सोचो हमने क्या पाया इंसा होकर / जयप्रकाश चौकसे

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सोचो हमने क्या पाया इंसा होकर
प्रकाशन तिथि : 03 जनवरी 2020


वैचारिक एवं वैश्विक संकीर्णता के दौर में जीवन सिमटता जा रहा है और हम अपनी लघुता पर गर्व भी कर रहे हैं। सार्वजनिक स्थानों पर व्यवहार में टुच्चापन सराहा जा रहा है। सामूहिक अवचेतन को पुरातन की अफीम द्वारा बदल दिया गया है। यह ऐसी शल्य क्रिया है, जिसमें लहू की एक बूंद भी नहीं गिरती। याद आता है शेक्सपियर के नाटक में समय पर कर्ज नहीं लौटाने पर शॉयलॉक ने कर्जदार के शरीर से एक पाउंड मांस निकालने का अनुबंध किया था। कर्जदार रकम अदा करने में मात्र कुछ पलों की देरी कर देता है। कर्जदार की प्रेमिका पोर्शिया पुरुष वकील का वेश धारण करके आती है। वह कहती है कि कानूनी अनुबंध का पालन किया जाना चाहिए। एक पाउंड मांस निकालें, परंतु रक्त की एक बूंद भी नहीं गिरनी चाहिए। आज बिना रक्त गिराए समाज को बदल दिया गया है। जब यूलिसिस विश्व विजय करके लौटा तब उसकी मां ने कहा कि अब वह अपने द्वारा युद्ध में जीते सभी देशों की यात्रा एक सामान्य व्यक्ति की तरह करे और जीवन शैलियों पर गौर करे। इस यात्रा से बेहतर इंसान बन सकेगा। ताजा खबर है कि चीन ने अपने हजारों वैज्ञानिकों को अमेरिका से स्वदेश लौट आने का फतवा जारी किया है। ज्ञातव्य है कि अमेरिका हमेशा ही प्रतिभा का आयात करता है और कभी-कभी चुरा भी लेता है।

आशुतोष गोवारीकर की शाहरुख खान अभिनीत फिल्म 'स्वदेश' में नायक अपने पिछड़े हुए जन्म स्थान पर अवाम के सहयोग से बिजली उत्पादन संयंत्र की स्थापना करता है। सुभाष घई की 'परदेश' में भी नायक भारतीय कस्बे की नायिका को अप्रवासी की लंपटता और हिंसा से बचाता है। शांताराम की तथ्य प्रेरित 'डॉ. कोटनीस की अमर कहानी' में भी भारतीय डॉक्टर पीड़ित चीन के अवाम का इलाज करते हुए शहीद हो जाता है। केतन मेहता की 'मंगल पांडे' में भी एक भारतीय और अंग्रेज अफसर की मित्रता को चित्रित किया गया था। नागरिकता कानून भी उन लोगों को देश से खदेड़ना चाहता है जिनकी चार पीढ़ियां उसी स्थान पर रहती आई हैं। विगत सदी में मराठी भाषा में बनी 'विलायत पलट' भी इसी संकीर्णता पर आक्रमण करती है और अंदाज ए बयां व्यंग्य विधा का है। भारत में हुकूमते बरतानिया से मुक्त होने का संघर्ष करने वाले अधिकांश नेता विलायत पलट लोग ही थे। महात्मा गांधी, नेहरू और भीमराव अंबेडकर भी विदेश से शिक्षा ग्रहण करके स्वदेश आए थे। इस तरह हमें स्वतंत्रत करने में थोड़ा सा योगदान ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज और अंग्रेजी भाषा का भी है।

ऋषि कपूर द्वारा निर्मित फिल्म का टाइटल राज कपूर की फिल्म 'जिस देश में गंगा बहती है' की शैलेंद्र रचित गीत की पंक्ति 'आ अब लौट चलें कि तुझको तेरा देश पुकारे' से प्रेरित है। राजेश खन्ना, अक्षय खन्ना और ऐश्वर्या राय अभिनीत यह फिल्म दर्शकों को पसंद नहीं आई। दरअसल सारी सरहदें सत्ता लोभी लोगों ने रची हैं। धरती पर ईश्वर ने रेखाएं नहीं खींची हैं। कंटीले तार हमने बांधे हैं। जावेद अख्तर ने अभिषेक बच्चन और करीना कपूर अभिनीत रिफ्यूजी में गीत लिखा था- 'पंछी नदियां पवन के झोंके...कोई सरहद न इन्हें रोके...सोचो हमने और तुमने क्या पाया इंसान होके।'

डोनाल्ड ट्रंप मेक्सिको की सीमा पर दीवार खड़ी करने जा रहे हैं। ज्ञातव्य है कि अवैध ढंग से लंदन जाने वाले हिंदुस्तानी लोगों की कथा देव आनंद ने 'देस-परदेस' में प्रस्तुत की थी। इसी बात को मनोज कुमार ने फिल्म 'पूरब-पश्चिम' में प्रस्तुत किया था। विदेशों में बसे भारतीय लोगों की त्रासदी यह है कि अपनी मातृभूमि से भागे लोग अपनी संस्कृति की जमीन को छोड़ चुके हैं और आधुनिकता का सैटेलाइट पकड़ने में भी यह पंखहीन लोग असमर्थ हैं। इन्हीं लोगों ने भारतीय चुनावों को प्रभावित करने का ठेका लिया हुआ है।