सूरत-सीरत, भीतर हैं सारे तीरथ / जयप्रकाश चौकसे

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सूरत-सीरत, भीतर हैं सारे तीरथ
प्रकाशन तिथि : 22 नवम्बर 2021


जीवन और सृष्टि हमेशा हमें आश्चर्यचकित करते हैं। हम एक किताब पढ़ते हैं तो हमें हमारे सारे अज्ञान की जानकारी मिलती है कि अभी कितना और पढ़ना है। यह क्रम चलता रहता है। सैकड़ों किताबें पढ़ने के बाद हमें अपने अज्ञान की जानकारी बड़ी शिद्दत से होती है। गौरतलब है ज्ञान के एक कार्यक्रम में कबीर के लिखे दोहे को मीरा का लिखा बताया गया!

बहरहाल, इटली में स्थित एक छोटे से कस्बे की आबादी महज 2 हजार है। लेकिन इसमें बदसूरती को आभा मंडित किया जाता है। अन्य स्थानों के 30 हजार लोग इस दल से जुड़ गए हैं। ज्ञातव्य है कि प्रसिद्ध सोफिया लारा इटली की रहने वाली रही हैं। वहां की समशीतोष्ण जलवायु फल-फूल प्रदान करती है और नागरिकों को सुंदर बनाती है। गौरतलब है कि दूसरी ओर इटली से सटे हुए सिसली से संगठित अपराध के बहुत से लोग आए हैं। मारियो पुजो के उपन्यास ‘गॉडफादर’ में प्रस्तुत किया गया है कि अमेरिका में संगठित अपराध को जन्म सिसली में आकर अमेरिका में बसे लोगों ने दिया है।

‘द सिसिलियन क्लैन’ नामक फिल्म भी बनी है। भारतीय फिल्म ‘अग्निपथ’ इसी फिल्म की प्रेरणा से दो बार बनी है। बहरहाल, बदसूरती को आभा मंडित करने का असली उद्देश्य यह है कि मनुष्य में भीतरी चारित्रिक सौंदर्य को बढ़ाया जाए। सौंदर्य प्रधान उद्योग को इससे झटका लग सकता है। हल्दी और चंदन से त्वचा में चमक आ जाती है। इसलिए शादी में दूल्हा-दुल्हन को हल्दी लगाने की रस्म होती है। संगीतकार रवींद्र जैन ने लिखा कि ‘गुण-अवगुण का डर भय कैसा, जाहिर हो, भीतर तू है जैसा।’ यह गीत किसी फिल्म में नहीं लिया गया। एक सच्ची घटना है कि दिल्ली के एक शायर ने प्रसिद्ध और सफल फिल्मकार की एक फिल्म में गीत लिखने से इनकार इस आधार पर किया कि फिल्म का संगीतकार कुरूप है और वह उसके साथ काम नहीं करेगा।

यह भी सत्य है कि एक शायर निहायत ही कुरूप था परंतु मुशायरे में अपनी रचना पढ़ते समय आकर्षक लगने लगता था। आंतरिक सौंदर्य विभिन्न माध्यमों से उजागर होता है। मानसरोवर का पानी सुबह पिघले हुए सोने की तरह लगता है। जैसे-जैसे सूर्य की यात्रा आगे जाती है, मानसरोवर का रूप बदलता जाता है। संभवत: यह मानसरोवर के पहाड़ों से घिरा होने और सूर्य किरणों के कोण बदलने के कारण संभव हो पाता है। फिल्मी गीत है, ‘पानी-पानी रे तेरा रंग कैसा, जिसमें मिला दो लगे उस जैसा।’ नूतन के पति कमांडर बहल की फिल्म का नाम था ‘सूरत और सीरत’ जिसमें चारित्रिक गुणों का महिमा गान प्रस्तुत किया गया था। इतने महान विचार प्रस्तुत करने वाले कमांडर बहल स्वयं ही एक भ्रम के शिकार हो गए जब उन्होंने नूतन पर संदेह अभिव्यक्त किया। उन्हें लगा कि नूतन संजीव कुमार से प्रेम करती हैं। दरअसल वे एक-दूसरे की प्रतिभा का आदर करते थे। बहल ने अपनी पत्नी नूतन से आग्रह किया कि वे स्टूडियो में सबके सामने संजीव को थप्पड़ मारें। संजीव ने नूतन की दुविधा उनके चेहरे पर पढ़ ली और उन्हें अपने पति की बात मान लेने का आग्रह किया। नूतन ने अत्यंत संकोच और लज्जा के भाव से संजीव को थप्पड़ मारा। संजीव ने बुरा नहीं माना और स्टूडियो में मौजूद किसी भी व्यक्ति ने दुखद दशा पर कोई प्रतिक्रिया ना देते हुए अन्य दिशा में देखने लगे।

बद्रीनाथ चतुर्वेदी की महाभारत की व्याख्या करने वाले ग्रंथ में श्लोक का अर्थ इस तरह है कि अनिर्णय भ्रांति पैदा करता है, वैचारिक धुंध उत्पन्न करता है, एक किस्म की सुस्ती पैदा करता है। यह तमस से अलग प्रकार की दिमागी दशा है।

सुंदरता और कुरूपता मनुष्य का चरित्र तय करती है। ये मोह-माया के जाले हैं। इसलिए माना जाता है कि स्वयं को जान लेना ही सबसे महत्वपूर्ण बात है।