सैंया भये कोतवाल / नूतन प्रसाद शर्मा
बाबा भारती अपने घोड़े सुलतान को दाना खिला रहे थे कि खड्गसिंह उनके पास आया.बाबा ने उससे पूछा-कहो इधर आना कैसे हुआ?
खड्गसिंह बोला-तुम्हारे सुलतान की बहुत कीर्ति सुनी थी,उसी की चाह खींच लायी.
- देखना चाहते हो जी भर कर देख लो.इसके समान दूसरा घोड़ा ढ़ूंढ़ने पर भी नहीं मिलेगा.
- जानता हूं तभी इसे अपने अधिकार में लेने आया हूं .
बाबा जी डर गये फिर हिम्मत कर बोले-मैं स्वीकृति दूंगा,तब तो ले जाओगे .
खड्गसिंह ने घोड़े का लगाम अपने हाथ में ले लिया.कहा – बुड्ढे, मुझे किसी से पूछने की जरूरत नहीं.जो वस्तु मुझे पसंद आ जाती है,उसे बलपूवर्क अपने कब्जे में कर लेता हूं.गड़बड़ करोगे तो तुम्हें भी साथ ले जाऊंगा.
- मुझे ले जाने से तुम्हें क्या मिलेगा?
- तुम्हारे परिवार वालों से फिरौती वसूल करूंगा.मेरे पास अभी भी छब्बीस पकड़े हैं.रूपये मिल जाने पर ही वे मुक्त होंगे.
- और रूपये न मिले तो?
- उन्हें मौत के घाट उतार दूंगा.
बाबा भारती को सहसा विश्वास नहीं हुआ.उन्होंने पूछा-तुम तो ऐसे बात कर रहे हो,मानो तुम्हीं सर्वेसर्वा हो.दूसरों की जान लोगे तो पुलिस पकड़ेगी नहीं.
खड्गसिंह ने मूंछे ऐंठ कर कहा -कई व्यक्तियों को कतार में खड़ा करके भून दिया,गांव के गांव जला कर राख कर दिये.लेकिन पुलिस मेरा कुछ न बिगाड़ सकी समझे?
- अभी तक बचते रहे इसका मतलब यह नहीं कि सदैव बचते रहोगे.बी.एस.एफ.एस.ए.एफ. के जवान तुम्हें खोज रहें हैं.जिस दिन उसके हत्थे चढ़ जाओगे तो तुम्हारी पूजा नहीं करेगें.
- उन्हें मेरा छाया भी नहीं मिलेगा. क्योंकि उनके बीच के ही आदमी मेरे मुखबीर जो हैं.वे अपने कार्यक्रमों की सूचना मुझ तक पहले ही पहुंचा देते हैं.मैं सुरक्षित स्थान पर चला जाता हूं. आश्चर्य में मत पड़ जाना हमारे पास जितने हथियार है,वे शासकीय शास्त्रागार के हैं.
बाबा की आंखें फैल गई.संय त होने पर बोले-समझ नहीं आता तुम्हारी बात मानूं या इंस्पेक्टर दीनासिंह की.वह तुम्हें ढ़ूंढ़ने यहां तक आया था.कह रहा था कि खड्गसिंह को जिंदा या मुर्दा पकड़ कर रहूंगा.
खड्गसिंह ने गरज कर कहा-वह स्साला क्या पकड़ेगा.मैंने उसके क्षेत्र में कई स्थानों पर डाके डाले उसे पता था पर पास तक नहीं आया.
- अरे,जब अवसर आया था तो अपने कतर्व्य का पालन करना ही था.
- जो मेरे जी हूजुरी करता है,वह भूलकर भी ऐसी गलती नहीं कर सकता.
- क्या वह तुम्हारा खरीदा हुआ गुलाम है जो जी-हूजुरी करेगा?
- हां, लूट का हिस्सा जो देता हूं.रूपयों में मंत्री,सांसद मिल जाते हैं तो थानेदार की बात कर रहे हो.अगर प्रमाण चाहते हो तो देख लो,ये बंदूक उसने ही दी है.
बाबा भारती ने देखा-वास्तव में यह वही बंदूक थी जिसे लेकर इंस्पेक्टर गस्त देने आया था.बाबा ने कहा-मान लिया कि दीनासिंह को तुमने खरीद लिया है लेकिन पुलिस अधीक्षक श्यामदेव तुमसे खार खाये बैठे हैं.
खड्गसिंह को हंसी आ गई .बोला-वे तो मेरे संरक्षक है.उनकी पत्नी अनामिका ने मुझे भाई बनाया है.मेरे हाथ में जो राखी बंधी है, उसे अनामिका ने ही बांधी है.
बाबा ने देखा वास्तव में खड्गसिंह के हाथ राखी से जगमगा रहा था.बाबा ने पूछा-इससे तो यही प्रतीत होता है कि तुम पुलिस अधीक्षक से मिल चुके हो.
खड्गसिंह ने स्वीकार किया-अवश्य, वे खुद बीहड़ मुझसे मिलने कई बार आकर मुलाकांत कर चुके हैं.
- क्यों?
- मुख्यमंत्री शिवलाल का संदेशा लेकर.
- उनसे भी तुम्हारा संबंध है.
- हां, उनका मेरा मित्रवत व्यवहार है.चुनाव के समय मैंने उनकी मदद की थी.जनता में दहशत फैला कर उन्हें वोट दिलवाया था.
खड्गसिंह बताने में तथा कि बाबा भारती ने टोका-तुमने यह नहीं बताया कि मुख्यमंत्री ने कैसी खबर भिजवायी.वे तुमसे कि स प्रकार की अपेक्षा रखते हैं.
खड्गंसिंह बोला-वे मुझसे आत्मसमपर्ण कराना चाहते हैं.
- मुझे विश्वास नहीं होता कि इसके लिए सरकार स्वयं प्रयत्नशील होगी.ऐसे में वह खुद झूक रही है.
- यह कोई नई बात नहीं है.कई गिरोह सरकार की प्रार्थना पर आत्मसमपर्ण कर ठसके की जिन्दगी जी रहे हैं.
- जिन्होंने हत्या-लूट-बलात्कार किये ऐसे अपराधियों को कुछ दण्ड भी नहीं मिला?
- नहीं तभी तो डाकुओं के हौसले बुलंद रहते हैं.
बाबा में बोलने की शIक्ति नहीं रह गयी थी.वे सिर पकड़ कर बैठ गये.तभी एक व्यक्ति आया.वह खड्गसिंह के गैंग का आदमी कालिया था.उसने कहा-सरदार, थानेदार साहब ने खबर भिजवायी है कि पुलिस की टुकड़ी इधर ही आ रही है.इसलिए दूसरे स्थान चले जाओ.
खड्गसिंह ने आदेश दिया-तुम लोग पकड़ो को लेकर चलो मैं आ रहा हूं.
कालिया के लौटने के बाद खड्गसिंह ने बाबा से कहा- बुड्ढे मैं चल रहा हूं, साथ में तुम्हारा घोड़ा ले जा रहा हूं.अगर दम है तो रोक ले.
बाबा भारती ने बोला-जब पुलिस कानून और सरकार तुम्हारे मददगार हैं तो मुझमें क्या, किसी में इतनी शक्ति नहीं कि तुमसे लोहा ले सके.लेकिन यह तो बता दो कि यह क्रूर कर्म करते क्यों हो?
खड्गसिंह सुल्तान की पीठ पर बैठ गया और जाते जाते कहा -धनवान बनने ऐश करने प्रसिद्धी पाने,जो जितना अपराधिक कर्म करता है,उसका उतना ही नाम रौशन होता हैं लोग उससे भय खाते हैं कभी तुम्हें भी बहादूर बनने का खिताब लेने की ललक हो तो आकर मेरे गिरोह में सम्मिलत हो जाना.