सूली पर चढ़ते हुए / खलील जिब्रान / सुकेश साहनी
(अनुवाद :सुकेश साहनी) मैंने लोगों से चिल्लाकर कहा, "मैं सूली पर चढूँगा!"
उन्होंने कहा, "हम तुम्हारा खून अपने सिर क्यों लें?"
मैंने जवाब दिया, "पागलों को सूली पर चढ़ाए बगैर तुम कैसे उन्नति कर सकोगे?"
वे सतर्क हो गए और मैं सूली पर चढ़ा दिया गया। इससे मुझे शान्ति मिली।
जब मैं धरती और आकाश के बीच झूल रहा था तो उन्होंने मुझे देखने के लिए सिर उठाया। उनके चेहरे चमक रहे थे क्योंकि इससे पहले कभी उनके सिर इतने ऊँचे नहीं हुए थे।
मेरी ओर देखते हुए उनमें एक ने पूछा, "तुम किस पाप का प्रायश्चित कर रहे हो?"
दूसरे ने चिल्लाकर पूछा, "तुमने अपनी जान क्यों दी?"
तीसरे ने कहा, "तुम क्या सोचते हो, इस तरह तुम दुनिया में अमर हो जाओगे?"
चौथा बोला, "देखो, कैसे मुस्करा रहा है? सूली पर चढ़ने की पीड़ा को कोई कैसे भूल सकता है?"
तब मैंने उन्हें उत्तर देते हुए कहा, " मेरी मुस्कान ही तुम्हारे सवालों का जवाब है। मैं किसी तरह का प्रायश्चित नहीं कर रहा, न ही मैंने कुछ त्यागा है, न मुझे अमरता की कुछ चाहत है और न ही भूलने के लिए मेरे पास कुछ है। मैं प्यासा था और यही एक रास्ता बचा था कि तुम मेरे खून से ही मेरी प्यास बुझाओ. भला एक पागल आदमी की प्यास उसके खून के अलावा और किसी चीज से बुझ सकती है! तुमने मेरे मुंह पर ताले लगाए इसलिए मैंने तुमसे अपनी कटी जबान मांग ली। मैं तुम्हारी छोटी-सी दुनिया में कैद था इसलिए मैंने बड़ी दुनिया चुन ली। अब मुझे जाना है, उसी तरह जिस तरह से दूसरे सूली पर चढ़ने वाले चले गए. यह मत समझना हम सूली पर चढ़ाए जाने से उकता गए है—अभी तो हमें तुम्हारी जैसी दुनिया के दूसरे लोगों द्वारा बार-बार सूली पर चढ़ाया जाता रहेगा।