सोनू चिड़िया / पूनम श्रीवास्तव
सोनू चिड़िया और रुपहली दोस्त थीं। दोंनों पेड़ों पर फुदक रही थीं। तभी सोनू को एक पेड़ पर एक बहुत सुंदर रंग बिरंगा फल दिखा।
सोनू बोली, 'मैं ये फल खाऊँगी।'
उसकी प्यारी दोस्त सुनहरी ने बहुत समझाया। मना किया।
'प्यारी सोनू, ये फल मत खा। इससे तेरा गला खराब होगा।'
पर सोनू ने उसकी बात नहीं सुनी। वह उस रंग बिरंगे फल को चखने का लालच नहीं रोक सकी। बस उसी दिन उसका गला खराब हो गया। गाना, बोलना सब बंद।
जंगल के सारे जानवर दुखी रहते। सोनू के सुरीले गीत सभी को पसंद थे। सोनू भी उसी दिन से उदास रहने लगी।
पूरे छह महीनों तक न वह कहीं गा सकी। न बोल सकी। बहुत परेशान रही वह। पता नहीं कहाँ से उसने वो कसैला फल चख लिया था।
एक दिन सबेरे दोनों दोस्त पेड़ की डाल पर बैठी थीं। आते जाते जानवरों को देख रही थीं। दूसरी चिड़ियों का चहचहाना सुन उसकी आँखों में आँसू आ गए।
'पता नहीं मेरी आवाज कभी ठीक होगी या नहीं।' उसने सोचा।
अचानक वहाँ एक गधा कहीं से भटकता हुआ आ गया। वह उसी पेड़ से अपनी पीठ रगड़ने लगा जिस पर दोनों बैठी थीं। शायद उसकी पीठ खुजला रही थी।
पेड़ पतला था। गधे के पीठ रगड़ने पर वो हिलने लगा। पहले धीरे धीरे फिर तेजी से। रुपहली और सोनू घबरा गईं। उन्हें लगा कहीं ये पेड़ गिर न जाय।
सोनू चीखी, 'बच के रुपहली, ये गधा हमें गिरा देगा।'
उसकी आवाज सुन रुपहली चौंक गई।
'अरे सोनू, तू तो बोल सकती है।' रुपहली चीखी।
'अरे सच में - मैं बोल सकती हूँ। अब मैं फिर गाऊँगी, चहचहाऊँगी।'सोनू जोर से चीखी।
सोनू और रुपहली चहचहाते हुए तेजी से उड़ीं।
दोनों चीख रही थीं। चहचहा रहीं थीं। गा रही थीं। पूरे जंगल में पंख फैलाए उड़ रही थीं।
जंगल के सारे जानवर भी खुशी मना रहे थे।