सुभाष घई : जाने कहां गए वो दिन? / जयप्रकाश चौकसे

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सुभाष घई : जाने कहां गए वो दिन?
प्रकाशन तिथि : 17 अक्टूबर 2014


एक दौर के अत्यंत सफल फिल्मकार सुभाष घई ने लंबे समय से कोई सफल फिल्म नहीं बनाई है। संभवत: शाहरुख खान, महिमा अभिनीत 'परदेस' उनकी आखिरी सफलता थी। कुछ लोगों का ख्याल है कि उनके प्रिय गीतकार आनंद बक्षी की मौत के बाद सफलता उनसे रूठ गई है। इस असफलता के दौर के काले घने बादलों में एक स्वर्ण रेखा यह नजर आती है कि उनकी पुरानी कामयाब फिल्मों के री-मेक के अधिकार ऊंचे दामों में बिक रहे हैं। उनकी ऋषि कपूर, टीना मुनीम अभिनीत 'कर्ज' को हिमेश रेशमिया ने बनाया आैर घाटा हुआ। अब सलमान खान उनकी 'हीरो' आदित्य पांचोली के बेटे आैर सुनील शेट्टी की बेटी के साथ बना रहे हैं। करण जौहर ने बहुत दाम देकर उनकी 'राम लखन' के अधिकार खरीदे हैं जिन्हें वे अपने दड़बे से निकले मल्होत्रा एवं वरुण के साथ बनाने जा रहे हैं। यह सुनने में आया है कि संजय लीला भंसाली सुभाष घई की 'खलनायक' बनाने की इच्छा रखते हैं। उनकी दिलीप कुमार आैर राजकुमार अभिनीत 'सौदागर' एक पाकिस्तानी फिल्म से प्रेरित थी जैसे 'कर्ज' हॉलीवुड की 'री-इनकारनेशन ऑफ पीटर प्राउड' से बताई जाती है। हॉलीवुड की मूल फिल्म में नायिका अपने फिर से जन्मे प्रेमी को दूसरी बार कत्ल कर देती है परंतु सुभाष घई ने भारतीय दर्शक के मनभावक क्लाइमैक्स गढ़ा।

'कर्ज' के क्लाइमैक्स में स्टेज पर एक कार्यक्रम में विगत जन्म की हत्या का प्रसंग जस का तस प्रस्तुत करके कातिल का पर्दाफाश किया जाता है आैर यह नाटकीय पैंतरा शेक्सपीयर के 'हैमलेट' में चार सौ वर्ष पूर्व प्रस्तुत किया था आैर विशाल के 'हैदर' में भी यह प्रस्तुत हुआ है परंतु विशाल ने इसे कश्मीर के लोक नाटक की तरह बकमाल प्रस्तुत किया है। बहरहाल तमाम पुरानी फिल्मों के री-मेक अधिकार के साथ उनका संगीत नहीं मिलता क्योंकि उसके लिए रिकॉर्ड कंपनी सारेगामा से अधिकार खरीदने होते हैं। खबर यह है कि करण जौहर 'राम लखन' का टाइटल गीत खरीदना चाहते हैं आैर कथित तौर पर उनसे ढाई करोड़ रुपए मांगे हैं। सुभाष घई की फिल्में उनके गीत संगीत के कारण खूब लोकप्रिय हुई हैं। लक्ष्मी-प्यारे आैर आनंद बक्षी ने जादू ही रचा था परंतु सुभाष घई स्वयं को संगीत की बहुत परख थी जो इससे साबित होती है कि नदीम-श्रवण ने भी उनके लिए 'परदेस' में माधुर्य रचा आैर ए.आर.रहमान का श्रेष्ठतम भी सुभाष घई की 'ताल' में प्रस्तुत हुआ है। भारतीय सिनेमा की लोकप्रियता का आधार गीत-संगीत रहा है आैर हमारे देश में जन्म से मृत्यु तक स्थितियों के लिए गीत हैं।

कुछ फिल्मकारों को संगीत की समझ रही है, कुछ ने विधिवत अध्ययन किया है। राज कपूर, गुरुदत्त, राज खोसला आैर विजय आनंद केवल संगीत की समझ रखते थे वरन् गीतों की प्रस्तुति में उन्हें महारत हासिल थी। राज खोसला तो हारमोनियम लेकर गाने बैठ जाते थे आैर ताउम्र उन्हें अफसोस रहा कि उन्हें पार्श्व गायन के अवसर नहीं मिले। हमारे फिल्मकार नए ढंग से गीत प्रस्तुत करते रहे हैं। विजय आनंद ने कुतुब मीनार में फिल्माया तो कमल हसन ने 'एक दूजे के लिए' में लिफ्ट में गाना फिल्माया। बहरहाल सुभाष घई के अर्श से फर्श पर आने के कारण क्या हैं? उनकी सफलता का आधार संगीत आैर सितारे रहे हैं आैर जब सितारों की पीढ़ी बदली तो सुभाष घई पिछड़ गए। तीस साल पहले सुभाष घई ने पांच मिनिट में ऋषि कपूर को 'कर्ज' के लिए अनुबंधित किया परंतु आज रणबीर कपूर उनसे मिलने को तैयार नहीं है। वह अपनी वय के युवा फिल्मकारों के साथ काम करना चाहता है। आज बाजार आैर कॉरपोरेट के संसार में एक बाइस वर्ष के युवा को चालीस वर्षीय अनुभवी से ऊपर रखा जाता है क्योंकि बाजार युवा वय ही बेच रहा है। सुभाष घई अपनी युवा वय को अपने सृजन में जीवित नहीं रख पाए आैर वे भूल गए कि आैसत दर्शक की वय हमेशा पांच से बीस रही है। फिल्मकार में बैठा बच्चा ही सफल फिल्में रचता है।