सेवा / पद्मजा शर्मा
वे पति पत्नी विदेश से भारत भ्रमण पर आये थे। फिर यहीं के होकर रह गए. भारत के सुदूर ग्रामीण अंचल में रहकर उन्होंने कुष्ठ रोगियों की सेवा का व्रत लिया। उन रोगियों की जिन्हें देखकर हम अनदेखा कर देते है। नाक भों सिकोड़ते हैं। जो समाज द्वारा बहिष्कृत हैं।
मारिया और मैरीन ने कुष्ठ चिकित्सालय के पास ही अपना छोटा-सा घर बनवाया। वहीं दोनों बेटों का जन्म हुआ। भारत की उसी पावन मिट्टी, संस्कृति में बच्चे पल-बढ़ रहे थे जिसने उन्हें आकर्षित किया। अपना देश छुड़वाया।
इस दंपत्ति पर कई बार हिन्दुओं को धर्म परिवर्तन के लिए उकसाने के आरोप लगे। हिन्दू धर्म की जातिगत बेडिय़ों में जकड़े निम्न जातियों के कुछ परिवारों ने इनके प्रभाव में आकर धर्म परिवर्तन किया भी। ऐसी उड़ती-सी ख़्ाबरें अख़्ाबारों मेंं छपी थीं। अखबार में छपने भर से बात सच हो इसकी कोई गारंटी नहीं हो जाती। पूरी सचाई कौन जाने?
धर्म के स्वयंभू ठेकेदारों को यह बात नागवार गुजरी। दोपहर थी। छायादार वृक्ष के तले खड़ी कार में मैरीन और उसके दोनों बेटे बैठे थे। मारिया की प्रतीक्षा थी। धर्म के तथाकथित रक्षकों ने कार को आग लगा दी। कार के दरवाजे नहीं खुले। तीनों जीवन की भीख मांगते रहे। चीखते-चिल्लाते रहे। धर्म के रखवाले राक्षसी हँसी हँसते रहे। मारिया कुष्ठ रोगी के घाव पर पट्टी कर रही थी। वह आई तब तक तीन हंसती-खिलखिलाती जिंदगियाँ राख हो चुकी थी। मारिया बावली हो गई. बहुत दिन तो रोई ही नहीं और जब रोई तब आसमान फटने को हो आया।
मारिया को अपने देश से बुलावे आये, पर नहीं गई. सेवा का व्रत जो पूरा करना था। पति का सपना जो पूरा करना था।
वो पेड़ जिसके नीचे मौत का तांडव हुआ था, अब ठूँठ हो गया। उस पर टहनियाँ हैं न फूल-पत्तियां। पंछी हैं न घौंसले। पर सुना है आज भी उस ठूँठ के पास जाओ तो हवाओं में प्रार्थना के स्वर गूंजते हैं-'ईश्वर गुनहगारों को माफ करना। मेरे पति और बेटों की आत्माओं को शांति प्रदान करना। मुझे अपने निर्णय पर अडिग रहने की ताकत देना।'