सुभद्रा कुमारी चौहान / निमिषा सिंघल

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सुभद्रा कुमारी चौहान जी को हिन्दी साहित्य में देशभक्त, प्रकृति प्रेमी कवित्री के रूप में जाना जाता है।

इनका जन्म 16 अगस्त 1904 में ग्राम निहालपुर इलाहाबाद उत्तर प्रदेश में हुआ था। बचपन से ही इन्हें काव्य ग्रंथों में विशेष लगाव व रुचि थी। अल्पायु में ही सुभद्रा जी की पहली कविता प्रकाशित हुई थी। इनका विवाह खंडवा मध्य प्रदेश के निवासी ठाकुर लक्ष्मण सिंह जी से हुआ था जो एक नाटककार थे। इन्हें माखनलाल चतुर्वेदी जी जैसे पथ प्रदर्शक का साथ मिला। पति के साथ महात्मा गांधी आंदोलन से जुड़कर राष्ट्रप्रेम पर इन्होंने अनेक कविताएँ लिखी। 1948 में एक सड़क दुर्घटना में इनका निधन हो गया। सुभद्रा जी ने ख़ुद को पूरे मन प्राण से असहयोग आंदोलन में झोंक दिया। वह देश सेविका और देश भक्त कवि के रूप में देश की सेवा करने लगी। जलियाँवाला बाग़ 1917 के नृशंस हत्याकांड से उनके मन पर गहरा आघात लगा उन्होंने “जलियाँ वाले बाग़ में बसंत” में लिखा :

“परिमल हीन पराग दाग-सा बना पड़ा है

हाँ ;यह प्यारा बाग़ खून से सना पड़ा है ‌

आओ प्रिय ऋतुराज किंतु धीरे से आना

यह है शोक स्थान यहाँ मत शोर मचाना ।

कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा खा कर

कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर।“

उनकी कविताएँ आज़ादी की आग से ज्वालामुखी बन गई लगभग 88 कविताएँ और 46 कहानियों की उन्होंने रचना की इनका पहला काव्य संग्रह 1930 में प्रकाशित हुआ इनकी चुनी हुई कविताएँ त्रिधारा में प्रकाशित हुई।

“झांसी की रानी” इन की बहुचर्चित रचना है।

“खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी” इस रचना ने पूरे देश को स्वतंत्रता संग्रामके लिए उद्वेलित किया। इनकी यह रचना इतनी प्रसिद्ध हुए कि बाक़ी रचनाएँ इसके आगे गौण हो गई।राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भागीदारी और जेल यात्रा के दौरान इनके 3 कहानी संग्रह प्रकाशित हुए। बिखरे मोती (1932) उन्मादिनी (1934) सीधे सादे चित्र (1947)

स्वतंत्रता संग्राम में स्त्रियाँ पीछे ना रह जाए उनमें जोश भरने के लिए लिखी कविता।

“सबल पुरुष यदि भीरू बने तो हमको दे वरदान सखी

अबलाए उठ पड़े देश में करें युद्ध घमासान सखी। पन्द्रह कोटी असहयोगिनियाँ दहला दे ब्रह्मांड सखी

भारत लक्ष्मी लौटाने को रचदे लंका कांड सखी।“

“स्वदेश के प्रति” “झांसी की रानी” “संधि मापर” “जलियाँ वाले बाग़ में बसंत” आदि श्रेष्ठ कवित्व से भरी हुई उनकी सशक्त रचनाएँ हैं। उनकी रचनाओं में मातृभाषा हिन्दी के प्रति प्रेम दांपत्य प्रेम बचपन को स्मृतियों में बसा कर उसका सुंदर वर्णन देखने को मिलता है।

“बार बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी आजा बचपन एक बार फिर दे दो अपनी निर्मल शांति व्याकुल व्यथा मिटाने वाली वह अपनी प्राकृत विश्रांति।“

उन्हें मुकुल तथा बिखरे मोती पर सेकसरिया पुरस्कार मिले।

भारतीय तटरक्षक सेना ने 28 अप्रैल 2006 को सुभद्रा को सम्मानित करते हुए नवीन नियुक्त तटरक्षक जहाज़ को उनका नाम दिया। भारतीय डाक तार विभाग ने 6 अगस्त 1976 को सुभद्रा चौहान के सम्मान में 25 पैसे का एक डाक-टिकट जारी किया था।

हम जिस निरपेक्ष समाज का प्रण लेते हैं सुभद्रा कुमारी जी चौहान ने यह मार्ग अपनी कविताओं के द्वारा बहुत पहले ही दिखाया था।:

मेंरा मंदिर मेरी मस्जिद काबा काशी यह है मेरी।“

टाइम्स ऑफ इंडिया के एक रिपोर्टर ने उनका उल्लेख “लोकल सरोजनी” कह कर दिया था। कवि शमशेर बहादुर सिंह ने उन्हें “जनमनमई सुभद्रा” कहा। उनकी कविताओं को किसी भी कसौटी पर तोलने पर वह हर कसौटी पर खरी उतरती प्रतीत होती हैं। वह कन्यादान के भी खिलाफ थी उन्होंने अपनी बेटी का कन्यादान नहीं किया।मृत्यु के बाद यही कहीं बिखर गई वह एक विजय माला-सी ।