सूकर जातक / भदन्त आनन्द कौसल्यायन
जातक - कथाएँ बौद्ध धर्म की तरह ही फैली हुई और व्यापक हैं , इनका रचनाकाल 500 वर्ष ई . पू . है। इनमें बुद्ध के पूर्वजन्मों की कथाएँ हैं , जो विशिष्ट गुणों , नैतिकताओं और आदर्शों को अभिव्यक्ति देती हैं।
एक दिन रात में जब धर्म-देशना हो रही थी, शास्ता ने पूर्व-जन्म की बात कही :
पूर्व समय में वाराणसी में ब्रह्मदत्त के राज्य करने के समय बोधिसत्त्व सिंह होकर पैदा हुए और हिमालय प्रदेश में पर्वत-गुफा में रहने लगे। नजदीक ही एक तालाब के आसपास बहुत-से सूअर रहते थे। उसी तालाब के आसपास तपस्वी भी पर्णशालाओं में रहते थे। एक दिन सिंह भैंसे या हाथी में से किसी को मार, पेट भर मांस खा, उस तालाब में उतर, पानी पी, ऊपर आया।
उसी समय एक मोटा सूअर उस तालाब के आसपास चरता था। सिंह ने उसे देख सोचा कि इसे किसी दूसरे दिन खाऊँगा। यदि यह मुझे देख लेगा, तो फिर न आएगा। उसके न आने के डर से वह तालाब में उतर एक तरफ को जाने लगा। सूअर ने उसे देखा, तो सोचा - यह मुझे देख, मेरे भय से सामने से न आने के कारण भागा जा रहा है। आज मुझे इस सिंह से जूझना चाहिए। उसने सिर उठाकर सिंह को युद्ध के लिए ललकारते हुए यह पहली गाथा कही -
चतुप्पदो अहं सम्म ! त्वम्पि सम्म ! चतुप्पदो।
एहि सीह ! निवत्तस्सु किन्नु भीतो पलायसि॥
(दोस्त! मैं चौपाया हूँ। तू भी चौपाया है, सिंह! आ, रुक, डरकर किसलिए भागता है?)
सिंह ने उसकी बात सुनी, तो कहा, “दोस्त! आज हमारा तेरे साथ युद्ध न होगा। आज से सातवें दिन इसी जगह पर संग्राम होगा।” इतना कह वह चला गया।
सूअर प्रसन्न हुआ कि सिंह के साथ युद्ध करूँगा। उसने अपने सब रिश्तेदारों को कह दिया। वह उसकी बात सुनकर डरे। “अब तू हम सभी को नष्ट करेगा। अपनी ताकत को न पहचानकर सिंह के साथ युद्ध करना चाहता है, सिंह आकर हम सबके प्राण ले लेगा।”
उसने भयभीत हो पूछा, “तो अब क्या करूँ?”
उन्होंने उपाय बताया, “दोस्त सूअर! तू उस जगह जाकर, जहाँ ये तपस्वी मल-मूत्र त्यागते हैं, सात दिन तक शरीर में गन्दगी लपेटकर शरीर को सुखा। सातवें दिन शरीर को ओस की बूँदों से गीला कर सिंह के आने से पहले ही आकर हवा का रुख देख, जिधर से हवा आती हो, उधर खड़े हो जाना। सिंह सफाईपसन्द होता है। वह तेरे शरीर की गन्दगी को सूँघ तुझे विजयी छोड़ चला जाएगा।”
उसने वैसे ही किया और सातवें दिन वहाँ जाकर खड़ा हो गया। सिंह उसके शरीर की गन्दगी को सूँघकर समझ गया कि उसने देह में गुह पोता है। वह बोला, “दोस्त सूअर! तूने अच्छा उपाय सोचा है। यदि तूने गुह न पोता होता, तो मैं तुझे यहीं मार देता, लेकिन अब तो मैं तेरे शरीर को न मुँह से डस सकता हूँ, न पैरों से तुझ पर प्रहार कर सकता हूँ। इसलिए मैं तुझे विजयी मानता हूँ।” इतना कह दूसरी गाथा कही-
असुचि पूतिलोमोसि दुग्गन्धी वासि सूकर।
सचे युज्झितुकामोसि जयं सम्म ! ददामि ते॥
(सूअर! तू अपवित्र गन्दे बालों वाला है। तेरे शरीर से दुर्गन्ध आती है। यदि तुझे युद्ध करने की इच्छा है, तो मैं तुझे विजयी मान लेता हूँ।)
सूअर ने अपने रिश्तेदारों को कहा, “सिंह को मैंने जीत लिया।” वे डरे कि किसी दिन आकर सिंह हम सबको जान से मार डालेगा। वे भागकर किसी दूसरी जगह चले गये।