सोना रे सोना, जुदा नहीं होना / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 25 फरवरी 2020
गुजश्ता सदी के चौथे दशक में शेख मुख्तार अभिनीत फिल्म ‘रोटी’ में एक पात्र अपना सारा सोना कार में लादकर भाग रहा है। उसने हमशक्ल होने का लाभ उठाकर एक रईस की जगह ले ली थी। अमीर आदमी दुर्घटनाग्रस्त होकर आदिवासियों की बस्ती में जड़ी-बूटी से अपना इलाज कराकर लौटता है। एक मोड़ पर कार पलट जाती है। उस लालची, कपटी आदमी का पूरा शरीर सोने के नीचे दबा है। वह रोटी मांगता है। सोना खाया नहीं जा सकता है। सिनेमा के पहले कवि चार्ली चैपलिन की फिल्म ‘गोल्ड रश’ में कुछ लोग सोने की तलाश में भटकते हैं। खाने का सामान समाप्त हो जाता है। नायक अपने जूते को उबालता है और तले में लगी कीलें निकालकर चमड़े को खाता है, मानो वह गोश्त में से हड्डी निकाल रहा हो। चार्ली चैपलिन अभिनीत यह पात्र अपना उबला हुआ जूता ऐसे चटखारे लेकर खाता है मानो छप्पन भोग खा रहा हो। संदेश स्पष्ट है कि सोने की तलाश में यह सब भी हो सकता है। अनर्जित संपत्ति का मोह मनुष्य को नारकीय कष्ट दे सकता है। एक पुरातन लोककथा है। मिडास टच पात्र अपनी बेटी को छूकर सोने की बना देता है। यह कथा कुछ हद तक भस्मासुर की तरह है।
फिल्म ‘मॅकेनाज गोल्ड’ में नायक कुछ व्यावसायिक लुटेरों की टीम बनाकर सोने की तलाश में निकलता है। सोने की चट्टान तक पहुंचते समय वे एक-दूसरे के साथी हैं, परंतु लालच उन्हें आपस में भिड़ा देता है। खाकसार की लिखी और ‘पाखी’ में प्रकाशित कुरुक्षेत्र की ‘कराह’ में यह प्रस्तुत किया गया है कि कुछ व्यापारियों ने युद्ध की सामग्री बेचकर अकूत धन कमाया था। यज्ञ के पश्चात वर्षा नहीं होने से अकाल पड़ गया है। अब वही व्यापारी सोने की दीवारों से टकराते हैं। सोने चांदी के बर्तन तो हैं, परंतु परोसने के लिए भोजन नहीं है।
राज कपूर की फिल्म ‘श्री 420’ में भी तिब्बत में सोना निकालने की बोगस कंपनी खड़े किए जाने का दृश्य है। सोना बनाने के तथाकथित कीमिया की खोज में अनगिनत लोग तबाह हो चुके हैं। अकूट सोना होने वाली काल्पनिक जगह का नाम एल डोराडो है। विगत सदी के छठे दशक में हाजी मस्तान घड़ियों और सोने की तस्करी करता था। नेहरू द्वारा एचएमटी संयंत्र स्थापित होने के बाद घड़ियां भारत में बनने लगीं और घड़ियों की तस्करी बंद हो गई। हाजी मस्तान के जीवन से प्रेरित फिल्म ‘वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ में अजय देवगन ने हाजी मस्तान की भूमिका अभिनीत की थी।
संपत्ति का लोभ-लालच और आने वाली पीढ़ियों के काम आने की बात से अंधविश्वास जन्म लेते हैं। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की एक कथा का सार इस प्रकार है कि एक व्यक्ति अत्यंत कंजूस है। वह मानता है कि भले ही चमड़ी चली जाए, परंतु दमड़ी (धन) नहीं जाना चाहिए। उसका पुत्र उसकी इसी बात से नाराज होकर घर छोड़ देता है। कई वर्ष बीत जाते हैं। कंजूस ने अपना धन अपने घर के बने एक तहखाने में महफूज रखा है। उसे अंधविश्वास है कि अगर वह किसी अबोध बालक को तहखाने में बंद कर दे तो कालांतर में वह बालक सांप के रूप में खजाने की रक्षा करेगा और धन सच्चे उत्तराधिकारी को ही सौंपेगा।
एक दिन उसे नदी किनारे एक अबोध बालक मिलता है। वह उसे बहलाकर तहखाने में बंद कर देता है। कुछ दिन बाद उसका पुत्र लौटता है और अपने पुत्र को उसने अपने दादा से मिलने के लिए भेजा था। बदले गए सरनेम के कारण कंजूस ने अपने ही पोते को मरने के लिए तहखाने में बंद कर दिया था। यह कहानी पढ़ते समय पाठक हिल जाता है। सर्प संपत्ति की रक्षा करते हैं जैसे अंधविश्वास के कारण ही दादा ने अपने पोते को अनजाने में मार दिया। ‘धन की भेंट’ के नाम से टैगोर की यह कथा बंगला से हिंदी भाषा में अनुवादित हुई है।
निदा फ़ाज़ली के लिखे गीत को जगजीत सिंह ने गाया है, जिसके बोल इस तरह हैं- ‘दुनिया यह जादू का खिलौना है, मिल जाए तो माटी, खो जाए तो सोना है।’ खबर है कि भारत में सोने की खान है, परंतु विशेषज्ञों की संस्था का कहना है कि दो किलो से अधिक सोना नहीं है। ज्ञातव्य है कि इतना सोना तो संगीतकार बप्पी लहरी गले में घारण किए रहते हैं।