सेटिंग / अन्तरा करवड़े

Gadya Kosh से
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मिश्राजी ने देखा¸ वही कम बालों वाला छितरी सी मूछों का मनुष्य घर के बाहर आकर मीटर रीड़िंग ले रहा है।

"अरे इससे तो अपनी सैटिंग है!" वे मन ही मन बड़बड़ाए और लगभग दौड़ ही पड़े।


"अरे अली भाई ऽऽ!"


अली भाई दरवाजे के बाहर कदम ही रख रहे थे कि यह आवाज उन्हें लौटा लाई। आखिर मिश्राजी ने उनसे बड़ी जान पहचान निकाल रखी थी। और आजकल इसके सिवाय कहाँ कोई काम होता है भला। यह मीटर रीडिंग करने आने वाला शख्स वैसे तो अच्छा भला मालूम होता था।


फिर बातों ही बातों में मिश्राजी इन लोगों की सैटिंग के विषय में जान पाए थे। एक निश्चित रकम रीडर की जेब में और लगभग हर महीने एवरेज बिजली का बिल।


"अरे मैंने कहा जनाब चाय पानी तो लिये जाते गरीबखाने से!" मिश्राजी कुछ ज्यादा ही बोल गये है ऐसा उनकी पत्नी को लगा। और अली भाई अभ्यस्त की भाँति बैठ भी गये। दौर चल पड़ा तो बारिश के बहाने चाय के साथ भजिये भी तले गये और पूरे ड़ेढ़ घण्टे की आवभगत के बाद अली भाई तृप्त मन से वहाँ से

निकले।


इधर मिश्राजी खैर मना रहे थे कि इस बार का बिल तो एवरेज ही आएगा। लेकिन पन्द्रह दिनों के बाद ड़ेढ़ हजारी रकम के आँकड़े सामने देख उनकी त्यौरियाँ चढ़ गई।


"आने तो दो अब इस अली भाई को" वे मन ही मन बड़बड़ाए।


फिर कुछ दिनों बाद जब उन्होने सफाई के बहाने से मीटर का बक्सा खोला तब तेज गति से घूमते चक्के को देख हैरान रह गये। पूरे घर की जाँच पड़ताल की उन्होने कि कहीं कोई घरेलू यंत्र ज्यादा बिजली तो नहीं खींच रहा? यहाँ तक कि पूरे घर की सभी बिजली से चलने वाली वस्तुएँ बंद कर देने के बाद भी मीटर का चक्का था कि सामान्य गति से घूमता ही जा रहा था।


"जरूर कुछ गड़बड़ है" वे मन ही मन में बोले।


"ये अली भाई से ही पूछना होगा कि क्या माजरा है! आखिर सैटिंग है उससे अपनी।" उन्होने तय तो किया लेकिन अली भाई को वापिस उनके घर की मीटर रीड़िंग लेने आने के लिये अभी काफी समय शेष था।


एक छुट्टी के दिन उन्होने अपनी सुबह की सैर के दौरान देखा कि उनके घर के पिछवाड़े की झोपड़ियों में से एक पर एक चौदह पन्द्रह वर्ष का किशोर ऊँचाई पर चढ़ा हुआ एक तार से दूसरा तार जोड़ रहा है। मिश्राजी ने उस तार को गौर से देखा तो उन्हें आश्चर्य हुआ। यह तार तो उनके घर के पीछे से आ रही थी।


"अच्छा ! तो ये माजरा है!" वे किला फतह करने की सी मुद्रा में बोले। "अभी पकड़ता हूँ इसे।" कहकर वे आगे बढ़े ही थे कि उन्हें सामने से भागवत साहब आते दिखाई दिये। मिश्राजी को याद आया कि किस प्रकार पिछली बार किसी बात को लेकर भागवत साहब का इन लोगों से विवाद हुआ था और ये बाल - बाल बचे थे।


उस समय तो वे सीधे घर पर आने के लिये निकले पर यह ठान लिया कि अली भाई से चर्चा कर इसकी रिपोर्ट जरूर लिखवाएँगे। आखिर ये झोंपड़ी वाले उनके दिये पैसों पर बिजली का इस्तेमाल कर रहे है। सब कुछ क्या मुफ्त में मिलता है? यही सब कुछ सोचते सोचते उन्होनें घर की राह ली। लेकिन अनजाने ही उनके कदम अली भाई के मुहल्ले की ओर बढ़ चले। एक बार उन्होंने अस्पष्ट सा पता बताया जरूर था। उसी के आधार पर उन्होंने उन तंग गलियों में वह घर ढूँढ़ निकाला।


आवभगत और चाय पानी के बाद वे मुद्‌दे पर आए¸ "अरे अली भाई! आप तो अपनी सैटिंग के हिसाब से चल ही रहे होंगे लेकिन इन दिनों पिछवाड़े की झोपड़पट्टी के लोगों ने नया ही नाटक शुरू किया है।" मिश्राजी किसी नवीन तथ्य के रहस्योद्‌घाटन से पहले की सी चुप्पी गहराकर आगे बोले¸ "अरे तार खींचकर अपने टापरे में रौशनी करते है ये लोग। अभी - अभी देखा मैंने और सीधा आपके पास दौड़ा चला आया हूँ। अब बताईये कि इन चोरों को कैसे सबक सिखाया जाए।"


आशा के विपरीत¸ अली भाई थोड़े गंभीर हो उठे। किसी भी तरह से वे बातचीत के मुद्‌दे को टालते हुए इधर उधर की उड़ाते रहे। साथ ही ये भी कहा कि एक दो महीनों के बाद अवैध बिजली लेने वालों के खिलाफ सरकारी मुहिम शुरू होने वाली है। ऐसे में अभी से इन लोगों से झगड़ा क्यों मोल लिया जाए? फिर मिश्राजी को भी तो उसी इलाके में रहना है। बिजली बिल के हजार पाँच सौ के लिये वे घर की सुरक्षा तो खत्म नहीं कर सकते थे।


खैर! मिश्राजी उल्टे पाँव घर लौट आए। उन्हें रह रहकर यह बात परेशान कर रही थी कि आखिर उनकी सैटिंग में क्या कमी रह गई जो इतना भारी बिल भरना मजबूरी बन गया!


उस दिन मिश्राजी के घर की कामवाली बाई छुट्टी पर थी और बदले में पिछवाड़े के झोपड़े की बाई को दे गई थी। उसकी बातचीत बातचीत में जब पिछली रात के टेलीविजन सीरियल का जिक्र आया तब मिश्राजी की श्रीमतीजी ने पूछ ही लिया¸


"क्यों बाई! तुम्हारे इलाके में तो बिजली का कनेक्शन ही नहीं है फिर तुम टी वी कैसे देखती हो?"


"वो बाई ऐसा हे कि मीटर वाले बाबूजी के यहाँ बर्तन कपड़े करती हूँ न मैं! सो उनसे सैटिंग जमा ली है मेरे मुन्ना ने। उनसे पूछकर हर दो महीनों के अंदर किसी बँगले की लाईन से जोड देते है। बस अपनी तो ऐसे ही निभ जाती है।" वह खींसे निपोर कर हँसने लगी।


मिश्राजी को समझ में आ गया कि अली बाई के यहाँ की नौकरानी की सैटिंग उनसे ज्यादा अच्छी है। वे तेजी से घूमते मीटर को असहाय से देखते रहे।