सैनिक पत्नियों की डायरीः महत्त्वपूर्ण अभिलेख / रश्मि विभा त्रिपाठी
‘सैनिक पत्नियों की डायरी’ भारतीय सेना का जीवन, सैन्य जीवन की जटिलताओं, संघर्षों और साहस को सामने लाते हुए पति के साथ और पति के सीमा पर रहते हुए, दोनों प्रकार की परिस्थितियों में संचालित सैनिक- पत्नी के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अभिलेख है।
पुस्तक में ‘डायरी- लेखन’ भारतीय सेना की सामाजिक, सांस्कृतिक संरचना को रेखांकित करते हुए यह बताता है कि अपने सैनिक पति के साथ आगामी खतरों और जीवन के उतार-चढ़ाव का सामना करते हुए अपने बच्चों को शिक्षित और सशक्त बनाने का कर्तव्य निभाती ये सैनिक पत्नियाँ देश के लिए कैसे अपने व्यक्तिगत स्वत्व का बलिदान करती हैं। यह डायरी बताती है कि अपने पति की पहचान के पीछे रहकर अदृश्य बलिदान करने वाली ये सैनिक पत्नियाँ, जो ‘मेमसाहब’ के रूप में जानी जाती हैं, असल में सैनिकों की असली ताकत हैं। इस डायरी में एक सैनिक से विवाह के बाद शुरू हुए सैनिक पत्नी के जीवन के नए सफ़र, सैन्य परिवार का नए सदस्यों के प्रति व्यवहार, सैन्य संस्कृति और सैन्य परिवेश में समायोजन की चुनौतियों के अनुभव हैं। यह डायरी सैनिक जीवन की सामाजिक संरचना और उसमें सैनिक पत्नी की महत्त्वपूर्ण भूमिका दर्शाती है, जो सेना की सभी सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधियों में भागीदारी करती है। इन सैनिक पत्नियों ने सैनिक पति की जगह-जगह पोस्टिंग, बार-बार स्थानांतरण से परिवार की प्रभावित दिनचर्या, बच्चों की परवरिश, पढ़ाई, नए स्कूल में दाखिले के बीच न केवल अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी कर शैक्षिक, सामाजिक, साहित्यिक क्षेत्र में अपना योगदान दिया; बल्कि विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों की भिन्न-भिन्न भाषा, संस्कृति, जलवायु- विविधता, खान-पान, रहन-सहन, और शिक्षा प्रणाली की बाधाओं के बीच अपने जीवन को तटस्थता से जीते हुए अपने सैनिक पति का कर्तव्यपथ प्रशस्त किया।
सैनिक पत्नी साहित्यकार शशि पाधा विवाहित जीवन में पहली बार ‘अपने घर’ आईं- “मोटे खद्दर का बना हुआ एक बड़ा- सा कमरा... दीवारें, छत, खिड़कियाँ सभी मोटे हरे रंग के कपड़े से बनी थीं। टेंट के बीचों-बीच एक मोटा- सा बाँस था, जिसने इसकी छत को थाम रखा था। सामने एक लोहे की मेज पर कैरोसिन लैंप जल रहा था। कैंटीन से लाई गई लकड़ी की पेटियों को ताजा अखबारों की परत से ढककर एक मेजपोश बिछाकर एक बड़ा- सा देखने वाला शीशा रख दिया गया था (मेरा पहला ड्रेसिंग टेबल) फर्नीचर के नाम पर दो चारपाइयाँ थीं। फर्श तो मिट्टी का ही होगा, लेकिन उसके ऊपर जहाँ- तहाँ लाल रंग का टाटनुमा जूट का कालीन बिछा दिया गया था। टेंट के एक कोने में चार- चार ईंटों पर रखे थे हमारे दो काले बक्से...” और उनके बेटे का पहला घर- “बाशा यानी पहाड़ी की किसी समतल जगह पर मिट्टी और पत्थरों से चिनी हुई दीवारें, घास-फूस और सरकंडे की छत।” ऐसा कठिन जीवन जिया है इन सैनिक पत्नियों ने। अलका पंत की डायरी बताती है कि जब पति पहली बार अकेला छोड़कर जाते हैं, तो कैसा डर होता है और जब उनके पति को IPKF (श्रीलंका में लिट्टे के खिलाफ शांति अभियान चलाने वाली सैन्य टुकड़ी) के तहत श्रीलंका भेजा जाता है (उस समय श्रीलंका जाने का अर्थ मौत के मुँह में जाना था), तो देश के प्रति कर्तव्य निभाने को भेजती सैनिक पत्नी को गर्भधारण की स्थिति में पति की अनुपस्थिति कितनी प्रभावित करती है और सुरक्षा का मुद्दा भी।
ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद बढ़ी हिंसा के माहौल में रहना और असम की पोस्टिंग के दौरान बच्चों के साथ ट्रेन से जाते हुए ट्रेन में उग्रवादियों द्वारा किए गए बम विस्फोट की घटना यह दिखाती है कि कैसे एक सैनिक व्यक्तिगत, पारिवारिक संकट और कर्तव्यों के बीच संतुलन बनाकर देश- रक्षा को प्राथमिकता देता है। सैनिकों के शहीद होने, शहीदों की पत्नियों के दुख और अपंग सैनिकों के संघर्ष के बीच इस सैनिक पत्नी ने दृढ़तापूर्वक अपने परिवार की सेवा की; ताकि पति अपना कर्तव्य निभाते हुए देश- सेवा कर सकें। एक साथी की शहादत पर सभी सैनिक परिवारों का प्रभावित होना सेना की सामूहिक एकता को दर्शाता है, जहाँ सभी महिलाएँ, बच्चे मिलकर उस दुःखद परिस्थिति का सामना करते हैं। बच्चों पर किसी भी घटना का प्रभाव पूरी उम्र रहता है; लेकिन उपर्युक्त घटनाओं के साक्षी अलका जी के बेटे का इतने जोखिम के बावजूद सेना में भर्ती होने का निश्चय देश के प्रति सच्चे समर्पण का प्रमाण है। कैंटोनमेंट छोड़ने पर भावुक होना बताता है कि वह निवास नहीं, बल्कि उनके अस्तित्व का हिस्सा था।
सिविलियन अंबरीन जैदी ने यह जानते हुए भी एक फौजी को अपना जीवनसाथी चुना कि वे देश सेवा के चलते हमेशा साथ नहीं रह पाएँगे, हफ्तों- महीनों तक आपस में बात नहीं होगी। गर्भधारण के समय नियमित चैकअप के दौरान डॉक्टर को जब शिशु की हार्टबीट नहीं मिली, तो वे एक सीनियर ऑफिसर की पत्नी के बताने पर मिलिटेंसी के चरम में भी अकेले ही सिविलियन डॉक्टर के पास चली गईं। अंबरीन जैदी कहती हैं कि चुनौतियों को पार करते हुए अपने परिवार, बच्चों के लिए एक मजबूत, निडर छवि बनाकर रखने वाली एक सैनिक पत्नी वंडर वूमेन बन जाती है। छत्तीसगढ़ में तैनात उनके पति को माओवादियों से मौत की धमकी मिली, तो पहले वे डरीं; लेकिन फिर सामान्य हो गईं। एक सैन्य पत्नी के रूप में उन्होंने न केवल व्यक्तिगत चुनौतियों का सामना किया, बल्कि समाज में बदलाव लाने की प्रेरणा भी दी। सैनिक पत्नियाँ संस्था से सम्बन्धित सेवाएँ देने के साथ- साथ अपना कॅरियर बनाएँ, आर्थिक रूप से स्वतंत्र हों, उन्होंने इस दिशा में प्रयास किए। अंबरीन जैदी को वीर नारियों के अधिकारों के प्रति काम करने हेतु वर्ष 2023 में भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सम्मानित किया है। अपनी लेखनी से वे सामाजिक मुद्दों पर अपनी आवाज उठाती हैं। सेना ने उन्हें, उनके बच्चों को देशभक्ति, सेवा- भावना और आत्मबल सिखाया। वे अपनी पहचान पर गर्व करती हैं कि व्यक्तिगत संघर्षों के बावजूद वे एक बड़े मिशन का हिस्सा हैं।
स्वतंत्र पत्रकार अनीता आर विशाल की डायरी बताती है कि पति ड्यूटी पर तैनात थे और उन्हें 102 डिग्री बुखार था। जानकारी मिलते ही उनके पति के सीनियर ऑफिसर रात को उनकी जगह जाकर रुके और उनको देखभाल के लिए घर भेजा। उनका हाल जानने आई अन्य अधिकारियों की पत्नियों का ख कहना- “आख़िर यहाँ हम ही एक परिवार हैं। अगर हम आपस में एक दूसरे का ख़याल नहीं रखेंगे, तो कौन रखेगा!” और चंचल पंत की डिलीवरी के दौरान हुए ऑपरेशन में खून की जरूरत पड़ने पर 30 अधिकारियों का उन्हें खून देने पहुँचना, सेना की एकजुटता और परिवार भाव का प्रतीक है। एक बार चंचल पंत को उनके पति ने कहा- “जल्दी से मेरी बात सुनो, अपना ज़रूरी सामान सूटकेस में डालो और कार का टैंक फुल करा लो। ज़रूरत पड़ने पर बच्चों को गाड़ी में बिठाना और बॉर्डर पार कर लेना।” कारगिल युद्ध के दौरान पूर्णिमा सहारन को उनके पति ने चिट्ठी में बैंक खातों का सारा विवरण भेजते हुए लिखा कि यदि युद्ध के मैदान से वापस न आए, तो वे जीवन में इसके लिए तैयार रहें, यहाँ तक कि अपना जीवनसाथी चुन लें, जो उनके बेटे को हृदय से अपनाए। इस तरह की कल्पना तक से मन सिहर जाता है, ऐसी स्थिति में इन सैनिक पत्नियों ने कैसे धैर्य रखा होगा?
शशि पाधा जी ने अपने सैनिक जीवन में शहादत और मृत्यु को पास से ही नहीं देखा, बल्कि शहीद के परिवार को यह दुःखद समाचार देने की भी सबसे कठिन जिम्मेदारी निभाई और शहीद का अस्थि- कलश अपनी गोद में रखकर अंतिम विदाई के लिए पलटन तक लेकर आईं। श्रीलंका में लिट्टे के साथ अभियान में शहीद हुए कैप्टन हरपाल और कैप्टन सतीश का अस्थि कलश लेने वे सैनिक पत्नी दीपा के साथ दिल्ली एयरपोर्ट पहुँचीं और उनके अस्थि- कलश को लेकर अपनी पलटन आईं, जहाँ उन्हें अंतिम विदाई दी गई।
शशि पाधा जी ने कारगिल युद्ध की विभीषिका को देख दुखी होकर युद्ध विराम की अपील करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पत्र लिखा, जिसका उन्हें जवाब भी आया और युद्ध विराम भी हुआ।
ऐसी विकट परिस्थितियों का सामना करने के लिए आखिर इन सैनिक पत्नियों में बल कहाँ से आता है, जो अनगिन कठिनाइयों और दर्दनाक अनुभवों के बावजूद मजबूती और साहस के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं? निःसंदेह यह इनकी देश सर्वोपरि की भावना है, जो साहस और सहनशक्ति के दम पर पति के सीमा पर रहते हुए ये बच्चों के साथ कठिन से कठिन परिस्थितियों का सामना करती हैं। समर्पण और शौर्य की मिसाल ये सैनिक पत्नियाँ केवल परिवार का समर्थन ही नहीं करतीं’ बल्कि इनका मानसिक और भावनात्मक सहयोग सैनिक पति की कार्य- क्षमता बढ़ाता है, जिससे वे देश के प्रति अपने कर्तव्य को बेहतर ढंग से निभाते हुए सरहद की निगरानी करते हैं और जिसकी वजह से हम सिविलियन अपने घरों में चैन की नींद सो पाते हैं।
सम्पादिका स्वयं एक सैनिक पत्नी हैं, इस दृष्टिकोण से भी यह पुस्तक महत्त्वपूर्ण है। यह सैनिक समाज की उन वास्तविकताओं को, जिन्हें हमारा समाज आमतौर पर नजरअंदाज करता है, सामने लाते हुए भारतीय सेना के जीवन को बगैर किसी पूर्वाग्रह के यथावत समझाने में सहायक है।
पुस्तक के सम्पादन हेतु सम्पादिका डॉ. वंदना यादव को हार्दिक बधाई।
सैनिक पत्नियों की डायरी: वंदना यादव, पृष्ठ: 190, मूल्य: 350 रुपये (पेपरबैक), ISBN: 978-93-5562-382-9, प्रथम संस्करण: 2024, प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन प्रा. लि. 4/19 आसफ अली रोड, नई दिल्ली-110002 -0-