सूर्य गिरा है अभी-अभी नीचे / राजेन्‍द्र नागदेव / ओम निश्चल

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नीरवता में घुलते हुए दृश्‍यबंध
--ओम निश्‍चल

पुस्तक: सूर्य गिरा है अभी अभी नीचे
रचनाकार: राजेन्‍द्र नागदेव
प्रकाशक: नमन प्रकाशन,अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्‍ली
मूल्‍य: 150 रुपये


राजेन्‍द्र नागदेव को कविताएँ लिखते हुए अरसा हो गया। अब तक छह संग्रह आ चुके हैं किन्‍तु क्‍या वजह है कि हिंदी की मुख्‍य धारा के कवियों में वे शुमार नहीं होते। यह टिप्‍पणी न केवल नागदेव पर बल्‍कि हिंदी आलोचना की सुस्‍त रफ्तार पर भी है कि वह अपने को लगातार अद्यतन करती करती हुई नहीं दीखती। गतानुगतिकता के हामी कुछ नामावलियों की आवृत्‍तियों से बाहर नहीं जा पाते। जब कि नागदेव ने कविताओं में जीवन और समय के अनेक सवालों को अपने सुचिंतित आवेग में उठाया है। सूर्य गिरा है अभी अभी नीचे उनका सातवॉं कविता संग्रह है। कहना न होगा कि पेशे से वास्‍तुकार नागदेव कविता के भी सिद्ध वास्‍तुकार लगते हैं जिसके सरोकार जीवन और कविता से गहरे जुड़े हैं।

बयालीस कविताओं के इस संग्रह में राजेंद्र नागदेव ने अपने जीवनानुभवों की चाक्षुष व्‍यंजनाऍं संजोई हैं। पहली ही कविता कहॉ थी मरी हुई चिड़िया आज की न्‍याय प्रक्रिया पर कटाक्ष करती है। प्रश्‍नों के उमड़ते घुमड़ते आवेग में कवि अंत में यह कह कर जैसे कविता के निहितार्थ पर जैसे रोशनी डालता है कि :

लाचार था जहॉंगीर
जैसे अक्‍सर इन दिनों उसे होना पड़ता है।

दूसरी कविता –

इस साल वह नहीं आई—
चिड़ियों के बहाने

छिनते हुए आकाश और उजाड़ होती प्रकृति पर गहरा शोक कवि ने व्‍यक्‍त किया है। बकौल कवि:

इस साल नहीं आई वह
कटे होंगे कुछ और पेड़
सूखी होंगीकुछ और नदियॉं
झीलों की जगह उगे होंगे कांक्रीट के और जंगल
सबके बीच वह ढूढ़ती रही होगी
घोसले के लिए जरा-सी जगह।

कवि को पत्‍तियों का झरना विचलित करता है। उसे लगता है जैसे वह ही झर रहा है उम्र के वृक्ष से। यह वानस्‍पतिक क्रिया केवल पत्‍ती के झरने का नहीं, जीवन के अवसान का संकेत भी देती है। याद आती हैं कैलाश वाजपेयी की पंक्‍तियॉ:

किसी भी पत्‍ती का मुरझाना सार्वजनिक शोक हो
 जो आदमी आदमी के बीच खाईं हों
ऐसे सब ग्रंथ अश्‍लील कहे जाऍं।

नागदेव ने नंगे पॉंवों के सफर के बहाने मकबूल फिदा हुसैन को याद किया है जिसकी हथेलियों की अमिट छाप इस सदी के कैन्‍वस पर पड़ी है। उन्‍होंने हुसैन के भीतर कई कई हुसैन की छवियों को आत्‍मसात किया है।

नागदेव ने यहॉं महानगरों की स्‍मृतियॉं भी टॉंकी हैं। हार्बर लाइन में दिल्‍ली से होते हुए मुम्बई के अतीत का सफर कितना बारीक कितना सूक्ष्‍म है। कवि के ब्‍यौरे इतने बिम्‍बधर्मी हैं कि पुराने बम्‍बई की खटरपटर की याद ताजा हो जाए। अंधेरी स्‍टेशन यक्ष्‍मा के रोगी सा खांसता दिखता है तो हार्बर लाइन रेल किसी मालगाड़ी की सत्‍यप्रतिलिपि जैसी। रेल की खिड़कियों की सलाखें मुम्‍बई की हवा में घुले नमक से क्षीणप्राय हो गयी हैं कि जैसे भुरभुराकर बिखर जाऍं। पूरी की पूरी हार्बर लाइन एक कलावीथि की तरह लगती है। फुटपाथ पर गुजरते हुए लगता है प्रदर्शनी का हिस्‍सा हों। मुम्‍बई को देखने का एक ढंग ऊँचाई से मुम्बई में भी दिखता है। जैसे एक संसार में गुँथे हुए अनेक संसार। ऐतिहासिक भीमबेटका को एक कवि की आंखों से निहारते हुए समानांतर बहती दो नदियों के किनारों पर खड़े हुए जैसे दो युगों को एक साथ जीने का अनुभव करते हैं।

नागदेव यायावर प्रकृति के इंसान हैं। इन कविताओं में उनकी यायावरी की शिनाख्‍त की जा सकती है। कार्बेट नेशनल पार्क का बाघ उन्‍हें रोमांचित करता है तो उत्‍तर जीवन में उड़ान नए अनुभवों से भरती है। स्‍टैच्‍यू आफ लिबर्टी समेत न्‍यूयार्क की अट्टालिकाऍं और अटलांटिक महासागर की हिलोरें उनकी कविताओं के कैनवस में रंग भरती हैं तो डब्‍लिन शहर की नीरवता जहॉं मनुष्‍य की आवाज तक दुर्लभ है--ठंडी रात में न्‍यागरा जल प्रपात के अंधकार में मिल कर एक अलग दृश्‍य बंध रचती हैं। लेकिन कवि ने यहां एक ऐसे सन्‍नाटे की ख्‍वाहिश जाहिर की है जिसमें चींटियों के रेंगने तक की आवाज न हो---पत्‍तियों के झरने तक की आवाज न हो---क्‍योंकि ऐसे ही विरल सन्‍नाटे में वह एक बच्‍चे के चलने की अनाम पदचाप सुनना चाहता है जो किसी बाँसुरी, किसी जलतरंग, सितार के सुर से भी अधिक मधुर---एक विशुद्ध मनुष्‍य की पदचाप हो।

कवियों की वाणी में कल्‍पना और यथार्थ का सहकार होता है। वह अपने शब्‍दों से मनुष्‍य में उम्‍मीद का संचार करता है। चिड़ियों ने फिर तिनके उठाए मामूली चिड़िया के इसी साहस का प्रतीक है जो आंधी में घोंसले का तिनका तिनका बिखर जाने के बाद फिर चोंच से तिनका उठाती है और उजड़े हुए घर को फिर से सजाती हैं। नागदेव की कविताओं में जीवन के सूक्ष्‍म से सूक्ष्‍म बिम्‍ब गुँथे मिलते हैं जैसे हम किसी चित्र संयोजन या कोलाज का अवलोकन कर रहे हों---जहॉं कवि महसूस करता है---मन की कंदराओं में बजता हुआ निर्विराम एक अवरोही स्‍वर---नीरवता में घुलता हुआ सा। नागदेव की कविता ऐसे ही जीवनानुभवों से अपने स्‍थापत्‍य को सींचती सँवारती है।