सूट / अन्तरा करवड़े

Gadya Kosh से
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विदेश में ब्याही बेटी तीन साल बाद मायके लौटी तो घर में जैसे खुशियाँ बरस पड़ी। हर कोई उससे बात करने¸ किस्से सुनने और उसके साथ रहने को आतुर था। लेकिन बेटी थी कि अपने नखरों से ही उबर नहीं पा रही थी।


"ऊफ! कितनी गर्मी है यहाँ।"


"मेरे लिये तो बस मिनरल वॉटर। पता नहीं अब ये सूट करे या नहीं।"


"इतना सारा खाना क्यों बना लिया है? वहाँ तो ये कल्चर ही नहीं चलता। इतना सब कुछ तो हम लोग पार्टीज के लिये भी नहीं बनाते।"


"मम्मी! कितना वेट गेन कर लिया है आपने? वहाँ होती तो सबकी टोकाटोकी सुनकर जिम शुरू कर देती अभी तक।"


सबके उत्साह पर पानी फेरती हुई बिटिया वहाँ के ऐश्वर्य और यहाँ की अनहाईजिनिक कन्डीशन्स को तौलती रहती। दो दिन बाद जब "वहाँ" का बुखार उतरा तब माँ से बोली¸ "माँ! तुम्हारे हाथ के आलू के परांठे और मटर पनीर खाना है।"


"मैंने तो तेरे आने की खबर सुनते ही सोच रखा था लेकिन तेरी बातें सुनकर लगा कि अब तुझे सूट करेगा या नहीं?"


"वहाँ पकाकर खिलाने को माँ नहीं होती कहीँ। शायद इसीलिये सारी असली चीजें सूट नहीं होती माँ। अब मुझे यहाँ सब असली और शुद्ध खिलाकर पक्का नहीं बनाओगी क्या?"


माँ के हाथों में थी मटर की फलियाँ और आँखों में मोती...