सोना / बालकृष्ण भट्ट

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मैं समझता हूँ कि सोने के समान दूसरा सुख कदाचित न होगा। भाँति-भाँति के व्याुधि-ग्रसित मनुष्य जन्मस में यदि कोई सच्चाू सुख संसार में है तो सोने में है। किंतु वह सुख तभी मिलता है अब सोने का ठीक-ठीक बर्ताव किया जाए। इस सोने को आप चाहे जिस अर्थ में लीजिए निद्रा या धन बात वही है फर्क सिर्फ इतना ही है कि रात का सोना मन को मनमाना मिल सकता है धातु वाला सोना सब के पास उतने ही अंदाजे से नहीं आता। दूसरे इतने परिश्रम से मिलता है कि दाँतों सीने आते हैं। हम अपने विचार-शील पढ़ने वालों से पूछते हैं सोने के इन दो अर्थों में आप किसे अच्छान समझते हैं? क्योंन साहब रात वाला सोना तो अच्छाे है न? इसलिए कि यह कंगाल या धनी को सब को एक-सा मयस्सनर है। धनी को मखमली कोच पर जो निद्रा आएगी कंगाल को वहीं कंकड़ों पर। कहा भी है -

“निद्रातुराणां नच भूमिशैया”

जिससे सिद्ध होता है कि जो प्रकृति-जन्यज पदार्थ हैं उसके मुकाबले कृत्रिम बनावटी की कोई कदर नहीं है, जैसा मलयाचल की त्रिविध समीरण के आगे खस की टट्टियों से आती हुई थरमेंटीडोट की हवा को कभी आप अच्छाह न कहिएगा। किंतु फिर भी जैसा हम ऊपर कह आए हैं कि सोने के ठीक-ठीक बर्ताव ही से सब सुख मिल सकते हैं, इसके ठीक-ठीक बर्ताव में गड़गड़ हुआ कि यही सोना आपका जानी दुश्मसन हो जायगा और सरकार के स्थाइन में आपको रकार देख तब सुझने लगेगा, पर किफायत और उचित बर्ताव इसका रखिए तो सोना और सुगंध वाली कहावत सुगठित होगी। एक सोने वाला जुआरी एक बार बहुत सा रुपया हार गया तो बोला क्यास परवाह दूसरे दाँव में इसका दूना जीत लूँगा पर दूसरी बार जुआ में जो कुछ पल्लेह का था सो भी निकल गया। ऐसा ही एक सोने वाला विद्यार्थी बड़ा होने पर बहुधा अपने मित्रों से कहा करता है मैं जवानी में सो कर इतनी देर तक उठता था कि आज हिसाब लगाता हूँ तो 30 वर्ष में 22 हजार के लगभग घंटे मैंने बेफायदे खोए। याद रहे अगर आप रात वाले सोने का वाजिबी बर्ताव करते रहोगे तो धातु वाला सोना आप आ मिलगा। निश्चेय जानिए मनुष्य के लिए कोई वस्तु् अप्राप्त नहीं है यदि चित्त दे हम उसे लिया चाहे। सोना वह वस्तुम है कि इससे रोगियों का रोग, दुखियों का दु:ख थके हुओं की थकावट जाती रहती है। वैद्यक वाले लिख भी गए हैं -

“अर्द्धरोग हरी निद्रा सर्वरोग हरी क्षुधा”

घोर सन्निपात हो गया, दिन रात तलफ रहा है, एक क्षण भी कल नहीं पड़ती, दस मिनट की एक झाँप आ गई रोग आधा हो जाता है जीने की आशा बँध जाती है। अस्तुु यहाँ तक तो हमने मिला के कहा अब अलग-अलग लीजिए। रात को बिना सोए बादशाह को भी आराम नहीं पहुँचता। सारी दुनिया का सोना चाहे घर में भरा हो जब तक सोइए चैन न पाइएगा। सब दौलत और माल असबाब को ताक पर रख दीजिए और इस आरामदेह फरिश्ते के जरूर कैदी बनिए। अगर आपका दिल सैकड़ों झंझट और फिक्रों के बोझ से लदा हुआ है यहाँ तक कि उस बोझ को अलग फेंक घड़ी आध-घड़ी कहीं किसी पेड़ की ठंडी छाया में बैठ सीरी बयार का सेवन कर थोड़ा विश्राम करने का भी समय नहीं मिलता, ऐसे अभागे को इस फरिश्तेी की हवालात में भी जहाँ जीव मात्र को आराम और स्वाकस्य्ट मिलता है उसी तरह की बेचैनी और बेकरारी रहेगी। तात्पहर्य यह कि सच्ची गाढ़ी नींद उन्हीं को आती है जिनके दिलों में कोई गैर मामूली शिकायत नहीं रहती। बहुधा देखने में आता है ऐयाश शराबखोर देर से सोते हैं और देर तक उठते हैं। इसी के विरुद्ध विद्याभ्यातसी 12 या 1 बजे तक किताबों के साथ आँख फोड़ा करते हैं और चार ही बजे उठ खडें होते हैं। कितने ऐसे सुखिया जन हैं जिनको नींद जल्दफ आती है, कितने दरिद्र भी हैं जो दिन-रात सोया करते हैं फिर भी नींद के बोझ से हरदम लदे ही रहते हैं। बहुतेरे ऐसे भी सौभाग्यनशाली हैं जिनको स्वखभाव ही से बहुत कम नींद आती है और ऐसों को इस तरह का जागना स्वाेस्य्यन में कोई हानि नहीं पहुँचाता। परंतु अधिकांश ऐसे हैं जिनको यह गैर मामूली जागना बहुत ही बिगाड़ करता है। कम सोना जैसा नुकसान पैदा करता है वैसा ही अधिक सोना भी। और फिर रात में देर से सोने का जैसा बुरा असर तंदुरुस्तीर पर है उससे अधिक भोर को देर से उठने का होता है, विद्यार्थी को देर से उठने का परिणाम अत्यंत हानिकारक है। मनु ने तो सूर्योदय में सोने को यहाँ तक निषिद्ध कहा है कि जिसे सोते हुए सूर्य निकल आएँ उसे चाहिए दिन भर उपवास करे और गायत्री का जप करता रहे। जो लोग पहले सबेरे उठते रहे पर पीछे देर तक सोने की आदत में पड़ गए उन्हें याद रहे कि सूर्योदय के पहले उठ जरा बाहर की तरफ टहल आने से कैसा सुख मिलता था, आहा। उस समय प्रात: परिभ्रमण से चित्त को कैसी शांति और प्रसन्नोता प्राप्त होती है, उषा देवी के प्रसाद का अनुशीलन करने वाला स्व च्छश शीतल वायु, वनस्प्तियों पर मोती सदृश्यत ओस के बिंदु; पखेरुओं का कलरव, अरुण-किरण के मिस मानो लाल झालर टकी हुई आकाश वितान की अनूठी छवि दिशाओं की मनोहरता मन को प्रमोद प्रत्येशक अंग में रोम-रोम को कैसी फुर्ती और संतोष देती है। वही छह घड़ी दिन चढे़ तक ऐंड़ाय-ऐंड़ाय खाट तोड़ने वाले के मन और शरीर मैं कैसा आलस्ये शाठ्य और शैथिल्यच तथा सुस्ती- छाई रहती है कि संपूर्ण दिन-का-दिन नष्टि बीतता है। इसी से हमारे पुराने आर्य ऋषियों ने लिखा है -

“अरुणकिरणग्रस्तां प्राचीं विलोक्यलस्नांयात”

माघ कवि ने शिशुपाल के ग्यांरहवें सर्ग में प्रात:काल का बड़ा ही अनूठा वर्णन किया है जिसके पढ़ने वाले को प्रात: परिभ्रमण का पूर्ण अनुभव घर बैठे ही प्राप्तल हो सकता है।

अब धातु वाले सोने को लीजिए जिस से हमारा प्रयोजन धन से है। संसार के बहुत कम व्य्वहार ऐसे हैं जिनमें इसका काम न पड़ता हो, क्या फकीर क्यां अमीर राजा से रंक तक सब इसकी चाह में दिन रात व्यमग्र रहते हैं। कहावत है -

“इक कंचन इक कुचन पर किन न पसारो हत्थ ”

“सर्वे गुणा: कांचनमाश्रयंति”

इस सोने की लालच में पड़ मनुष्य कभी को वह काम कर गुजरता है जिससे उसकी मनुष्यता में धब्बान लग जाता है इस कारण लोग सोने ही को दोष देते हैं। अर्थात पाप-कर्म करने वाले को तो सब बचाते हैं और उस पाप के कारण सोने को जो एक जड़ पदार्थ है संपूर्ण अधर्म और अन्यामय का मूल समझते हैं। सोने के बल आदमी राई को पर्वत और पर्वत को राई कर दिखाता है किंतु संसार की और सब वस्तुसओं के समान यह भी क्षण भंगुर है। बराबर सुनते चले आए हैं कि लक्ष्मी चंचला है और एक पति से संतुष्ट नहीं रहती। जिस राह में इसे डालिए सोना एक बार अपना पूर्ण वैभव प्रकाश कर देगा पर अफसोस नेक राह में यह बहुत ही कम डाला जाता है। कोई विरले विरक्तोंअ की तो बात ही न्या री है नहीं तो संसार के असार प्रपंचों में आसक्त जन इसके लिए कोई ऐसा घिनौना काम नहीं बच रहा जिसे वे न कर गुजरे हों, कहाँ तक कहें इसके लिए भाई-भाई कट मरते हैं, बाप बेटे की जान ले डालता है। तवारीखों में कई एक राजा और बादशाह इसके उदाहरण है। किसी अंग्रेजी कवि का कथन है -

For gold his sword the hireling ruffian draws,

For gold the hireling Judge distorts the Laws,

Wealth heaped on wealth nor truth nor safety buys,

The Danger gathers as the treasure rise.

यद्यपि कलह के तीन कारण कहे गए हैं जर्र, जमीन, जन; पर सच पूछो तो सब बिगाड़ का असल सबब सिर्फ जर है। हमारा हिंदुस्तांन इस सोने ही के कारण छार में मिल गया। हमारे बेफिक्र होकर सोने से हमारे अपरिमित सोने पर इतर देशीय म्लेोच्छण गण बाज और चील कर तरह टूटे, लाखों मनुष्यों की जान गई, अंत को आखिरी बाज अंग्रेजी अपने मजबूत पंजे से उस पर जमी तो गए अब रूस इसके लिए मतवाला हो रहा है और ताक लगाए हुए है पर उसका ताक लगाना व्यूर्थ है अब तो यहाँ आय सोने की जगह धूर फाँकना है।

“सिद्धि रही सो गोरख ले गए, खाक उड़ावे चेले”

अस्तुि, इन बातों से हमें क्याा? सोना निस्सं देह संसार मे सार पदार्थ है यदि सोने वाला स्व।यं सारग्राही हो और उसे नेकी में लगावे। इसमें एक यह अद्भुत बात देखने में आई कि पर्वत के सैकड़ों स्रोत से नदी के झरने की भाँति जब यह आने लगता है तो सैकड़ों द्वार से आता है और जितने काम सब एक साथ आरंभ हो जाते हैं। इधर जेवर पर जेवर पिटने लगे, उधर पक्का संगीन मकान छिड़ गया, सवारी-शिकारी अमीरी ठाठ सब उठने लगे।

“अर्थेभ्योि हि विवृद्धेभ्यल: संमृतेभ्यधस्त‍तस्तमत:।


क्रिया सर्वा: प्रवर्तन्ते् पर्वतेभ्यव इवापगा:।।”

जब यह आने को होता है तो सब चीज ऊपर से देखने को यथास्थित बनी रहती है पर गजमुक्तत कपित्थआ सदृश भीतर ही भीतर पोले पड़ टाट उलट मुँह बाय रह जाते हैं।

“समायाति यदा लक्ष्मी‍र्नारिकेलफलांदबुवत्।

विनिर्याति यदा लक्ष्मीीर्गजमुक्तेकपित्थावत्।।”