सेल्समैन रामलाल / शशिकांत सिंह शशि

Gadya Kosh से
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होटल रंगमहल का कमरा सजा था। अभ्यार्थियों की लंबी कतार देखी जा सकती थी। एक कंपनी का विज्ञापन पढ़कर सेल्समैन की नौकरी के लिए नौजवान आये थे। एक-एक कर अंदर बुलाया जा रहा था। सबसे कमाल की बात यह थी कि इसके लिए किसी भी प्रकार के प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं थी। उम्मीदवार अंदर जा रहे थे। अंदर उनकी कला की जांच की जा रही थी ं। अपने मुहल्ले के रामलाल जी भी घुस गये। उन्हें बेचने का बहुत पुराना अनुभव है। बचपन में किताबें और कॉपियां जो उनके पिताजी खरीदकर देते उसे बेच आते। उसे बेचकर कंचे खरीदते और मनोयोग से खेलते। परीक्षओं में तो निरंतर फेल होकर उन्होंने नया कीर्तिमान स्थापित किया लेकिन एक कुशल कंचा खिलाड़ी के रूप में उनकी धाक पूरे गांव में जम गई। कंचों को यदि कोई ओलंपिक होता तो गोल्ड के लिए सोचना नहीं पड़ता। जवानी में आपने अपनी गाय सदा दूसरे के खेतों में चराई और अपने भूसे बेच दिये। बेचने में उनकी शानी नहीं है। एक बार दूसरे के आम का बगीचा बेच आये। वह मुकदमा चल ही रहा है। यूं तो उन्होंने स्टाम्प पेपर से लेकर टी वी , रेडियो तक बेचा है। आज उनका असली इम्तिहान होने वाला था ।

अंदर गये तो बहुत मातमी माहौल था। पांच लोग मुंह लटकाये एक टेबुल के उस पार बैठे थे। एक कुर्सी सामने पड़ी थी। उस पर रामलाल जी को विराजमान होना था। उन्होनंे सबको नमस्कार करके बैठना उचित ही नहीं समझा। साक्षात्कार बोर्ड के अध्यक्ष ने इशारा भी किया ।

-’ बैठ जाइये। ’

-’ नहीं सर। ठीक है। बैठना कोई जरूरी थोड़े ही है। काम के वक्त बैठना ठीक नहीं लगाता। इससे गा्रहकों पर गलत प्रभाव पड़ता है। ’

-’ जी हम समझे नहीं। ’

एक सदस्य ने कहा जो शायद बातौर मनोवैज्ञानिक बिठाये गये। उनकी चूल हिल गइ। यह प्रतियोगी उनको सनकी लग रहा था ।

-’ हम समझाने का प्रयास करते हैं ं। आपने सेल्समैन का चुनाव करना है। सेल्समैन को बेचना पड़ता है। मैं हर चीज बेचने को तैयार हूं। कभी भी बेचते समय आदमी को बैठना नहीं चाहिए। ’

-’ हमें आपका ऐटिच्युड पसंद आया। पर हम पहले आपसे कुछ पूछना चाहते हैं ।’

-’ नहीं साब हम तो पहले कुछ बेचना चाहते हैं। पूछताछ तो होती ही रहेगी। आप यह बोलिये कि बेचना क्या है। ’

बोर्ड के सदस्य एक दूसरे का मंुह देखने लगे। आखिरकार एक आदमी ने चिढ़कर कहा-

-’ मिट्टी बेचकर दिखाओ। वह कोने में मिट्टी पड़ी है। उसे बेचो । यदि नहीं बेच सको तो समाने टेबिल पर जो चीज चाहो उठा लो और बेचकर दिखाओ। ’

अपने रामलाल ने हार मानना नहीं सीखा था। उन्होंने मिट्टी उठा ली और टेबुल के सामने आ गये। धाराप्रवाह बोलना शुरू किया ।

-’ अरे साब ! यह मिट्टी आपको कोने में पड़ी मिट्टी लगी। यह चमत्कारी मिट्टी है। फैशन के इस दौर में महिलायें अपने चेहरे पर बाजारू केमिकल लगा-लगाकर अपना चेहरा खराब कर रही हैं। जवानी में तो चेहरा चमकाता रहता है लेकिन बुढ़ापे की धमक सुनते ही झुर्रिया नजर आने लगती हैं। यदि प्रकृति की शरण में जाया जाये तो कम से कम अस्सी साल तक आदमी जवान रह सकता है क्योंकि यह बनारस के अस्सी घाट की मिट्टी है। इस घाट का नाम अस्सी पड़ा ही इसीलिए था। यहीं तुलसीदास रहते थे। नियमित रूप से अपने चहरे और बालों में इस मिट्टी का उपयोग करते थे। मीरा भी अंत में इस घाट पर आईं थीं। उन्होंने भी इस मिट्टी का उपयोग किया था। मैं आपको इसकी लेपन विधि बता दूं ।

दस ग्राम मिट्टी में लगभग पचास ग्राम गाय का दही मिलायें तथा उतनी ही मात्रा में शहद। उसे चंदन के चूर्ण में मिलाकर सुखायें। सूखने के बाद उसे चेहरे पर लेप करें। यदि तीस दिनों में चेहरे से प्रकाश ने निकलने लगे तो पैसे वापस। कंपनी ने अभी इस लेप को शुरू ही किया है। अभी केवल जनहित में ही बेचा जा रहा है। हमारी कंपनी चाहती है कि एक बार फिर दुनिया में भारतीय संस्कृति का झंडा बुलंद हो। हम अपनी मिट्टी से जुड़ें। केवल उत्पादन लागत पर ही इसे बेचा जा रहा है। सौ गा्रम का एक पैकेट जो आमतौर पर आपको पचास रुपये का मिलता है। हमारी कंपनी केवल तीस रुपये मेें दे रही है। आप सोच रहे होंगे कि अस्सी घाट की मिट्टी लाकर हमने पैक कर दिया और आपको तीस रुपये में दे रहे हैं। ऐसा नहीं है। आपको तो पता ही है कि यह तुलसीदास का जमाना नहीं है। मिट्टी प्रदूषित हो गई है। इसे पहले प्रदूषण मुक्त किया गया है। प्रयोगशाला में आधुनिक मशीनों की सहायता से मिट्टी को शुद्ध करके इसमें कई प्रकार के आयुर्वेदिक तत्व मिलायेे गये हैं। ’

-’ रामलाल जी ! आज का युग मिट्टी चेहरे पर लगाने का नहीं है। महिलायें अब विदेशी प्रोडक्ट चेहरे पर लगाती हैं। आप दूसरा नुस्ख अपनाइये। ’

एक महिला सदस्य ने रामलाला जी की भागती रेल की चेन खींची ।

-’ ऐसा नहीं है मैडम। आज भी फूलों में खूशबू है। चंाद और तारों में रोशनी है। पानी में मिठास है। तो भला मिट्टी अपना गुण कैसे छोड़ देगी। रही बात विदेशों की तो यह दिमागी फितुर है। अपने देश का मक्का नहीं खायेेंगे और अमेरिका का पापकार्न खाना शान की बात समझेंगे ं। वैसे भी गौर से देखिये तो इसमें मिट्टी है कहां । दही , शहद और चंदन का लेप है। चेहरे पर चमक तो आयेगी ही। इसी बहाने मिट्टी बिक रही है। ’

-’ आपकी बात ठीक है। फिर भी दूसरा तरीका आजमाकर दिखाइये। ’

-’ आपने मेरी बात पूरी होने ही नहीं दी। यदि आप सौ गा्रम का एक पैक खरीदते हैं तो आपको इसके अंदर से एक कूपन मिलेगा जिस पर कंघी से लेकर कूलर तक के फोटो छपे होने की संभावना है। आपके पैक में मिले कूपन पर जो भी छपा मिलेगा वह वस्तु आपके घर भेज दी जायेगी। यदि आपको कूपन सादा मिलता है। अर्थात उस पर कुछ भी छपा नहीं है तो आप इस प्रकार के सौ कूपन जमा कर लें आपको एक रंगीन एल सी डी टी वी मुफ्त में मिलेगा। यदि आप आधे किलो का एक पैक खरीदते हैं तो आपको उसके अंदर से एक कूपन मिलेगा जिसपर किसी न किसी देश का नाम लिखा मिलेगा। जिस देश का नाम ेलिखा मिलेगा उस ेदेश की यात्रा आपको कराया जायेगा। रहने और आने-जाने का खर्च कंपनी देगी ’

-’ मान गये रामलाल जी। आप महिलाओं को यह मिट्टी चिपका देंगे। मान लीजिये तब भी न िबके तो आप कैसे बेचेंगे ं। ’

-’ गा्रहक बदल देंगे सर। महिलायें यदि नहीं फंसी तो बच्चों का सहारा लेंगे ं। भाषण की धारा अलग होगी। आपमें से कोई ऐसा नहीं होगी जो चहता हो कि उसका बच्चा कमजोर रहे। सभी चाहते है कि बच्चा फौलाद की तरह हो। आप बाजार से नाना प्रकार के साबुन और केमिकल वाले शैम्पु खरीदकर बेचारे छोटे से बच्चे के शरीर पर उसका उपयोग करते हैं। आप उसे बचपन से ही केमिकल का आदी बना रहे हैं। एकबार आप इस मिट्टी का उपयोग करें। यदि दूसरी कोई कंपनी होती तो इसे खूबसूरत पैक में बंद करके इसका कोई नाम दे देती और टी वी पर विज्ञापन कराके बेच देती। हम ग्राहकों को धोखा नहीं देते। यह मिट्टी है लेकिन प्रयोगशाला में इसे शुद्ध किया गया है। आपने भरत का नाम सुना होगा जिसने शेर के दांत गिने थे। उसके नाम पर ही इस देश का नाम भारत पड़ा। क्या उसके जमाने में बेबी तेल और बेबी शैम्पु होते थे। नहीं। वह मिट्टी का ही कमाल था। हमने केवल इस मिट्टी को प्रयोगशाला में डालकर उसी लेवल तक शुद्ध कर दिया है जिसे लेवल पर यह भरत के जमानें में था ं। आपने सुना ही होगी -

देश की मिट्टी, धूप, हवा , सौ रोगों की एक दवा ।

आपको विश्वास नहीं हो रहा होगा। हमारे सामने दुनिया से आये कंपनियों ने उत्पाद के जाल खड़े कर दिये हैं। हम उसपर तो विश्वास कर सकते हैं जो वाशींगटन में बने लेकिन गंगा के किनारे की शुद्ध मिट्टी को हम भूल गये। मिट्टी का अपना महत्व होता है। जगह का इस पर प्रभाव पड़ता है। हमने कोशिश की कि यह मिट्टी हम ’ऋषि कण्व के आश्रम से ही लें जहां इतिहास के अनुसार भरत का बचपर बीता था। आपने रामायण में पढ़ा होगा कि भगवान राम जब वन जाने लगे तो अपने साथ अयोध्या की मिट्टी भी धोती की खूंट से बांध कर लेते गये। उन्हें क्या जंगल में मिट्टी नहीं मिलती। उन्हें अपने देश की मिट्टी पर भरोसा था। हमें भरोसा है विदेश की मिट्टी पर। मित्रों यह युग धोखे का युग है। आपको हमेशा सावधान रहने की जरूरत है। आपको केवल किसी की बातों में नहीं फंसना है। प्रयोग करके देखिये। आप केवल सौ गा्रम मिट्टी का एक पैक ले लीजिये। कीमत केवल बीस रुपये। यानी आधा किलो टमाटर के बराबर भी नहीं। अपने देश की मिट्टी के लिए इतनी राशि तो आप लगा ही सकते हैं। प्रयोग करने के बाद यदि लाभ न हो तो आप हमें वापस कर दें।’

-’ रामलाल जी आपके भाषणों में देश, और भगवान, क्यों आ रहे है ? ’

-’ साब ! देश और भगवान का नाम लेकर तो लोग देश चला रहे हैं। हम इस मिट्टी को बाजार में नहीं चला सकते। आपके ग्राहकों में टाटा , बिड़ला तो हैं नहीं। आम आदमी है जो भावुक होता हैं। उसके अंदर देश के प्रति प्रेम और भगवान के प्रति श्रद्धा है। आप चाहें तो इस दोनों तत्वों का प्रयोग करके उन्हें बारबार मुर्ख बना सकते हैं। ’

-’ आपने मिट्टी को गंगा कि किनारे का दिखया लेकिन उसे शुद्ध करवायो प्रयोगशाला में। वाह। ’

-’ आपने देखा होगा अब तो प्रवचन देने वाले बाबा भी अंग्रेजी बोलते हैं ताकि उन्हें लोग उच्च शिक्षित मान ले और आसानी से बेवकूफ बन जाये ं। श्रद्धा में यदि तकनीक मिला दी जाये तो वह आधुनिक हो जाती हैं। आप देख ही रहे हैं कि पूरे देश में इंटरनेट के सपने बेचे जा रहे हैं। आई वे की बात की जा रही है। जबकि चालीस प्रतिशत लोगों के घरों मे बिजली ही नहीं है। सपने बेचने की भी तकनीक होती है। आपको बोलना आना चाहिए है। लोगों की भावनाओं का ज्ञान होना चाहिए। तो साब ...मैं अपनी नौकरी पक्की समझूं ?’

बोर्ड ने उठकर रामलाल जी का अभिवादन किया। आजकल किसी बड़ी कंपनी के सी इ ओ हैं।