पसंद का खयाल रखते हो। मेरा नहीं"।
"ऐसा नहीं है पगले। कल तुम्हारे पसंद का खाना बना दूँगी। अच्छा अब हाथ मुह धुलकर पढ़ाई करने बैठ जा नहीं तो बाबूजी फिर गुस्सा करेंगे"।
सुनील किचन से बाहर आया और पढ़ाई करने बैठ गया। जैसे ही उसने किताब खोली उसे रीता का चेहरा घूम गया जो उसकी हमउम्र ईसाई लड़की थी। बेहद खूबसूरत और मासूम। वो रोज़ सुबह शाम चर्च पूजा करने जाती थी। उसी रास्ते पर सुनील उसको देखा करता था। उन दोनों में कोई बात नहीं होती थी पर जैसे ही सुनील की नज़र उससे मिलती थी रीता एक हल्की-सी मुस्कान उसको देकर आगे बढ़ जाती थी। इसलिए इधर कुछ दिनो से सुनील विद्या से मोबाइल खरीदने की ज़िद केर रहा था। लेकिन विद्या ने शर्त रखी थी की अगर वह बारहवी की परीक्षा पास कर लेगा तो वह उसे नया मोबाइल खरीद केर देगी। लेकिन सुनील को अपने ज़रा भी पास होने आशा नहीं थी, इसलिए वह मोबाइल लेने के लिए छोटे-छोटे लड़कों को पढ़ाने के बारें में सोच रहा था। थोड़ी देर बाद विद्या की आवाज़ आई रमा, सुनील सब लोग ड्राइंगरूम में आ जाओ खाना तैयार है। सब लोग एक साथ मेज पर खाने के लिए बैठ गए.
बाबूजी ने पूछा विद्या बेटा-"विजय कहाँ है। अभी तक आया नहीं"।
विद्या बोली-"बाबूजी आप तो जानते हैं विजय रात में देर से घर आता है। इस साल उसका ग्राजुएशन पूरा होने को है। नौकरी तलाश कर रहा है, इसलिए सारा दिन बेचारा भटकता रहता है"। सबके खाने के बाद विद्या विजय का खाना मेज पर रख कर अपने कमरे में चली गई और उसके आने का इंतज़ार करने लगी। उसके जहन में आज का दिन घूम गया जब उसके ही साथ पढ़ाने वाला एक लड़का प्रमोद ने उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखा।
प्रमोद उसके पास आया जब वह स्कूल के स्टाफ रूम में अकेली बैठी थी और उससे बोला-"मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ"। एक क्षण तो विद्या सन्न रह गई पर बाद में संयत होकर बोली-"तुम तो जानते हो कि विजय की अभी नौकरी नहीं लगी है। बाबू जी घर के अकेले अर्निंग मेम्बर हैं। जैसे विजय अपने पैरों पर खड़ा हो जायेगा हम लोग शादी का प्रस्ताव लेकर बाबूजी के पास चलेंगे"। प्रमोद बोला-"ठीक है विद्या, मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगा"। और मुस्कुराकर विद्या का दोनों हाथ अपने हाथ में ले लिया। तभी घंटी बजी और विद्या चौंक गई. दरवाजा खोला तो विजय सामने खड़ा था।
"दीदी तुम अभी तक सोयी नहीं। मैंने तुमसे कितनी बार कहा है कि दरवाजा चिपका कर खाना मेज़ पर रख दिया करो। मैं लेकर खा लूँगा"।
"तुम हाथ मुह धो लो मैं खाना गरम कर मेज़ पर लगाती हूँ"।
"ठीक है दीदी"। खाना खाते वक़्त विद्या विजय से बोली-"विजय कभी-कभी बाबूजी से भी बात कर लिया करो। माँ के स्वर्गवास के बाद वह काफी अकेले हो गए हैं और उदास रहने लगे हैं। उन्हे तुम्हारी नौकरी की बहुत चिंता हो रही है"।
"ठीक है दीदी बात कर लूँगा। अब तुम भी जाओ और सो जाओ. कल तुम्हें भी स्कूल भी जाना है"।
सुबह विद्या बाबूजी के पास चाय ले कर पहुची और बाबूजी को दो तीन बार पुकारा। पर बाबूजी ने कोई आवाज़ नहीं दी। तुरंत विद्या ने विजय और सुनील को आवाज़ दी और कहा कि बाबूजी नींद से उठ नहीं रहे हैं। जाओ तुरंत बगल से डॉक्टर अंकल को बुला लाओ. डॉक्टर घोष श्याम बाबू की नाड़ी चेक की और कहा कि श्याम बाबू अब इस दुनिया में नहीं रहे। सारे घर के ऊपर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट गया।
लेकिन धीरे-धीरे सारा घर श्याम बाबू की कमी को भूलने लगा। इस बीच विद्या ने अपने तीनों भाई बहन को माँ और बाप दोनों प्यार दिया और बाबू जी का गम भुलाने में पूरे घर की बहुत मदद की। धीरे-धीरे समय व्यतीत होता गया। इस बीच रमा ने दसवी और सुनील ने बारहवी की परीक्षा पास कर ली औए विजय को श्याम बाबू की जगह बिजली विभाग में नौकरी मिल गयी।
एक दिन जैसे ही विद्या ने स्कूल में कदम रखा, प्रमोद उसे पकड़ कर कैंटीन ले गया और बोला–"विद्या, अब तुम्हारे घर सबकुछ ठीक हो गया है। विजय अब घर की पूरी ज़िम्मेदारी उठाने में समर्थ हो गया है। क्या अब हम लोग शादी कर सकते हैं"। विद्या ने कहा-"ठीक है आज की रात मैं विजय से इस बारें में बात करूंगी। कल; तुमको इसका जवाब मिल जाएगा"।
विद्या स्कूल से घर पहुंची और विजय के आने का इंतज़ार करने लगी। जैसे ही विजय ने घर में कदम रखा तो विद्या ने कहा कि विजय आज मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है। तुरंत विजय ने भी जवाब दिया कि दीदी मुझे भी आज आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी है। ठीक है विजय पहले तुम अपनी बात करो। विजय बोला-"दीदी, मेरे ऑफिस में एक लड़की है, मेरे ही साथ काम करती है, मैं उससे शादी करना चाहती हूँ"। विद्या ने कहा-"इसमे क्या समस्या है, चलो कल ही लड़की के माता पिता से बात करते हैं"।
विजय ने कहा कि दीदी इसमे एक शर्त है कि वह लड़की शादी के बाद मेरे साथ अकेले रहना चाहती है।
विद्या ने बोला-"तुमने क्या सोचा है"।
"दीदी मैंने सोचा है कि मुझे अपने आने वाले जीवन के भविष्य के लिए उसकी बात कबूल कर लेनी चाहिए"।
विद्या बोली-"रमा और सुनील के बारे में क्या सोचा हैं"।
"उसके लिए तो तुम हो दीदी"। विद्या ने मन ही मन सोचा और मेरे लिए. विद्या ने मुस्कुराकर विजय के गाल पर हाथ रखा और बोला-"जैसा तुम ठीक समझों"।
"दीदी तुम भी मुझसे कोई बात करना चाहती थी"।
"कोई खास बात नहीं थी बस यूं ही"। दूसरे दिन स्कूल में प्रमोद ने विद्या से कल के बारे में बात की। विद्या ने प्रमोद से कहा-"प्रमोद, कुछ लोगों की जिम्मेदारियाँ कभी खतम नहीं होती हैं। कभी-कभी इंसानियत का रिश्ता सबसे उपर हो जाता है। मैं अब शायद कभी शादी नहीं कर सकूँगी। शायद तुम मेरी मजबूरी समझ सकोगे"। इतना कहकर विद्या प्रमोद के पास से चली गई.
धीरे धीरे पाच साल बीत गए. अब विद्या, रमा और सुनील को विजय के बिना भी जीने की आदत हो गई. इस बीच विद्या ने अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभाई. सुनील ने अपने ग्राजुएशन पूरा किया और उसकी नियुक्ति प्राइमरी स्कूल में एक टीचर के पद पर हो गई. रमा भी अब शादी के लायक हो गई थी। लिहाजा विद्या को रमा के शादी की चिंता सताने लगी थी।
एक दिन सुबह स्कूल जाते समय सुनील ने रीता से शादी के प्रस्ताव रखा। रीता ने कहा कि वह शादी के लिए तैयार है लेकिन उसकी दो शतें हैं। एक, शादी चर्च में होगी और दूसरी, शादी के बाद सुनील को रीता के घर पर रहने होगा।
ये बात सुनकर सुनील सोच में पड़ गया और स्कूल की तरफ रवाना हो गया। शाम को जब सुनील घर पहुँचा तो काफी उदास था।
विद्या ने पूछा-"क्या बात है सुनील, मैं देख रही हूँ तुम शाम से ही काफी उदास लग रहे हो"।
"कुछ नहीं दीदी बस ऐसे ही"। ये कहकर सुनील उठ खड़ा हुआ। "दीदी मैं रात को घर लेट आऊँगा, तुम दरवाजा चिपका देना और खाना मेज़ पर रख देना। और हाँ रात को सो जान। मेरा इंतज़ार मत करना"। लेकिन विद्या जानती थी कोई बात है जिसको लेकर सुनील चिंतित है।
सुनील शाम को बाहर जाकर रीता से एक कॉफी शॉप पर मुलाक़ात की। सुनील ने रीता से कहा कि क्या ये ज़रूरी नहीं कि शादी के बाद भी हम सब साथ रहें मेरे घर में दीदी और रमा के साथ"।
"नहीं, यदि तुम्हें मुझसे शादी करनी है तो अपनी बहनो को उन्ही के हाल पर छोड़ना होगा। शादी के बाद हम तुम मेरे पिताजी के साथ मेरे घर पर रहेंगे। मैं अपने पिताजी को अकेले नहीं छोड़ सकती। आज कल उनका स्वाथ्य ठीक नहीं चल रहा है"। सुनील बोला-"ठीक है। सोचता हूँ इस बारे मे"। इसके बाद सुनील उठा और अपने दोस्तों से मिलने क्लब चला गया"। सुनील जब देर रात घर लौटा तो पाया कि और दिन की तरह विद्या आज भी उसका इंतज़ार कर रही थी। विद्या किचन से खाना गरम कर के लायी और मेज पर सुनील के साथ बैठ गई.
विद्या ने कहा-"क्या बात है सुनील तुम शाम से ही बहुत उदास दिख रहे हो। अपनी दीदी से नहीं बताओगे"।
सुनील बोला-"दीदी, तुम तो रीता को जानती ही हो। मैं बचपन से ही उसे बहुत पसंद करता हूँ। आज सुबह जब मैंने उससे शादी की बाद कही तो उसने बोला कि वह मुझसे शादी के लिए तैयार है। लेकिन शादी के बाद मुझे उसके साथ उसके के पिताजी के घर पर रहना होगा"।
विद्या ने बोला-' बस इतनी-सी बात। मेरा भाई इस छोटी बात को लेकर परेशान है"।
लेकिन दीदी, "तुम और रमा अकेली रह जाऊगी"।
"अरे मैं हूँ न। मैं रमा की देखभाल करूंगी। तुम हम लोगों की तरफ से अपना मन न उदास करो। कल सुबह जाकर रीता से शादी के लिए हाँ कर देना"। विद्या ने सुनील के सर पर प्यार से हाथ फेरा और अपने कमरे में सोने के लिए चली गई. सुनील जैसे ही खाना खाकर उठ तो देखा कि रमा उसके सामने खड़ी थी।
रमा ने सुनील से कहा-"भैया तुमने जो बात विद्या दीदी से कही वह मैंने सब सुन ली है। हम दोनों बहन तुम पर भी बोझ हो गए हैं। पहले विजय भैया और अब तुम, हम लोगों को छोड़ कर जाने की बात सोच रहे हो"।
सुनील ने कह-"आखिर मेरा अपना भी तो भविष्य है, अरमान है, ज़िंदगी है। और फिर देखो विजय भैया भी तो अपनी खुशी के लिए हमे छोड़ कर चले गए थे"।
"भैया, अगर विद्या दीदी ने अपनी खुशी देखी होती तो हम लोगों का क्या होता। मुझे अपनी परवाह नहीं पर तुम विद्या दीदी के बारें में ऐसा कैसे सोच सकते हो। वो हमारी सगी बहन न होते हुए भी सगे से ज़्यादा का फर्ज़ निभाया है। खैर अगर तुमने हमे छोड़ने का फैसला कर लिया है तो इसमे हम कर भी क्या सकते हैं"। ये कहकर रमा अपने कमरे में सोने के लिए चली गई.
सुबह जब विद्या चाय लेकर आयी तो सुनील अपना समान पैक कर रहा था। चाय पीते हुए सुनील ने विद्या से कहा कि दीदी मैं अपना समान लेकर घर से जा रहा हूँ। आज से मैं रीता के साथ उसके घर पर रहूँगा। आज से शाम को मेरा इंतज़ार मत करना। विद्या ने ममत्व भाव से सुनील की तरफ देखा और कहा-"सुनील अपना खयाल रखना, और हम लोगों की चिंता नहीं करना"। तैयार होकर सुनील घर से निकाल पड़ा। विद्या उसे अपलक देखती रही जब तक सुनील उसकी आखों से ओझल नहीं हो गया। जैसे ही विद्या घर के अंदर गई तो पाया की रमा रो रही थी। विद्या ने उसके सर पर हाथ रखा और बोली-"पगली तू क्यों चिंता करती है। तेरी बहन अभी ज़िंदा है"। रमा बोली कि दीदी मैं चिंता नहीं कर रही हूँ। मैं सोच रही हूँ लोग खून के रिश्ते भूल गए और तुम इंसानियत के रिश्ते को आज तक निभा रही हो"।
शाम को विद्या घर लौटी तो पाया कि आज रमा संगीत सीखने नहीं गई थी। क्या बात है रमा आज तुम संगीत सीखने गई नहीं।
नहीं दीदी। सुनील भैया के जाने बाद कहीं मन नहीं लग रहा है। पूरा घर खाली खाली-सा लग रहा है। रात में खाने के बाद रमा अपने कमरे में सोने के लिए चली गई पर विद्या घर का दरवाजा खोलकर उसके पास बैठ गई और रास्ते को बड़ी देर तक निहारती रही।
रमा जब सुबह उठी तो पाया कि सुनील अपने कमरे में सो रहा था। वो जल्द विद्या के पास गई और विद्या को झकझोर कर बोली कि दीदी उठो, देखो सुनील भैया वापस आ गए हैं। विद्या ने आखें खोली तो पाया कि सुनील रमा के पीछे खड़ा था।
" दीदी, मैं लौट आया हमेशा के लिए. अब कभी तुम लोग को छोड़कर नहीं जाऊंगा। दीदी, तुम्हारे त्याग और तपस्या के आगे ऐसे हज़ार प्यार कुर्बान। विद्या ने प्यार से रमा और सुनील को गले से लगा लिया।
"अच्छा दीदी, जल्दी से चाय नास्ता दो, मुझे स्कूल के लिया देर हो रही है"।
विद्या बोली-"अभी लाती हूँ"।