सेल्फ़ी / सुकेश साहनी
उसका पूरा ध्यान आँगन में खेल रहे बच्चों की ओर था। शुचि की चुलबुली हरकतों को देखकर उसे बार-बार हँसी आ जाती थी। कल शुचि जैसी बच्ची उसकी गोद में भी होगी, सोचकर उसका हाथ अपने पेट पर चला गया। उसे पता ही नहीं चला कब राकेश उसके पीछे आकर खड़ा हो गया था।
"जान! आज हम तुम्हारे लिए कुछ स्पेशल लाए हैं।"
"क्या है?"
"पहले तुम आँखें बंद करो, आज हम अपनी बेगम को अपने हाथ से खिलाएँगे।" राकेश ने अपने हाथ पीठ पीछे छिपा रखे थे।
"दिखाओ, मुझे तो अजीब-सी गंध आ रही है।"
"पनीर पकौड़ा है-स्पेशल!" उसके होठों पर रहस्यमयी मुस्कान थी।
उसका ध्यान फिर शुचि की ओर चला गया, वह मछली बनी हुई थी, बच्चे उसके चारों ओर गोलदायरे में घूम रहे थे, "हरा समंदर, गोपी चंदर। बोल मेरी मछली कितना पानी? शुचि ने अपना दाहिना हाथ घुटनों तक ले जाकर कहा," इत्ता पानी! "
"कहाँ ध्यान है तुम्हारा?" , राकेश ने टोका, "लो, निगल जाओ!"
"है क्या? क्यों खिला रहे हो!"
"सब बता दूँगा, पहले तुम खा लो।"
आंगन से बच्चों की आवाजें साफ सुनाई दे रही थी, "बोल मेरी मछली... पानी" छाती तक हाथ ले जाकर बोलती शुचि, "इत्ता ... इत्ता पानी!"
"मुझसे नहीं खाया जाएगा।"
"तुम्हें आने वाले बच्चे की कसम... खा लो।"
"तुम्हें हुआ क्या है? कैसे बिहेव कर रहे हो, क्यों खिलाना चाहते हो?"
"यार, तुम भी जिद करने लगती हो, दादी माँ का नुस्खा है आजमाया हुआ। इसको खाने से शर्तिया लड़का पैदा होता है।"
सुनते ही चटाख से उसके भीतर कुछ टूटा, राकेश उससे कुछ कह रहा था, पर उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। वह डबडब करती आँखों से देखती है...शुचि की जगह वह खड़ी है, बच्चे उसके चारों ओर गोलदायरे में दौड़ते हुए एक स्वर में पूछ रहे हैं...बोल मेरी मछली...कित्ता पानी? उसकी आँखों में दृढ़ निश्चय दिखाई देने लगता है...अब तो पानी सिर से ऊपर हो गया है। वह अपना हाथ सिर से ऊँचा उठाकर कहती है, ... इत्ता ...इतना पानी!
"क्या हुआ?" राकेश ने मलाई में लिपटी दवा उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा, "आइ लव यू, यार!"
"नहीं!" राकेश के हाथ को परे धकेलते हुए सर्द आवाज में उसने कहा, "दरअसल तुम मुझे नहीं, मुझमें खुद को ही प्यार करते हो!"