सेहत अपनी, देश की..या? / कमलेश पाण्डेय
जैसा कि दुनिया में समझदार आदमी करते हैं, मैं भी थोड़े-थोड़े दिनों पर अपने भीतर-बाहर झाँक लेता हूँ. भीतर वाली बात को तो अभी अंदर ही रहने दे लेता हूँ, पर हाल में किये गये बाहरी परीक्षण के परिणाम पर अपनी निजी प्रतिक्रिया से आपको अवगत कराना चाहता हूँ. इसमें आपको अगर थोड़ा आगाह करने का तत्व भी मिल जाए तो बोनस समझ लीजिये. बात ये है कि इस परीक्षण में मुझे अपने झुके कन्धों के नीचे घड़े के आकार की एक वस्तु नज़र आई और उस घड़े के नीचे दिखाई नहीं देते धड के तमाम जोड़ जकडन की गिरफ्त में मिले. पाँव उठाते ही उसपर लदे भारी वज़न का अहसास हुआ और दो कदम चलते ही सांस फूली. चूंकि पाँव भारी होने की संभावना मुझमें किसी भी उम्र में नहीं थी, सो मैं अपनी तीक्ष्ण बुद्धि से तुरंत समझ गया कि मेरा पूरा जिस्म ही भारी हो चला है और सेहत पर ध्यान देने का इरादा कर लेने का वक़्त आ गया है. हालांकि टीवी, अखबार और ईमेल के ज़रिये विज्ञापन और शुभचिंतकों के व्हाट्सएप्प सन्देश यही बात मुझे बार-बार कभी प्यार से तो कभी धमका कर अरसे से समझा रहे थे, पर जब तक अपनी अंतरात्मा से आवाज़ न आये, इन दिनों किसी बात पर यकीन नहीं आता. बस एक नारा ज़रूर मेरे दिल को छू लेता रहा है कि सेहतमंद नागरिक ही एक स्वस्थ भारत का निर्माण कर सकते हैं. इस तरह तमाम नसीहतों, अंतरात्मा की आवाज़ और बाहरी प्रेरणाओं में थोड़ा सरोकार मिला कर देश को सेहतमंद बनाने के इरादे से मैं बाज़ार गया और एक साईकिल खरीद लाया.
शाम को चंदूलाल जी पधारे तो मैंने उनके सामने साइकिल, उत्साह और देश के प्रति अपने समर्पण का प्रदर्शन किया. जवाब में उन्होंने जो व्यक्तव्य जारी किया वो मेरे संकल्प और साइकिल के टायर दोनों की हवा निकालने के बराबर था. बोले, “अगर अपनी सेहत से बेज़ार होकर ये पैडलिया कर्मकांड करने पर तुले हो तो करो, पर देश के वास्ते देश को अपनी सेहत में मत लपेटो. तुम्हारी सेहत का असर देश पर उलटा पड़ता है. इधर तुम सेहतमंद हुए, उधर देश की अर्थव्यवस्था को ढेरों इन्फेक्शन लगे. इसलिए देश-हित में जैसे हो वैसे ही बने रहो, बल्कि बिगड़ते रहो.”
मेरा उत्साह जैसे घड़े भर पानी से झड कर नीचे बह चला. मैंने झड़े हुए बालों के बीच उभर आये सर को खुजाते हुए पूछा, “ये कैसी उलटबांसी? हम जैसे होंगे वैसा ही न देश होगा हमारा!”
“देश नहीं, आप जैसे तो देश चलाने वाले होते हैं, आप ही के हाथों चुने जाकर. पर वो कहानी फिर सही. अभी सेहत पर फोकस करें तो समूचा तर्क उलट जाता है. देखो, तुमने साईकिल खरीद ली तो उसे चलाओगे भी. सेहत का बहाना बना कर बाज़ार और फिर दफ्तर भी साइकिल पर ही जाने लगोगे. एक गाड़ी खरीदने का सपना दिमाग से निकाल फेंकोगे. इसके कितने गंभीर परिणाम होंगे, कोई अंदाजा है?”
“गाड़ी नहीं चलाने से तो तेल की बचत होगी, पर्यावरण आदि शुद्ध होंगे...अब इसमें भी कोई पेंच है क्या?”
“कोई पेंच नहीं. सीधी-सादी इकोनॉमिक्स है, तेल क्या मुफ्त आता है, कीमत से दोगुना टैक्स होता है. सरकार का उतना टैक्स तो गया तेल लेने. गाड़ी भी मुफ्त नहीं आती, एकमुश्त लेने की तुम्हारी औकात नहीं. बैंक लोन का सारा ब्याज मारा गया कि नहीं? हर साल का इंश्योरेंस, रोड-टैक्स, प्रदूषण नियंत्रण के पैसे भी बचा कर इन धंधों को चौपट करोगे. बड़े-बड़े वर्कशॉप में धुलाई-सर्विस के लिए एक गाड़ी कम हो जायेगी. उधर पार्किंग वालों को भूखा मार दोगे. ज़रा हिसाब लगाओ, अर्थव्यवस्था और रोज़गार को कितना चूना लगा? चूना इतना ही नहीं है, और सुनो..”
हकबकाया हुआ मैं अब सन्नाटे में आ गया, “अभी और है?”
“टनों है. तुम्हारी सेहत सुधर गई तो पूरी प्राइवेट हॉस्पिटल इंडस्ट्री एक मरीज़ से महरूम हुई. फीस, जांच, दवा और इस सब की कीमत पर लगा टैक्स फुस्स. स्वास्थ्य बीमा का प्रीमियम गया चूल्हे में. सायकिल चलाओगे तो आँखें खुली रखोगे, दिमाग भी खुलने लगेगा, जियादा देखोगे, सोचोगे. टीवी और फोन की स्क्रीन से ध्यान हटाने लोगे. मोबाइल कंपनियों को जो नुक्सान होगा सो होगा, विज्ञापन के सहारे माल बेचने वाले मैन्युफैक्चरिंग उद्योग की तो वाट लग जायेगी. ऐसा तो होगा नहीं कि अकेले ही पैडल घुमाते रहोगे. दस बीस को तो बहका ही लोगे. वे आगे अगले पचास-सौ को भड़कायेंगे. तुम्हारी सेहत की बीमारी आसपास महामारी की तरह फैल जाएगी. देश में इतने लोगों का सिर्फ साइकिल चलाकर सेहतमंद हो जाना देश की जीडीपी की सेहत के लिए कितना हानिकारक है, तुम जैसे स्वार्थी क्या जानें.
चंदूलालजी ने सामने के बाज़ार में लाइन से सजे पिज्जा-बर्गर-कोल्ड-ड्रिंक की दुकानों की ओर इशारा करते हुए अंतिम हथौड़ा मारा, “मालूम है ये चंद दुकानें देश भर में कितना रोज़गार पैदा करती हैं? दस दांतों के डॉक्टर, उतने ही हृदय रोग विशेषज्ञ और तरह-तरह के वज़न-घटावक उद्योग. इस सारे कारोबार से जीडीपी में हुए इजाफे का हिसाब करो. समझ जाओगे कि देश की सेहत की कीमत पर अपनी सुधारने की सोचना भी ज़ुर्म है”
मुझे पूरी तरह शर्मिदा हुआ देख कर चंदूलालजी ने अपना आर्थिक सत्संग रोककर मुझे पुचकारा. “साईकिल चला कर सेहत सुधारने की तुम्हारी इस सोच से हुए पाप का प्रायश्चित है वत्स. मेरे संग चलो हमारी महफ़िल में. इस झोले में रखी वस्तुओं पर चुकाए हुए टैक्स के पुण्य से तुम्हारा सारा पाप कट जाएगा.” ये कहते हुए उन्होंने सोडे से गलबहियां किये झोले में लेटी बोतल का घूँघट उठा कर दिखाया. बगल में सिगरेट की डिब्बियां और पान मसाले के पाउच भी मुस्करा रहे थे.