सूर्य की बात / जयप्रकाश मानस

Gadya Kosh से
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सूरज अपनी माँ, आकाशगंगा, से अनंत काल बाद मिल रहा था। उसकी किरणें आज कुछ मद्धम थीं, मानो युगों की थकान उनमें समा गई हो। माँ ने अपने विशाल, तारों भरे आलिंगन में उसे समेटते हुए पूछा, "बेटा, दुनिया कैसे लगी? अँधेर ठीक से छँट रहा है न?"

सूरज ने एक गहरी साँस ली, जैसे सारी सृष्टि का बोझ उसकी किरणों पर लदा हो। "माँ, क्या बताऊँ... मैं हार गया। असंख्य युगों से मैंने सबके घर एक समान रोशनी बाँटी। हर प्राणी, हर पौधे, हर नदी को बराबर उजाला दिया। न कोई भेद, न कोई पक्षपात। लेकिन आज भी..." उसकी आवाज़ में एक अनकही पीड़ा थी, जो माँ ने तुरंत भाँप ली।

"लेकिन क्या, बेटा?" माँ की आवाज़ में पहली बार निराशा की छाया झलकी। आकाशगंगा के तारे थम-से गए, मानो सूरज की बात सुनने को आतुर हों।

"माँ, धरती पर इंसान ने सब कुछ बदल दिया है। वह कहता है कि मेरी रोशनी उसकी है, हवा उसकी है, पानी उसका है। उसने धरती को टुकड़ों में बाँट लिया और हर टुकड़े पर अपना नाम लिख दिया। लेकिन माँ, क्या कोई मेरी किरणों पर दावा कर सकता है? क्या कोई हवा को बाँध सकता है? मैंने तो सबको बराबर बाँटा, फिर भी कुछ लोग सारी धरती को अपने कब्जे में लेना चाहते हैं।"

माँ चुप थी। उसकी चुप्पी में सृष्टि की सारी कहानियाँ गूँज रही थीं। सूरज ने आगे कहा, "माँ, दुनिया के अमीरों ने सबका जीना मुश्किल कर दिया। कुछ लोग मेरी रोशनी को विशाल काँच के महलों में क़ैद कर लेते हैं, जबकि लाखों लोग झुग्गियों में अंधेरे में जीते हैं। नदियों को बाँधकर वह पानी को बेचते हैं, जंगलों को काटकर वे हवा को जहरीला करते हैं। मेरी रोशनी, जो मैंने सबके लिए बनाई थी, अब उनके लिए सिर्फ़ सोना उगलने का ज़रिया बन गई है।"

आकाशगंगा की आँखों में एक तारा टिमटिमाया, मानो आँसू बनकर गिरने को तैयार हो। "बेटा, क्या वे नहीं समझते कि ये सब उनका नहीं, सबका है?"

"समझते हैं, माँ," सूरज ने कहा, "लेकिन लालच उनकी आँखों पर पर्दा डाल देता है। मैं हर सुबह उगता हूँ, हर शाम ढलता हूँ और हर बार सोचता हूँ कि शायद आज वह बदल जाएँ। शायद आज वह मेरी रोशनी को बाँट लें, नदियों को आज़ाद कर दें, हवा को साफ़ रखें। लेकिन हर बार मेरा दिल टूटता है।"

माँ ने गहरी साँस ली। "बेटा, तू हार मत मान। तू सूरज है। तेरी रोशनी में वह ताकत है जो अंधेरे को चीर सकती है। शायद एक दिन वह समझ जाएँ कि धरती उनकी नहीं, वह धरती के हैं।"

सूरज ने हल्के से मुस्कुराया। "माँ, मैं कोशिश करूँगा। लेकिन अगर वे नहीं बदले, तो-तो शायद एक दिन मैं भी थक जाऊँगा।"

आकाशगंगा ने उसे अपने आलिंगन में और कस लिया। "तू थकेगा नहीं, बेटा। तू सूरज है और सूरज कभी नहीं थकता।"

सूरज चुप रहा। लेकिन अगली सुबह, जब वह फिर उगा, उसकी किरणों में एक नई चमक थी। शायद ये चमक किसी के दिल को छू ले। शायद ये चमक एक नई शुरुआत हो। -0-