सूखा / सुकेश साहनी
"क्या बात है? बहुत उखड़े-उखड़े लग रहे हो!" धरती से भाप के रूप में लौटे पानी से बादल ने पूछा।
"कुछ मत पूछो, भैया!" पानी ने ठंडी साँस छोड़ी, "पृथ्वी और उस पर रहने वाले सभी प्राणियों को हम एक नजर से देखते हैं, लेकिन धरती पर पहुँचते ही जिस तरह का सुलूक हमारे साथ किया जाता है उससे हमारे सभी प्रयास निष्फल हो जाते हैं।"
"तो क्या इस बार भी?"
"हाँ, वही तो...इस बार उन्होंने मुझे बोतलों में भरकर बिक्री के लिए सजा दिया था। रेलवे स्टेशन के सभी नल सूखे पड़े थे, लोग मेरी एक-एक बूंद के लिए तरस रहे थे। पर मैं कैदखाने से उन्हें टुकुर-टुकुर ताकने के सिवा कुछ नहीं कर सकता था।"
"फिर तुम मुक्त कैसे हुए?"
"वातानुकूलित यान में यात्रा कर रही एक युवती ने मुझे खरीदा, उसने मेरा इस्तेमाल टूथपेस्ट करने में किया।"
बादल सोच में पड़ गया।
"भइया," थोड़ी देर बाद बादल ने कहा, "अब मुझे इस समस्या का एक ही हल नजर आता है, हमें जनहित में अपने गुणधर्म का परित्याग कर देना चाहिए, आज से हम वहीं बरसेंगे जहाँ हमारी सबसे अधिक ज़रूरत होगी।"
पानी को बादल की बात जँच गईं। वे दोनों ऐसे ही किसी क्षेत्र की खोज में निकल पड़े।
थोड़ा रास्ता तय करने के बाद उन्होंने देखा-एक ग्रामीण युवती निर्वस्त्र हो सूखे खेत में हल चला रही थी ताकि इन्द्रदेव प्रसन्न होकर वहाँ वर्षा कर दें। वह इलाका पिछले चार सालों से सूखे की चपेट में था। इसी गाँव के तीस किसानों ने पिछले महीने गरीबी से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी।
"हमें यहीं बरसात करनी चाहिए!" दोनों एकमत थे।
उन्होंने उन सूखे खेतों पर हल्की फुहार छोड़ी ही थी कि पश्चिम दिशा से आई तेज हवा उन्हें अपने साथ उड़ा ले चली। इससे पहले कि उनकी समझ में कुछ आता, वे उस 'स्वीमींग पूल' पर बरस रहे थे जहाँ 'मिस युनिवर्स' के खिताब के लिए जमा सुंदरियाँ जल क्रीड़ा कर रही थीं।