सूत्रधार / अशोक भाटिया
वह बड़े-बड़े डग भरता हुआ आसमान से नीचे आया। जहाँ उतरा, वहाँ पिछले दिनों बम-ब्लास्ट से कई लोग मारे गए थे।
उसे देखकर एक वर्दीधारी इधर भागा हुआ आया। उसके हाथ में मोर्टार था, आँखों में घृणा और क्रोध की काली नदी।
उसने देखा, कोई सौ फुट ऊँची प्रतिमा जैसा विचित्र व्यक्ति सामने खड़ा मुस्करा रहा था। आँखें आधी खुली अधमुंदी, कन्धों तक फैले बाल मानो उसके विवेक को सम्हाले हुए और घुटनों तक झक्क सफेद दाढ़ी मानो ज्ञान के विस्तार को दर्शा रही थी। —कौन हैं आप और हमारे मुल्क में क्यों आए हो? - वर्दीधारी ने डर, हैरानी और चेतावनी के स्वर में पूछा। —मैं तो फकीर हूँ भाई, आज यहाँ कल वहाँ। लेकिन आप यह मोर्टार किसलिए रखे हैं? आँखों में नफरत और गुस्सा किसलिए? —ये दूसरे मज़हब वालों को ख़त्म करने के लिए है।
इतने में वर्दीधारी के कई साथी अपने आक़ा के साथ पहुँच गए। —आपका मजहब क्या कहता है? "फकीर ने आक़ा से पूछा। —दूसरे मजहब के लोगों को ख़त्म करना।" आक़ा दृढ़ता से बोला। —दूसरे धर्म वाले भी धर्म का यही मकसद बनाते जा रहे हैं। क्या यह ठीक है, बोलो? "
आक़ा से तुरंत कोई जवाब नहीं सूझा। विचित्र व्यक्ति ने तब अपनी आँखों को क्षितिज तक विस्तार दिया और कहा—देखो मेरी आँखों में। दूर तक फैली जिन लोगों की ये कब्रें हैं, हजारों सालों में इन्होने दूसरे धर्म वालों से लड़ते हुए अपनी जान गंवाई। न इन्हें कुछ नसीब हुआ, न इनके परिवार या मुल्क को। आप धर्म को लेकर अभी तक वहीँ खड़े हैं, जहाँ हजारों साल पहले आपके पूर्वज खड़े थे। " वर्दीधारी देखकर हैरान थे। कई देशों के करोड़ों लोगों की कब्रों की एक विशाल रील उस फकीर की आँखों से गुजर रही थी। यह देखकर कुछ ने आँखें बंद कर लीं, तो कुछ की आँखें फटी की फटी रह गईं।
फकीर ने इस बार अपनी नाक को दूर तक फैलाकर जमीन पर लगाया। फिर जोर से निःश्वास लेकर सांस छोड़ी। वातावरण में बहुत घनी और तीखी दुर्गन्ध फ़ैल गई। —यह हजारों सालों से धर्म और मजहब के नाम पर जो मारकाट होती रही, उसकी बदबू है। अब भी तुम लोग इसे लगातार बढ़ाते जा रहे हो। " सभी वर्दीधारियों ने अपने बाजू अपनी नाक पर रख लिए, पर इतनी घनी और तीखी दुर्गन्ध से वे बच न सके।
फकीर ने एक बार फिर अपने कान को सुदूर विस्तार दिया, जमीन से लगाया, थोड़ी देर बाद ऊपर उठाया। वातावरण में पिछले सैकड़ों वर्षों में किए गए हमलों, बम-धमाकों वगैरा की भयंकर आवाजें आने लगीं। पृथ्वी कांप उठी। सभी वर्दीधारियों ने भय के मारे कानों में उँगलियाँ ठूंस लीं और आँखें भींच लीं। पर भयंकर आवाजें उन्हें दुनिया के भयंकर इतिहास का एहसास कराती रहीं।
थोड़ी देर में भयावह शोर थमा। सन्नाटे ने जगह ली। फ़कीर ने धीरे से कहा—नहीं मिला। कुछ नहीं मिला तुम्हारे पूर्वजों को। नरक भोगकर और अपने मुल्क को नरक बनाकर गए। तुम भी अपनी राह बदल लो। अब भी सोच लो, वरना यह पृथ्वी इंसानों के रहने लायक नहीं रह जाएगी। "
कहकर फकीर तेज़ी से सूक्ष्म होता हुआ वातावरण में विलीन हो गया ...