सुर ना सजे, क्या गाऊं मैं / जयप्रकाश चौकसे

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सुर ना सजे, क्या गाऊं मैं
प्रकाशन तिथि :09 अगस्त 2017


रोहित शेट्‌टी हैदराबाद में अपनी फिल्म 'गोलमाल' भाग चार की शूटिंग कर रहे हैं। तुषार कपूर अपनी बहन एकता कपूर से राखी बंधवाने चंद घंटों के लिए आए थे। तुषार कपूर की रक्षा एकता कपूर ही करती आई हैं। सफलता से रिश्तों के समीकरण बदल जाते हैं। जीतेन्द्र की सुपुत्री एकता ने अपने पिता के गैरेज को दफ्तर बनाकर सीरियल संसार में प्रवेश किया था और कुछ ही वर्षों में वे अपने क्षेत्र की महारानी बन गई थीं। कमल कपूर चरित्र भूमिकाएं करते थे। उनकी बेटी का विवाह फिल्मकार रमेश बहल से हुआ था। कमल के सुपुत्र कपिल ने एकता कपूर का पहला सिटकॉम 'हम पांच' निर्देशित किया था।

तुषार कपूर एक अत्यंत धनाढ्य एवं सफल लोगों के परिवार के सदस्य हैं परन्तु वे अपनी सीमा को जानते हैं। एक बार फिल्मकार रमेश तलवार ने उन्हें एक दोहरी भूमिकाओं वाली फिल्म में अनुबंधित करवाना चाहा तो पटकथा सुनकर उन्होंने साफगोई से कहा कि वे भूमिकाओं के साथ न्याय नहीं कर पाएंगे और यह कोई अस्वीकृत करने का तरीका नहीं है वरन् वे फिल्म का निर्माण करने या निर्माण में हर तरह की मदद करने के लिए तैयार हैं। क्या सफल लोग अपनी चारदीवारी में सामान्य सदस्यों की तरह व्यवहार करते हैं? क्या जीतेन्द्र अपनी सफल सुपुत्री एकता को उस तरह डांट सकते हैं जैसे सामान्य पिता करते हैं? सफलता एवं आर्थिक मजबूरियां रिश्तों को बदल देती हैं। राजिन्द्र सिंह बेदी के उपन्यास 'एक चादर मैली सी' पर हेमा मालिनी, ऋषि कपूर अभिनीत फील्म बनी थी। उपन्यास में उस देवर को अपनी विधवा भाभी से विवाह करना पड़ता है जिसे भाभी ने पाल पोसकर युवा किया है। बड़े भाई के विवाह के समय छोटा भाई बच्चा था। अत: पुत्रवत वाले हुए देवर से विवाह करना पड़ता है क्योंकि कमाने वाला वही एकमात्र सदस्य है।

रोहित शेट्‌टी के पिता अपने दौर के स्टंट दृश्य बनाने वाले एक्शन डायरेक्टर थे और उन्होंने भी दो विवाह किये थे। रोहित उनकी दूसरी पत्नी की संतान हैं। अजय देवगन के पिता वीरू देवगन भी एक्शन डायरेक्टर थे। अजय देवगन ने ही रोहित शेट्‌टी को प्रेरित किया है और अवसर भी जुटाए। फिल्म का कुछ भाग एक्शन डायरेक्टर ही शूट करता है जैसे नृत्य-गीत डान्स डायरेक्टर शुरू करता है गोयाकि डायरेक्टर के दो हाथ हैं ये लोग। एक कुशल फिल्मकार अपने फिल्म आकल्पन को पूरे यूनिट को सुनाता है। डान्स डायरेक्टर और एक्शन डायरेक्टर मूल आकल्पन के अनुरूप ही काम करते हैं। इसीलिए फिल्म को डायरेक्टर का माध्यम माना जाता है। अजय देवगन अपने सहयोगियों पर किसी किस्म का दबाव नहीं देते। यही कारण है कि रोहित शेट्‌टी ने शाहरुख खान अभिनीत 'चेन्नई एक्सप्रेस' बनाई जो शाहरुख खान के कैरियर की बड़ी सफलता है। शाहरुख खान को संभवत: यह खलता हो कि अभी तक उसकी कोई फिल्म ने आमिर खान और सलमान खान की तरह तीन सौ करोड़ से ऊपर का व्यवसाय नहीं किया। मीडिया भले ही उन्हें किंग या शहंशाह कहे परन्तु आंकड़े उनके पक्ष में नहीं हैं। 'हैजल मैट सेजल' तो सौ करोड़ भी नहीं छू पा रही है। ज्ञातव्य है कि ये सारे आंकड़े ग्रास कलेक्शन के हैं जिसका नेट उसका पचास प्रतिशत ही होता है।

अब आनंद एल. राय शाहरुख खान पर केन्द्रित फिल्म बना रहे हैं। उन्होंने 'तनु वेड्स मनु' व 'रांझना' जैसी फिल्में बनाई हैं और उनका ट्रैक रिकॉर्ड बहुत अच्छा है। शाहरुख खान के लिए यह फिल्म बहुत महत्वपूर्ण है। पचास पार की वय के सितारे के लिए हर कदम एक इम्तिहान होता है। इसी तरह युवा रनवीर कपूर के लिए भी संजय दत्त बायोपिक निर्णायक फिल्म सिद्ध होगी। राजकुमार हीरानी और आनंद एल. राय दोनों ही प्रतिभाशाली हैं और सफल-सार्थक फिल्में बना चुके हैं।

शाहरुख खान और रनवीर कपूर दोनों के कैरियर से अधिक आवश्यक है एकल सिनेमाघरों का अस्तित्व रहना। सारी असफलता की रेखाओं के अंतिम छोर पर सिनेमा मालिक ही खड़ा है। मनोरंजन कर से मुक्ति देने वाले प्रांतों में भी जी.एस.टी. लागू होने के बाद अपने को बनाए रखना कठिन हो रहा है। मल्टीप्लैक्स को तो शीतल पेय और समोसे तथा पॉपकॉर्न बेचने से अच्छी कमाई हो जाती है। एकल सिनेमा के पास यह बैसाखी भी नहीं है। फिल्म उद्योग के संगठन सभी प्रांतीय सरकारों से निवेदन कर रहे हैं कि दस ा पंद्रह रुपए सर्विस चार्ज के रूप में मिलने से ही वे बच सकते हैं और यह धन भी सरकारी खजाने से नहीं वरन् दर्शक की जेब से जा रहा है अर्थात उपभोक्ता ही अपने उद्योग को बचा सकता है। संगीत सफल फिल्मों का मेरुदंड रहा है परन्तु आज माधुर्य नदारद है। जीवन के सभी पक्षों से संगीत गायब होता जा रहा है।

जब हमने अपने पर्वतों को श्रीहीन कर दिया, जंगल समाप्त-प्राय: कर दिये, बेहिसाब वृक्ष काटकर सीमेंट के जंगल बना दिए तब प्रकृति के संगीत को भी हानि पहुंची, परिन्दों की आवाज घुट गई, यहां तक कि आज खामोशी की सिम्फनी भी नहीं बज रही है। भांय भांय करता सन्नाटा है। हम एक बेसुरे कालखंड के प्राणी हैं। रिकॉर्डिंग की टेक्नोलॉजी में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है परन्तु प्रतिभा तो टेढ़ी-मेढ़ी पगडन्डी से चलकर आती है।