सेविंग प्राइवेट रायन: फौज यशोगीत / जयप्रकाश चौकसे

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सेविंग प्राइवेट रायन: फौज यशोगीत
प्रकाशन तिथि : 18 फरवरी 2019

कुछ लोगों के परिवार में परम्परा रही है कि युवा सदस्य सेना में भर्ती होते हैं। कुछ बेरोजगार लोग भी इस क्षेत्र में जाते हैं। देशप्रेम की भावना का ही अंश है देश की रक्षा करना। बहुत कम ऐसा भी हुआ है कि प्रेम में विफल होने पर युवा फौज में भर्ती हो जाता है। उसे देवदास बनने से बेहतर लगता है फौजी बनना। कुछ लोग स्वयं की किसी धारणा को सिद्ध करने के लिए भी फौज में भर्ती होते हैं। प्रसिद्ध लेखक जॉर्ज बर्नार्ड शॉ के नाटक 'आर्म्स एंड द मैन' का नायक यह कहता है कि युद्ध के समय वह केवल स्वयं को बचाए रखने का जतन करता है और शत्रु सेना पर आक्रमण के समय केवल लड़ने का दिखावा करता है। फौज का प्रशिक्षण अत्यंत सख्त होता है। प्रशिक्षण केंद्र में व्यक्ति को ताप देकर उसे इस्पात की तरह ढाला जाता है। इस विषय पर 'सोल्जर एंड जेंटलमैन' का चरबा 'मेजर साहब' के नाम से बना है। इस तरह प्रशिक्षण केंद्र और अग्नि की भट्‌टी में विशेष अंतर नहीं होता। सुलगती सरहदें ही सेना संयंत्र की ऊर्जा होती हैं। हथियारों के व्यापारी सरहदों को तपाए रखते हैं। कुछ देशों में सबसे अधिक लाभ हथियार बनाने से ही प्राप्त होता है। संकट काल में हमारे देश में एकता की भावना हिलोरें लेती हैं।

शांति के समय हम बंटे रहते हैं और पैदाइशी टुच्चेपन पर डटे रहते हैं। चीन द्वारा किए गए आक्रमण के समय महिलाओं ने अपने सारे गहने देश की रक्षा के लिए दे दिए। प्राय: इन अवसरों पर सारे फिल्म-कलाकार जुलूस निकालते हैं और अवाम से चंदा एकत्रित करते हैं। सच तो यह है कि आवाम द्वारा दिए गए चंदे की राशि फिल्म जगत की किसी दावत के खर्च से भी कम होती है। कुछ ही दिनों में इस हादसे पर बनाई जाने वाली फिल्म की घोषणा भी होगी। देश से प्रेम करना और देशप्रेम का दिखावा करना दो अलग-अलग बातें हैं। हाल ही में हुआ हमला पाकिस्तान के लिए एक कलंक है। अमेरिका चुपके-चुपके आज भी पाकिस्तान की सहायता कर रहा है। उसके द्वारा दिए गए हथियारों और हवाई जहाज इत्यादि की देखरेख के नाम पर उनका अच्छा खासा अमला पाकिस्तान में मौजूद रहता है। चीन भी पाकिस्तान की सहायता कर रहा है। यह हमारी सरकार की एक और विफलता है कि पड़ोसी देशों से हमारे संबंध खराब हैं और हमारे प्रति उनके सोच-विचार में आक्रामकता है। शहीदों के खून के छींटे नेताओं के उज्जवल वस्त्र पर भी पड़े हैं, जिसे प्रचार की लॉन्ड्री में साफ किया जा रहा है। दूसरे विश्वयुद्ध पर रूस, अमेरिका और इंग्लैंड में अनगिनत फिल्में बनी हैं। यहां तक कि युद्ध का इतिहास भी इन फिल्मों की मदद से लिखा जा सकता है। युद्ध पर सर्वश्रेष्ठ फिल्में रूस में बनाई गई, क्योंकि सबसे अधिक क्षति रूस की हुई थी। वह युद्ध इंग्लैंड की बुद्धि, अमेरिका के साधन और रूस के सैनिकों के सहयोग से जीता गया। रूस में बनी 'बैलड ऑफ सोल्जर', 'क्रेन्स आर फ्लाइंग' तथा अमेरिकी फिल्म 'सेविंग प्राइवेट रायन' विश्व सिने इतिहास में मील के पत्थर हैं।

'सेविंग प्राइवेट रायन' में एक ही परिवार के तीन युवा भाई शहीद हो जाते हैं। चौथा भाई भी युद्ध लड़ रहा है। वाशिंगटन के वॉर विभाग से युद्ध कर रहे सीनियर अफसर मिलर को संदेश दिया जाता है कि वे फौजी रायन को संदेश भेजें, क्योंकि वह अपने भाइयों में एकमात्र जीवित सिपाही है। इस परिवार के चार पीढ़ियों के युवा फौज में भर्ती होते रहे हैं। इसलिए परिवार के चश्म-ओ-चिराग को सुरक्षित उसके घर भेजा जाए। सीनियर अफसर मिलर युवा रायन को अपने घर जाने का आदेश देते हैं। उसे यह भी बताया जाता है कि उसके तीन बड़े भाई युद्ध में शहीद हो चुके हैं और वाशिंगटन स्थित मिलिट्री दफ्तर रायन की सुरक्षा चाहते हैं, क्योंकि उसके परिवार ने हमेशा देश की फौज की सेवा की है। युवा रायन घर वापसी से इनकार कर देता है। वह देश की रक्षा के अपने कर्म के प्रति पूरी तरह समर्पित है। सीनियर अफसर मिलर कहते हैं कि वापसी के आदेश को नहीं मानना अनुशासन के खिलाफ किया गया काम माना जा सकता है। युवा रायन कहता है कि युद्ध के पश्चात उस पर अनुशासन तोड़ने का मुकदमा चलाया जा सकता है परंतु वह आखिरी सांस तक युद्ध करता रहेगा। मिलर के सारे प्रयास विफल जाते हैं। फिल्म के पहले दृश्य में युवा रायन, मिलर की समाधि पर फूल चढ़ाता है। इसके पश्चात घटनाक्रम फ्लैशबैक में प्रस्तुत किया गया है। हमारे देश में कुछ इस तरह के आंकड़े सामने आए हैं कि उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश के युवा भारतीय फौज में अन्य प्रदेशों की तुलना में अधिक संख्या में भर्ती होते हैं। इन आंकड़ों से इस नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिए कि अन्य प्रांतों में देश की रक्षा की भावना कम है। रक्षा के मामले में पूरे देश में एकता की भावना है। यह भी कहा जाता है कि भारत के फौजियों को कम सहूलियतें प्राप्त हैं। अगर देश के नेताओं के युवा फौज में भर्ती होने लगे तो सुविधाएं बढ़ा दी जाएंगी। हमें कभी यह सुनने में नहीं आया है कि किसी नेता या किसी औद्योगिक घराने के युवा फौज में भर्ती हुए हों। नेतागण तो शहादत को भी राजनीति में भुनाना चाहते हैं। पाकिस्तान की आर्थिक दशा जर्जर है और वह दिवालिया होने की कगार पर है लेकिन, वह आतंकियों को मदद देने पर भारी खर्च करता है।