सेराज बैंड बाजा / जयनन्दन
माघी खलको का वह पहला दिन था जब बारात में अपने सिर पर ट्यूब लाइट का गमला ढोनेवाली रेजा का काम शुरू कर रही थी। प्रथम ग्रासे मक्षिका पातः वाली कहावत चरितार्थ हो गई थी। बारात चली ही थी कि मूसलाधार वर्षा शुरू हो गई। सभी बुरी तरह भीग गए, लेकिन माघी को भीगना कुछ ज्यादा ही असर कर गया। उसके साथ ग्यारह रेजाएँ और थीं, लेकिन वे काफी दिनों से यह काम कर रही थीं। उनका अभ्यास था, इसलिए वे गमले को एक हाथ से पकड़ कर भी चल ले रही थीं, दूसरे हाथ से बदन के पानी पोंछ ले रही थीं। कभी-कभी तो वे दोनों हाथ छोड़ कर भी चल ले रही थीं। माघी संतुलन बनाने के मामले में एकदम कच्ची थी और गमला दोनों हाथ से पकड़े बिना चलना मुश्किल था।
उसका एक-एक वस्त्र भीग कर लथपथ हो गया था। पानी उसके एक-एक अंग को भिगो कर एक लघु नदी बन कर ऊपर से नीचे बहने लगा था - उसके पाँव से हो कर जमीन पर, लेकिन मजबूरी थी कि वह पानी पोंछ तक नहीं सकती थी, चूँकि दोनों हाथों से वह गमला पकड़े हुई थी। वह आगे या पीछे भी नहीं हो सकती थी, चूँकि उसके आगे और पीछे तीन-तीन गमलेवाली और भी चल रही थीं जो बिजली के एक तार से संबद्ध थीं। बिजली देनेवाला जनरेटर एक रिक्शे पर रखा हुआ फट-फट की जोरदार आवाज लगा रहा था।
रिक्शा बरातियों के साथ धीमी चाल से रेंग रहा था। उसके पीछे कारों का एक काफिला था। सबसे अगली कार में मजे से दूल्हा और उसके कुछ खास रिश्तेदार बैठे हुए अपनी विशिष्टता को इंज्वाय कर रहे थे। सबसे आगे दो पंक्ति में बैंड पार्टीवाले फिल्मी धुनें बजाने की जिम्मेवारी निभा रहे थे। उनके बीच में लड़के-लड़कियों का हुजूम मस्ती में नाच रहा था और कुछ लड़के छतरी की मदद से पटाखे-फुलझड़ी चलाने की कोशिश कर रहे थे।
नवंबर का महीना था, ठंढ पड़ना शुरू हो गया था। माघी पानी से भीग कर ठिठुरने लगी। कंधे से लगी हुई शॉल भी नीचे सरक गई। अपने सीने के उभार के उजागर हो जाने से वह झेंपने लगी। ऐन इसी वक्त कोई कीड़ा रेंगता हुआ साड़ी के भीतर से उसके दाहिने पैर पर चढ़ने लगा। इसके पहले कि वह जाँघ तक पहुँचता, माघी बुरी तरह अव्यवस्थित हो गई। उसके हाथ गमला छोड़कर स्वतः ही कीड़े को झाड़ने में लग गए। गमला सिर से नीचे गिर पड़ा और उसकी पंक्ति में चल रही सारी बत्तियाँ तार के खिंच जाने से बुझ गईं। अँधेरा होते ही एक अराजक स्थिति उत्पन्न हो गई। रंग में भंग पड़ने से बारातीवाले और बैंड पार्टी के मालिक उसे दुत्कारने और कोसने लगे। नाच रहे कुछ लौंडे तो उस पर लप्पड़-थप्पड़ चलाने की नीयत से लपक पड़े, तभी उसके बगल से ट्रंपेट बजाते हुए चलनेवाला सेराज मियाँ अपने दोनों हाथ फैला कर उसका रक्षा-कवच बन गया।
बैंड ऑनर ने तो उसे उसी वक्त काम से भगा दिया। लेकिन अगले दिन सेराज ने उसे दूसरी जगह काम दिला दिया। वह साँवली थी और मुखड़े की बनावट से भी बहुत सुंदर नहीं थी, फिर भी उसकी आँखों में एक भोलापन, मासूमियत और दयनीयता थी जो देखनेवाले को अपनी ओर चिपका लेती थी। सेराज ने महसूस किया कि उसके दिल के किसी नर्म कोने को माघी ने छू-सा दिया है।
माघी को चौबीस-पच्चीस की छोटी-सी उम्र में ही बेहद त्रासद स्थितियों से सामना करना पड़ा था। वह अपने गाँव डुगरिया में अपने बाबा-माई की छत्रछाया में बहुत बेफिक्र जीवन जी रही थी और अपने गदराते यौवन की खुमारी उसमें नए-नए सपने भर रही थी। इन्हीं दिनों उसके घर पर जैसे वज्रपात हो गया। एक रात उसके माँ-बाबा कुछ नकाबपोश अपराधियों द्वारा गला रेत कर मार दिए गए । इस आशंका से कि गाँव में हुई एक परिवार की हत्या में उसके भाई रोगला खलको का हाथ है।
कुछ माह पहले उसका बी.ए. तक का पढ़ा-लिखा इकलौता भाई रोगला खलको जंगल की तरफ निकल गया और वापस नहीं लौटा। एक परिवार के गुजारे के लायक अच्छी जमीन-जोत थी, लेकिन वह एक अदद नौकरी की तलाश में भागता फिरता रहा। एक राजनीतिक दल से जुड़ कर बहुत दिनों तक वह नेताओें के आगे-पीछे करता रहा, उनके भाषण स्थल पर भीड़ जुटाने का काम करता रहा, लेकिन बदले में उसे कुछ भी मनोवांछित नहीं मिला। उसने देखा कि उसकी ही जाति-समाज और रंग-रूप के शीर्ष पर पहुँचे कुछ नेताओं ने चंद महीनों में अरबों-खरबों की अवैध कमाई कर ली और गरीबों तथा बेरोजगारों के सपनों के निवाले छीन लिए । जहाँ विकास की गंगा बहनी चाहिए थी, वहाँ दो-चार बूँद का टपकना भी मुहाल हो गया। ऐसे में उम्मीद करने के लिए शराफत की पगडंडी का कोई अर्थ नहीं रह गया, और फिर उसने जंगल का रास्ता पकड़ लिया।
उसके गए कुछ ही माह बीते होंगे कि गाँव का एक दबंग ठेकेदार परगना महतो के घर पर रात को आठ-दस सशस्त्र लोगों ने हमला कर दिया और उसके दो भाइयों को गोलियों से भून डाला। गाँव में जिला पुलिस ने एक नागरिक सुरक्षा समिति बनाई थी, परगना उसका अध्यक्ष था। अध्यक्ष होने की आड़ में वह गाँववालों पर कई तरह की ज्यादतियाँ बरपा करता था। लोग उससे डरते थे, चूँकि पुलिस उसका संरक्षक बन गई थी। रोगला अक्सर उसकी बहुत सारी नाजायज कारगुजारियों का विरोध किया करता था। अतः वह उसे अपना घोषित विरोधी मानता था। समिति ने मीटिंग करके तय किया कि रोगला खलको ने ही उसका सुराग देकर उसके परिवार की हत्या करवाई है। बदले में उसके परिवार को भी खत्म करके करारा जवाब देना चाहिए। और फिर एक दिन साँझ ढलते ही उसके माँ-बाबा छूरे से गला रेत कर मार दिये गए । माघी घर से बाहर थी, इसलिए बच गई। अब उसका गाँव में रहना खतरे से खाली नहीं था। अड़ोस-पड़ोस में जो उसके गिने-चुने शुभचिंतक थे, सबने सलाह दी कि वह भाग कर शहर चली जाए । और वह भाग कर शहर चली आई। अपने माँ-बाबा की वह अंत्येष्टि भी न कर सकी। पुलिस ने ही सब कुछ किया।
शहर में कई जगह भटकने के बाद उसे पहला काम बारात में ट्यूब लाइट का गमला ढोने का मिला, जिसमें उसे कड़े इम्तहान से गुजरना पड़ा और वह नाकामयाब रही। सेराज मियाँ ने सहारा न दिया होता तो पता नहीं उसकी क्या-क्या दुर्गति हो गई होती। बगल के गाँव के जिस लड़के से बाबा ने उसकी शादी तय की थी, उस वारदात के बाद डर से उसने भी मुँह मोड़ लिया।
सेराज ने उससे एक दिन कहा, 'मैं चाहता हूँ कि बत्ती ढोनेवाली रेजा के काम से तुम्हें छुटकारा मिल जाए । तुम सिलाई-कढ़ाई का काम सीख लो। बैंड-बत्ती का काम तो ऐसे भी साल भर चलता नहीं है। शादी का सीजन नहीं रहने पर सारे बैंडवाले दूसरे धंधे में लग जाते है। कोई टेलरिंग में, कोई फल बेचने में, कोई मोबाइल रिपेयरिंग में, कोई टीवी रिपेयरिंग में, कोई घड़ी रिपेयरिंग में, कोई शूरमा, इत्र और चूड़ी बेचने में, कोई दीवार पेंटिंग में, कोई रिक्शा चलाने में।'
माघी ने मन में विचार किया और कहा, 'मैं वही काम करना चाहती हूँ जो आप करते हैं। आप सिलाई जानते हैं , मुझे सिलाई सिखा दीजिए .....आप क्लार्नेट और ट्रंपेट बजाना जानते हैं , मुझे भी बजाना सिखा दीजिए। मैं आपके हर कदम पर आपके साथ चलना चाहती हूँ। बारात में मेरा काम चाहे जो भी हो, हमें उसमें शरीक होना अच्छा लगता है। गाना, बजाना, नाचना और आतिशबाजी मेरे भीतर एक लहर पैदा कर देती है। मेरी बहुत सारी कड़वाहटें और दुख कम हो जाते हैं।'
सेराज ने उसे दिल से चाहा और हर तरह की मदद की। माघी भी उससे खुलती, घुलती और आत्मीय होती चली गई। एक तरह से उसने उसके विस्थापित जीवन को पनाह दे दिया। काम दिलाया, घर दिलाया, कामचलाऊ पढ़ना-लिखना सिखाया, चर्चित फिल्मी गानों से परिचित कराया और सबसे बड़ी बात कि क्लार्नेट जैसा कठिन वाद्य यंत्र बजाना सिखा दिया। शायद वह पहली ऐसी लड़की होगी इस शहर में जिसने क्लार्नेट बजाने जैसी कला को साध लिया।
माघी क्लार्नेट सीख रही है। सेराज उसे सा रे ग म सिखा रहा है। रियाज कई-कई घंटे रोज चलने लगता है। एक दिन माघी क्लार्नेट पर उस गाने का बोल निकाल देती है, जिसे उसने सिखाया ही नहीं था। 'खुदा जाने के मैं फिदा हूँ....खुदा जाने मैं मिट गया....खुदा जाने ये क्यूँ हुआ है.....कि बन गए हो तुम मेरे खुदा।'
सिलाई मशीन पर उसे सीना सिखा रहा है। एक साथ पैडल पर पैर भी चलाना और ऊपर कपड़े को भी सँभालना। एक दिन माघी सबसे पहले जो सिलती है वह उसके लिए एक कमीज होती है। सेराज हैरान रह जाता है। औरतों में सिलाई-कढ़ाई और रसोई करने के गुण शायद जन्मजात होते हैं।
वह स्लेट-पेंसिल ले कर ककहरा सिखाता है। कम वक्त में ही वह लिखना-पढ़ना सीख जाती है। पहले भी वह गाँव के स्कूल में दो-चार साल तक आती-जाती रही थी। ककहरे का उसे ज्ञान था। किसी भी चीज के सीखने में लगन वह इस तरह लगा लेती थी कि हुनर तुरंत ही सध जाते थे। एक दिन जब वह लिख कर चली जाती है तो स्लेट पर लिखा हुआ पढ़ता है सेराज। पढ़ कर अचंभित रह जाता है। उसने लिखा है - 'सेराज बाबू , मेरा तो रोम-रोम आपका कर्जदार हो गया है। कैसे चुकाऊँगी यह कर्ज ? आपने पूरी तरह मुझे जीत लिया। अब तो माघी पर माघी का ही अख्तियार नहीं है। आप न होते तो लोग मुझ यतीम को एक गटर में बदल चुके होते। आपको कभी मेरी जान की भी जरूरत हो तो निस्संकोच माँग लीजिएगा।'
सेराज ने बहुत उम्र तक शादी नहीं की थी। उसका एक भाई था नेयाज, जो नौकरी करने सऊदी अरब चला गया और घर को पूरी तरह भूल गया। उसकी घरवाली और उसका एक बच्चा यहीं रह गया। इनकी परवरिश की जिम्मेवारी सेराज पर ही आ गई। नेयाज का कोई अता-पता नहीं रह गया। न कोई चिट्ठी-पत्री, न कोई टेलीफोन। इंतजार में कई वर्ष बीत गए। सेराज को उसके अब्बा और उसकी भाभी मेहँदी के नैहरवाले उसे अपना घर बसाने से रोकते रहे.....कहीं नेयाज नहीं आया तो.....कहीं नेयाज आ गया तो!
इसी बीच उसके अब्बा और उसकी भाभी मेहँदी ने माघी से बढ़ रही उसकी नजदीकी को ताड़ना शुरू कर दिया। जब उन्हें लगा कि अब इसे रोकना मुश्किल होगा तो मेहँदी के मायकेवालों से और मौलवी से उन्होंने बातचीत करके एक फैसला ले लिया कि सेराज का निकाह अब मेहँदी से करा दिया जाए । वह तो इस उम्मीद से ही इस घर में टिकी हुई थी। मन ही मन वह नेयाज की बेदिली से नफरत करने लगी थी। अगर वह इत्तफाक से आ भी जाता तो उससे पहले की तरह उसका जुड़ना मुमकिन नहीं होता।
सेराज ने साफ इनकार कर दिया कि वह भाभी से निकाह नहीं करेगा। लेकिन इस मुद्दे पर वह बिलकुल अकेला पड़ गया। चारों तरफ का दबाव उस पर तारी होने लगा। सबकी सहानुभूति मेहँदी के साथ थी। सेराज के सामने एक बड़ा धर्मसंकट पैदा हो गया।
सेराज का इनकार सुन कर उसकी भाभी उसके आगे बिछ गई, 'क्या मैं तुम्हें इतनी बुरी लगती हूँ? वर्षों से इस घर में रही हूँ, तुम लोगों की खिदमत की है, क्या उसका यही सिला मिला कि अब मुझे बेघर हो जाना पड़ेगा? नेयाज के चले जाने के बाद मैं अगर टिकी रही यहाँ तो बुनियाद तुम्हीं थे। अब तुम मुझे ठुकरा दोगे तो मैं तो कहीं की नहीं रह जाऊँगी। अगर ऐसा ही करना था तो तुम इतने दिन खुद क्यों निकाह के लिए रुके रहे, कर लेते तो मैं भी कोई उपाय ढूँढ़ लेती। अपनी जवानीवाले आठ-दस साल जाया तो न होने देती।' मेहँदी की आवाज एक निराश फरियादी की तरह जैसे आँसुओं से तर-ब-तर हो गई थी। उसका आठ साल का बेटा सेराज की पीठ पर झूलने लगा था, जैसे अपनी माँ की तस्दीक करते हुए कह रहा हो कि मुझे इतने दिनों तक लाड़-दुलार किया, क्या अब पराया कर दोगे छोटे बा?
सेराज क्या जवाब देता, उसके पास जवाब ही क्या था। मेहँदी कुछ भी तो गलत नहीं कह रही। उसने वाकई उसका कितना खयाल रखा था, खाने-पीने से ले कर पहनने-ओढ़ने और बिछाने-सोने तक। बच्चा तो मानो उसके हँसने-खिलखिलाने, तरन्नुम गढ़ने और उसमें बहने का एक खुशगवार ठिकाना था।
यह असमंजस चल ही रहा था कि माघी का पूर्व मँगेतर नरसा मुर्मू एक दिन सेराज से मिलने चला आया। माघी की दिनचर्या और हालचाल पर वह अपनी पैनी नजर बनाये हुए था। उसने सेराज को धमकाते हुए जैसे एक विशालकाय चट्टान रख दिया उसके आगे कि जरा इसे फलाँग कर दिखाओ, 'तुमने माघी की मदद की, उसे सहारा दिया, हम इसका बहुत एहसान मानते हैं। लेकिन तुम उससे शादी नहीं बना सकते। उसकी शादी हमसे तय की हुई है, हम करेंगे उससे शादी।'
'इतने दिनों से तुम कहाँ थे। उसकी तो कभी खोज-खबर नहीं ली। जबकि मुसीबत के वक्त तुम्हें उसका साथ देना था।'
'हम गाँव का गरीब आदमी है, हम बहुत डर गया था। परगना महतो बहुत कसाई आदमी है। उसने हमको धमकी दे दिया था कि माघी से शादी बनाएँगे तो हमको गाँव से बाहर कर दिया जाएगा।'
'क्या अब वो तुम्हें गाँव से बाहर नहीं करेगा?'
'हम अब माघी के साथ ही शहर में आ कर रहेगा।'
'क्या इस बारे में तुमने माघी से पूछा, तुमसे शादी करने और शहर में तुम्हारे साथ रहने के लिए वह तैयार है?
'पूरा गाँव जानता है कि उसके बाबा ने माघी से मेरा रिश्ता पक्का कर दिया था। वह तैयार हो, न हो, तुम उससे शादी नहीं करोगे। करोगे तो अच्छा नहीं होगा। बुरा नतीजा से बचाने के लिए हम तुमको बोलने आया है। काहे कि माघी को तुमने बहुत मदद किया है|'
सेराज सन्न रह गया। अपनी भाभी से निकाह के मुद्दे को वह निष्ठुरता से लाँघ भी जाए, मगर नरसा मुर्मू नामक घातक चट्टान को वह कैसे पार करे। माघी को उसने सारा माजरा बताया तो मानो उसकी देह का खून जम गया। कदम-कदम पर औरत की बलि देने के लिए कसाई तैनात हैं। अपने को बचा कर यहाँ तक लाई, सेराज जैसे मसीहा का साथ मिला तो अब भी उस पर तलवार तनी है। सेराज के गले में यह निवाला उगले तो अंधा और निगले तो कोढ़ी जैसा बन गया। माघी ने सेराज की आँखों में सब कुछ लुट-पिट जाने जैसी छाई बेबसी को पढ़ लिया। उसने उसे इतना गमगीन कभी नहीं देखा था।
माघी ने सेराज की हथेलियों को अपनी अँजुरी में भर लिया। प्यार के अगाध, अलौकिक और स्निग्ध सम्मोहन के साथ उसे निहारा और कहा, 'आप चिंता में न पड़िए, सेराज बाबू। आपका अपनी भाभी से ही निकाह करना ज्यादा जरूरी है। मेरी परवाह न कीजिए, आपके लिए मेरे मन में जरा-सी भी शिकायत नहीं है। नरसा से मैं निपट लूँगी। मैं उसकी कोई खरीदी हुई जायदाद नहीं हूँ। वह कितने पानी में है, औकात बता दूँगी। जान पर खेल जाऊँगी, लेकिन उसके जैसे खुदगर्ज को अपने पास फटकने नहीं दूँगी। आपने मुझे इतना मजबूत बना दिया है कि मैं अकेले भी जिंदगी जी सकती हूँ। जितना कुछ आपसे मुझे मिला है, मैं ताउम्र आपकी कर्जदार रहूँगी।'
सेराज ने उसके हाथों को चूम लिया, 'आज तुमने मुझे यह इल्म करा दिया कि तुम डुगरिया गाँव से आयी सहमी-सिमटी माघी खलको से बदल कर एक कद्दावर शख्सियतवाली लड़की बन गई हो। मुझे फख्र होता है तुम्हें देख कर। तुमसे निकाह मैं कर पाता तो मेरे लिए यह खुदा की सबसे बड़ी नेमत होती। मेहँदी से निकाह करना मुझसे ज्यादा औरों को खुशी देगा। मैं शादी नहीं कर रहा, शहादत दे रहा हूँ। यह मलाल मैं ताउम्र ढोऊँगा कि तुम्हें मैं अपना न बना सका।'
'आपको भले लगता हो कि मुझे अपना बना न सके, लेकिन मैं तो आपको ही अपना बना कर जिऊँगी, सेराज बाबू। दिल की दुनिया में किसी निकाह, मजबूरी और बंदिश की कोई जगह कहाँ होती है भला।'
'मुझे अच्छा लगा यह जान कर कि तुम मुझसे नाराज नहीं हो रही और खुद को मुझसे अलग नहीं समझ रही। तुम्हारी इस दिलासा से हमेशा मुझे एक ताकत मिलती रहेगी। तुम्हें जब भी मेरी मदद की तलब हो, कहने में कोताही न करना।'
माघी ने सेराज को अपनी बाँहों में भर लिया। उसे लगा कि काश कायनात यहीं ठहर जाती।
सेराज ने उसे एक भद्र मोहल्ले में रहने के लिए एक अच्छी-सी भाड़े की कोठरी दिला दी थी। वह इन दिनों शहर के एक नामी मुन्ना बैंड पार्टी में काम कर रही थी। मालिक उसे खूब तरजीह देता था, चूँकि वह हर फन में माहिर हो गई थी। किसी भी बजनिया के नागा करने पर वह कोई भी इंस्ट्रुमेंट बजा लेती थी। नागा न हो तो फिर वह गमला ढोने में भी शर्म नहीं करती थी। बैंड की दुनिया चूँकि मर्दों की थी, इसलिए कदम-कदम पर उसे परेशानी उठानी पड़ती और उनसे बच लेने का उसे रास्ता निकालना पड़ता। सेराज उसकी ढाल बन कर खड़ा रहा करता था। अब सब जान गए थे कि वह माघी को छोड़ मेहँदी से निकाह कर रहा है। जब बैंड में काम नहीं होता तो वह अपने घर में ही सिलाई का काम शुरू कर देती। ज्यादातर उसका काम मोहल्ले के लोगों से चल जाता। कभी टान हो जाने पर वह बड़ी दुकानों से काम ले आती।
सेराज अपना निकाह एकदम सादगी से करना चाहता था, चूँकि उसका उत्साह एकदम सिकुड़-सा गया था। लेकिन उसके दोस्त और घरवाले इसरार कर बैठे कि वह सबकी बारात निकालता रहा है, फिर उसका निकाह बगैर बारात निकले हो, यह वाजिब नहीं हो सकता। दुल्हन की भले ही दूसरी शादी हो, लेकिन दूल्हे की तो पहली है, लिहाजा बारात, बैंडपार्टी, नाच-गाने और आतिशबाजी की धूम के साथ एक दिन के हीरो बनने का एहसास तो उसे मिलना ही चाहिए।
बारात निकली, शानदार निकली। शहर के प्रायः सभी बैंडवाले उसके लिए अपनी भागीदारी देने को तैयार बैठे थे। सेराज ने मुन्ना बैंड को ही यह जहमत दी। माघी चाहती थी कि उसे क्लार्नेट बजाने का मौका मिले और उस्ताद सेराज की निगहबानी में उसने जितने गाने के रियाज कर रखे थे, सब बजा डाले। दुर्भाग्य से आज कोई बजनिया अनुपस्थित नहीं था। अंतत: उसके नसीब में इस बारात में ट्यूब लाइट का गमला ढोना ही बदा था। वह माथे पर गमला ले कर चल रही थी। जिस बारात में उसे दुल्हन होना था, उसमें वह एक रेजा बन कर रोशनी का गमला ढो रही है। उसकी निगाहें दूल्हे के रूप में सजे सेराज को देखना चाह रही थीं। सेराज भी थोड़ी दूरी पर अपनी रेंग रही भाड़े की कार में बैठा माघी के दीदार के लिए तरस रहा था।
अपने भाग्य के इस खेल पर माघी का चेहरा मलिन हो उठा। वह रोशनी लेकर चलती है, लेकिन खुद बेरोशन रह जाती है। तीस की होने को आई, दर्जनों बारात ले कर चली, लेकिन उसकी बारात निकलने के कोई आसार नहीं। कितनों के ब्याह का एक जिंस बनी, लेकिन लगता है खुद सारी उम्र कुँवारी ही रह जाएगी।
कभी सेराज ने माघी के साथ मिल कर सपना देखा था कि दोनों मिल कर एक विशाल बैंड पार्टी की दुकान खोलेंगे और साथ ही एक विश्वसनीय टेलरिंग हाउस भी चलाएँगे। माघी सोचती है कि सपने तो सपने होते हैं, वे सच भी हो जाएँ, जरूरी तो नहीं।
माघी रोज सपने देखती, जो नींद खुलने पर तार-तार हुए रहते। वह मन ही मन सोचती कि काश इन सपनों को भी सिलने की कोई मशीन होती। वह जब कोई अच्छा-सा कपड़ा सिल रही होती तो उसे लगता जैसे वह अपने अधूरे और तार-तार हुए सपने को ही सिल कर पूरा कर रही है।
नरसा मुर्मू एक दिन उसके घर आ धमका। पहले तो अपलक निहारा उसे, फिर कहने लगा, 'अब टैम आ गया है, माघी। हम तुमसे शादी बनाने को तैयार है।'
'तुम बहुत लालची और डरपोक हो, नरसा। तुम किसी के पति होने के लायक नहीं हो, मेरे तो बिल्कुल ही नहीं। मैंने तो तुम्हारी याद को गाँव से निकलते हुए नाले में ही बहा दिया। दो शादी तो सुना, तुम पहले भी कर चुके, फिर क्या मुँह ले कर आए हो कि मुझे कुछ भी पता न होगा? निकल जाओे यहाँ से। दोबारा फिर अपनी शक्ल दिखाने का साहस मत करना।'
'ज्यादा अकड़ मत दिखाओ, माघी। तुम कोई सती-साबित्री नहीं हो। हम भी जानते हैं कि तुम शहर में कौन-कौन करम करके टिकी हुई हो। तुम्हारी हालत थोड़ी बदल गई है तो हमने सोचा कि चलो, हम भी तुमको साथ दे दें। जिन बुरे मर्दों के चंगुल में फँसी हो, उनसे मुक्ति दिला दें। तुम्हारा भाई रोगला एक दिन हमारे घर आ गया। उसने हमारे माथे से पिस्तौल सटा दिया और कहा कि मेरी बहन से तुम शादी करोगे कि उड़ा दूँ भेजा। उसी के कहने पर हम तुम्हारे पास आए हैं।'
माघी को लगा कि दीवार से अपना सिर फोड़ ले। रोगला उसे आबाद करना चाहता है या कि बर्बाद? खुद को और माँ-बाबा को तो बर्बाद कर ही चुका, एक मैं बची हूँ तो लगता है अब मैं भी कहाँ बचूँगी। जो उसे गंदी और बुरी लड़की समझता है और डर कर शादी करने को तैयार हुआ है, वह उसका कहाँ तक और कितना भला करेगा?
माघी ने खरी-खरी सुना दी, 'रोगला फिर मिले तो कह देना कि वह मेरी फिक्र न करे। उसके फिक्र करने से सिवा तबाही और बर्बादी के कुछ नहीं होता। मुझे वह अपने हाल पर छोड़ दे। तुम भी अगर सचमुच मेरा भला चाहते हो तो आगे कभी मुझसे मिलने की मेहरबानी मत करना।'
'तुम कम से कम इतना तो बता दो माघी कि वो कौन-कौन लोग हैं, जो तुम्हें अकेले जान कर तुम्हारे साथ बुरा बर्ताव करते हैं।'
'औरत अकेली हो या अपने शुभचिंतकों की भीड़ में, उसकी मर्जी के बिना बुरा बर्ताव करने की किसी की हिम्मत नहीं हो सकती। तुम जाओ नरसा, मेरा ज्यादा खैरख्वाह मत बनो। तुम्हारे जैसे लोग जब खैरख्वाह बनते हैं तो मुसीबत वहीं से शुरू हो जाती है।'
'शहर ने तुम्हें बहुत बोलना सिखा दिया है, माघी। लेकिन भूलना मत कि तुम एक आदिवासी लड़की हो। तुम्हारी यह पहचान तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेगी और शायद हम भी नहीं। अभी चलते हैं।'
लोग कितना मोहताज बना देते हैं एक उस अकेली लड़की को जो अपने दम पर अपनी दुनिया बसाना चाहती है। यह सच था कि बैंड में शामिल लोग और बारात में चलते हुए बहुत सारे लोग उसे बस एक सेक्स मशीन ही समझते रहे थे और उसे तरह-तरह से गंदे प्रलोभन देते रहे थे। लेकिन अब माघी इन सबको निरुत्तर करना सीख गई थी या कि सेराज ने उसे सिखा दिया था।
शादी के पहले सेराज से वह लगभग हर पल मोबाइल से जुड़ी रहती थी। हर रोज उसकी नींद उसके गुड मार्निंग कॉल से ही खुलती। रात को वह गुड नाइट कहकर 'लव यू, डार्लिंग' जरूर कहा करता। माघी जोहार कह कर हँस देती। यह सिलसिला अब लगभग खत्म हो गया। दिन में कभी-कभार माघी, कभी वह, एक-दूसरे का हालचाल पूछ लिया करते। संवाद का यह गैप क्रमशः बढ़ता चला गया। दिन से सप्ताह, पखवारा और फिर महीना हो गया। माघी बीच-बीच में मिस्ड कॉल करती कि अगर परिस्थिति बात करने के माकूल होगा तो वह बात कर लेगा। इस मर्तबा उधर से कोई उत्तर न पा कर उसने कई बार अंतिम घंटी बजने तक कॉल किया। उधर से कोई रिप्लाई नहीं। माघी को चिंता हो गई कि कहीं उसकी तबीयत तो खराब नहीं हो गई? वह कहा करता था कि क्लार्नेट और ट्रंपेट बजानेवाले को अक्सर साँस की बीमारी हो जाती है। उसका भी दम रह-रह कर फूलने लगता है।
चिंतातुर हो कर माघी ने दनादन कॉल करना शुरू कर दिया। खीज से भर कर उधर से कॉल उठाया मेहँदी ने, 'हाँ माघी, बोलो। कौन-सा कुफ्र टूट पड़ा, जो इतनी बेसब्री से खलल डालने पर आमादा हो।'
माघी ने विनय भाव से कहा, 'बहुत दिनों से सेराज बाबू की कोई खबर न मिली। वे खैरियत से तो हैं न।'
'आज के बाद फिर कभी कॉल मत करना। तुम्हें उसके साथ जितनी मस्ती करनी थी, कर ली। अब वह मेरा शौहर है। मुझे यह पसंद नहीं कि मेरा शौहर किसी गैर औरत से गुटरगूँ करे। उसकी खैरियत तुमने पूछी है तो बता दूँ कि वह इन दिनों बीमार चल रहा है। उसकी नाक में ऑक्सीजन लगी है। अल्ला हाफिज।'
माघी अनेक दुश्चिंताओं से घिर गई। कहीं ऐसा तो नहीं कि सेराज बाबू अब कभी क्लार्नेट और ट्रंपेट नहीं बजा पाएँगे ? फिर उनकी गुजर-बसर कैसे होगी? सोचते-सोचते उसकी आँखें छलछला आईं। मन होने लगा कि वह भाग कर उनके घर पहुँच जाए और उनके गले लग कर उन्हें तसल्लियों से लाद दे। आप फिक्र न करें, सेराज बाबू। आपकी साँसें अगर साथ न देंगी तो क्या हुआ, आप मेरे होंठों से और मेरी साँसों से क्लार्नेट बजाएँगे। मेरे क्लार्नेट और ट्रंपेट से आपके ही बोल निकलेंगे।
वह रात उनींदेपन में ही कट रही थी। ढाई-तीन बजे होंगे कि दरवाजे पर एक दस्तक और हाँक सुनाई पड़ी। कहीं गलत इरादे ले कर नरसा तो नहीं आ धमका। पुकारने की आवाज को जरा ध्यान से सुना तो मानो उसे विश्वास ही नहीं हुआ। आवाज उसके भाई रोगला की थी, धीमी, आत्मीयता से भरी हुई और स्नेह से पगी। उसने दरवाजा खोला, रोगला अंदर आ गया। उसके पाँच साथी और थे जो बाहर ही रह गए, पहरेदारी में। माघी ने सिर से ले कर पैर तक उसे कई बार निहारा। एक बहुत ही मैले-कुचैले फौजी लिबास में रोगला किसी बुत की तरह खड़ा था। उसकी कमर से एक पिस्टल लटक रही थी। कई हफ्तों से न नहाने की एक गंध वहाँ पसरने लगी थी। रोगला ने पूछा, 'कैसी हो, दीदी ?'
जवाब में फफक कर रो पड़ी माघी। रोगला ने उसे अपने गले से लगा लिया। आँसुओं की रुकी हुई बाढ़ पता नहीं दुख के किस-किस जमे हिमालय से पिघलने लगी। माँ-बाबा की नृशंस हत्या पर भी तो उसे रोने का मौका नहीं मिला था। कहाँ रोती? किसके कंधे पर सिर रख कर रोती? कितने लोगों ने इस शहर में उसे अकेली जान हवस का शिकार बनाना चाहा, उसकी आंखें कहां भींगी। सेराज जीवन साथी बनते-बनते न बना, इस आघात पर भी उसने मन मार लिया। नरसा ने उसे झटके पर झटके दिए , वह जब्त करके रह गई।
रोगला ने उसके आँसुओं को अपने रूमाल में मानो सहेजते हुए कहा, 'हम तुम्हारे और माँ-बाबा के अपराधी हैं, दीदी। क्या करें, व्यवस्था से हम पूरी तरह नाउम्मीद हो गए हैं। कदम-कदम पर हमें ठगा जा रहा है। सरकारी तिजोरियों की सरेआम लूट और बंदरबाट हो रही हैं। इस भ्रष्ट युग में कौन भ्रष्ट, बेईमान, अपराधी और चोर नहीं है, पहचानना मुश्किल हो गया है। जब लगा कि सारे रास्ते बंद हैं तभी हमने जंगल का रास्ता अपनाया।'
'लेकिन जंगल का रास्ता समाधान का रास्ता नहीं है, भाई। अगर है तो मुझे भी अपने साथ ले चलो। थक गई हूँ मैं.....हर कोई अकेली और जरूरतमंद समझ कर खिलौना बना लेना चाहता है।'
'नहीं दीदी, नहीं, बिल्कुल नहीं। कभी सोचना भी मत हमारे रास्ते जाने के बारे में। वहाँ जिस दलदल और काँटों से गुजरना पड़ता है, हम तुम्हें उससे गुजरते नहीं देख सकते। यहाँ तुम जैसी भी हो, ठीक हो। हर पल मौत का खुला हुआ दरिंदा जबड़ा तुम्हारे सामने नहीं है।'
'अगर इतना बुरा है वहां सब कुछ, तो तुम भी वापस क्यों नहीं आ जाते ?'
'हम वापस नहीं आ सकते, दीदी। हमारे पैर उस दलदल में इस तरह लिथड़ कर फँस गए हैं कि निकल नहीं सकता। हम अब जिंदगी के नहीं, मौत की दुनिया के निवासी है। तुम्हारे बारे में मैं सब खबर रखता रहा हूँ। अब तो बस तुम्हें देख कर ही जरा-सी जीवन की अनुभूति कर लेता हूँ। सुना है कि तुम बहुत सारे साज बजाना सीख गई हो। सेराज ने तुम्हें साथ नहीं दिया, तुम दुखी मत होना। नरसा से तुम शादी नहीं करना चाहती, मत करो। तुम अपना एक बैंड पार्टी बनाना चाहती हो, बनाओ दीदी, खूब भव्य बनाओ। जितने पैसे चाहिए, मुझसे ले लो।'
'नहीं रोगला, मैं तुम्हारे पैसे से बैंड की दुकान नहीं चला सकती।'
'ठीक है, तुम मेरी मदद को उचित नहीं मानती, मेरे पैसे को स्वच्छ नहीं मानती। कोई बात नहीं। लेकिन वो पैसा तो तुम्हें लेने में कोई एतराज नहीं होना चाहिए, जो डुगरिया के अपने घर और खेत बेचने से मिलनेवाले हैं। चूँकि वहाँ अब न तुम रहनेवाली हो और न मैं, फिर उन्हें रखने का कोई मतलब भी क्या है।' माघी ने इसका कोई जवाब नहीं दिया, जिसे रोगला ने उसकी स्वीकृति मान लिया।
रोगला ने आगे कहा, 'तुम्हारे पास गाँव का एक लड़का आएगा और एक दस्तावेज पर दस्तख्त करवाएगा। उससे तुम्हें पैसे मिल जाएँगे। बैंड की एक शानदार दुकान खोलना दीदी, जो इस शहर के लिए मिसाल बन जाए। मैं चाहता हूँ कि मेरा जीवन भी तुम्हें ही मिले और मेरी हसरत भी तुममें ही फलित हो। मेरा क्या, कभी मैं मौत के आगे भाग रहा हूँ, कभी मौत मेरे आगे भाग रही है। तुमसे ज्यादा संपर्क बना कर मैं तुम्हें खतरे में नहीं डालना चाहता। नहीं जानता कि इस तरह तुमसे आगे कभी मिल पाऊँगा भी या नहीं।' कहते हुए रोगला की आँखें भर आईं। माघी ने अपने आँचल में उसके आँसुओं को समेट लिया, जैसे मोती के दाने सहेज रही हो। रोगला ने एक बार फिर उसे गले से लगा लिया।
'चलता हूँ, दीदी। पुलिसवालों को कभी भी भनक लग सकती है। मैं तुम्हें दिखूँगा नहीं, लेकिन ऐसी कई आँखें हैं, जिनकी मार्फत अपनी साँस चलने तक तुम्हें देखना जारी रखूँगा।' रोगला बाहर निकल कर निविड़ अँधेरे में गुम हो गया। उसकी आवाजें और उसकी उपस्थिति उसके जेहन में किसी शिलालेख की तरह खुद गई।
माघी ने अपने गाँववाले घर और खेत की बिक्रीवाले पैसे से शहर के मुख्य बाजार में भाड़े की एक जगह ले कर 'सेराज बैंड बाजा' नाम से एक भव्य दुकान खोल दी। सेराज, उसकी बेगम मेहँदी और उसके अब्बा अचंभित रह गए। माघी की सेराज से मुहब्बत और एहतराम की ऊँचाई का इससे बड़ा सबूत और क्या होगा। एक दिन सेराज हाँफता और खाँसता हुआ उसकी दुकान में तशरीफ ले आया। माघी ने उसके दर्शन से खुद को धन्य-धन्य करते हुए कहा, 'यह दुकान आपकी ही है सेराज बाबू, मैं तो बस आपकी एक मुलाजिम की तरह काम करूँगी। आपको आने में तकलीफ न हो तो रोज आया करें और संभालें यहाँ की गद्दी।'
सेराज ने अपनी बिखरती साँसों को सँभालते हुए कहा, 'इतनी बड़ी दुकान! इतने नए-नए आधुनिक इंस्ट्रुमेंट! इतनी सारी नई-नई रंग-बिरंगी पोशाकें! शहर के चुने हुए साजिंदों की टीम ! कैसे मुमकिन बना दिया, माघी ? इतनी ऊँची उड़ान भरनेवाले पंख आखिर तुम्हें मिले कहाँ से?'
'सब कुछ आपका ही दिया हुआ है, सेराज बाबू। मैं जो कुछ हूँ आपकी वजह से ही तो हूँ।'
सेराज को लगा जैसे माघी ने उसकी जिंदगी के रुके हुए सफर को एक नई मंजिल दे दी। उसकी असाध्य बीमारी का इससे बड़ा अचूक इलाज भला और क्या होगा? माघी एक जीवनदायक औषधि की तरह उसकी नस-नस में बहने लगी।
'सेराज बैंड बाजा' एक विश्वसनीय और उच्चस्तरीय ब्रांड बन कर छा गया पूरे शहर में। हर बड़े आयोजन, हर बड़ी बारात और हर बड़े जुलूस में सेराज बैंड ही बुक होने लगा। सारे साजिंदे भड़कीले यूनिफार्म में होते, लेकिन माघी लाल ब्लाउज और लाल पाड़ की सफेद साड़ी में आँचल को कमर से बाँध कर डुगरिया गाँव की आदिवासी लड़की की पहचान में क्लार्नेट बजाती दिखती और फिल्मी धुनों के गागर में सागर छलका देती। देखनेवाले-सुननेवाले हैरान हो उठते।
सूबे का एक पूर्व मुख्यमंत्री, जो 35 से 40 हजार करोड़ रुपए के गबन के आरोप में जेल में बंद था और जेल में रहते हुए उसने लोक सभा का चुनाव जीत लिया था, के गुर्गे एक भव्य विजय जुलूस निकालने की तैयारी करने लगे थे। सेराज बैंड बाजा से संपर्क किया गया। माघी ने इनकार कर दिया। मुँहमाँगा शुल्क देने को वे तैयार हो गए । उसने फिर भी अपना निर्णय नहीं बदला।
सेराज ने उसे समझाने की कोशिश की, 'हम पैसों के लिए काम करते हैं। हमें ले जानेवाला कौन है, इससे हम मतलब नहीं रखते। यह आदमी कितना भी बुरा है, लेकिन जनता ने वोट दे कर जिताया है, तो फिर हम कौन होते हैं उसे खारिज करनेवाले।'
माघी के चेहरे पर एक रोष उभर आया और उसकी आवाज में एक तल्खी समा गई, 'उसने गरीब जनता में हराम के बेइंतहा पैसे बहा कर और बाँट कर जीत हासिल की है। फटीचर और बिकाऊ युवाओं में एक हजार मोटरसायकिल बाँट कर वोटों की लूट करवाई है। उसने राज्य के विकास कोश में सेंध लगा कर युवाओं को जंगल का रास्ता पकड़ा कर बागी बनने के लिए मजबूर किया है। वह देशद्रोही है, हमारा बैंड उसके जश्न में शामिल हो कर उसका समर्थन नहीं करेगा। हम पैसे के लिए काम जरूर करते हैं, लेकिन एक घोषित भ्रष्ट आदमी के लिए काम करना हमारी लाचारी नहीं है, सेराज बाबू।'
यह पहला मौका था जब माघी ने सेराज से असहमति व्यक्त करते हुए एक बड़े उसूल की लकीर खींच दी थी, जिसमें उसके अपने भाई रोगला की पीड़ा भी समाहित थी। सेराज नाराज होने की जगह माघी पर और भी आसक्त हो उठा।
अगले दिन उस पतित, कुख्यात और भ्रष्ट नेता के गुडों ने सेराज बैंड बाजा में घुस कर भारी तोड़-फोड़ मचा दी। कई नए इंस्ट्रुमेंट हैंगर से निकाल कर पटक दिए गए और कई नई पोशाकें फाड़ दी गईं।
माघी को इस उत्पात का कोई दुख न हुआ। उसे बस संतोष था तो इस बात का कि एक शातिर देशद्रोही नेता के जश्न में शामिल होने से उसने खुद को और अपने बैंड को बचा लिया।