सृजन क्षेत्र में जुगलबंदी / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 24 फरवरी 2020
फिल्मकारों के प्रिय कलाकार होते हैं, जिन्हें वे बार-बार अपनी फिल्मों में लेते हैं। सत्यजीत रे की 27 में से 14 फिल्मों में सौमित्र चटर्जी ने अभिनय किया है। महबूब खान अपनी अधिकांश फिल्मों में दिलीप कुमार को लेना चाहते थे। गुरु दत्त रहमान को महत्वपूर्ण भूमिकाएं देते थे। संघर्ष के दिनों में वे दोनों गहरे मित्र रहे। इसी तरह गुरु दत्त जॉनी वॉकर को भी अधिक अवसर देते थे। फिल्मकार शंकर बार-बार रजनीकांत के साथ काम करते रहे हैं।
फिल्मकार आर. बाल्की अमिताभ बच्चन के साथ फिल्में करते रहे हैं। यहां तक कि उन्होंने अपनी एक फिल्म का नाम ‘शमिताभ’ रखा। यश चोपड़ा और आदित्य चोपड़ा ने शाहरुख खान के साथ फिल्में कीं। चरित्र भूमिकाएं करने वाले रशीद खान राज कपूर और देव आनंद की फिल्मों में देखे गए। फिल्मकार हिंगोरानी ने सभी फिल्में धर्मेंद्र के साथ बनाईं, जिन्हें उन्होंने पहला अवसर भी दिया था। ऋषिकेश मुखर्जी ने जया ‘भादुड़ी’ और असरानी को अपनी फिल्मों में बार-बार लिया। सुभाष कपूर, सौरभ शुक्ला को अवसर देते रहे हैं। सुभाष घई ने अनिल कपूर के साथ बहुत फिल्में की हैं। उनकी फिल्म ‘ताल’ में अनिल कपूर ने नकारात्मक भूमिका अभिनीत की।
करण जौहर ने कहा था कि वे बिना शाहरुख खान के किसी फिल्म का आकलन नहीं कर पाएंगे, परंतु ऐसा हुआ नहीं। गोविंदा, डेविड धवन के मनपसंद कलाकार रहे हैं। मणिरत्नम, ऐश्वर्या राय बच्चन को बार-बार लेते रहे हैं। मनमोहन देसाई की सभी फिल्मों में जीवन खलनायक की भूमिका में लिए गए। राज कपूर के आखिरी दौर में कुलभूषण खरबंदा और रजा मुराद को बार-बार लिया गया। विदेशों में भी फिल्मकार अपने प्रिय कलाकारों के साथ बार-बार काम करते रहे हैं। विटोरियो डी सिका ने अपनी फिल्मों में मार्सेलो मास्ट्रोयानी को दोहराया है। कार्लो पोंटी की फिल्मों की नायिका सोफिया लॉरेन रही हैं। कुछ फिल्मकारों ने हमेशा अपने प्रिय संगीतकारों के साथ काम किया है। अमिया चक्रवर्ती और किशोर साहू, शंकर-जयकिशन के साथ काम करते रहे। निर्माता कमाल अमरोही ‘दिल अपना प्रीत पराई’ के लिए नौशाद या गुलाम हैदर को लेना चाहते थे, परंतु निर्देशक किशोर साहू, शंकर जयकिशन के साथ ही काम करना चाहते थे। यहां तक कि इस बात पर फिल्म भी छोड़ने तक तैयार हो गए।
साउंड रिकॉर्डिस्ट अलाउद्दीन खान साहब ने केवल राज कपूर के लिए काम किया। परिवार की जिद के कारण संजय खान के सीरियल ‘टीपू सुल्तान’ के लिए वे कठिनाई से तैयार हुए थे। टीपू सुल्तान के सेट पर आग लगने के कारण अलाउद्दीन खान की मृत्यु हो गई। राज कपूर ने ‘आवारा’ (1951) से ‘राम तेरी गंगा मैली’ (1985) तक कैमरा मैन राधू करमाकर के साथ ही काम किया। सुभाष घई हमेशा आनंद बख्शी के साथ ही काम करते रहे। सुभाष घई की अधिकांश फिल्मों में लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने संगीत दिया। अपनी फिल्म ‘ताल’ के लिए वे ए.आर.रहमान के पास पहुंचे, परंतु आनंद बख्शी का साथ उन्होंने नहीं छोड़ा। जब आनंद बख्शी अस्पताल में अपना इलाज करा रहे थे तब उन्होंने एक गीत लिखा... ‘मैं कोई बर्फ नहीं कि पिघल जाऊंगा, मैं कोई हर्फ नहीं कि मिट जाऊंगा, मैं बहता दरिया हूं बहता रहूंगा, किनारों में मैं कैसे सिमट जाऊंगा।’
दरअसल सभी क्षेत्रों में जोड़ियां बन जाती हैं। बिना कुछ कहे भी एक-दूसरे की बात को समझ लेने की क्षमता उत्पन्न हो जाती है। आपसी समझदारी के कारण टीम बन जाती है। प्राय: फिल्म निर्माण को टीमवर्क कहा जाता है, परंतु सत्य है कि फिल्मकार के आकल्पन को ठीक से समझकर लोग काम करते हैं। इसलिए फ्रांस के आलोचकों ने यह विचार रखा कि जैसे किताब का श्रेय लेखक हो जाता है, वैसे फिल्म का श्रेय निर्देशक हो जाता है। यहां आपसी समझदारी का यह अर्थ नहीं है कि किसी मुद्दे पर मतभेद नहीं होता। आपसी समझदारी में विरोध को सादर स्थान दिया जाता है और तर्क सम्मत बात स्वीकार की जाती है। रिश्ते की गहराई और मजबूती इस बात पर निर्भर करती है कि विरोध करते हुए भी तर्क द्वारा लिए गए निर्णय का सम्मान सब पक्ष करते हैं। कुछ लोग अपने पूर्वागृह से कभी मुक्त नहीं हो पाते। एक विभाजनकारी कानून की मुखालफत जगह-जगह हो रही है, परंतु अपने अहंकार के कारण उसे खारिज नहीं किया जा रहा है। केदार शर्मा अपनी सब फिल्मों में गीता बाली को लेते थे। एक फिल्म में गीता बाली के लिए कोई भूमिका नहीं थी तो उसने जिद करके पुरुष की भूमिका अभिनीत की। फिल्म असफल रही, क्योंकि दर्शक यह मानते रहे कि गीता बाली अपने सच्चे स्वरूप में आकर फिल्म के क्लाइमैक्स को उत्तेजक बना देंगी। अहंकार हादसे ही रचता है। ताराचंद बड़जात्या की फिल्म ‘दोस्ती’ का एक पात्र अंधा है दूसरे के पैर नहीं। जोड़ी बनकर वे मंजिल पर पहुंच जाते हैं।