सैनिक रोॅ पत्नी / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

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गीतांजली के आगू मेॅ आय कोय नै छै। नैहरा परिवार आरो ससुराल सेॅ कत्तेॅ दूर, माय बहुत विरोध करलेॅ छेलै कि हम्मेॅ बेटी केॅ मद्रास नै भेजेॅ पारौं, नै बीहा होतै, तेॅ नै होतै। मतरकि बाबू के समझैला पर कि मिलेट्रीमेन दामाद रूपोॅ मेॅ मिली रहलोॅ छौं, भाग्य समझोॅ। जों ना नुकुर करला तेॅ हम्मेॅ की करौं। फेनू मद्रास मेॅ रहना छै, गीतांजली केॅ, नै कि हमरासिनी केॅ। एकरा तेॅ घरोॅ मेॅ बंधी केॅ रहवे अखरै छै। कत्तेॅ मजबूत मनोॅ के छै। तोरे लागै छौं कि हमरी बेटी मद्रास मेॅ असकल्ली केना रहती।

बाबू के समझैला पर माय मानी गेलोॅ छेलै, आरो गीतांजली के बीहा सैनिक सुभाष सेॅ होय गेलोॅ छेलै। सुभाष केॅ जबेॅ मड़वा पर सराती देखलेॅ छेलै, तेॅ सबके आँख टंगले रही गेलोॅ छेलै। जेना पत्थर काटी केॅ कोय बलिष्ठ युवक गढ़लोॅ गेलोॅ रहेॅ, आरो बगलोॅ में गीतांजली। एकदम सियाराम के जोड़ी रहेॅ।

बीहा भैलै, आरो दोसरे दिन सुभाष गीतांजली केॅ ले लेॅ मद्रास आवी गेलोॅ छेलै। बस पाँच रोज के तेॅ छुट्टी मिललोॅ छेलै, ससुराल की, ओकरा गामोॅ आवै के अवकाश नै छेलै, से सीधे ससुराल सेॅ कामोॅ पर लौटी गेलोॅ छेलै। विदा होय वक्ती सबनेॅ देखलेॅ छेलै कि गीतांजली की रं अपनोॅ आँखी के लोर छुपाय लेलेॅ छेलै, आरो मनोॅ के डोर भी।

आय ई बात केॅ एक दशक बीती रहलोॅ छै। रिटायर्ड होला के बादो सुभाषें नै छोड़लकै। सन्तान के नाम पर बस एक लड़का, विमलेन्दु। दूसरोॅ सन्तान के किंछा नै सुभाषे करलकै, नै गीतांजली। बस विमलेन्दु केॅ पढ़ाय-लिखाय मेॅ ही दोनो के पैसा समय खर्च होतेॅ रहलै जेकरोॅ परिणाम होलै कि विमलेन्दु इंजीनियरिंग के बड़का डिग्री लै केॅ पास होलै। पास होलै समय होतै, जबेॅ तोहे घोर दुख के बेला में होवा, आरो तोरोॅ सहायता करै लेॅ आगू-पीछू कोय्यो नै होतौं। सैनिक रोॅ पत्नी तेॅ सैनिक रं जीयै छै। " बस यही बात गीतांजली केॅ ढाढ़स बंधैलोॅ राखलकै।

ऊ बाबू भाय साथें स्वयं शवदाह गृह जलतेॅ देखलेॅ छेलै, तखनी गीतांजली के हेने लागलोॅ छेलै कि वै सैनिक रूपोॅ में सुभाष के मृत शरीर केॅ सलामी दै रहलोॅ छै। एकरोॅ बाद जे कुछु क्रिया कर्म लेॅ होना छेलै, विमलेन्दु साथेॅ गीतांजली भी सब कामोॅ मेॅ हाथ बटैलेॅ छेलै, आरो बीस रोजोॅ के बाद माय-बाप-भाय ही नै, विमलेन्दुओ नौकरी पर लौटी गेलोॅ छै। मद्रास में रही गेलै तेॅ अकेली गीतांजली। हों, जैतेॅ-जैतेॅ विमलेन्दु एतना ज़रूरे कहलोॅ छेलै, "माय जबेॅ भी तोहें कहभैं, हम्मेॅ भारत लौटी ऐवै।" बस यही बात गीतांजली लेॅ काफी छेलै। वैं केकरौ नै रोकलेॅ छेलै। रोकला सेॅ कोय रुकबे नै करतियै, यही सोची केॅ।

आय पाँच सालोॅ के बाद गीतांजली एत्तेॅ खुश दिखाय छेलै। मजकि एकरोॅ मतलब ई छेकै कि ई पाँच सालोॅ मेॅ ऊ उदास-उदास अपनोॅ जिनगी केॅ काटतै रहलै। खुश रहै के तेॅ हजार तरीका होय छै। सबसें बड़ोॅ बात तेॅ ई छेलै कि ओकरोॅ पास सुभाष के स्मृति छेलै, जे स्मृति मेॅ सुभाष के कत्तेॅ-कत्तेॅ बात अटलोॅ पड़लोॅ छेलै। एक दाफी गीतांजली केॅ चुपचाप फ्लैट में बैठली देखी केॅ कहलेॅ छेलै, "सैनिक रोॅ पत्नी हेना केॅ कहीं जिनगी काटै छै। खाली समय मेॅ तोहें आसपास के पढ़ैवाला बच्चा केॅ इकट्ठा करी, ऊ सिनी के कुछ बतावोॅ पारै छौ। एक रास्ता छौं। तोरोॅ ज्ञान के लाभ जो दुसरौ केॅ मिलतै, तेॅ समाज देश के उपकारे नी होतै। याद रखोॅ, हमरा सिनी के जिनगी ई देश ई समाज लेली ईश्वर सेॅ दान मेॅ मिललोॅ छै। कबके होय केॅ आदमी अपनोॅ दुख केॅ अकेलापन केॅ चुटकी मेॅ हटावेॅ पारै।"

आरो गीतांजली यहा करलेॅ छेलै। सबसेॅ पहिलें वै अपनोॅ फ्लैट के ठीक सामना के फ्लैट के लड़की केॅ पढ़ाना शुरु करलेॅ छेलै। लड़की जेकरोॅ नाम उर्वशी छेलै। जेहनोॅ नाम, ओहने रूप, आरो होने गुण। बचपने सेॅ नाच-गान में निपुण। यही लेॅ ओकरोॅ नाम शायत उर्वशी पड़ी गेलै, नै तेॅ केकरा नै मालूम छै कि एकरोॅ पहिलकोॅ नाम पिंकी छेलै। उर्वशी मैये-बापे के नै सेक्टर भरी के लोगोॅ लेॅ आकर्षण के केन्द्र बनी गेलोॅ छेलै। मतरकि विधि रोॅ विधान देखोॅ, उर्वशी जबेॅ बारह साल के भेलै, तेॅ पोलियो के आक्रमण ओकरोॅ दायां गोड़ोॅ पर होय गेलै। की-की नै कोशिश करलोॅ गेलोॅ, ओकरोॅ बीमारी के इलाज लेली, कहाँ-कहाँ नै लै गेलोॅ होतै, ओकरा ओकरोॅ माय-बापें, मजकि गोड़ नै ठीक होलै तेॅ वापिस आवी गेलोॅ छेलै।

साल भरी पहिले जे फ्लैट से कभी गीत आरो कभी पायल के आवाज ऐतेॅ रहै, ऊ बन्द होय गेलोॅ छेलै। ई सब केॅ जानै वाला केॅ मोॅन बहुत छोटोॅ होय गेलोॅ छेलै। कुछ दिन तक उर्वशी के नगीच जाय के ढाढ़सो बांधतेॅ रहलै, फेनू बाद मेॅ यहू रुकी गेलै। मतरकि गीतांजली के आना-जाना नै रुकलै। पहिले तेॅ खाली भोरके वक्ती जाय छै, अंग्रेजी-हिन्दी पढ़ावै लेली, आवेॅ ऊ सांझको वक्ती उर्वशी के फ्लैट मेॅ पहुँची जाय छै।

गीतांजली के बस एक्के इच्छा छै कि उर्वशी के ध्यान नाच सेॅ हटी के खाली गान आरो पढ़ाय-लिखाय पर केन्द्रित होय जाय, जो हेनोॅ होय जाय छै, तेॅ उर्वशी अपनोॅ रास्ता आपने तै करी लेतै। आरो गीतांजली के ई सोच ने रंग लानलेॅ छेलै।

आबेॅ उर्वशी आकाशवाणी के गायक कलाकार बनी गेलोॅ छेलै। गीतांजली सेॅ मुलाकात में आकाशवाणी के संगीत विभाग रोॅ अधिशासी उर्वशी के बारे में जानलेॅ छेलै, आरो सब कुछ ठीक होय गेलोॅ छेलै, उर्वशी केॅ तेॅ नया जिनगी ही मिली गेलोॅ छै, ओकरे नै, ओकरोॅ माय-बाबुओ केॅ, शायत ई सोची केॅ कि जों उर्वशी के बीहा नहियो हुऐ छै, तहियो कोय बात नै, जिनगी के निवाह लेॅ एक व्यवस्था तेॅ होइये गेलै। एक सेना परिवार तेॅ गीतांजली के सम्मुख एकदम झुकी गेलोॅ छेलै।

उर्वशी केॅ जोॅन दिन आकाशवाणी मेॅ नौकरी मिललोॅ छेलै, ऊ दिन शायत सक्सेना परिवार सेॅ कहीं ज़्यादा खुश छेलै गीतांजली, मतरकि एकरोॅ सेॅ कहीं ज़्यादा खुश छै ऊ आय। वै आपनोॅ बेटा विमलेन्दु के शादी लेॅ एक लड़की देखी लेलेॅ छै। देखी की लेलेॅ, समझोॅ के शादी पक्किये। गीतांजली केॅ कुछ इन्तजार छेलै, तेॅ एकरे कि लड़की अपनोॅ पढ़ाय खत्म करी लेॅ। शायत विमलेन्दुए केॅ ध्यान मेॅ राखी लड़कियो के माय-बाबू गीतांजली सेॅ कहलेॅ छेलै "पड़ोसिन जी, अपनोॅ बेटा साथें हमरोॅ बेटी के बीहा शादी के ख्याल रखियो, हमरा कोॅन चीज के कमी छै, नै बेटा छै, नै कोनो मोह। बेटी वास्तें कोय योग्य वर मिलतै, तेॅ जे सम्पत्ति छै जमाय के नाम लिखी देवै।" आरो फेनू आखरी मेॅ यहू कहै लेॅ नै छोड़लेॅ छेलै कि हों लड़का विमलेन्दु रं हुएॅ तेॅ जिनगी साथे बुझवै। "

गीतांजली केॅ अपनोॅ बेटा पर हठाते गर्व होय उठलोॅ छेलै। वै मने मन सोचलेॅ छेलै, "आबेॅ तेॅ विमलेन्दुओ ब्याहै लायक होय गेलोॅ छै। यही तेॅ उमिर होय छै, शादी बीहा लायक।" मजकि तखनिये ओकरोॅ चेहरा पर कुछ उदासियो आवी गेलै, नै जानौं की सोची केॅ। ऊ कुछ बोललोॅ नै छेलै, आरो अपनोॅ फ्लैट लौटी गेलोॅ छेलै। कै दाफी ओकरोॅ मोॅन होलै कि वै विमलेन्दु केॅ फोन करै, अपनोॅ देश लौटी आवै केॅ। बहुत होय गेलै नौकरी-चाकरी करलोॅ। जत्तेॅ पैसा विदेश मेॅ रही केॅ कमावै छै, ओकरा सेॅ आधे मिलतेॅ, यही नी लेकिन बढ़िया सेॅ तेॅ रहतै। धने जमा करी केॅ की होतै, जों जिनगी के सुक्खे नै मिलेॅ। "आरो बहुत अन्थन-मन्थन करला के बाद वैं दूसरोॅ दिन टेलीफोन करलेॅ छेलै कि ऊ ई महीना के आखिर होतेॅ-होतेॅ अपनोॅ देश लौटी आवै।"

गीतांजली ई बात तेॅ देलेॅ छेलै, आरो विमलेन्दु बातों केॅ मानी तेॅ लेलेॅ छेलै, मजकि गीतांजली ई सोची केॅ बेकल छेलै कि आखिर कहूँ वहू परिवार बाद में ना नुकुर नै करी दै। चारे महीना पहिलकोॅ तेॅ बात छेकै, वै लड़की के परिवार नै, लड़कियों विमलेन्दु केॅ देखी-सुनी केॅ बीहा लेॅ हों करी देलेॅ छेलै। सब कुछ तै तमन्ना होय गेलोॅ छेलै, मतरकि बीहा के ठीक पाँच रोज पहिले लड़किये कही देलकै, हम्में बीहा नै करवोॅ। कारण कुछुवे नै बतैलोॅ गेलै। हो हंगामा करलै सेॅ की फायदा छेलै, बदनामिये छेलै। फोन पर ही गीतांजली बेटा केॅ बतैलेॅ छेलै, "तोरा दुख तेॅ होथौ कि जेकरा सेॅ तोरा बीहा ठीक करलेॅ छेलियै, ऊ लड़की बीहा करै लेॅ नैं चाहै छै। मजकि ई एत्तेॅ बड़ोॅ कोय घटना नै छेकै, जेकरा बर्दास्त नै करलोॅ जावेॅ सकेॅ। फौजी सुभाष के मृत्यु के दुख सिनी झेली चुकलोॅ छियै।"

वै मने मन सोचलेॅ छेलै, " आबेॅ पहिलकोॅ नाँखि जमाना तेॅ नहिये नी रहलै। माय नेॅ घरोॅ सेॅ खबर भेजलेॅ छेलै कि रमेश के लड़का सिद्धू बिहैली कनियांय के लै केॅ दिल्ली जाय रहलोॅ छेलै, आरो टॉयलेट के बहाना कनियांय लखनऊ मेॅ ही ट्रेनोॅ सेॅ उतरी गेलै। गाड़ी खुललै, तेॅ सिद्धू खोज खबर लेलकै, मजकि कनियांय तेॅ बनलोॅ-बनैलोॅ योजना मुताबिक उतरी केॅ अपनोॅ साथी साथें चली देलेॅ छेलै। बदनामी के डरोॅ सेॅ बात दबाय देलोॅ गेलोॅ। ई तेॅ बाद मेॅ लड़की के माय बाबू सेॅ पता चल्लोॅ छेलै कि लड़की कोय दूसरे लड़का सेॅ बीहा करै लेॅ चाहै छेलै।

गीतांजली एक दाफी जेना सहमी गेलोॅ छेलै। सोचलकै, वै जोन लड़की सेॅ विमलेन्दु के बीहा करै के बात तय करलेॅ छै, काही वहू आन केॅ चाहतेॅ रहेॅ, तबेॅ। लड़की केॅ बड़ोॅ कॉलेज में प्रोफेसरी के नौकरी मिली गेलोॅ छै, जे इनकारे करी दै, तबेॅ? माय-बापोॅ के आय कल के बात राखै छै, ...मजकि होनोॅ फालतू बात हम्मेॅ सोचवे करौं, कैन्हे। मैय्ये-बाप केॅ नै, खुद दिव्यौं हामी भरलेॅ छै। एक दूसरा केॅ खूब जानै छै। आठमी तक दिव्या आरो, विमलेन्दु एक्के साथ एक्के इस्कूलोॅ मेॅ पढ़लेॅ छै। फेनू हम्मेॅ हेनोॅ-तेन्होॅ कथी लेॅ सोचौं।

ॉॉ

गीतांजली केॅ घोर आचरज भेलोॅ छेलै, जबेॅ महीना के आखिर हुऐ के पहिले लौटी ऐलोॅ छेलै, आरो फेनू मद्रास।

"दस दिन पहिले, बेटा।" शकुन्तला आचरज सेॅ पूछलेॅ छेलै।

"जबेॅ नौकरी छोड़नै छेलै, तेॅ पहिलेॅ आरो बादोॅ सेॅ की होय छै।"

"तेॅ तोहें नौकरी छोड़ी देलौ?"

"हों माय, वहाँ गेला के बादे सेॅ तोर ध्यान मनोॅ मेॅ बनलोॅ रहै। आबै के मोॅन तेॅ बनैयै लेलेॅ छेलियै, जबेॅ तोरोॅ टेलीफोन मिललै, तेॅ बात तुरत पक्की होय गेलै, आरो हम्मेॅ घोॅर लौटी गेलियै।" विमलेन्दु हसतेॅ हुए बोललै।

साँझ बितलै, तेॅ विमलेन्दु माय सेॅ पूछलकै, "अपनोॅ लेली कोय पतोहू ढूंढ़लै की नै?"

हमरो ई बात सुनथै गीतांजली एकदम गंभीर होय उठलै। मतरकि तखनिये अपनोॅ चेहरा पर हँसी आनतेॅ कहलकै, "पहिलें उर्वशी के बीहा होय जाय, तेॅ घरोॅ में पतोहू लै आनबै।"

"अरे हो, उर्वशी के बारे मेॅ तेॅ पूछनै भूली गेलियै। की करी रहलोॅ छै ऊ। ज़रूरे कोय कॉलेजोॅ मेॅ प्रोफेसर आकि आफिसर होय गेलोॅ होती, पढ़ै-लिखै मेॅ तेज तेॅ छेवे करलै।"

"नै। बेटा हेनोॅ नै हुएॅ पारलै।"

"कैन्हेॅ माय?"

"पोलियो ओकरोॅ दायां गोड़ केॅ लै लेलकै।"

"की?" विमलेन्दु के चीख जेना निकलतेॅ-निकलतेॅ रही गेलै।

"हो, बेटा, तोरा ओकरोॅ फोटो दिखाय छियौं।" आरो ई कही केॅ गीतांजली अपनोॅ कमरा में चल्ली गेलोॅ छेलै। कुछुवे देरोॅ में ऊ एक फोटो लेलेॅ ऐली आरो बेटा के हाथोॅ में शायत देलकै। विमलेन्दु केॅ काटोॅ तेॅ जना खून नै। वैशाखी पर उर्वशी केॅ खड़ा देखी केॅ ऊ एक बारगिये काँपी उठलै। फेनू पूछलकै, "हेनोॅ कबेॅ होलोॅ, माय?"

"तोरोॅ बाबू के मिरतु के ठीक साल भरी पहिलेॅ। सक्सेना परिवार केॅ यहा विश्वास छेलै, उर्वशी ठीक होय जैती, मजकि विधि विपरीत छेलै।"

"की हमरा सिनी उर्वशी सेॅ मिलेॅ पारौं?"

"कैन्हेंनी बेटा, मतरकि ऊ अभी रेडियो स्टेशन मेॅ होतै। ओकरा नौकरी मिली गेलोॅ छै। दस बजे रात तांय वहीं रहै छै। नौकरी मिली गेला सेॅ ओकरोॅ दुख तेॅ कुछ ज़रूरे दूर होय गेलोॅ छै।"

"ओकरोॅ बीहा नै होलोॅ छै?"

"के करतै बेटा? की तोहीं करवा?" गीतांजली ई बात जानी-बुझी केॅ कहलेॅ छेलै, विमलेन्दु के मोॅन गमैलेॅ, आरो वैं ई कही केॅ बड़ी गंभीर दृष्टि सेॅ आपनोॅ बेटा दिश देख लेॅ छेलै।

"माय, तोरा ई रिश्ता पसन्द छौ, तेॅ हमरा की आपत्ति?" विमलेन्दु बड़ी सहजता सेॅ कहलेॅ छेलै।

"बेटा, सोची ला, तोहें की बोली रहलोॅ छौ। एक विकलांग के साथेॅ तोहें अपनोॅ जिनगी काटेॅ सकभौ? की साथ निभावेॅ पारभौं?"

"हमरोॅ बात छोड़ोॅ, माय। तोहें कुछ सोचलेॅ छौ, तेॅ कहोॅ। कहीं उर्वशी के ऐला सेॅ...?"

"बेटा, हमरोॅ इच्छा तेॅ साफे छै, नै तेॅ तोहरो फोटो कथी लेॅ देखलैतियौं। हम्मू सोचलेॅ छेलियै कि उर्वशी केॅ नौकरी मिली जैतै, तेॅ कोय नै कोय । मजकि हेनोॅ नै होलै। कि तभिये याद ऐलै, हमरो पास तेॅ बीहा करै लायक बेटा छै, उर्वशी हमरे पोतोहू कैन्हेंनी बनी जाय।"

"माय, तोरोॅ ऊपर देखभाल के भार की आरो नै बढ़ी जैतौं।"

" बेटा, सैनिक रोॅ पत्नी छेकियै। जेकरा पति देश के सीमा केॅ देखभाल करै छेलै, सीमा पर सबके मदद करैवाला, तेॅ की हम्में अपनी पतोहू के भी देखभाल नै करेॅ पारवै। बेटा हमरोॅ तेॅ सालोॅ सेॅ इच्छा छै कि जों हम्मेॅ उर्वशी केॅ अपनोॅ घोॅर लानोॅ पारौं तेॅ हम्मेॅ बुझवै, हम्मे एक सैनिक रोॅ वहा सच्चा पत्नी छेकिये।

"माय, उर्वशी केॅ अपनोॅ घर मेॅ पतोहू बनाय केॅ लानै के तैयारी करेॅ।" विमलेन्दु ने बिना देर लगैनेॅ कहलेॅ छेलै।

ई सुनी केॅ गीतांजली के आँखी में वहा चमक भरी गेलै, जे उमेशे सुभाष के आँखी में बनलोॅ रहै। गदगद मनोॅ सेॅ ऊ एतनै बोलेॅ पारलेॅ, "बेटा, तोहें अपनी माय केॅ नै, एक सैनिक रोॅ पत्नी के लाज रखी लेलोॅ छै।"