सेन्सर के लौहकपाट के परे एक संसार / जयप्रकाश चौकसे

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सेन्सर के लौहकपाट के परे एक संसार
प्रकाशन तिथि : 21 फरवरी 2019


जब सारी दुनिया में ही संकीर्णता और हदबंदी का दौर चल रहा है तब टेक्नोलॉजी स्वतंत्रता के दायरे फैलाती जा रही है। डोनाल्ड ट्रम्प महोदय अमेरिका और मैक्सिको के बीच एक दीवार खड़ी करने को कटिबद्ध हैं, जिसका भुगतान आम अमेरिकन की जेब से होने जा रहा है। हमारी सरहदें भी सुलगती रहती हैं। इस दौर में इंटरनेट पर 'वायर' जैसे खबरों के मंच हैं, जिन पर नेताओं के अवचेतन की कंदरा में छिपे सारे गंदे मंसूबों को उजागर किया जा रहा है। इसके साथ ही 'ओवर द टॉप' नामक इंटरनेट मंच पर अश्लीलता परोसी जा रही है। यह सब सेन्सर के दायरे से पूरी तरह मुक्त है। इन्हें देखने के लिए नाम मात्र का धन खर्च करना पड़ता है।

इन अभद्र फिल्मों के दर्शक केवल स्त्री-पुरुष की शारीरिक अंतरंगता नहीं देखना चाहते, वह अभद्रता को कथा के हिस्से के तौर पर देखना चाहता है। उसकी रुचि कामसूत्र को चलायमान बिम्बों में देखने की नहीं है। दर्शक एक थ्रिल देने वाले ताने-बाने में अंतरंगता देखना चाहता है। कथावाचकों और श्रोताओं से भरा पड़ा है पूरा विश्व। भारत महान में यह वाचक-श्रोता परम्परा हजारों वर्ष पुरानी है। महाभारत कथाओं की गंगोत्री है। कथा गंगा का प्रवाह सतत जारी है। बाढ़ के समय नदी में कचरा भी बहता हुआ किनारों पर छूट जाता है। इस 'अभद्रता' को हम उसी तरह का कचरा भी मान सकते हैं। इस तरह की अभद्रता परोसने वाले एक मंच का नाम है 'उल्लू'। कितनी साफगोई है कि सरे आम डंका पीटकर कहा जा रहा है कि दर्शकों को उल्लू बनाया जा रहा है। इस दौर में तो 'हर शाख पर उल्लू बैठा है'।

कुछ कथाएं इस तरह भी हैं कि एक पत्नी अपने पति से इजाजत लेकर मायके जाती है। यक-ब-यक मिली इस स्वतंत्रता से खुश पति एक पांच सितारा होटल के कक्ष में अय्याशी के लिए जाता है। एक दलाल उस पति को बताता है कि वह उसकी इच्छा पूरी कराएगा। वह व्यक्ति बड़ी बेकरारी से इंतजार करता है। उसके पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाती है, जब उसकी अपनी पत्नी ही उसके सामने प्रस्तुत की जाती है। पत्नी महंगाई के दौर में गाहे बगाहे इस तरह धनोपार्जन करती थी। ज्ञातव्य है कि इसी कथा पर एक फिल्म भी बनी थी।

इरविंग वैलेस के उपन्यास 'सेवन मिनट्स' में भी एक प्रसंग इस तरह है कि एक श्वसुर अपनी युवा विधवा बहू को संस्कारवान जीवन पर प्रतिदिन कम से कम दो उपदेशात्मक भाषण अवश्य देता है। विधवा को अपने वैधव्य से अधिक दंश देने वाला वह भाषण लगता है। वह अपने श्वसुर का पीछा करके यह जान जाती है कि श्वसुर वेश्यागमन करता है। एक दिन श्वसुर को सबक सिखाने के लिए वेश्या की सहायता से वेश्या की जगह वह बैठ जाती है। उसकी पीठ दरवाजे की ओर है, इसलिए श्वसुर महोदय पहचान नहीं पाते। जैसे ही आगे बढ़कर वे उस स्त्री को बाहों में भरने का प्रयास करते हैं, अपनी बहू को वहां पाकर सन्न रह जाते हैं। बहू उन्हें समझाती है कि दूसरों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने के लिए यह जरूरी है कि स्वयं आदर्श जीवन जिएं। भाषणवादी नेताओं के लिए यह एक सबक है। आश्चर्य यह है कि इरविंग वैलेस ने यह प्रकरण पश्चिम की एक पवित्र किताब से लेकर अपनी कथा के रेशों में पिरोया है। इन फिल्मों में सेक्स के साथ अपराध भी शामिल किया गया है। कुछ फिल्मों में कत्ल के दृश्य भी शामिल हैं। यह कहा जा रहा है कि एकता कपूर ने भी इस 'तथाकथित प्रतिबंधित' क्षेत्र में प्रवेश किया है। उन्होंने जिस तरह टेलीविजन के व्यवसाय क्षितिज पर सूर्योदय के पहले ही प्रकाश देख लिया था, उसी तरह 'ओवर द टॉप' के असीम व्यवसाय को भांप लिया है और वे भी इस क्षेत्र में कूद पड़ी हैं।

इन फिल्मों के टाइटल भी कमाल के हैं। मसलन एक फिल्म का टाइटल है 'शृंगारदान'। एक पति अपने होटल कक्ष में वेश्या द्वारा छोड़ा गया 'शृंगारदान' अपने सूटकेस में रखकर अपनी व्यवसाय यात्रा से घर लौटता है। उसी शृंगारदान का उपयोग करते हुए उसकी किशोरवय पुत्री अपने जेब खर्च के लिए 'गंदी गली' में चल पड़ती है। विगत वर्ष नेटफ्लिक्स पर भी एक साहसी कथा प्रस्तुत की गई थी। इसका असली मंच 'ओव्हर द टॉप' ही है। मुंबइया फिल्म उद्योग के कुछ नामी फिल्मकार भी इसी तरह की फिल्में बना रहे हैं। सारांश यह है कि सिनेमाघरों के परे एक स्थान का निर्माण हो गया है, जहां साहसी सेन्सर मुक्त फिल्में बनाई जा रही हैं।