सुबू भी खेलेगी होली / संजीव ठाकुर
उस दिन पापा कि छुट्टी थी। मम्मी सुबह से ही काम कर रही थीं। तरह-तरह के पकवानों की खुशबू किचन से उठ रही थी।
"ये क्या है मम्मी?" सुबू ने पूछा तो मम्मी ने बताया—"गुझिया!"
"और इसका क्या बनाओगी मम्मी?" ..."दही बड़े!" मम्मी ने बताया।
"और इस बर्तन में जो दूध मिलाकर रखा है?" वह सब कुछ पूछ लेना चाहती थी। मम्मी ने समझाया—"इसके मालपुए बनेंगे।"
सुबू को आश्चर्य हो रहा था—"इतनी-इतनी चीजें आखिर क्यों बन रही हैं?" मम्मी ने बताया कि आज होली है। सुबू होली का मतलब नहीं जानती थी। वह अभी सिर्फ़ तीन साल की थी। वह मम्मी से होली का मतलब पूछ ही रही थी कि दरवाजे की घंटी बजी। पापा दरवाजा खोलने गए तो देखा, मुहल्ले के लोग उन्हें रंग लगाने आ गए हैं। उन्हें दरवाजा खोलना ही पड़ा। सुबू भी बाहर आ चुकी थी। कई लोगों को रँगे मुँह और रँगे कपड़ों में देखकर वह डर गई। भागकर बेडरूम में छुप गई। लोगों ने पापा को भी रंग लगा दिया, फिर प्लेट से मिठाइयाँ लेकर चलते बने। उनके जाने के बाद पापा ने सुबू को पुकारा। वह बाहर ही नहीं आती थी। ढूँढ़ते हुए वह सुबू के पास पहुँचे तो वह और डर गई। आँखें बंद कर रोने लगी। तब जाकर पापा कि समझ में आया कि इसे रंगों से डर लगता है। सुबू का रोना सुनकर मम्मी भी वहाँ पहुँच गईं। दोनों ने समझाने की कोशिश की लेकिन सुबू समझ ही नहीं रही थी। पापा जल्दी से बाथरूम में जाकर रंग धो आए। तब सुबू का रोना बंद हुआ।
बाद में भी सुबू होली का नाम सुनकर डरने लगी। यह एक बड़ी समस्या थी। चार साल ऐसे ही बीत गए। होली में पापा ही घर से बाहर निकल जाते। घर आकर पहले नहाते-धोते, फिर कुछ और करते। सुबू के दोस्त आते तो उन्हें बाहर से ही लौटा देते।
अब सुबू आठ साल की हो गई थी। उसके मन से होली का डर भागता ही नहीं था। जबकि स्कूल में या घर में रंगों से पेंटिंग करने में उसे कोई परेशानी नहीं होती थी। उसे परेशानी केवल होली से थी। आखिर पापा ने एक उपाय निकाला। इस बार जब होली आई तो सुबू के दोस्तों को अपने घर बुलाया। सबको रंग खेलने से मना कर दिया। मम्मी सबके लिए मिठाइयाँ और गुझिया रख गई थीं। खाने के बाद पापा ने सबको गिफ्ट दिया—खिलौना—छोटा-सा टी.वी. सेट। फिर सबको बालकोनी में बुलाया। बालकोनी में पापा ने सबको गोल-गोल खड़े हो जाने को कहा। पापा सबके बीच में खड़े हो गए। सुबू खुश थी—"आज पापा सबके साथ 'रिंगा-रिंगा' खेलेंगे।"
पापा ने कहा—"बच्चो! टी.वी. का यह लाल बटन देख रहे हो न? ...वन-टू-थ्री कहने पर सबको एक साथ इसे दबाना है। इसको दबाते ही एक मजेदार बात होगी। ठीक है?"
'थ्री' कहने पर जैसे ही बच्चों ने बटन दबाया, रंगों का फव्वारा फूट पड़ा। पापा और सभी बच्चों के ऊपर रंगों की बरसात हो गई। सभी बच्चे उछलने लगे। सुबू की समझ में ही नहीं आया कि यह सब क्या हो गया? उसे डर भी नहीं लगा। अब तक वह खामखा रंगों से डरती थी?
पापा ने सभी बच्चों की फोटो खींच ली। बाद में उसे देखकर सुबू को बहुत मजा आता था—किसी की नाक पर रंगा लगा था, किसी के कानों पर। किसी की शर्ट पर कोई दृश्य बन गया था।
सुबू अब हर साल होली खेलेगी।