सुरा प्रेमियों का प्रांतीय सम्मेलन / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
देश में चारों तरफ असंतोष है| देश में है तो प्रदेश कैसे अछूता रह सकता है| जिला ,शहर और गांव सब तरफ असंतोष की आग फैली है| आग शब्द का प्रयोग इसलिये कर रहा हूं क्योंकि इसके प्रयोग से असंतोष की भयानकता का स्पष्ट बोध होता है| असंतोष की दूसरी आगों की तरह सुरा प्रेमियों में भी यह आग राजनैतिक भ्रष्टाचार की तरह फैली हुई है| | शासकीय नीतियां सुरा प्रेमियों के विरुद्ध हैं| सरकार ने देश के तमाम मुहकमों को ,उनके नेता मंत्री अफसर और कर्मचारियों को देश एवं स्वयं का विकास करने के लिये भारी भरकम और भीमकाय सबसीडी देने की प्रथा आरंभ की थी| | आम जनता को भी धड़ल्ले से सबसीडी दी जा रही है| सबसीडी को हिंदी में अनुदान कहते हैं| देश के सब्सीडी धारकों का तोंद निकल महल निर्माण विकास हुआ| किंतु हाय बेचारे सुरा प्रेमी......उनकी तरफ सरकार ने अपनी नज़रें तक इनायत नहीं कीं| हिंदुस्तान के किसी सुरा प्रेमी को आज तक सरकार अथवा किसी समाज सेवी संगठन ने सबसीडी नहीं दी| यह भारतीय इतिहास में प्रजातंत्र के नाम पर काला धब्बा है|
बड़े उद्योगों को साठ प्रतिशत तक अनुदान दिया गया है| चालीस जेब से लगाओ और साठ सरकार से मुफ्त में पाओ| पर बेचारे सुरा प्रेमिओं को किसी ने फूटी आंखों से तक नहीं देखा| सरकार ने कभी नहीं कहा की हे सुरा प्रेमी जी यदि आप चालीस रुपये की सुरा अपने पैसे से पियेंगे तो सरकार आपको साठ रुपये अनुदान के रूप पीने के लिये देगी| | कितना घोर अन्याय, जघन्य अपराध है इन सुरा प्रेमियों के साथ| बच्चनजी ने कितने कठोर परिश्रम से मधुशाला लिखी होगी किंतु सरकार उनके इन योग्य पात्रों कैसे नकार रही है यह दुनियां देख रही है|
देश में आर्थिक तंगी है तो इन सुरा श्रेष्ठों को पच्चीस प्रतिशत तक का अनुदान तो मिलना ही चाहिये| उद्योग धँधों में सबसीडी,खाद में सबसीडी,पेट्रोल,गैस गल्ला व्यापार,फिल्म उद्योग,कृषि और महिला विकास जैसे कार्यों मे जी तोड़ बैंक फोड़ सबसीडी किंतु सुरा प्रेमियों को ठैंगा| कितना अनर्थ ,सुरा प्रेमियों की आह का कोई डर नहीं, ऊपर वाले का कोई भय नहीं | अल्लाहताला सब देख रहा है| उसकी लाठी में आवाज नही होती और वहा मार देता है अनीति करने वालों को| आखिरकार पिट रहा है न देश गरीबी मंहगाई,बेरॊजगारी और भ्रष्टाचार से| यह सब सुराप्रेमियों की बददुआओं का असर है| सुरा को देसज भाषा में दारू कहते हैं| यह दारू शाश्वत सत्य है, हमारी परंपरा है,संस्कृति है और एतिहासिक धरोहर भी है| पुराणों,,ऋचाओं,वैदिक ग्रंथों एवं प्राचीनतम किताबों में सुरा प्रेमियों की महिमा एवं स्तुति का वर्णन मिलता है| सतयुग से त्रेता तक त्रेता से द्वापर तक और द्वापर से आज कलयुग तक में सुरा ने अपना विजय अभियान जारी रखा है| मध्यकाल में तो सुरा प्रेमियों का विशेष सम्मान होता था, समाज में इज्ज्त थी और राजा के बिल्कुल बगल में राज्य के सबसे बड़े सुरा प्रेमी का आसन आरक्षित रहता था| वह खुद पीता था और राजा को पिलाता था और राजा को देश दुनियां की चिंता से मुक्त रखता था| राजतंत्र में यही तो मजे थे| न्याय बिल्कुल सही दारू का दारू और पानी का पानी होता था| किंतु हाय रे प्रजातंत्र जिस दारू के ठेकों की कमाई से सरकार कॊ करॊड़ों का फायदा हो उन्हीं दारू भक्तों की यह दुर्दशा| यह तो हम जैसे अंगुलियों पर गिनने लायक लोग ही बचे हैं जिससे देश में दारूखोरों का अस्तित्व कायम है| यदि सरकार ने अब भी आंख न खोली इन सुरा प्रेमियों की नस्ल ऐसे ही समाप्त हो जायेगी जैसे कि डायनासोर की नस्ल समाप्त हो गई हैं|
खान गफ्फार खान हमारे मोहकमे के दारू प्रेमी ड्राइवर थे सुबह से शाम तक और शाम से सुबह तक राउंड दी क्लाक दारू पीते थे| यदि गालिब आज जिंदा होते तो अवश्य ही दो चार सौ शेर उनके ऊपर लिख डालते| कुछ दिनों पूर्व गफ्फार भाई साठ पार कर गये और सेवा निवृत हो गये| हमने उनका बिदाई सम्मान बड़े धूम धाम से किया| | वे दारू पीकर खटिया पर पड़े थे| हमने उन्हें ससम्मान्न उठाया और माला पहनाक्रर उसी सम्मान से दारू पिलाकर खटिया पर लिटा दिया| हमने दारू के साथ पूरी इंसाफी की|
हां तो बात असंतोष की हो रही थीप्रांत के सभी सुरा प्रेमियों ने अपने खिलाफ होते अन्याय के विरोध में एक प्रांतीय अधिवेशन आयोजित कर डाला| प्रांत के धुरंधर एवं प्रसिद्धि को प्राप्त बड़े बड़े दारूखोर एकत्रित हुये| मंच पर दारू श्रेष्ठ, दारू शिरोमणि ,दारू नवाज ,दारू नवीस पियक्कड़ चंद और दारू किंग विराजमान थे| भीड़ तो कम थी किंतु मैदान में तिल रखने को जगह नहीं थी क्योंकि पिय्यकड़ श्रोता बैठने के बजाय जमीन पर; लोटे पड़े थे| लाउडिस्पीकर में गाना बज रहा था......'हम लाये हैं दूकान से दारू निकाल के,रखना मेरे बच्चो तुम्हीं बोतल सम्हाल के'
आयोजक सभा को संबोधित करने लगा....."प्रदेश के प्यारे प्यारे दारूखोरो, दारू श्रेष्ठो और दारू नवाजो ..सरकार द्वारा हमारे ऊपर किया जाने वाले अत्याचारों के विरोध में यह सम्मेलन आयोजित किया गया है| मंच पर सभी गणमान्य दारूखोर विराजे हैं| आज के सम्मेलन का अध्यक्ष हमने प्रांत के सबसे बड़े शराबी लोटन लाल को चुना है| वे मंच पर ही लोटे पड़े हैं| वह देखिये मंच के बीचों बीच लोटे दिखाई पड़ रहे हैं.......तालियां" और तालियों की आवाज सुनाई पड़ती है| "अब मैं प्रांत के दूसरे बिग गन अर्थात दारूखोरी के रजत पदक विजेता अंतर्राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त माननीय लुड़कनलालजी ठर्रेवाला से निवेदन करूंगा कि वे माननीय; ओटनलाल का पुष्पहारों से स्वागत करें| "लुड़कन लालजी मंच पर ही लुड़के पड़े थे| लोटन लाल को हिलाया डुलाया गया"लोटनभाई उठो तुम्हें माला पहनाई जाना है और लुड़कन दादा आप भी उठिये माला पहनाइये लोटन को" आयोजक ने लुड़कन का सिर पकड़कर हिलाया| लोटन और लुड़कन दोनों ने उठने में असमर्थता व्यक्त की| लुड़कनजी क्रोध में बड़ बड़ाने लगे"अरे इस निकम्मी सरकार ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा,उठने लायक कहां छोड़ा है हमें हिच्च....कलेजा जलाया है अपना...अपने पैसों की दारू पी है, घर फूंक तमाशा देखा है हमने,सरकार ने एक पैसा भी नहीं दिया है हमें दारू पीने को| सबसीडी मिलती तो हम भी खड़े होने लायक रहते| दूसरे लोग सबसीडी के बल पर ही तॊ खड़े हैं,बंगलों में रहते हैं कारों मेंघूमते हैं| " "अच्छा आप माला तो पहना दीजिये... लुड़के लुड़के ही पहना दीजिये" आयोजक बोला|
"अच्छा कहां है माला? कहां है लोटन का गला? गला यहीं ले आओ"
"यह है रे लुड़कन मेरा गला,किंतु कटा हुआ है,सरकार ने पहले ही काट लिया है| ये तो मेरे मित्र हैं जो मेरा मकान बेचकर मुझे दारू पिलाकर जिंदा रखे हैं"लोटन ने अपना गला हिलाया| आयोजक की मदद से माला धारण कार्यक्रम सम्पन्न हो गया| इतने में आठ दस बोतलें ट्रे में रखकर एक नौकर मंच पर ले आया| आयोजक लोटन लुड़कन और मंच पर लुड़के सभीदारू खोर बोतलों पर झपट पड़े| फिर गाना बजने लगा...हम लाये हैं दूकान से.............
सम्मेलन अभी जारी है,कब समाप्त होगा नहीं मालूम| हां सरकार सबसीडी दॆ दे तो तुरंत समाप्त हो सकता है|