सैराट अर्थात बिंदास प्रेम की विजय / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :04 जून 2016
नागार्जुन मंजुले की मराठी भाषा में बनी फिल्म 'सैराट' ने महाराष्ट्र में सफल हिंदुस्तानी फिल्म की तरह व्यवसाय किया है। इस सिताराविहीन फिल्म के नए कलाकारों ने शूटिंग प्रारंभ होने से पहले अभिनय प्रशिक्षण लिया था। एक वर्कशॉप में उन्होंने शूटिंग पूर्व अपने चरित्र का निर्वाह किया और इस परिश्रम का परिणाम भी सुखद है। यह एक स्कूल जाने वाले कमसिन पात्रों की प्रेम-कथा है। सिनेमा में अमीर पिता की लड़की और गरीब पिता के लड़के का घिसा-पीटा फॉर्मूला है, परंतु फिर भी फिल्म में ताज़गी प्रभावशाली अभिनय और मंजे हुए निर्देशन के कारण आई है। हॉलीवुड में इस तरह की अनेक फिल्में बनी हैं और 'ग्रेजुएट' नामक फिल्म को महान माना जाता है। राज कपूर की 'जोकर' में कमसिन वय के नायक को अपनी शिक्षिका से प्रेम हो जाता है। उनकी 'बॉबी' के प्रेमी जवानी की दहलीज पर खड़े पात्र हैं। फिल्मकार ने अपनी इस प्रेम-कथा का अंत 'ऑनर किलिंग' से किया है। जातिवाद के घिनौने पंजे समाज की अंतड़ियों की चीरफाड़ करते हैं, जो दिमागी जड़ता का परिणाम है। इस फिल्म के त्रासद अंत पर बहुत विवाद हुआ है। फिल्मकार इस प्रेम-कथा को सुखद अंत दे सकता था परंतु ऑनर किलिंग पर ही वह आक्रमण करना चाहता था।
हिंदुस्तान एकमात्र एेसा देश है, जिसके वर्तमान में तमाम गुजिश्ता सदियां हर क्षण मौजूद रहती हैं। गुजर जाने के बाद भी नहीं गुजरे समय की वीभत्स कुरीतियों को दिखाने के उद्देश्य से ही यह फिल्म बनाई गई हैं। हॉकी और फुटबॉल के मैच में अतिरिक्त समय में भी गोल नहीं हो पाने के बाद कुछ समय और दिया जाता है, जिसे 'सडन डेथ' अर्थात यक-ब-यक हुई मौत इसलिए कहा जाता है कि उसमें किसी भी टीम द्वारा गोल मारते ही खेल खत्म कर दिया जाता है तथा खेल में 'वापसी' के लिए कोई अवसर नहीं दिया जाता। इस फिल्म का अंत भी सडन डेथ ही है परंतु दंपती के अबोध शिशु का मृत्यु स्थल पर आना और विलाप करना यह बताता है कि प्रेम-कथा के दुखांत में सामाजिक कुरीति ने कोई अंतिम विजय नहीं पाई है। प्रेम अभी जिंदा है। हॉकी के रेफरी की बजाई सीटी से प्रेम नहीं रुका है और फिल्म में नायिका का दकियानूसी अमीर पिता पूरी तरह नहीं जीता है। इस तरह की अधूरी-सी जीत प्रेम की दुनिया को शक्ति देती है। सदियों से प्रेमियों का कत्ल होता रहा है परंतु प्रेम आज भी जिंदा है।
इस प्रेम-कथा का एक रोचक मोड़ उस समय आता है, जब प्रेमिका कष्ट और अभावों से त्रस्त होकर अपने पिता के समृद्ध घर लौटने के लिए ट्रेन में बैठकर जाती हैं परंतु एक स्टेशन पर वह भीख मांगते दृष्टिहीन दंपती को देखती है कि वे कैसे प्रेममय हैं और वह लौट आती है। फिल्म में यह संवाद कि प्रेम अंधा होता है, कई बार इस्तेमाल किया गया है। अदालती इंसाफ की देवी की आंखों पर भी पट्टी बंधी होती है, जिसका मूल अर्थ है कि न्याय अमीर-गरीब इत्यादि किसी भी भेदभाव पर गौर नहीं करता। प्रेम और न्याय दोनों ही इस अर्थ में अंधे हैं कि वे जातिगत भिन्नता या गरीबी-अमीरी नहीं देखते। उनका आदर्श तो यही है परंतु यथार्थ की कालिख उनके दामन को उजला नहीं रहने देती। इस अर्थ में होली बारहमासी उत्सव है। महाराष्ट्र और कर्नाटक की सरहद पर बसे गांवों में 'सैराट' का अर्थ है 'बिंदास।' फिल्म समालोचक हेमचंद्र पहारे की राय में लड़की के अमीर व राजनीतिक रूप से शक्तिशाली पिता बिंदास है कि कोई कानून व व्यवस्था उन्हें रोक नहीं पाती है और वे मनमाने अन्याय करते हैं। इस फिल्म के प्रेमी बिंदास इस अर्थ में हैं कि उन्हें अपने पर किए गए अत्याचारों की कोई चिंता ही नहीं है, वे भयभीत भी नहीं हैं। शायद वे मन ही मन गुनगुनाते हैं, 'प्यार किया तो डरना क्या।' शक्तिशाली बादशाह के आम दरबार में बेबस गरीब बांदी उनकी सार्वभौम सत्ता का खोखलापन उजागर कर देती है। प्रेमियों की बादशाहत तो दोनों जहान में चलती है। वे 'दरबारी' कभी नहीं होते।
सरहदी क्षेत्रों की संस्कृतियां गलबहियां करती हैं और भाषाओं के बीच भी बहनापा है परंतु सैराट अर्थात बिंदास सार्वभौमिक, सर्वकालिक भावना है। गोरे अंग्रेजों से लेकर सांवले अंग्रेजों तक बांटकर शासन करने की धारणा को प्रेम ध्व्त कर देता है। फिल्मकार ने प्रेमियों को प्रश्रय देने वाले गरीबों की आपसी मोहब्बत और दर्द की साझेदारी को पहले ही स्थापित कर दिया है। अत: नृशंस रूप से कत्ल किए गए प्रेमियों की संतान प्यास से पाली जाएगी, बिंदास की भावना में दीक्षित होगी। बहरहाल, फिल्म के गीत मधुर और सार्थक हैं परंतु पार्श्व संगीत तो फिल्म की आत्मा ही है। सरहदी ग्रामीण जीवन में मोजार्ट, बेथोवन और क्लॉड डेब्यूसी ध्वनित होते हैं।