सूरज की सिगड़ी और कविता का पन्ना / जयप्रकाश चौकसे

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सूरज की सिगड़ी और कविता का पन्ना
प्रकाशन तिथि : 24 मई 2018


महाकाल की नगरी उज्जैन में कालिदास से लेकर शिवमंगल सिंह सुमन, दिनकर सोनवलकर और चंद्रकांत देवताले तक का जिक्र होता है परंतु वात्स्यायन ने भी अपने जीवन के कुछ वर्ष यहां बिताए हैं। वात्स्यायन की रचना 'कामसूत्र' अपने ढंग की अनोखी किताब है और शायद इस विषय पर प्रथम पुस्तक भी है। इसी विषय पर चीन में ताओ ने भी ग्रन्थ लिखा है। इसका रचनाकाल वात्स्यायन का समय हो सकता है या कुछ वर्ष बाद का। वात्स्यायन और ताओ की रचनाओं में अंतर है।

बहरहाल, वात्स्यायन की पत्नी उनके एक शिष्य के साथ भाग गई। इस घटना के गहरे अर्थ हैं। यह संभव है कि वात्स्यायन अपने काम में डूबे रहे और शिष्य गुरु पत्नी की सेवा मनोयोग से करता रहा। गुरु पत्नी शिष्य की सेवा को अपने लिए प्रेम समझने लगी। यह उस तरह भी हो सकता है जैसे फिल्मकार अपनी नायिका के लिए एक छवि गढ़ता है और नायिका छवि को प्यार करते हुए फिल्मकार से प्रेम करने लगती है।

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की कथा 'घरे बाइरे' में पत्नी को अपने घर में प्रश्रय पाने वाले से डाह (ईर्ष्या) हो जाती है, क्योंकि उसके पति प्रश्रय पाने वाले व्यक्ति के गीत-संगीत पर मुग्ध है। उन दोनों के बीच मतभेद हो, वह ऐसा प्रयास करते-करते स्वयं उसके गुणों पर मुग्ध हो जाती है। इसी तरह की एक अन्य घटना यह है कि मिथिला के राजा अपने बाल सखा कवि विद्यापति को राजकवि का दर्जा देते हैं। जब राजा एक युद्ध में लंबे समय तक उलझा रहा तो उसकी पत्नी को विद्यापति से प्रेम हो गया। राजा युद्ध में विजय प्राप्त करके राजमहल लौटा तो उसे प्रेम के क्षेत्र में असफलता का सामना करना पड़ा। बात अवाम तक पहुंची तो रानी ने आत्महत्या कर ली।

बहरहाल, दिनकर सोनवलकर भी उज्जैन की काव्य परम्परा की महत्वपूर्ण कड़ी हैं। यह सर्वमान्य है कि कला क्षेत्र का काम सर्वकालिक होना चाहिए। वर्षों पूर्व दिनकर सोनवलकर की कविता 'पेंशनर' सेवानिवृत लोगों की पीड़ा की अभिव्यक्ति है। आज भारत में पेंशनर बहुत बड़ा वर्ग हो गया है और पेंशन देने के भार से सरकार चिंतित है। एक दौर ऐसा भी हो सकता है कि पेंशन की राशि देश के बजट का बड़ा हिस्सा बन जाए। दिनकर सोनवलकर की पंक्तियां हैं, 'लंबी उमर तक जीवित रहना ही इनका अपराध है शायद, क्योंकि हर महीने इन्हें प्रमाणित करना होता है कि ये मरे नहीं जिंदा हैं, जमाने के सलूक और खुद पर शर्मिंदा हैं'। ज्ञातव्य है कि उदय प्रकाश की एक कथा में व्यक्ति अपने जीवित होेने के प्रमाण की जद्‌दोजहद में खप जाता है। अपने पिता के लिए उन्होंने एक कविता लिखी है, 'सच पूछिए तो उनको अब उस पुराने ईश्वर से सरोकार नहीं रहा, फिर महंगाई ने भी नाक में दम कर रखा है, बीवी बच्चों को रोटी कपड़ा दें या आरती उतारें (उस ईश्वर की)'। सभी सृजनकर्मी अपने पिता पर कुछ लिखते हैं। ज्ञानरंजन की कहानी 'पिता' और दिनकर सोनवलकर के पिता की स्मृतियां अलग हैं परंतु आदर और दर्द का एक तार उन्हें जोड़ता है। भास्कर के पूर्व संपादक श्रवण गर्ग ने भी पिता पर कविता लिखी है।

दरअसल, दिनकर सोनवलकर को पहले जाना गया उनकी व्यंग्य कविताओं के लिए गोयाकि आरके लक्ष्मण के कार्टून की तरह आम आदमी की कठिन जीवन यात्रा पर वे लिखते रहे। हमारे साहित्य में छवियों की फ्रेम में सृजनकर्ता को फ्रेम करके दीवार पर टांगने का शौक रहा है परंतु स्थिर फोटोग्राफ और चलायमान मनुष्य में बहुत अंतर होता है। दिनकर सोनवलकर ने विज्ञान की सदी में महानगरीय उन्मुख जीवन के कारण परिवारों में हो रहे विघटन पर लिखा है- आश्रयदाता घर में/ दरारें पड़ गई हैं हर कमरे में/ गलतफहमी की मकड़ी संशय का जाल बुन रही है/ बार-बार सीमेंट लगाने के बावजूद उखड़ ही जाता है स्नेह का पलस्तर। दरअसल, विभाजन विघटन एक सतत जारी रखने वाली प्रक्रिया है। सूक्ष्मतम अणु को विभाजित करते ही ऊर्जा का जन्म होता है। इसी तरह विभाजन और विघटन से संवेदनाएं नष्ट होती हैं परंतु गौरतलब यह है कि इसके बावजूद मानवीय करुणा का प्रवाह सतत जारी रहता है। आज़ादी के बाद रोजी-रोटी की तलाश में महानगरों की ओर पलायन के कारण संयुक्त परिवार नामक महान संस्था नष्ट हो गई है। पाठशालाओं में अक्षर ज्ञान और गणित सिखाया जाता है, नैतिकता और वैचारिक मतभेद के बावजूद करुणा को कायम रखना संयुक्त परिवार में होता था परंतु इस संस्थान के विघटन से ही संस्कार और नैतिक मूल्यों का भी पतन होने लगा। इस सामाजिक यथार्थ को दिनकर सोनवलकर ने अपनी कविताओं में प्रस्तुत किया।

सामंतवादी दौर में महाराजा और बादशाह दरबारी इतिहासकार नियुक्त करते थे। दूसरी तरह का इतिहास वह होता है, जो युद्ध में शामिल सैनिक के दृष्टिकोण को प्रस्तुत करता है। इतिहास लेखन में तटस्थ होना कठिन होता है। केवल कवि ही करुणा का इतिहास जस का तस प्रस्तुत करता है। किसी भी कालखंड में आम आदमी का दर्द केवल कविता में ही उपलब्ध हो सकता है। आज सोनवलकरजी का जन्मदिवस है।

हमारे यहां शरीर के रोगों का निदान करने वाले को वैद्यराज कहते हैं। कवि समाज और समय के रोगों को प्रस्तुत करता है, इसलिए उसे कविराज कहते हैं। समाज की नाड़ी केवल कवि ही समझ सकता है। गुलज़ार साहब का कहना है कि जब सूरज की सिगड़ी बुझने लगेगी तब पृथ्वी से कविता का एक पन्ना उस सिगड़ी को फिर से दहका देगा।