सेल्यूलाइड पर जीवन का लेखा-जोखा / जयप्रकाश चौकसे

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सेल्यूलाइड पर जीवन का लेखा-जोखा
प्रकाशन तिथि : 24 जुलाई 2013


कुछ इस तरह की खबर है कि शाहरुख खान ने अमिताभ बच्चन की राह पर चलते हुए अपना व्यक्तिगत कैमरा यूनिट बनाया है, जो उन्हें सारा समय रिकॉर्ड करता है। शयन कक्ष के बाहर उनके दैनिक कार्यकलाप का रिकॉर्ड बनाया जा रहा है। यह कमोबेश डायरी लिखने की तरह इस मायने में है कि शारीरिक गतिविधियों का यह सेल्यूलाइड चोपड़ा या बहीखाता है, परंतु मस्तिष्क में चलते हुए विचार डायरी में तो लिखे जा सकते हैं, इस विधा में कैमरे के सामने बोलकर भी इन्हें संजोया या सकता है। यह एक किस्म की आत्म-रति है। ग्रीक आख्यानों में नारसियस का जिक्र है, जो स्वयं की छवि को इतना अधिक निहारता था कि एक दिन झील में अपना अक्स निहारते हुए उसमें गिर गया और तैरना नहीं जानने के कारण डूबकर मर गया। इसी कारण स्वयं की छवि पर मुग्ध हो जाने को नारसिस्ट कहते हैं और इस प्रक्रिया को नारसिज्म।

देव आनंद स्वयं की छवि से इतना मोह करते थे कि जब वे निर्देशक बने तो उनके सारे पात्र उनकी तरह व्यवहार करते थे, गोया कि वे एकल व्यक्ति फिल्में ही थीं और शायद इसी कारण आम दर्शक ने उन्हें नहीं देखा, जो दरअसल सिनेमाई पात्रों में स्वयं को खोजने का प्रयास करता है और मिल जाने पर उस फिल्म को बार-बार देखता है। यह अलग किस्म का नारसिज्म है और शायद इसी को फिल्म से 'भावनात्मक तादात्म्य' स्थापित करना कहते हैं।

संभवत: इस तरह के कार्य के पीछे यह भावना भी है कि सितारा स्वयं को इतना महत्वपूर्ण मानता है कि भविष्य के लिए अपने दैनिक कार्यकलाप को सेल्यूलाइड पर सुरक्षित रखना चाहता है। देव आनंद से चंद कदम पीछे राजेश खन्ना वर्षों मन में धारणा बनाए रहे कि उनकी मृत्यु के बाद उनके निवास 'आशीर्वाद' में उनकी पोशाकों इत्यादि को सहेजकर रखा जाएगा और वह उनका व्यक्तिगत म्यूजियम होगा, परंतु नए मालिकों ने 'आशीर्वाद' का नाम ही बदल दिया।

दरअसल, हम इन सितारों की बात छोड़ भी दें तो अनेक आम आदमी स्वयं के महत्व के प्रति अत्यंत गंभीर होते हैं और जानकर इस तथ्य को अनदेखा करते हैं कि समय की एक लहर किनारे की रेत पर लिखी इबारत को मिटा देती है, घरौंदे तोड़ देती है, पदचाप मिटा देती है। इतना ही नहीं, अमर हो जाना भी एक भ्रम ही है और मोक्ष पर भी यह चिंता अभिव्यक्त की जा सकती है कि क्या निजता का लोप करके किसी भव्य में लीन हो जाना अभीष्ट है? यह निजता ही अस्तित्व है और इसे मिटाकर अन्य में विलीन होने का क्या अर्थ है? वेदव्यास महाभारत में मोक्ष के बारे में नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं कि मोक्ष जन्म-मृत्यु, सुख-दुख के चक्र से मुक्ति नहीं है, वरन इसी धरती पर इसी जीवन में माया-मोह के बीच रहकर भी मनुष्य विशुद्ध स्वतंत्रता के भाव को महसूस करे और मोक्ष अवधारण स्वर्ग नहीं धरती पर उतारे।

सितारों का आत्मकेंद्रित होना उनका माया-मोह में डूबना है और स्वयं विशुद्ध स्वतंत्रता को वे समझ नहीं पाते वरन अपने इर्द-गिर्द लोगों को अपना चापलूस बना लेते हैं। सितारे प्राय: वाह, वाह सुनने के आदी हो जाते हैं और इस शोर में अपने मन की आवाज भी नहीं सुन पाते। सितारे का रचा अपना संसार स्टूडियो के फिल्म सेट का ही विस्तार होता है। उसका स्वर्ग-नर्क, सुख-दुख और उसका मोक्ष बॉक्स ऑफिस है।

सितारा स्वयं को हमेशा कैमरे के सामने महसूस करता है। उसका कैमरा-प्रेम उससे कुछ भी करा सकता है। सितारे को फिल्मकार से अधिक उसके प्रशंसक बनाते हैं, जिनकी दीवानगी उसे उसकी हैसियत देती है। घंटों सितारों की एक झलक के लिए एक पैर पर खड़े रहना, बंदोबस्त की फटकार खाना और फिल्म की गुणवत्ता जाने बिना टिकट खिड़की पर टूट पडऩा। सितारे की तस्वीरों से अपना कक्ष सजाना और उसे अपनी विचार-प्रक्रिया का केन्द्र बना लेना। प्रशंसकों का अंधा प्यार ही सितारे को उसका अहंकार देता है और उनका यह जुनून ही अपने दूसरे स्वरूप में नेता को सत्ता दिलाता है। दोनों ही प्रक्रियाओं में व्यक्ति स्वयं की स्वतंत्र विचार प्रणाली को होम कर देता है और अपने आसपास के लोगों को भी स्वतंत्र नहीं रहने देता। यह भी सच है कि सभी सितारे ऐसे नहीं होते। हमारे यहां व्यावहारिक जीवन और जमीन से जुड़े सितारों की भी लंबी परंपरा है।

सितारों के आगे जहां और भी हैं और हम आज जीवन में भी सितारा सिंड्रोम देखते हैं कि परिवार मं सबसे अधिक सफल व्यक्ति को सितारा समझा जाता है तथा उसकी पसंद-नापसंद का अतिरिक्त ख्याल रखा जाता है। सफल व्यक्ति को सितारा मान लेना हमारे जीन्स में है। हमारे जीवन का हर पक्ष सिताराशासित है। स्वतंत्र-निर्भीक सोच को हमने कभी महत्व ही नहीं दिया।